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ये दोस्ती मजबूरी की तो नहीं

    • गिरिजेश वशिष्ठ
    • Updated: 14 जनवरी, 2016 02:32 PM
  • 14 जनवरी, 2016 02:32 PM
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क्या आतंकवाद बहाने अमेरिका अब पाकिस्तान में घुसने की किसी साजिश में है क्योंकि अफगानिस्तान में वापसी करना इतना आसान नहीं रह गया है. कहीं यही वजह तो नहीं कि मोदी और शरीफ एक-दूसरे के करीब आना चाह रहे हैं?

पाकिस्तान समझ रहा है, मोदी भी समझ रहे हैं. पानी गले तक आ गया है. अब आपसी झगड़े से काम नहीं चलेगा. पानी सिर से ऊपर जा चुका है. पड़ोसी का डर दिखा दिखाकर कुर्सियां पक्की करते-करते मामला खतरनाक हो गया है. अमेरिका की पूरे क्षेत्र पर बुरी नजर है. वो पाकिस्तान में घुसना चाहता है.

अपने स्टेट ऑफ नेशन संबोधन में बराक ओबामा ने पाकिस्तान के एक हिस्से को आतंकवादियों का स्वर्ग बताया. माना जा रहा है कि अमेरिका भारतीय उप महाद्वीप में अपनी मौजूदगी फिर से बढ़ाने को बेचैन है.

इस बेचैनी की वजह रूस का तेज़ी से सक्रिय हो जाना और आतंकवाद के खिलाफ अभियान छेड़ देना है. इसके साथ ही रूस अमेरिका को खतरनाक देश भी घोषित कर चुका है. अगर तनाव बढ़ता है तो अमेरिकी ताकत का भारतीय उप महाद्वीप में मौजूद होना जरूरी है. अफगानिस्तान में वापसी तेज़ आंतरिक विरोध के कारण आसान नहीं है. दूसरा कोई नज़दीकी विकल्प अमेरिका के पास बचता है तो वो है पाकिस्तान. पहले भी अफगान युद्ध के दौरान अमेरिका का पाकिस्तान के कई सैनिक ठिकानों पर कब्जा रहा है. कई एयरबेस भी अमेरिका इस्तेमाल करता रहा है. मोदी और नवाज वक्त की नज़ाकत को समझ रहे हैं. अगर अमेरिका पाकिस्तान में घुसता है तो नवाज इनकार करना तो दूर ना नुकुर भी नहीं कर पाएंगे. अगर पाकिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी बढ़ती है तो वो भारत के लिए भी बड़ी चिंता की बात होगी. अमेरिका अगर पाकिस्तान में घुसता है तो बदले में वो पाकिस्तान को भी बहुत कुछ देगा. और ये 'बहुत कुछ' सामरिक संतुलन के नज़रिये से भारत के लिए ठीक नहीं होगा.

अमेरिका मुंह उठाकर तो पाकिस्तान की धरती पर चला नहीं आएगा. जाहिर बात है उसे बहाने की तलाश होगी और यह बहाना है आतंकवाद. आतंकवाद रोकने के नाम पर वो आसानी से इस क्षेत्र में प्रवेश कर सकता है. यही वजह है कि भारत और पाकिस्तान तेजी से दोस्ताना बढ़ाने के साथ-साथ आतंकवाद के खिलाफ भी एकजुट नजर आ रहे हैं. पेशावर में सैनिक अफसरों के बच्चों पर कातिलाना हमला होने के बाद से नवाज शरीफ के लिए आतंकवाद को काबू करना आसान भी हो गया...

पाकिस्तान समझ रहा है, मोदी भी समझ रहे हैं. पानी गले तक आ गया है. अब आपसी झगड़े से काम नहीं चलेगा. पानी सिर से ऊपर जा चुका है. पड़ोसी का डर दिखा दिखाकर कुर्सियां पक्की करते-करते मामला खतरनाक हो गया है. अमेरिका की पूरे क्षेत्र पर बुरी नजर है. वो पाकिस्तान में घुसना चाहता है.

अपने स्टेट ऑफ नेशन संबोधन में बराक ओबामा ने पाकिस्तान के एक हिस्से को आतंकवादियों का स्वर्ग बताया. माना जा रहा है कि अमेरिका भारतीय उप महाद्वीप में अपनी मौजूदगी फिर से बढ़ाने को बेचैन है.

इस बेचैनी की वजह रूस का तेज़ी से सक्रिय हो जाना और आतंकवाद के खिलाफ अभियान छेड़ देना है. इसके साथ ही रूस अमेरिका को खतरनाक देश भी घोषित कर चुका है. अगर तनाव बढ़ता है तो अमेरिकी ताकत का भारतीय उप महाद्वीप में मौजूद होना जरूरी है. अफगानिस्तान में वापसी तेज़ आंतरिक विरोध के कारण आसान नहीं है. दूसरा कोई नज़दीकी विकल्प अमेरिका के पास बचता है तो वो है पाकिस्तान. पहले भी अफगान युद्ध के दौरान अमेरिका का पाकिस्तान के कई सैनिक ठिकानों पर कब्जा रहा है. कई एयरबेस भी अमेरिका इस्तेमाल करता रहा है. मोदी और नवाज वक्त की नज़ाकत को समझ रहे हैं. अगर अमेरिका पाकिस्तान में घुसता है तो नवाज इनकार करना तो दूर ना नुकुर भी नहीं कर पाएंगे. अगर पाकिस्तान में अमेरिका की मौजूदगी बढ़ती है तो वो भारत के लिए भी बड़ी चिंता की बात होगी. अमेरिका अगर पाकिस्तान में घुसता है तो बदले में वो पाकिस्तान को भी बहुत कुछ देगा. और ये 'बहुत कुछ' सामरिक संतुलन के नज़रिये से भारत के लिए ठीक नहीं होगा.

अमेरिका मुंह उठाकर तो पाकिस्तान की धरती पर चला नहीं आएगा. जाहिर बात है उसे बहाने की तलाश होगी और यह बहाना है आतंकवाद. आतंकवाद रोकने के नाम पर वो आसानी से इस क्षेत्र में प्रवेश कर सकता है. यही वजह है कि भारत और पाकिस्तान तेजी से दोस्ताना बढ़ाने के साथ-साथ आतंकवाद के खिलाफ भी एकजुट नजर आ रहे हैं. पेशावर में सैनिक अफसरों के बच्चों पर कातिलाना हमला होने के बाद से नवाज शरीफ के लिए आतंकवाद को काबू करना आसान भी हो गया है.

इन सारे हालात का ही तकाजा है कि पाकिस्तान पठानकोट हमले के बाद से तेजी से कदम उठा रहा है. हालात जो भी हों, मजबूरी जो भी हो, लेकिन भारत पाकिस्तान के रिश्ते अच्छे बनना सबके लिए अच्छी खबर है. खासतौर पर दोनों देशों में रहने वाले लोगों के लिए.

 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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