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नवाज की बर्खास्तगी क्या वाकई में पाकिस्तानी लोकतंत्र की मजबूती का संकेत है?

    • पीयूष द्विवेदी
    • Updated: 30 जुलाई, 2017 04:42 PM
  • 30 जुलाई, 2017 04:42 PM
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यह तीसरी बार है जब नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने और बिना कार्यकाल पूरा किए पद से हट गए. पाकिस्तान में अबतक एक भी प्रधानमंत्री ऐसा नहीं हुआ है, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया हो.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पनामा पेपर्स मामले में वहां की सर्वोच्च अदालत द्वारा संसद सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराए जाने के बाद, उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा क्या दिया कि इधर भारत में सोशल मीडिया पर वे ट्रेंड करने लगे. सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया तक पाकिस्तान और नवाज शरीफ की चर्चा चल पड़ी. इनमें ‘कुछ लोग’ (इनमें ज्यादातर वही अंधविरोधी थे जिन्हें मोदी सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद से देश में सबकुछ बुरा ही दिखाई देता रहा है) नवाज पर कार्रवाई के आधार पर पाकिस्तानी लोकतंत्र की मजबूती के गान गाने लगे.

पनामा पेपर्स मामले में दोषी पाए जाने के बाद नवाज़ शरीफ ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया

दलील ये कि पाकिस्तानी अदालत ने प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई करके लोकतंत्र की मजबूती का सन्देश दिया है. पाकिस्तानी लोकतंत्र की भारत से तुलना करते हुए ये लोग यह भी कहते दिखे कि भारत में भी कई लोगों के नाम पनामा पेपर्स में सामने आए हैं, मगर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई जबकि पाकिस्तान ने अपने प्रधानमंत्री के खिलाफ भी कार्रवाई कर दी. इन लोगों को यह कौन समझाए कि जो डाटा सामने आया है, यदि उसमें वाकई में कुछ दम होगा तो देश की जांच एजेंसियों से लेकर न्यायपालिका जैसी संस्थाएं तक आवश्यक कार्रवाई अवश्य करेंगी. इस देश में न्यायपालिका ने प्रधानमंत्रियों पर तक कार्रवाई की है, फिर किसी और को क्यों बख्शेगी? हमें अपनी लोकतान्त्रिक संस्थाओ और व्यवस्थाओं पर धैर्यपूर्वक इतना विश्वास तो रखना ही चाहिए.  

मगर यहां तो अन्धविरोधियों द्वारा नवाज शरीफ की बर्खास्तगी के बाद दलीलों के जरिये यह साबित करने की अनर्गल कोशिश की जाने लगी कि पाकिस्तानी लोकतंत्र भारतीय लोकतंत्र से ज्यादा बेहतर है. अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में नवाज शरीफ...

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पनामा पेपर्स मामले में वहां की सर्वोच्च अदालत द्वारा संसद सदस्यता के लिए अयोग्य ठहराए जाने के बाद, उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा क्या दिया कि इधर भारत में सोशल मीडिया पर वे ट्रेंड करने लगे. सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया तक पाकिस्तान और नवाज शरीफ की चर्चा चल पड़ी. इनमें ‘कुछ लोग’ (इनमें ज्यादातर वही अंधविरोधी थे जिन्हें मोदी सरकार के सत्तारूढ़ होने के बाद से देश में सबकुछ बुरा ही दिखाई देता रहा है) नवाज पर कार्रवाई के आधार पर पाकिस्तानी लोकतंत्र की मजबूती के गान गाने लगे.

पनामा पेपर्स मामले में दोषी पाए जाने के बाद नवाज़ शरीफ ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दिया

दलील ये कि पाकिस्तानी अदालत ने प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई करके लोकतंत्र की मजबूती का सन्देश दिया है. पाकिस्तानी लोकतंत्र की भारत से तुलना करते हुए ये लोग यह भी कहते दिखे कि भारत में भी कई लोगों के नाम पनामा पेपर्स में सामने आए हैं, मगर उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई जबकि पाकिस्तान ने अपने प्रधानमंत्री के खिलाफ भी कार्रवाई कर दी. इन लोगों को यह कौन समझाए कि जो डाटा सामने आया है, यदि उसमें वाकई में कुछ दम होगा तो देश की जांच एजेंसियों से लेकर न्यायपालिका जैसी संस्थाएं तक आवश्यक कार्रवाई अवश्य करेंगी. इस देश में न्यायपालिका ने प्रधानमंत्रियों पर तक कार्रवाई की है, फिर किसी और को क्यों बख्शेगी? हमें अपनी लोकतान्त्रिक संस्थाओ और व्यवस्थाओं पर धैर्यपूर्वक इतना विश्वास तो रखना ही चाहिए.  

मगर यहां तो अन्धविरोधियों द्वारा नवाज शरीफ की बर्खास्तगी के बाद दलीलों के जरिये यह साबित करने की अनर्गल कोशिश की जाने लगी कि पाकिस्तानी लोकतंत्र भारतीय लोकतंत्र से ज्यादा बेहतर है. अब सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में नवाज शरीफ पर हुई कार्रवाई से पाकिस्तान में लोकतंत्र की मजबूती का कोई संकेत मिलता है ? इसके लिए पहले हमें इस पूरे मामले को समझना होगा.

क्या है मामला ?

पनामा पेपर काण्ड में नवाज शरीफ समेत उनके दोनों बेटों और बेटी का नाम सामने आया था. इसके बाद पाकिस्तान की विपक्षी पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ और अन्य विपक्षी दलों की तरफ से सर्वोच्च न्यायालय में याचिका डालकर नवाज शरीफ को पद से हटाने की मांग की गयी थी. इसके बाद बीते मई महीने में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मामले की जांच के लिए संयुक्त जांच दल का गठन किया गया था, जिसने बीती दस जुलाई को अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपी थी. रिपोर्ट में नवाज के पास घोषित से अधिक संपत्ति और विदेशों में जायदाद होने का खुलासा हुआ था. माना गया कि ये संपत्ति काला धन है, जिसे पनामा कंपनियों के जरिये बाहर इसी रिपोर्ट के आधार पर अदालत ने उनकी संसद सदस्यता समाप्त की और प्रधानमंत्री पद छोड़ने का आदेश दिया. नवाज को हटाने का मुख्य आधार यह था कि उन्होंने अपनी संपत्ति की वास्तविक जानकारी सामने नहीं रखी थी. इसलिए अदालत ने उन्हें पाकिस्तानी संसद और अदालत के प्रति ईमानदार न मानते हुए बर्खास्त करने का फैसला सुनाया है.

पाकिस्तानी लोकतंत्र की मजबूती की हकीकत

यह तीसरी बार है जब नवाज शरीफ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने और बिना कार्यकाल पूरा किए पद से हट गए. साथ ही, यह भी तथ्य है कि अपनी आज़ादी का सत्तरवां वर्ष पूरा करने जा रहे पाकिस्तान में अबतक एक भी प्रधानमंत्री ऐसा नहीं हुआ है, जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया हो. किसी को तख्तापलट करके सेना ने तो किसी को न्यायालय ने पद से हटा दिया. ये दिखाता है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की स्थिति कितनी डांवाडोल रही है. समूचे देश की कमान संभालने वाले पद पर बैठे व्यक्ति जो जनादेश से निर्वाचित होकर प्रधानमंत्री बनता है, को बिना कार्यकाल पूरा किए पद से हटा उसकी जगह मनमाफिक लोगों को बिठाया जाता रहा है.

दरअसल पाकिस्तान में किसी भी लोकतान्त्रिक संस्था से ऊपर सेना काम करती है. सत्ता में कोई रहे, सरकार सेना ही चलाती है. कार्यपालिका हो या न्यायपालिका, सेना के नियंत्रण से बाहर कोई नहीं है. सेना के इशारे पर ही वहां की सामाजिक-आर्थिक से लेकर विदेशनीतियों तक का निर्धारण होता है. भारत से अगर आज तक पाकिस्तान के संबंध नहीं सुधरे तो इसके लिए वहां के राजनयिकों से कहीं अधिक जिम्मेदार पाकिस्तानी सेना ही है. जो सरकार या राजनयिक सेना की मुखालफत करता है या सेना की कसौटियों पर खरा नहीं उतरता, उसे किसी न किसी तरह पद से हटा दिया जाता है. पाकिस्तान में यही दस्तूर रहा है.

नवाज से नाखुश थी पाकिस्तानी सेना

हाल के महीनों में नवाज़ शरीफ से पाकिस्तानी सेना के नाखुश होने की बात चर्चा में रही है. ऐसा अनुमान है कि भारत के मोर्चे पर कूटनीतिक नाकामी समेत अमेरिका आदि से भी सम्बन्ध बिगड़ने के कारण नवाज शरीफ से पाकिस्तानी सेना संतुष्ट नहीं थी. इन चीजों के कारण इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पनामा केस की आड़ में सेना ने नवाज को हटवाने की अपनी मंशा को पूरा करवा लिया है.      

अंधविरोधियों से कुछ सवाल

उपर्युक्त बातें पाकिस्तानी लोकतंत्र की मजबूती से लेकर वहां की लोकतान्त्रिक संस्थाओं तक की पोलपट्टी खोल रही है. निष्कर्ष इतना है कि पाकिस्तान में जो है, वहां की सेना है, उसके बाद ही कुछ और है. ऐसे में, आज नवाज शरीफ की बर्खास्तगी के बाद से पाकिस्तानी लोकतंत्र की मजबूती पर मगन हो रहे भारत के अंधविरोधी लोगों से यह पूछा जाना चाहिए कि भारत जिसकी सेना पाकिस्तानी सेना से कई गुना अधिक शक्तिशाली होते हुए भी संविधान और संसद के प्रति पूर्णतः निष्ठावान रहती है, के लोकतंत्र की तुलना अंधविरोधी किस आधार पर सेना के आगे नतमस्तक रहने वाले पाकिस्तानी लोकतंत्र से कर रहे ? वास्तव में तुलना तो बड़ी चीज है, पाकिस्तानी लोकतंत्र तो अब इस लायक भी नहीं रह गया है कि महान भारतीय लोकतंत्र के साथ उसकी चर्चा भी की जाए.

दरअसल मौजूदा मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही इन कुछ विचारधारा विशेष के लोगों को देश की हर व्यवस्था और हर चीज में खामी नजर आने लगी है. लेकिन, सरकार के प्रति अपने अंधविरोध में अक्सर ये लोग इस कदर अंधे हो जाते हैं कि सरकार से हटकर देश का विरोध करने लगते हैं. पाकिस्तानी लोकतंत्र की तथाकथित महानता पर लहालोट होते हुए उसे भारतीय लोकतंत्र से अच्छा बताना इसी का एक उदाहरण है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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