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क्या प्रधानमंत्री मोदी भी मनमोहन सिंह की राह पर चल पड़े हैं ?

    • राकेश चंद्र
    • Updated: 24 नवम्बर, 2016 01:55 PM
  • 24 नवम्बर, 2016 01:55 PM
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जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हुआ करते थे तब वर्तमान प्रधानमंत्री उनके लिए खूब गरियाते थे लेकिन सत्ता में आते ही उन्हें भी मनमोहन वाली आदत पड़ गई है, सो सोच लिया मैं नहीं बोलूंगा.

शीतकालीन सत्र के पिछले 6 दिन हंगामे की भेंट चढ़ चुके हैं. देश की जनता नोटबंदी पर प्रधानमंत्री मोदी के फैसले पर उनके साथ खड़ी है, तो दूसरी तरफ एकजुट विपक्ष का आरोप है कि प्रधानमंत्री संसद में रहते हुए भी नोटबंदी पर बयान नहीं दे रहे हैं. प्रधानमंत्री का नोटबंदी फैसला जहां देश से काले धन को मिटाने के लिए एक अहम कदम साबित होने वाला है, वहीं लगातार छह दिनों तक संसद को लटकाना भी देश को जनता की गाढ़ी कमाई को पलीता लगाया जा रहा है. संसद को चलाने में प्रति मिनट 2.5 लाख रूपए का खर्च आता है जो की सीधे-साधे जनता की गाढ़ी कमाई से जाता है.

नोटबंदी पर प्रधानमंत्री ने संसद में अब तक कोई बयान नहीं दिया है

सत्तारूढ़ बीजेपी जहां विपक्ष पर संसद को ठप्प करने का आरोप लगा रही है वहीं विपक्ष का कहना है कि प्रधानमंत्री संसद में जवाब दे. राहुल गांधी संसद के बाहर तो मोदी को खूब गरिया रहे हैं परंतु संसद में मुद्दा उठाते नहीं हैं.

ये भी पढ़ें- उपचुनाव के नतीजे: क्या यह नोटबंदी पर जनता की मुहर है?

इससे पहले जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हुआ करते थे तब वर्तमान प्रधानमंत्री उनके लिए खूब गरियाते थे लेकिन सत्ता में आते ही उन्हें भी मनमोहन वाली आदत पड़ गई है, सो सोच लिया मैं नहीं बोलूंगा. तो क्या मान लिया जाना चाहिए कि मोदी जी भी अब मनमोहनी धुन में रम गए हैं.

क्या आपको पिछले दिनों की कश्मीर हिंसा याद...

शीतकालीन सत्र के पिछले 6 दिन हंगामे की भेंट चढ़ चुके हैं. देश की जनता नोटबंदी पर प्रधानमंत्री मोदी के फैसले पर उनके साथ खड़ी है, तो दूसरी तरफ एकजुट विपक्ष का आरोप है कि प्रधानमंत्री संसद में रहते हुए भी नोटबंदी पर बयान नहीं दे रहे हैं. प्रधानमंत्री का नोटबंदी फैसला जहां देश से काले धन को मिटाने के लिए एक अहम कदम साबित होने वाला है, वहीं लगातार छह दिनों तक संसद को लटकाना भी देश को जनता की गाढ़ी कमाई को पलीता लगाया जा रहा है. संसद को चलाने में प्रति मिनट 2.5 लाख रूपए का खर्च आता है जो की सीधे-साधे जनता की गाढ़ी कमाई से जाता है.

नोटबंदी पर प्रधानमंत्री ने संसद में अब तक कोई बयान नहीं दिया है

सत्तारूढ़ बीजेपी जहां विपक्ष पर संसद को ठप्प करने का आरोप लगा रही है वहीं विपक्ष का कहना है कि प्रधानमंत्री संसद में जवाब दे. राहुल गांधी संसद के बाहर तो मोदी को खूब गरिया रहे हैं परंतु संसद में मुद्दा उठाते नहीं हैं.

ये भी पढ़ें- उपचुनाव के नतीजे: क्या यह नोटबंदी पर जनता की मुहर है?

इससे पहले जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह हुआ करते थे तब वर्तमान प्रधानमंत्री उनके लिए खूब गरियाते थे लेकिन सत्ता में आते ही उन्हें भी मनमोहन वाली आदत पड़ गई है, सो सोच लिया मैं नहीं बोलूंगा. तो क्या मान लिया जाना चाहिए कि मोदी जी भी अब मनमोहनी धुन में रम गए हैं.

क्या आपको पिछले दिनों की कश्मीर हिंसा याद है

याद आया, प्रधान मंत्री ने 32 दिनों बाद बयान दिया था. और कहा था कुछ गुमराह लोग घाटी को नुकसान पहुंचा रहे हैं, लैपटॉप-किताब की जगह बच्चों के हाथ में पत्थर दे रहे हैं.

ऊना की घटना पर दलित प्रेम

यही हाल अगस्त , 2016 की ऊना घटना के बाद दिखाई दिया था जब प्रधानमंत्री को एक महीने के बाद ऊना घटना की याद आई. तब हैदराबाद की रैली में कहा था कि अगर किसी को हमला करना है तो मुझ पर करे. गोली चलानी है तो मुझ पर चलाए, पर दलित भाइयों पर हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. पीएम ने कहा कि वे दलित भाइयों की जगह पर "गोली खाने और हमला झेलने" के लिए तैयार हैं.

दादरी विवाद

लगभग यही हाल दादरी विवाद के बाद दिखाई दिया था जब प्रधानमंत्री ने दस दिनों के बाद अपनी चुप्पी तोड़ी थी और कहा था हिन्दू और मुसलमान गरीबी से लड़ें. पीएम ने कहा कि एकता ही देश को आगे ले जाएगी. दादरी कांड पर बयानबाजी के लिए प्रधानमंत्री ने विपक्षी नेताओं को जमकर लताड़ा. पीएम ने कहा कि राष्ट्रपति का संदेश मार्गदर्शन है. पीएम ने कहा कि राजनीतिक फायदे के लिए बयान दिए जा रहे हैं. दादरी की घटना को लेकर पीएम की खामोशी पर अब उनके घर में ही सवाल उठने लगे थे. बीजेपी के साथ सरकार चला रहे जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा था कि पीएम मोदी को दादरी की घटना पर बोलना चाहिए.

ये भी पढ़ें- तो क्या भाजपा के सहयोगी भी काले धन के संगरक्षक है?

रोहित वेमुला जनवरी 2016

छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के मामले में भी प्रधानमंत्री ने छह दिनों के बाद अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा कि इस घटना से वे व्यथित हैं. लखनऊ के भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय में पहुंचे प्रधानमंत्री ने जैसे ही अपना भाषण शुरू किया, सभागार में बैठे दो छात्रों ने नरेंद्र मोदी के विरोध में नारेबाजी शुरू कर दी. छात्रों की नारेबाजी की वजह से खुद प्रधानमंत्री भी कुछ पलों के लिए असंयत हो गए. बाद में उन्होंने रोहित वेमुला का जिक्र करते हुए कहा कि मेरे ही देश के एक बेटे रोहित को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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