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एग्जिट पोल सही हो या गलत, कांग्रेस के लिए बुरी खबर पक्की है

    • जावेद एम अंसारी
    • Updated: 17 मई, 2016 07:52 PM
  • 17 मई, 2016 07:52 PM
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एग्जिट पोल के नतीजे यदि सटीक बैठे तो वह 2017 में होने वाले राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनावों में कांग्रेस की निर्णायक भूमिका को सीमित कर देंगे. साथ ही वह राज्य सभा में भी उसकी ताकत पर असर डालेंगे.

पांच राज्यों के चुनाव में एग्जिट पोल के नतीजे सटीक बैठे तो कांग्रेस को खुशियां मनाने का कोई कारण नहीं मिलेगा. एग्जिट पोल कह रहे हैं कि असम और केरल में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ेगा और पश्चिम बंगाल में भी वह हारे हुए खेमें में ही बैठेगी. इसमें असम की हार कांग्रेस के लिए भारी पड़ेगी क्योंकि यहां उसका मुकाबला सीधे बीजेपी से था. केरल का तो इतिहास रहा है कि वहां हर पांच साल में सत्तारूढ़ पार्टी को बाहर का रास्ता देखना पड़ता है. लिहाजा यहां की हार को कांग्रेस इतनी गंभीरता से नहीं लेगी.

कांग्रेस को उम्मीद रहेगी कि एग्जिट पोल एक बार फिर बिहार की तरह अपनी भविष्यवाणी से उलट नतीजे देखें. हालांकि ऐसी स्थिति में भी कांग्रेस की वापसी करने की उम्मीद को तगड़ा झटका लगेगा. और 2014 के आम चुनावों के बाद से उसकी हार का सिलसिला कायम रहेगा. आम चुनावों में बीजेपी के हाथों करारी हार के बाद कांग्रेस एक जीत के लिए तरस रही है- बिहार में जीत का श्रेय जेडीयू और आरजेडी के साथ गठबंधन में रहने को मिला. लिहाजा, लोकसभा चुनावों के बाद पार्टी को अपने बूते पर एक राज्य में जीत दर्ज करना अभी बाकी है.

सबसे बड़ा सवाल तो गांधी नेतृत्व पर भी...

एग्जिट पोल के नतीजे यदि सटीक बैठे तो वह 2017 में होने वाले राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनावों में कांग्रेस की निर्णायक भूमिका को सीमित कर देंगे. साथ ही वह राज्य सभा में भी उसकी ताकत पर असर डालेंगे. वहीं भौगोलिक दृष्टी से देखें तो पार्टी की हार उसकी सत्ताक वाले राज्यों की संख्यात में कमी लाएगी और वहां पार्टी की ताकत में भी. कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर महज तीन उत्तर-पूर्वी राज्यों में ही कांग्रेस की...

पांच राज्यों के चुनाव में एग्जिट पोल के नतीजे सटीक बैठे तो कांग्रेस को खुशियां मनाने का कोई कारण नहीं मिलेगा. एग्जिट पोल कह रहे हैं कि असम और केरल में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ेगा और पश्चिम बंगाल में भी वह हारे हुए खेमें में ही बैठेगी. इसमें असम की हार कांग्रेस के लिए भारी पड़ेगी क्योंकि यहां उसका मुकाबला सीधे बीजेपी से था. केरल का तो इतिहास रहा है कि वहां हर पांच साल में सत्तारूढ़ पार्टी को बाहर का रास्ता देखना पड़ता है. लिहाजा यहां की हार को कांग्रेस इतनी गंभीरता से नहीं लेगी.

कांग्रेस को उम्मीद रहेगी कि एग्जिट पोल एक बार फिर बिहार की तरह अपनी भविष्यवाणी से उलट नतीजे देखें. हालांकि ऐसी स्थिति में भी कांग्रेस की वापसी करने की उम्मीद को तगड़ा झटका लगेगा. और 2014 के आम चुनावों के बाद से उसकी हार का सिलसिला कायम रहेगा. आम चुनावों में बीजेपी के हाथों करारी हार के बाद कांग्रेस एक जीत के लिए तरस रही है- बिहार में जीत का श्रेय जेडीयू और आरजेडी के साथ गठबंधन में रहने को मिला. लिहाजा, लोकसभा चुनावों के बाद पार्टी को अपने बूते पर एक राज्य में जीत दर्ज करना अभी बाकी है.

सबसे बड़ा सवाल तो गांधी नेतृत्व पर भी...

एग्जिट पोल के नतीजे यदि सटीक बैठे तो वह 2017 में होने वाले राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति चुनावों में कांग्रेस की निर्णायक भूमिका को सीमित कर देंगे. साथ ही वह राज्य सभा में भी उसकी ताकत पर असर डालेंगे. वहीं भौगोलिक दृष्टी से देखें तो पार्टी की हार उसकी सत्ताक वाले राज्यों की संख्यात में कमी लाएगी और वहां पार्टी की ताकत में भी. कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड को छोड़कर महज तीन उत्तर-पूर्वी राज्यों में ही कांग्रेस की सरकार रह जाएगी.

यह नतीजे 2019 के चुनावों में एंटी-मोदी फ्रंट में कांग्रेस की धुरी की भूमिका निभाने पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर देंगे. हालांकि, यह सच है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ-साथ ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों को करारी हार का सामना करना पड़ा था लेकिन उनमें से कुछ दलों ने बीते दो साल में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की शुरुआत कर दी है. जेडीयू और आरजेडी ने बीजेपी को बिहार में शिकस्त दे दी है, केजरीवाल ने दिल्ली में बीजेपी को धूल चटा दी है और तमिलनाडु में करुणानिधी और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी से उम्मीद है कि वह अपनी जमीन पर पकड़ बनाने में कामयाब रहेंगे. लिहाजा, कांग्रेस पार्टी के राजनीतिक मैनेजरों के लिए सबसे बड़ी चिंता यही है कि वह एक मात्र पार्टी है जो अभी भी 2014 की करारी हार के बाद वापसी करने की जद्दोजहद में है.

अगले साल कांग्रेस नेतृत्व पर पंजाब और उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनावों का दबाव बढ़ जाएगा. पंजाब में कांग्रेस को आम आदमी पार्टी से कड़ी चुनौती मिल रही है और जल्द उसने कुछ नहीं किया तो मोदी और अमित शाह को वास्तव में लगने लगेगा कि उनका ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का सपना सच होने जा रहा है. हालांकि यदि तरुण गोगोई लगातार चौथी बार जीत दर्ज करने में सफल होते हैं तो पार्टी और पार्टी नेतृत्व को बड़ी राहत मिलेगी.

असम में जीत के साथ-साथ बीजेपी के लिए केरल और पश्चिम बंगाल के नतीजे खास मायने रखेंगे. इन दोनों राज्यों में बीजेपी की चुनौती अपनी भविष्य की राजनीति की नींव रखने की है, न कि वहां सरकार का गठन करने की.

लोकसभा चुनावों में पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया था. पहली बार केरल जैसे राज्य में जहां उसे अपनी मौजूदगी का एहसास करने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी, 2014 में उसे 11 फीसदी पॉप्युलर वोट मिला था. इस बार यदि पार्टी केरल में अपना खाते खोलते हुए कुछ सीटों पर कब्जा करने में कामयाब होती है तो उसके राजनीतिक सलाहकारों को यह भरोसा करने का कारण मिल जाएगा कि कर्नाटक के बाद एक और दक्षिण भारतीय राज्य में उसकी मौजूदगी दर्ज हो गई है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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