• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

India-China war: चीन को एक बार सबक सिखाया तो पाकिस्तान खुद सुधर जाएगा

    • आईचौक
    • Updated: 19 जून, 2020 07:52 PM
  • 19 जून, 2020 07:52 PM
offline
लद्दाख की गलवान घाटी (Galwan Valley India China face off) में चीनी फौज के साथ हुई हिंसक झड़प के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के लिए जरूरी हो गया है कि वो चीन अच्छे से सबक सिखायें. ऐसा करने का सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि नेपाल की कौन कहे, पाकिस्तान भी खामोश हो जाएगा.

चीन अब माइंड गेम पर उतर आया है. एक तरफ वो बातचीत के जरिये सीमा पर शांति की बात कर रहा है, ऐन उसी वक्त भारत को चेतावनी भी दे रहा है कि अगर जंग हुई तो पाकिस्तान और नेपाल की फौज भी उसके साथ होगी. चीन की चाल को इन बातों से बड़ी ही आसानी से समझा जा सकता है. गलवान घाटी (Galwan Valley Clash) में हुई हिंसक झड़प से जो मौजूदा हालात बन चुके हैं, ऐसे में जरूरी हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सैन्य स्तर पर और कूटनीतिक तरीके से चीन (China) को अच्छे से सबक सिखायें, ताकि हमेशा के लिए सिर्फ चीन ही नहीं - पाकिस्तान और नेपाल दोनों को भी भारत की ताकत के बारे में अच्छे से एहसास हो जाये - और सरहद पार से कोई भी आंख उठा कर देखने की कोशिश करे तो मारे दहशत के वहीं ढेर हो जाये.

मान कर चलना चाहिये कि एक बार चीन को भारत हर तरीके से सबक सिखा दे, फिर तो पाकिस्तान भी हमेशा के लिए सुधर जाएगा - और नेपाल के सामने भी चीन की हकीकत साफ हो जाएगी.

चीन चुप तो पाक भी खामोश हो जाएगा

केवल भारत-चीन संबंधों के लिए ही नहीं, बल्कि भारत के हिसाब से सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ रिश्तों को लेकर बेहद महत्वपूर्ण और निर्णायक घड़ी आ चुकी है. भारत इस वक्त एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां से आगे का रास्ता पूरे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय संतुलन बनाये रखने के हिसाब से भी अहम हो जाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो टूक बयान के बाद चीन में खलबली तो मची ही है, लेकिन अब भी वो भारत को पुराने नजरिये से ही देख रहा है. भारत की तरह से कई बार स्पष्ट किया जा चुका है कि ये 2020 का भारत है, लेकिन चीनी नेतृत्व शी जिनपिंग को सब कुछ 1962 जैसा ही लग रहा है.

क्या चीन ये भूल चुका है कि भारत भी परमाणु शक्ति संपन्न देश है और पाकिस्तान के संदर्भ में ही सही, प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके हैं कि वो सब हमने दिवाली के लिए नहीं रखा हुआ है.

चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स भारत को मैसेज देने के लिए संपादकीय और ओपिनियन पीस लिखने से लेकर अपने एक्सपर्ट...

चीन अब माइंड गेम पर उतर आया है. एक तरफ वो बातचीत के जरिये सीमा पर शांति की बात कर रहा है, ऐन उसी वक्त भारत को चेतावनी भी दे रहा है कि अगर जंग हुई तो पाकिस्तान और नेपाल की फौज भी उसके साथ होगी. चीन की चाल को इन बातों से बड़ी ही आसानी से समझा जा सकता है. गलवान घाटी (Galwan Valley Clash) में हुई हिंसक झड़प से जो मौजूदा हालात बन चुके हैं, ऐसे में जरूरी हो गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) सैन्य स्तर पर और कूटनीतिक तरीके से चीन (China) को अच्छे से सबक सिखायें, ताकि हमेशा के लिए सिर्फ चीन ही नहीं - पाकिस्तान और नेपाल दोनों को भी भारत की ताकत के बारे में अच्छे से एहसास हो जाये - और सरहद पार से कोई भी आंख उठा कर देखने की कोशिश करे तो मारे दहशत के वहीं ढेर हो जाये.

मान कर चलना चाहिये कि एक बार चीन को भारत हर तरीके से सबक सिखा दे, फिर तो पाकिस्तान भी हमेशा के लिए सुधर जाएगा - और नेपाल के सामने भी चीन की हकीकत साफ हो जाएगी.

चीन चुप तो पाक भी खामोश हो जाएगा

केवल भारत-चीन संबंधों के लिए ही नहीं, बल्कि भारत के हिसाब से सभी पड़ोसी मुल्कों के साथ रिश्तों को लेकर बेहद महत्वपूर्ण और निर्णायक घड़ी आ चुकी है. भारत इस वक्त एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां से आगे का रास्ता पूरे दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय संतुलन बनाये रखने के हिसाब से भी अहम हो जाता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो टूक बयान के बाद चीन में खलबली तो मची ही है, लेकिन अब भी वो भारत को पुराने नजरिये से ही देख रहा है. भारत की तरह से कई बार स्पष्ट किया जा चुका है कि ये 2020 का भारत है, लेकिन चीनी नेतृत्व शी जिनपिंग को सब कुछ 1962 जैसा ही लग रहा है.

क्या चीन ये भूल चुका है कि भारत भी परमाणु शक्ति संपन्न देश है और पाकिस्तान के संदर्भ में ही सही, प्रधानमंत्री मोदी पहले ही कह चुके हैं कि वो सब हमने दिवाली के लिए नहीं रखा हुआ है.

चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स भारत को मैसेज देने के लिए संपादकीय और ओपिनियन पीस लिखने से लेकर अपने एक्सपर्ट से बातचीत के आधार पर रिपोर्ट भी प्रकाशित कर रहा है.

एक ही सबक काफी है - चीन और पाकिस्तान दोनों सुधर जाएंगे!

ग्लोबल टाइम्स के जरिये भारत को ये मैसेज देने की कोशिश हो रही है कि भारत अगर संघर्ष को बढ़ाता है तो चीन पूरी तरह तैयार है. साथ ही, चेतावनी भी दी जा रही है कि भारतीय फौज को सिर्फ चीन ही नहीं, दो या तीन मोर्चों पर दबाव का सामना करना पड़ सकता है. मतलब ये कि चीन एक तरीके से डराने की कोशिश कर रहा है कि अगर भारत आगे बढ़ा तो पाकिस्तान और नेपाल की सेना भी जंग में उसके साथ खड़ी हो सकती है.

नेपाल से तो अभी नया नया प्यार है, पाकिस्तान की हकीकत से लगता है चीन अभी तक वाकिफ नहीं है. ये वही पाकिस्तान है जो अमेरिका से हर तरह की मदद भी लेता रहा और 9/11 के हमलावर ओसामा बिन लादेन को भी छुपा कर रखा हुआ था. जब पाकिस्तान अमेरिका का नहीं हुआ तो चीन का कहां से होगा.

चीन के विदेश मंत्रालय की प्रेस कांफ्रेंस में न्यूज एजेंसी PTI का सवाल था - भारतीय मीडिया में चीनी सैनिकों के हताहत होने की बात कही जा रही है - क्या आप इसकी पुष्टि करते हैं? चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने सवाल का जवाब तो नहीं दिया, लेकिन घुमा फिरा कर जो कुछ कहा उसे भी ध्यान से समझने की जरूरत है. चीन की बातों से ही उसका मकसद साफ हो जाता है.

चीन के प्रवक्ता चाओ लिजियान ने कहा, 'दोनों देशों की फौज ग्राउंड पर खास मसलों को हल करने की कोशिश कर रहे हैं. मेरे पास ऐसी कोई जानकारी नहीं है जिसे यहां जारी करूं.' चाओ लिजियान ने ये भी बताया कि कैसे सीमा पर शांति बहाल करने की कोशिश हो रही है, 'जब से ये सब हुआ है तभी से दोनों पक्ष बातचीत के जरिये विवाद को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं - ताकि सरहद पर शांति बहाल हो सके.'

सच तो ये है कि भारत और चीन के बीच विदेश मंत्री स्तर की भी बात हो चुकी है और सैन्य अफसरों की बातचीत में भी कोई नतीजा नहीं निकला है. फिर भी चीन की मंशा ऐसी लगता है कि सरहद पर चीनी फौज ने जो कुछ किया है उसके बाद चीन ने अगर कदम आगे नहीं बढ़ाया तो भारत भी चुपचाप बैठ जाएगा. अब ऐसा नहीं होने वाला है. न्यूज एजेंसी का एक और सवाल था - क्या अब ये उम्मीद की जा सकती है कि सरहद पर कोई हिंसक झड़प नहीं होगी?

चाओ लिजियान के जवाब में वही भाव महसूस किया जा सकता है जो चीनी नेतृत्व फिलहाल उम्मीद कर रहा है, 'जाहिर है कि हम अब और टकराव नहीं चाहते हैं.'

लेकिन भारत ऐसा बिलकुल नहीं सोच रहा है. भारत पहले टकराव नहीं चाहता था, लेकिन अब भारत को ऐसी कोई परवाह न है और न होनी चाहिये. चीन चाहे तो प्रधानमंत्री मोदी का ताजा बयान बार बार पढ़ कर समझने की कोशिश कर सकता है कि लद्दाख की गलवान घाटी में जो हुआ है उसके बाद देश कैसे गुस्से से उबल रहा है. जिन घरों में शहीदों के शव पहुंच रहे हैं सभी घर वाले बच्चों को भी सेना में भेजने के इरादे जता रहे हैं.

मीडिया से बातचीत में चाओ लिजियान ने अपने तरीके से भारत को दोनों देशों के बीच कारोबारी रिश्ते की अहमियत भी समझाने की कोशिश की, 'दुनिया के दो बड़े विकासशील देश भारत और चीन के उभरते बाजार हैं जो मतभेदों से कहीं ज्यादा दोनों के साझा हित हैं... दोनों देशों के लिए जरूरी है कि अपने-अपने लोगों के हितों और उम्मीदों के अनुसार संबंधों को सही रास्ते पर आगे बढ़ायें और सहमति बना कर उस पर अमल करें - हमें उम्मीद है कि भारतीय पक्ष हम लोगों के साथ काम करेगा और दोनों देश साथ में आगे बढ़ेंगे.'

जब से पाकिस्तान को अमेरिकी मदद बेरोक टोक मिलनी बंद हुई है चीन की तरफ उसका झुकाव बढ़ता चला गया है. मौजूदा हालात में भी उसे लगता है कि अगर भारत से उसके सामने मुश्किल खड़ी की तो चीन निश्चित तौर पर उसका साथ देगा. वैसे मसूद अजहर के मामले में जो हुआ उसके बाद से पाकिस्तान को ये भ्रम भी दूर कर लेना चाहिये, लेकिन कई बार जब तक कोई बड़ा झटका नहीं लगता अक्ल ठिकाने नहीं आती - चीन तब तक भारत के खिलाफ पाकिस्तान की मदद नहीं करेगा जब तक उसे कोई सीधा फायदा न दिखायी दे - और ऐसा तो होने से रहा. ये ऐसा मौका है जब भारत को चाहिये कि चीन को तबीयत से हर बात समझाये. हर कदम पर एहसास कराये कि अगर वो सेर है तो भारत सवा सेर है. दरअसल, आबादी और अपनी बड़ी फौज को लेकर चीन को भी सबसे बड़े होने का भ्रम है.

भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच एक बार टीवी पर बहस हो रही थी तभी फौजी अफसर रहे जनरल जीडी बख्शी बोल पड़े, "भारतीय फौज हथियारों से नहीं हौसलों से लड़ती है."

भारत को तो ये बात मालूम है, चीन को भी थोड़ा गूगल करक देख लेना चाहिये. वैसे चीन के पास तो अपना गूगल है ही क्योंकि गूगल चाइना को तो उसकी फौज ने ब्लॉक ही कर रखा है - हो सकता है ऐसी बातें उसके गूगल के दायरे से बाहर हों और उसे अंदाजा भी हो कि भारत उसके साथ क्या सलूक करने वाला है.

अब तो कोई दो राय नहीं कि भारत ने चीन को एक बार सही तरीके से सबक सिखा दिया, फिर तो पाकिस्तान भी हमेशा के लिए खामोश हो ही जाएगा.

लोहा गर्म है, वार भी सटीक होगा

पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने भी माना है कि इस घटना से देश की आत्मा को चोट पहुंची है और सरकार को भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सभी रास्ते तलाशने चाहिये. ट्विटर पर जारी अपने बयान में प्रणव मुखर्जी ने कहा है कि लद्दाख में हुई घटना के दूरगामी भू-राजनीतिक प्रभाव भी हैं - ये देश के लिए एकजुट होने का वक्त है और राष्ट्रहित सर्वोपरि है.

सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने ट्विटर पर लिखा है, 'चीन न तो द्विपक्षीय समझौतों का सम्मान करता है और न ही अंतरराष्ट्रीय नियमों का. सच यह है कि चीन द्विपक्षीय समझौतों को दूसरे देशों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल करता है और ख़ुद पर कभी लागू नहीं करता है. भारत इसी चंगुल में फंसा हुआ है. भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है कि इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से द्विपक्षीय संबंध बुरी तरह से प्रभावित होंगे. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि चीन की आक्रामकता से सभी द्विपक्षीय संबंध टूट जाएंगे.'

ब्रह्मा चेलानी ने ध्यान दिलाया है कि चीन पहली बार गलवान घाटी पर दावा कर रहा है - 1962 के युद्ध के बाद से गलवान घाटी और आसपास के सभी सामरिक ऊंचाइयों पर चीन ने कभी घुसपैठ नहीं की थी. भारत ने इन ठिकानों को बिना सैनिकों के छोड़ बड़ी ग़लती की थी.

ब्रह्मा चेलानी ये भी याद दिलाते हैं कि 1993 से अब तक चीन के साथ भारत ने सीमा को लेकर 5 समझौते किये और हर बार बड़े ही धूमधाम से हस्ताक्षर हुए, लेकिन कोई भी समझौता चीन का अतिक्रमण रोकने में मददगार साबित नहीं हुआ. चीन ने चुपके से भारत का हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया है - और अब कह रहा है कि ये हमेशा से उसी का हिस्सा रहा है.

कंवल सिब्बल और शशांक जैसे पूर्व विदेश सचिवों की भी यही सलाह है कि भारत को सख्ती के साथ डटे रहना होगा और इस समस्या का हमेशा के लिए समाधान निकालना होगा.

1997 में चीन को लेकर डिफेंस अटैची रह चुके मेजर जनरल जीजी द्विवेदी इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहते हैं कि चीन ने जो कुछ भी किया उससे उनको कोई अचरज नहीं हुआ है. जनरल द्विवेदी की सलाह है कि चीन के खिलाफ सैन्य एक्शन के साथ साथ राजनीतिक, कूटनीतिक और आर्थिक एक्शन भी जरूरी है - और ऐसी ही चीन का प्रोपेगेंडा वार जीता जा सकता है.

जनरल द्विवेदी कहते हैं, 'बिलकुल अभी, चीन ने थोड़ी बढ़त ले ली है - हमे इसे न्यूट्रलाइज करना होगा. या तो हमे चीन को पीछे धकेलना चाहिये या फिर कोई ऐसी जगह कब्जा कर लेना चाहिये जिसका उस पर सीधा असर हो.'

एक बात तो साफ है भारत को जो भी करना है अपने बूते ही और अकेले ही करना है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी बहुत भरोसे के काबिल नहीं हैं, कभी वो मध्यस्था की बात करते और कभी कहते हैं चीन उनको दोबार राष्ट्रपति नहीं बनने देना चाहता, लेकिन एक नयी नयी आयी किताब से मालूम होता है कि वो तो चुनाव जीतने के लिए चीन से ही मदद मांग रहे थे.

असल बात तो ये है कि भारत के सामने चौतरफा चुनौतियां हैं - एक तरफ कोरोना वायरस है तो तीन तरफ चीन, पाकिस्तान और नेपाल. एक सच ये भी है कि ये मोदी सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी है और पूरे कार्यकाल में अब तक आयी सबसे बड़ी चुनौती भी - सरकार के सामने चुनौतियों का ये चरमोत्कर्ष है.

इन्हें भी पढ़ें :

PM Modi को चीन पर अब 'डिप्लोमैटिक सर्जिकल स्ट्राइक' करना होगा!

Colonel Santosh Babu चीन से जो बातें करने गए थे, वो तो हमारे नेताओं को करनी चाहिए!

India-China face off: कांग्रेस ने तो सर्वदलीय बैठक में पूछे जाने वाले सवाल पहले ही सार्वजनिक कर दिए!


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲