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दिल्ली में जमे जाम के रंग: कहीं बरसे, कहीं छलके

    • संजय शर्मा
    • Updated: 31 अगस्त, 2016 09:17 PM
  • 31 अगस्त, 2016 09:17 PM
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सांसदों, मंत्रियों और नौकरशाहों के इलाके पानी में तैर रहे हैं. बस चले तो शर्म से डूब जाएं लेकिन तभी ध्यान आता है अरे डूब गये तो देश कौन चलाएगा?

दिल्ली में इधर बारिश हुई नहीं कि लग गया जाम. दिल्ली में सरकार चाहे MCD की हो या फिर अमेरिका की. जमा तो सिर्फ जाम का रंग. हर ओर चिल्लपों... हॉर्न का शोर और दिल में कोसने का जोर. कभी मौसम तो कभी सरकार का नम्बर आता है. झुंझलाहट और लाचारी का जाम. हे राम!

आम बस्ती से लेकर खास वीआईपी इलाक़ो तक कहीं पानी तो कहीं ट्रैफिक जाम. लोग परेशान. दो दिन पहले अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी भी इधर दिल्ली उतरे और लगे हाथ जाम का आनंद लिया. जब फंसने की मजबूरी हो तो आनंद ही एकमात्र विकल्प होता है. खैर, बुधवार सुबह भी मूसलधार बारिश और जाम से ठिठकी दिल्ली ने जॉन केरी का फिर स्वागत किया. अबकी केरी ने IIT के छात्रों से कह ही दी मन की बात. आपको सलाम की आप यहां रहते हैं. और वो भी नाव के बिना. यहां तो नावें भी चल सकती हैं. आपके जज़्बे को सलाम.

 दिल्ली में जमे जाम के रंग : कहीं बरसे, कहीं छलके

केरी साहब यहां हर कोई विकास चाहता है. लेकिन शायद विकास करने वाले नही चाहते. फिर भी चाहे दिल्ली सरकार हो या केंद्र या फिर MCD. सबको यही लगता है कि सामने वाला खामख्वाह जाम लगा रहा है.

दिल्ली सरकार को केंद्र से अडंगी लगने की शिकायत भी हमेशा रहती है और ये खत्म भी होने वाली नही. केंद्र को अपने ही सांसदों और नेताओं से, LG को केजरीवाल से और विधायकों को CM से खतरा.

तो ये बारिश- पानी क्या कर लेंगे? यहां तो बड़े-बड़े डींग मारने वालों का पानी उतर गया. दिल्ली का भी उतर जायेगा घण्टे दो घण्टे में... सानूं की?

राजपथ हो या जनपथ, वन वे या हाई वे. सब की दशा एक सी गोया शतरंज की बाजी समेट कर...

दिल्ली में इधर बारिश हुई नहीं कि लग गया जाम. दिल्ली में सरकार चाहे MCD की हो या फिर अमेरिका की. जमा तो सिर्फ जाम का रंग. हर ओर चिल्लपों... हॉर्न का शोर और दिल में कोसने का जोर. कभी मौसम तो कभी सरकार का नम्बर आता है. झुंझलाहट और लाचारी का जाम. हे राम!

आम बस्ती से लेकर खास वीआईपी इलाक़ो तक कहीं पानी तो कहीं ट्रैफिक जाम. लोग परेशान. दो दिन पहले अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी भी इधर दिल्ली उतरे और लगे हाथ जाम का आनंद लिया. जब फंसने की मजबूरी हो तो आनंद ही एकमात्र विकल्प होता है. खैर, बुधवार सुबह भी मूसलधार बारिश और जाम से ठिठकी दिल्ली ने जॉन केरी का फिर स्वागत किया. अबकी केरी ने IIT के छात्रों से कह ही दी मन की बात. आपको सलाम की आप यहां रहते हैं. और वो भी नाव के बिना. यहां तो नावें भी चल सकती हैं. आपके जज़्बे को सलाम.

 दिल्ली में जमे जाम के रंग : कहीं बरसे, कहीं छलके

केरी साहब यहां हर कोई विकास चाहता है. लेकिन शायद विकास करने वाले नही चाहते. फिर भी चाहे दिल्ली सरकार हो या केंद्र या फिर MCD. सबको यही लगता है कि सामने वाला खामख्वाह जाम लगा रहा है.

दिल्ली सरकार को केंद्र से अडंगी लगने की शिकायत भी हमेशा रहती है और ये खत्म भी होने वाली नही. केंद्र को अपने ही सांसदों और नेताओं से, LG को केजरीवाल से और विधायकों को CM से खतरा.

तो ये बारिश- पानी क्या कर लेंगे? यहां तो बड़े-बड़े डींग मारने वालों का पानी उतर गया. दिल्ली का भी उतर जायेगा घण्टे दो घण्टे में... सानूं की?

राजपथ हो या जनपथ, वन वे या हाई वे. सब की दशा एक सी गोया शतरंज की बाजी समेट कर बादशाह, वज़ीर और प्यादों को एक ही डब्बे में भर दिया गया हो. (कतार में सबकी निगाह खिड़की से झांकते हुए) किसी की खिड़की BMW की तो किसी की DTC बस की. पर सबके दिल में एक जैसी ही बीत रही है.

खैर पुरानी दिल्ली, यमुनापार दिल्ली या बाहरी दिल्ली की तो बात ना पूछो. तो सही है. यहां तो नई दिल्ली तक की सांस फूल रही है. सांसदों, मंत्रियों और नौकरशाहों के इलाके पानी में तैर रहे हैं. बस चले तो शर्म से डूब जाएं लेकिन तभी ध्यान आता है अरे डूब गये तो देश कौन चलाएगा?

खैर जब राजधानी में दो घण्टों  में 590 से 65 MM बारिश हो जाये और इंतज़ाम लचर हों तो दिल्ली और दिल्लीवालों को डूबने में ही भलाई नज़र आती है. क्योंकि जब दिल्ली डूब गई तो जीकर क्या करेंगे?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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