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मसूद अजहर - हाफिज सईद मिल भी जाएं तो क्या है?

    • समीर चटर्जी
    • Updated: 01 मई, 2019 07:15 PM
  • 05 मार्च, 2019 08:04 PM
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Masood Azhar को global terrorist घोषित करने से क्‍या वाकई भारत के खिलाफ पाकिस्‍तान की ओर से आने वाले आतंकवाद पर फर्क पड़ेगा? तो जवाब है नहीं. पाकिस्तान के पास अगर एक हाफिज सईद और एक मसूद अजहर है तो उसके पास हज़ारों ऐसे लोग हैं जो इनकी जगह लेने के तैयार बैठे हैं.

क्या अजहर मसूद और हाफिज सईद का जिंदा या मुर्दा पकड़ा जाना जरुरी है?

क्या पाकिस्तान कभी भी आतंकियों की लिस्ट को मानेगा या तरजीह देगा?

क्या फर्क पड़ता है अगर संयुक्त राष्ट्र ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कर दिया है तो?

तात्कालिक तौर पर हां ये कदम जरूरी हैं. अजहर और हाफिज का खात्मा जरूरी है. फर्क पड़ता है लेकिन सिर्फ इतना काफी नहीं है. लश्कर ए तैयबा का सरगना या कहें पूरे हिन्दुस्तान में मौत का सौदागर कहे जाने वाला हाफिज सईद और मसूद अजहर तो बस एक जरिया है, असल वजह तो कुछ और है.

मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद पर अप्रैल 2012 में अमेरिकी सरकार ने 1 करोड़ डॉलर का इनाम रखा, मुंबई हमले में करीब 170 बेगुनाह मारे गए जिनमें 6 अमेरिकी भी शामिल थे, लेकिन अमेरिका भी जानता है कि हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे इंसानियत के दुश्मन पाकिस्तान में महफूज हैं. वो लाहौर, एबटाबाद, कराची और खैबर पख्तूनवां की सड़कों पर खुलेआम घूमते हैं, तकरीरें करते है, आतंक फैलाने की साजिशें रचते हैं, उन्हें पता है कि चाहे इनके सिर पर 65 करोड़ का इनाम ही क्यों न हो उन्हें मिटाने वाला कोई नहीं है.

पाकिस्तान के पास अगर एक हाफिज सईद और एक मसूद अजहर हैं तो उसके पास ऐसे हज़ारों लोग हैं जो उनकी जगह लेने बैठे हैं. सच्चाई तो ये है कि खुद अमेरिका को भी फर्क नहीं पड़ता. हाफिज सईद तो मंत्रियों की मौजूदगी में खुलेआम भारत के खिलाफ जिहाद करने की कसमें खाता है. पुलवामा के बाद भारत पाकिस्तान के बीच आई तल्खी के बीच खुद उनके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी तक जैश से रिश्ते और संपर्क की बात मान चुके हैं.

पाकिस्तान के जानकारों की मानें तो हाफिज सईद लाहौर का ऐसा डॉन है, जो अस्सी और नब्बे के दशक में दाऊद इब्राहिम था, हाफिज सईद धर्म और आतंक...

क्या अजहर मसूद और हाफिज सईद का जिंदा या मुर्दा पकड़ा जाना जरुरी है?

क्या पाकिस्तान कभी भी आतंकियों की लिस्ट को मानेगा या तरजीह देगा?

क्या फर्क पड़ता है अगर संयुक्त राष्ट्र ने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित कर दिया है तो?

तात्कालिक तौर पर हां ये कदम जरूरी हैं. अजहर और हाफिज का खात्मा जरूरी है. फर्क पड़ता है लेकिन सिर्फ इतना काफी नहीं है. लश्कर ए तैयबा का सरगना या कहें पूरे हिन्दुस्तान में मौत का सौदागर कहे जाने वाला हाफिज सईद और मसूद अजहर तो बस एक जरिया है, असल वजह तो कुछ और है.

मुंबई आतंकी हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद पर अप्रैल 2012 में अमेरिकी सरकार ने 1 करोड़ डॉलर का इनाम रखा, मुंबई हमले में करीब 170 बेगुनाह मारे गए जिनमें 6 अमेरिकी भी शामिल थे, लेकिन अमेरिका भी जानता है कि हाफिज सईद और मसूद अजहर जैसे इंसानियत के दुश्मन पाकिस्तान में महफूज हैं. वो लाहौर, एबटाबाद, कराची और खैबर पख्तूनवां की सड़कों पर खुलेआम घूमते हैं, तकरीरें करते है, आतंक फैलाने की साजिशें रचते हैं, उन्हें पता है कि चाहे इनके सिर पर 65 करोड़ का इनाम ही क्यों न हो उन्हें मिटाने वाला कोई नहीं है.

पाकिस्तान के पास अगर एक हाफिज सईद और एक मसूद अजहर हैं तो उसके पास ऐसे हज़ारों लोग हैं जो उनकी जगह लेने बैठे हैं. सच्चाई तो ये है कि खुद अमेरिका को भी फर्क नहीं पड़ता. हाफिज सईद तो मंत्रियों की मौजूदगी में खुलेआम भारत के खिलाफ जिहाद करने की कसमें खाता है. पुलवामा के बाद भारत पाकिस्तान के बीच आई तल्खी के बीच खुद उनके विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी तक जैश से रिश्ते और संपर्क की बात मान चुके हैं.

पाकिस्तान के जानकारों की मानें तो हाफिज सईद लाहौर का ऐसा डॉन है, जो अस्सी और नब्बे के दशक में दाऊद इब्राहिम था, हाफिज सईद धर्म और आतंक के नाम पर लोगों के आपसी कारोबारी और जमीन के झगड़े सुलझाता है. तो क्या हाफिज और मसूद जैसों के बाद पाकिस्तान से भारत के खिलाफ दहशतगर्दी बंद हो जाएगी तो इसका जवाब है नहीं. ये तो सिर्फ प्यादे हैं, कठपुतलियां है और इनकी डोर किसी और के हाथ में है. ये महज दहशतगर्दी की फैक्टरी के उत्पाद हैं जिन्हें कभी भी बदला जा सकता है.

भारत के साथ साथ पाकिस्तान के जन्म को भी 70 साल पूरे हो गए. आजादी भी उन्हें हमसे एक दिन पहले ही मिली, 70 साल में 35 साल पाकिस्तान, सीधे सेना के शासन में रहा तो बाकी के 35 साल सेना ने बैकडोर से यानी परोक्ष रूप से सत्ता संभाली. पाकिस्तान का सबसे बड़ा धंधा आतंक है और आतंक ही पूरी दुनिया से पैसा वसूली का जरिया भी. पाकिस्तानी फौज ने पहले अफगानिस्तान और फिर कश्मीर में एक ऐसी फौज तैयार की जो जब अपने काम से फारिग यानी खाली हो जाएगी तो अपनी ही जनता का संहार करना शुरू कर देगी. अफगानिस्तान में हार के बाद दुनिया ने मुशर्रफ के शासन में वो दौर भी देखा जब लाल मस्जिद को खाली कराने के लिए खुद पाक सेना को उतारना पड़ा था. दरअसल, पाकिस्तानी फौज के सरबराहों ने हमेशा हिन्दुस्तान के खिलाफ एक जंग का माहौल तैयार किया.

पाकिस्तान के मुल्लाओं और मीडिया ने हमेशा ये नैरेटिव खड़ा किया कि हमारे पड़ोसी पाकिस्तान को बर्बाद करना चाहते हैं लोगों की सोच भी पिछले 70 साल में ऐसी ही हो गई. कुछ पढ़े लिखों की बात छोड़ दें तो आज पाकिस्तान की जनता भी एक अजीब भ्रम में जी रही है. उनके लिए भारत एक ऐसा दुश्मन है जो बुराई का प्रतीक है और अगर भारत को हरा दिया गया तो दुनिया जन्नत बन जाएगी. अगर दुश्मन के खिलाफ जिहाद किया जाए तो ये रास्ता उन्हें सम्मान और खुदा के करीब पहुंचाता है. और तीसरी और सबसे जरूरी बात अगर इनकी बात से कोई इत्तेफाक नहीं रखता तो उसे गद्दार समझा जाता है. मोटे तौर पर इन्हीं तीन विचारों को पाकिस्तानी फौज ने पाला पोसा और आज इसका खूंखार स्वरूप दुनिया के सामने है. किसी भी समाज में अच्छे या बुरे लोग होते हैं, विचारों में मतभेद भी होते हैं लेकिन जब एक समाज बरसों से खुद जंग लड़ रहा हो, वहां अच्छाई की आंखों पर पट्टी पड़ जाती है और आज पाकिस्तान की आंखों पर पट्टी पड़ी हुई है और वहां या तो आप फौज के साथ हैं या फौज के खिलाफ.

किसी भी समाज में राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक दिक्कतें आ सकती हैं. ये काफी स्वाभाविक है लेकिन जो समाज अपनी सभी मुश्किलों के लिए भारत को जिम्मेदार मानता हो वहां किसी नए हाफिज या मसूद अजहर को तैयार होने में वक्त नहीं लगेगा. भारत की सरकार और जनता दोनों के लिए ये एक ऐसी चुनौती है जिसे पार पाना आसान नहीं और आतंकियों की नई पौध तैयार करने के लिए पाकिस्तानी सेना तो है ही.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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