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देश के मन में 'सिर्फ और सिर्फ मोदी'

    • अरुण पुरी
    • Updated: 18 अगस्त, 2017 12:25 AM
  • 18 अगस्त, 2017 12:25 AM
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इंडिया टुडे के ताजातरीन सर्वे में 'देश का मिजाज' कैसा है, इसकी रूपरेखा रख रहे हैं एडिटर-इन-चीफ अरुण पूरी.

मार्गरेट थैचर ब्रिटेन में जब लगातार 11 साल सत्ता में बनी रहीं तो चुनाव पंडितों ने उनके लिए एक नया पद टीना (जो देयर इज नो अल्टरनेटिव यानी कोई विकल्प नहीं का संक्षिप्त रूप है) फैक्टर गढ़ डाला. भारत में हम इस पद का इस्तेमाल इंदिरा गांधी के लिए उनके दबदबे वाले दौर में किया करते थे. अब नरेंद्र मोदी के लिए एक नया पद टीमो (यानी देयर इज मोदी ओनली या सिर्फ और सिर्फ मोदी ही हैं) गढ़ सकते हैं. इंडिया टुडे के ताजातरीन देश का मिज़ाज सर्वेक्षण के मुताबिक सत्ता में तीन साल पूरा करने पर भारत के सियासी फलक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का कोई सानी नहीं है.

सिर्फ और सिर्फ मोदी

उनके और अब तक के दूसरे सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री के बीच फर्क बढ़ता जा रहा है. अब उन्हें इंदिरा गांधी से बेहतर प्रधानमंत्री बताने वालों की तादाद दोगुनी हो गई है. लगता है, उन्हें ऐसा राजनैतिक निर्वाण हासिल हो गया है, जहां लोग अब उनकी लोकप्रियता को उनके कामकाज से नहीं तौलते हैं. लोगों की चिंताएं अब उनके प्रति सम्मोहन को कम नहीं करतीं.

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद यह हमारा पांचवां जनमत सर्वेक्षण है, जब उनकी पार्टी भाजपा और उसकी सहयोगियों (एनडीए) को 287 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. तब से हमारे एक को छोड़कर सभी जनमत सर्वेक्षणों में (फरवरी 2016 के सर्वेक्षण में सीटों का अनुमान एक कम हो गया था) उनकी सीटों का अनुमान लगातार बढ़ता ही रहा है.

ताजा सर्वेक्षण बताता है कि अगर आज चुनाव हुए तो एनडीए को 349 सीटें मिलेंगी, जो छह महीने पहले के सर्वेक्षण के अनुमान से 11 सीटें कम हैं. इसके विपरीत यूपीए को 75 सीटें मिलने का अनुमान है, जो हमारे पिछले सर्वेक्षण के अनुमान से 15 सीटें ज्यादा हैं.

इस जनमत सर्वेक्षण में भाजपा के लिए खुश होने की वजहें काफी हैं. अभी तक देश के...

मार्गरेट थैचर ब्रिटेन में जब लगातार 11 साल सत्ता में बनी रहीं तो चुनाव पंडितों ने उनके लिए एक नया पद टीना (जो देयर इज नो अल्टरनेटिव यानी कोई विकल्प नहीं का संक्षिप्त रूप है) फैक्टर गढ़ डाला. भारत में हम इस पद का इस्तेमाल इंदिरा गांधी के लिए उनके दबदबे वाले दौर में किया करते थे. अब नरेंद्र मोदी के लिए एक नया पद टीमो (यानी देयर इज मोदी ओनली या सिर्फ और सिर्फ मोदी ही हैं) गढ़ सकते हैं. इंडिया टुडे के ताजातरीन देश का मिज़ाज सर्वेक्षण के मुताबिक सत्ता में तीन साल पूरा करने पर भारत के सियासी फलक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का कोई सानी नहीं है.

सिर्फ और सिर्फ मोदी

उनके और अब तक के दूसरे सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री के बीच फर्क बढ़ता जा रहा है. अब उन्हें इंदिरा गांधी से बेहतर प्रधानमंत्री बताने वालों की तादाद दोगुनी हो गई है. लगता है, उन्हें ऐसा राजनैतिक निर्वाण हासिल हो गया है, जहां लोग अब उनकी लोकप्रियता को उनके कामकाज से नहीं तौलते हैं. लोगों की चिंताएं अब उनके प्रति सम्मोहन को कम नहीं करतीं.

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद यह हमारा पांचवां जनमत सर्वेक्षण है, जब उनकी पार्टी भाजपा और उसकी सहयोगियों (एनडीए) को 287 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. तब से हमारे एक को छोड़कर सभी जनमत सर्वेक्षणों में (फरवरी 2016 के सर्वेक्षण में सीटों का अनुमान एक कम हो गया था) उनकी सीटों का अनुमान लगातार बढ़ता ही रहा है.

ताजा सर्वेक्षण बताता है कि अगर आज चुनाव हुए तो एनडीए को 349 सीटें मिलेंगी, जो छह महीने पहले के सर्वेक्षण के अनुमान से 11 सीटें कम हैं. इसके विपरीत यूपीए को 75 सीटें मिलने का अनुमान है, जो हमारे पिछले सर्वेक्षण के अनुमान से 15 सीटें ज्यादा हैं.

इस जनमत सर्वेक्षण में भाजपा के लिए खुश होने की वजहें काफी हैं. अभी तक देश के लोगों ने प्रधानमंत्री के राजकाज के ब्रांड के प्रति बेमिसाल धैर्य और संतोष का इजहार किया है. लोग नोटबंदी के झटके झेल गए और जीएसटी की मांग के मुताबिक अपने को ढाल रहे हैं. सर्वेक्षण में 40 से 50 प्रतिशत के बीच लोगों का मानना है कि सरकार विभिन्न सामाजिक मुद्दों, शिक्षा और स्वास्‍थ्य के मदों से लेकर धार्मिक अल्पसंख्यकों और दलितों की सुरक्षा के मामले में बेहतर कामकाज दिखा रही है.

मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि काले धन पर प्रहार और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन है

हालांकि कुछ खतरे की घंटियां भी हैं. रोजगार प्रधानमंत्री मोदी के लिए सबसे ज्यादा परेशानी पैदा करने वाला मुद्दा है. सर्वेक्षण में 53 प्रतिशत की अच्छी-खासी तादाद में लोगों ने कहा कि एनडीए सरकार देश में नौकरियों के सृजन में नाकाम रही है. यह संख्या पिछले सर्वेक्षण के 36 प्रतिशत से लंबी छलांग ले चुकी है. तथ्य भी इसकी गवाही देते हैं. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, 15 लाख रोजगार जनवरी से अप्रैल 2017 के बीच यानी नोटबंदी के बाद पहली तिमाही में खत्म हो गए हैं.

12 अगस्त को संसद में पेश मध्यावधि आर्थिक सर्वेक्षण के दूसरे हिस्से में कहा गया है कि देश 2017-18 के लिए प्रस्तावित 6.75-7.5 प्रतिशत की वृद्धि दर को शायद हासिल न कर पाए. जून में साल-दर-साल औद्योगिक उत्पादन 0.1 प्रतिशत गिर गया है. जुलाई में उत्पादन क्षेत्र में साल-दर-साल 0.4 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. इसके अलावा कृषि क्षेत्र का संकट लगातार किसानों की खुदकशी की परेशान करने वाली सुर्खियां लेकर आ रहा है.

इन चिंताजनक आर्थिक लकीरों के बावजूद लोगों को अभी भी एहसास है कि मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि काले धन पर प्रहार और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन है. सो, आश्चर्य नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस संबोधन में कहा कि ईमानदारी का महोत्सव शुरू हो गया है.

आम आदमी उन्हें पूरी तरह अपने जैसा ही मानता है

सर्वेक्षण में करीब 40 प्रतिशत लोगों का मानाना है कि 2014 के चुनावों में उनके वादों के अच्छे दिन आ गए हैं. हमारा सर्वेक्षण बताता है कि भारत अब पहले से अधिक उन्हें अपने नेता के रूप में देखना चाहता है. 63 प्रतिशत लोग उन्हें बेमिसाल या अच्छा बताते हैं. मेरा मानना है कि उनकी विराट लोकप्रियता की एक वजह आम आदमी उन्हें पूरी तरह अपने जैसा ही मानता है. वे उनके दुख-दर्द को महसूस करते और समझते हैं. सबसे बढ़कर वे उनके कल्याण के लिए निःस्वार्थ भाव से निरंतर जुटे हुए हैं.

जब इंडिया टुडे ने चुनाव भविष्यवाणियों की प्रक्रिया शुरू की तब कांग्रेस का बोलबाला था. उस वक्त चुनाव पंडितों ने एक पद आइओयू (विपक्षी एकता का सूचकांक) गढ़ा. ताजा सर्वेक्षण के मुताबिक, अगर मौका आए तो राहुल गांधी गैर-भाजपा महागठबंधन की अगुआई के लिए सबसे संभावित विकल्प दिखते हैं. मगर दिलचस्प यह भी है कि सर्वेक्षण में 43 प्रतिशत लोगों की राय में कांग्रेस का नेतृत्व गांधी-नेहरू परिवार के बाहर का कोई नेता ही कर सकता है या उसे ही करना चाहिए. विपक्षी एकता सूचकांक गर्दिश में है और टीमो फैक्टर बुलंद है, इसलिए यह कई और स्वतंत्रता दिवसों में प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन की राह आसान कर सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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