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सियासत में गरियाने के लिए, और मजदूरों के रूप में मरने के लिए हैं बिहारी!

    • अनु रॉय
    • Updated: 23 मार्च, 2022 07:51 PM
  • 23 मार्च, 2022 07:51 PM
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हैदराबाद में कबाड़ की दुकान में लगी आग न केवल झकझोर कार रख देने वाली है बल्कि इसने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी सवालों के घेरे में खड़ा किया है. बड़ा सवाल ये कि अपने अपने घरों से दूर बिहारी प्रवासी मजदूर आखिर कब तक मरते रहेंगे?

पुणे में बन रही बिल्डिंग गिरती है और मलबे में दब कर जो मज़दूर मरते हैं वो बिहार के होते हैं. पंजाब से घर लौटते हुए ट्रॉली उलट जाती है और जो लोग मरते हैं वो बिहार के मज़दूर होते हैं. आज हैदराबाद के भोईगुड़ा में कबाड़ की दुकान में आग लगी और मरने वाले सभी 11 लोग बिहार के हैं! इसमें से दीपक और बिट्‌टू अपने गांव से 25 दिन पहले ही बेहतर ज़िंदगी की तलाश में आए थे. अब दोनों मर गए जल कर और उनमें से एक की शादी मई में होने वाली थी. ख़ैर, कल बिहार दिवस था आज बिहारी किसी और राज्य में जल कर राख हो गए. बधाई हो नीतीश कुमार आपने बिहार को इतना समृद्ध कर दिया कि बिहारी अब भी दो वक़्त की रोटी के लिए अपना घर-दुआर छोड़ कर मज़दूरी करने जाते हैं और कितनी बात लौट कर उनकी लाश आती है तो कभी वो लाश भी घरवालों को मयस्सर नहीं होती.

हैदराबाद में जो कुछ भी बिहारी मजदूरों के साथ हुआ है वो राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सवालिया निशान लगाता है

बिहारी होने पर शर्मिंदा हूं. लालू यादव ने जो कालिख बिहार पर पोती थी वो निकट भविष्य में नहीं धुलता दिख रही है. बेरोज़गारी, ग़रीबी, अशिक्षा सब में बिहार टॉप कर रहा है. गर्व कीजिए बिहार के नेता लोग. वोट तो आपको यही ग़रीब देते हैं जिनकी ज़िंदगी कुत्तों से बदतर बना कर आप लोगों ने रख दी है.

हां, कुत्ते से बदतर इसलिए क्योंकि कुत्तों के साथ अगर ज़्यादती होती है तो मेनका गांधी से लेकर पेटा तक उठ खड़ा होता है उनकी रक्षा के लिए लेकिन बिहारियों के लिए कोई नहीं स्टैंड लेता.

वैसे कोई ले भी क्यों? दूसरे राज्य के लोगों के लिए बिहारी ग़ैर ही तो हैं. तभी तो पंजाब में चुनाव हो तो खुल्ले में प्रियंका गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री कहते हैं कि बिहारियों को पंजाब में घुसने नहीं देंगे. कोरोना काल में दिल्ली के...

पुणे में बन रही बिल्डिंग गिरती है और मलबे में दब कर जो मज़दूर मरते हैं वो बिहार के होते हैं. पंजाब से घर लौटते हुए ट्रॉली उलट जाती है और जो लोग मरते हैं वो बिहार के मज़दूर होते हैं. आज हैदराबाद के भोईगुड़ा में कबाड़ की दुकान में आग लगी और मरने वाले सभी 11 लोग बिहार के हैं! इसमें से दीपक और बिट्‌टू अपने गांव से 25 दिन पहले ही बेहतर ज़िंदगी की तलाश में आए थे. अब दोनों मर गए जल कर और उनमें से एक की शादी मई में होने वाली थी. ख़ैर, कल बिहार दिवस था आज बिहारी किसी और राज्य में जल कर राख हो गए. बधाई हो नीतीश कुमार आपने बिहार को इतना समृद्ध कर दिया कि बिहारी अब भी दो वक़्त की रोटी के लिए अपना घर-दुआर छोड़ कर मज़दूरी करने जाते हैं और कितनी बात लौट कर उनकी लाश आती है तो कभी वो लाश भी घरवालों को मयस्सर नहीं होती.

हैदराबाद में जो कुछ भी बिहारी मजदूरों के साथ हुआ है वो राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर सवालिया निशान लगाता है

बिहारी होने पर शर्मिंदा हूं. लालू यादव ने जो कालिख बिहार पर पोती थी वो निकट भविष्य में नहीं धुलता दिख रही है. बेरोज़गारी, ग़रीबी, अशिक्षा सब में बिहार टॉप कर रहा है. गर्व कीजिए बिहार के नेता लोग. वोट तो आपको यही ग़रीब देते हैं जिनकी ज़िंदगी कुत्तों से बदतर बना कर आप लोगों ने रख दी है.

हां, कुत्ते से बदतर इसलिए क्योंकि कुत्तों के साथ अगर ज़्यादती होती है तो मेनका गांधी से लेकर पेटा तक उठ खड़ा होता है उनकी रक्षा के लिए लेकिन बिहारियों के लिए कोई नहीं स्टैंड लेता.

वैसे कोई ले भी क्यों? दूसरे राज्य के लोगों के लिए बिहारी ग़ैर ही तो हैं. तभी तो पंजाब में चुनाव हो तो खुल्ले में प्रियंका गांधी और पंजाब के मुख्यमंत्री कहते हैं कि बिहारियों को पंजाब में घुसने नहीं देंगे. कोरोना काल में दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल जी कहते हैं बिहारियों को अस्पताल में अड्मिट नहीं करेंगे.

मुंबई में राज ठाकरे कहते हैं साले बिहारियों को निकालो इन्होंने ही गंद मचा रखा है. क्या अब भी आपको लगता है कि बिहारियों की ज़िंदगी कुत्तों से बेहतर है. सोच कर देखिए ज़रा. चलते चलते एक और बात कहना चाहती हूं कि चारा घोटाले में सज़ा काट रहे लालू यादव चार्टेड फ़्लाइट से रांची से दिल्ली और दिल्ली से रांची उड़ रहे हैं इलाज करवाने के लिए. और बिहारी मज़दूर जल कर ख़ाक हो रहा है पेट की आग बुझाने के लिए.

ख़ैर. जो आज जल गए उनके लिए दुखी हूं लेकिन साथ ही साथ लग रहा है कि नर्क़ से तो उन्हें मुक्ति मिली. अगले जन्म में अब वो बिहार में न जन्म लें बस, यही दुआ है. सॉरी!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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