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हरियाणा में सर छोटूराम की 64 फीट की मूर्ति में भाजपा को दिखी संजीवनी

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 09 अक्टूबर, 2018 08:47 PM
  • 09 अक्टूबर, 2018 08:47 PM
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सर छोटूराम के रूप में हरियाणा में भाजपा ने बड़ा दाव खेला है. माना जा रहा है कि इस पहल से आगामी चुनाव में भाजपा को एक बड़ा फायदा मिल सकता है जबकि कांग्रेस के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी.

हरियाणा में चुनाव होने में अभी वक़्त है. ऐसे में भाजपा जहां अपना किला बचाने में एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. तो कांग्रेस भी इसी फिराक में है कि, वो ऐसी कौन सी सेंधमारी करे जिससे हरियाणा का किला भाजपा की झोली से निकल कर उसके कब्जे में आ जाए. एक ऐसे समय में, जब कांग्रेस अभी हरियाणा को लेकर प्लानिंग ही कर ही रही है, भाजपा ने बड़ा दाव खेला है. हरियाणा के रोहतक में जाट समुदाय की गुड-बुक्स में आने के लिए पीएम मोदी ने उनके एक बड़े नेता दीनबंधु सर छोटूराम की प्रतिमा का अनावरण किया है. कार्यक्रम सर छोटूराम के पैतृक गांव गढ़ी सांपला में हुआ. प्रतिमा के अनावरण के बाद पीएम सोनीपत के बरही में रेल कोच कारखाने की आधारशिला भी रखने वाले हैं.

जाटों को लुभाने के लिए हरियाणा में भाजपा ने सर छोटूराम के रूप में एक बड़ा दाव खेला है

ध्यान रहे कि इस मूर्ति के अनावरण से भाजपा ने एक ऐसी चाल चली है, जिसका फिलहाल कांग्रेस के पास कोई तोड़ नहीं है. माना जा रहा है कि पीएम की ये पहल उस प्रो-जाट रणनीति का हिस्सा है जिसमें अब तक जाट भाजपा से नाराज थे. ज्ञात हो कि हरियाणा में समय-समय पर आरक्षण की मांग को लेकर सड़क पर आंदोलन करने वाले जाट, काफी लम्बे समय से भाजपा से नाराज चल रहे हैं. माना जा रहा है कि कहीं न कहीं दीनबंधु सर छोटूराम की ये विशाल प्रतिमा उस गुस्से को ठंडा करने का काम करेगी.

कौन हैं दीनबंधु सर छोटू राम

24 नवंबर 1881 को रोहतक के गांव गढ़ी सांपला में जन्में सर छोटूराम या छोटूराम चौधरी को असली नाम रिछपाल था.'छोटूराम' ये नाम कैसे पड़ा इसके पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. बताया जाता है कि वो अपने घर में सबसे छोटे थे, इसलिए उनका नाम छोटूराम पड़ा. मिडिल स्कूल तक अपने ही गांव में रहकर पढ़ाई करने वाले सर छोटूराम बाद में दिल्ली आए और उन्होंने क्रिश्चियन...

हरियाणा में चुनाव होने में अभी वक़्त है. ऐसे में भाजपा जहां अपना किला बचाने में एड़ी चोटी का जोर लगा रही है. तो कांग्रेस भी इसी फिराक में है कि, वो ऐसी कौन सी सेंधमारी करे जिससे हरियाणा का किला भाजपा की झोली से निकल कर उसके कब्जे में आ जाए. एक ऐसे समय में, जब कांग्रेस अभी हरियाणा को लेकर प्लानिंग ही कर ही रही है, भाजपा ने बड़ा दाव खेला है. हरियाणा के रोहतक में जाट समुदाय की गुड-बुक्स में आने के लिए पीएम मोदी ने उनके एक बड़े नेता दीनबंधु सर छोटूराम की प्रतिमा का अनावरण किया है. कार्यक्रम सर छोटूराम के पैतृक गांव गढ़ी सांपला में हुआ. प्रतिमा के अनावरण के बाद पीएम सोनीपत के बरही में रेल कोच कारखाने की आधारशिला भी रखने वाले हैं.

जाटों को लुभाने के लिए हरियाणा में भाजपा ने सर छोटूराम के रूप में एक बड़ा दाव खेला है

ध्यान रहे कि इस मूर्ति के अनावरण से भाजपा ने एक ऐसी चाल चली है, जिसका फिलहाल कांग्रेस के पास कोई तोड़ नहीं है. माना जा रहा है कि पीएम की ये पहल उस प्रो-जाट रणनीति का हिस्सा है जिसमें अब तक जाट भाजपा से नाराज थे. ज्ञात हो कि हरियाणा में समय-समय पर आरक्षण की मांग को लेकर सड़क पर आंदोलन करने वाले जाट, काफी लम्बे समय से भाजपा से नाराज चल रहे हैं. माना जा रहा है कि कहीं न कहीं दीनबंधु सर छोटूराम की ये विशाल प्रतिमा उस गुस्से को ठंडा करने का काम करेगी.

कौन हैं दीनबंधु सर छोटू राम

24 नवंबर 1881 को रोहतक के गांव गढ़ी सांपला में जन्में सर छोटूराम या छोटूराम चौधरी को असली नाम रिछपाल था.'छोटूराम' ये नाम कैसे पड़ा इसके पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. बताया जाता है कि वो अपने घर में सबसे छोटे थे, इसलिए उनका नाम छोटूराम पड़ा. मिडिल स्कूल तक अपने ही गांव में रहकर पढ़ाई करने वाले सर छोटूराम बाद में दिल्ली आए और उन्होंने क्रिश्चियन मिशन स्कूल में दाखिला लिया. दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन करने वाले और वकील रह चुके सर छोटू राम ने 1907 तक अंग्रेजी के हिंदुस्तान अखबार का संपादन भी किया.

हरियाणा के लिए क्यों जरूरी है सर छोटूराम

जाटों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने वाले सर छोटू राम ने हरियाणा में जाटों के कल्याण के लिए जाट सभा का गठन किया. साथ ही प्रथम विश्व युद्ध में उन्होंने रोहतक के 22 हजार से ज्यादा सैनिकों को सेना में भर्ती करवाया. सर छोटू राम ने शिक्षा के क्षेत्र में भी काफी काम किया और आज हरियाणा का जाट आर्य-वैदिक संस्कृत हाई स्कूल इन्हीं के प्रयासों का नतीजा है. इन्होंने एक अखबार 'जाट गजट' का भी संपादन किया. इस अखबार के जरिए उन्होंने किसानों पर होने वाले शोषण के खिलाफ मुखर होकर लिखा.

साथ ही उन्होंने किसानों की जमीन गिरवी रखने वालों और साहुकारों द्वारा किसानों के उत्पीड़न के खिलाफ भी आवाज उठाई. सर छोटूराम की शख्सियत कैसी थी इसका अंदाजा उनके लेख पढ़कर लगाया जा सकता है. बताया जाता है कि उनके लेख इतने तीखे होते थे कि अंग्रेजी हुकूमत भी उनसे खौफ़ खाती थी.

महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से असहमत थे

1916 में जब रोहतक में कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ तो सर छोटूराम को उनके प्रभाव के कारण उसका अध्यक्ष बना गया, मगर बाद में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से असहमत होकर इससे अलग हो गए. सर छोटूराम का मानना था कि इस आंदोलन का सबसे बुरा असर किसानों पर देखने को मिलेगा और उन्हीं का इससे सबसे ज्यादा नुकसान होगा. कांग्रेस ने अलग होकर इन्होंने यूनियनिस्ट पार्टी का गठन किया और 1937 के प्रोवेंशियल असेंबली चुनावों में उनकी पार्टी को जीत मिली के कारण उन्होंने विकास व राजस्व मंत्री का पदभार ग्रहण किया.

कानून की अच्छी समझ के कारण किया किसानों का कल्याण

किसानों को पर्याप्त पानी मिल सके इसके लिए भाखड़ा बांध का प्रस्ताव रखने वाले सर छोटू राम ने 1930 में दो महत्वपूर्ण कानून पास कराए. ये सर छोटू राम के ही प्रयास थे जिनके चलते 1934 में पंजाब रिलीफ इंडेब्टनेस और 1936 में द पंजाब डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट कानून पास हुआ. इन कानूनों में कर्ज का निपटारा किए जाने, उसके ब्याज और किसानों के मूलभूत अधिकारों से जुड़े हुए प्रावधान थे. इनके अलावा 1938 का साहूकार पंजीकरण एक्ट, 1938 का गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट, 1938 का कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम,1940 का व्यवसाय श्रमिक अधिनियम और 1934 का कर्जा माफी अधिनियम भी सर छोटू राम की ही देन है.

इतनी जानकारी के बाद हमारे लिए ये कहना गलत नहीं है कि, हरियाणा का इतिहास बताता है कि उसके लिए सर छोटू राम ने बहुत कुछ किया है. ऐसे में उस शख्स के लिए जिसने हरियाणा, विशेषकर वहां के जाटों का मान बढ़ाया. यदि उसके लिए भाजपा कुछ कर रही है तो निश्चित तौर पर इसका बड़ा फायदा पार्टी को मिलेगा और क्या पता भविष्य में यही भाजपा द्वारा हरियाणा का किला जीतने का एक मुख्य कारक बने.

सर छोटू राम भाजपा के लिए कितने फायदेमंद साबित होंगे ये हमें आने वाला वक्त बताएगा, मगर जिस तरह पीएम मोदी ने चुनावों के ठीक पहले सर छोटू राम को तरजीह दी है, माना जा रहा है कि, इससे कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ेंगी

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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