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CPEC पर इतराने वाला पाकिस्तान अब चीन से मुक्ति क्यों चाहता है?

    • आईचौक
    • Updated: 12 सितम्बर, 2018 08:24 PM
  • 12 सितम्बर, 2018 08:01 PM
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चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के तहत 55 अरब डॉलर के चीनी निवेश के एलान के बाद पाकिस्तान ने चीन की दोस्ती को हिमालय से भी ऊंचा बताया था. आज जब चीनी पैसों की हकीकत सामने आने लगी तो पाकिस्तान के पैरों तले जमीन खिसक गया.

चीन पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के तहत 55 अरब डॉलर की राशि निवेश कर रहा है. चीन की ये महत्वाकांक्षी परियोजना 'वन बेल्ट वन रोड' का हिस्सा है. पाकिस्तान ने शुरआत से ही इस प्रोजेक्ट को चीन और पाकिस्तान की दोस्ती के रूप में प्रचारित किया और चीन की दोस्ती को हिमालय से भी ऊंचा बताया. पाकिस्तान के हुक्मरानों ने सीपीईसी को पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए वरदान तक बताया. समय बीतने के साथ जब बाकी के देशों ने चीन के इस प्रोजेक्ट की हकीकत को समझा और बड़े पैमाने पर चीनी प्रोजेक्ट को स्थगित किया तब जाकर पाकिस्तान के होश ठिकाने आये.

इमरान खान ने पूर्व की सरकारों पर प्रोजेक्ट का पाकिस्तान के हित में नहीं होने पर निशाना साधा है.

चीनी कर्ज की अपारदर्शिता और चीनी उत्पादों के आयात के कारण सूखता विदेशी मुद्रा भंडार पाकिस्तान के सियासतदानों को चीन की हकीकत से रूबरू करवाने के लिए काफी था. पिछले कुछ महीनों से चीन और पाकिस्तान के बीच इस प्रोजेक्ट को लेकर मनमुटाव की खबरें आने लगी थी लेकिन पाकिस्तान में जब से नई सरकार का गठन हुआ है इस प्रोजेक्ट को लेकर पाकिस्तान ने अपनी आपत्तियां दर्ज करवानी शुरू कर दी हैं. चीन के कई प्रोजेक्ट या तो पूरा हो चुके हैं या पूरा होने की कगार पर हैं. अब पाकिस्तान के लिए यह प्रोजेक्ट गले की फांस बन गया हैं जो न ही उगलते बन रहा है और न ही निगलते.

पाकिस्तान सरकार के आर्थिक सलाहकार परिषद की पहली बैठक में विदेशी मुद्रा भण्डार के बारे में चिंता जताई गई. लक्ज़री गाड़ियों और ऐसे तमाम वस्तुओं के आयात पर प्रतिबन्ध लगाने की सलाह दी गई. पाकिस्तान के सूखते विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा कारण चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर ही है क्योंकि इस प्रोजेक्ट में इस्तेमाल होने वाले एल्युमीनियम और स्टील का आयात चीन से ही हो रहा है जिसके...

चीन पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के तहत 55 अरब डॉलर की राशि निवेश कर रहा है. चीन की ये महत्वाकांक्षी परियोजना 'वन बेल्ट वन रोड' का हिस्सा है. पाकिस्तान ने शुरआत से ही इस प्रोजेक्ट को चीन और पाकिस्तान की दोस्ती के रूप में प्रचारित किया और चीन की दोस्ती को हिमालय से भी ऊंचा बताया. पाकिस्तान के हुक्मरानों ने सीपीईसी को पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए वरदान तक बताया. समय बीतने के साथ जब बाकी के देशों ने चीन के इस प्रोजेक्ट की हकीकत को समझा और बड़े पैमाने पर चीनी प्रोजेक्ट को स्थगित किया तब जाकर पाकिस्तान के होश ठिकाने आये.

इमरान खान ने पूर्व की सरकारों पर प्रोजेक्ट का पाकिस्तान के हित में नहीं होने पर निशाना साधा है.

चीनी कर्ज की अपारदर्शिता और चीनी उत्पादों के आयात के कारण सूखता विदेशी मुद्रा भंडार पाकिस्तान के सियासतदानों को चीन की हकीकत से रूबरू करवाने के लिए काफी था. पिछले कुछ महीनों से चीन और पाकिस्तान के बीच इस प्रोजेक्ट को लेकर मनमुटाव की खबरें आने लगी थी लेकिन पाकिस्तान में जब से नई सरकार का गठन हुआ है इस प्रोजेक्ट को लेकर पाकिस्तान ने अपनी आपत्तियां दर्ज करवानी शुरू कर दी हैं. चीन के कई प्रोजेक्ट या तो पूरा हो चुके हैं या पूरा होने की कगार पर हैं. अब पाकिस्तान के लिए यह प्रोजेक्ट गले की फांस बन गया हैं जो न ही उगलते बन रहा है और न ही निगलते.

पाकिस्तान सरकार के आर्थिक सलाहकार परिषद की पहली बैठक में विदेशी मुद्रा भण्डार के बारे में चिंता जताई गई. लक्ज़री गाड़ियों और ऐसे तमाम वस्तुओं के आयात पर प्रतिबन्ध लगाने की सलाह दी गई. पाकिस्तान के सूखते विदेशी मुद्रा भंडार का सबसे बड़ा कारण चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर ही है क्योंकि इस प्रोजेक्ट में इस्तेमाल होने वाले एल्युमीनियम और स्टील का आयात चीन से ही हो रहा है जिसके कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को नुकसान उठाना पड़ रहा है. चीन 2015 के बाद सीपीईसी प्रोजेक्ट के तहत 18.5 अरब डॉलर खर्च कर चुका है. इमरान खान ने चीन को अपना दोस्त बताया है लेकिन पिछली सरकारों पर चीनी प्रोजेक्टों में दलाली खाने का आरोप भी लगाया है इसका मतलब पाकिस्तान में चीन ने अपने प्रोजेक्ट को पास करवाने के लिए वहां के नेताओं और अधिकारियों को बड़े पैमाने पर पैसा खिलाया है. जिससे चीनी मकसद का अंदाजा लगाया जा सकता है.

हम्बनटोटा से सबक नहीं लिया

ग्वादर पोर्ट का विकास भी चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का ही हिस्सा है. चीन का इसके राजस्व पर 91 फ़ीसदी अधिकार होगा और ग्वादर अथॉरिटी पोर्ट को महज 9 फ़ीसदी मिलेगा. ज़ाहिर है अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के पास 40 सालों तक ग्वादर पर नियंत्रण नहीं रहेगा. श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह चीनी क़र्ज़ की भेट चढ़ चुका है. चीन के 6000 करोड़ रुपये की भारी भरकम क़र्ज़ को न चुका पाने की स्थिति में श्रीलंका को ये बंदरगाह 99 साल की लीज़ पर चीन को सौपना पड़ा और औ इसके साथ -साथ इस क्षेत्र की 15000 एकड़ ज़मीन भी चीन को देना पड़ा जिसका इस्तेमाल आर्थिक गलियारे को विकसित करने के लिए किया जायेगा. दरअसल चीन की नज़र हमेशा से ही इस बंदरगाह पर थी क्योंकि ये पूरा क्षेत्र सामरिक लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण है. दक्षिण एशिया में भारत को घेरने के किये चीन इसका इस्तेमाल कर सकता है.

श्रीलंका का हम्बनटोटा बंदरगाह पहले ही चीनी कर्ज की भेंट चढ़ चुका है.

चीनी बैंकों के कर्ज का बढ़ता दायरा

2016 की तुलना में 2017 में बैंक ऑफ चाइना की ओर से बाहरी मुल्कों को कर्ज़ देने की दर 10.6 फ़ीसदी बढ़ी थी. वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार 2016 में पहली बार चीन के चार बड़े सरकारी बैंकों में से तीन ने देश में कॉर्पोरेट लोन देने से ज़्यादा बाहरी मुल्कों को कर्ज़ दिए. रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन अपनी कंपनियों को दुनिया के उन देशों में बिज़नेस करने के लिए आगे कर रहा है जहां से एकतरफ़ा मुनाफ़ा कमाया जा सके. रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए कर्ज़ रणनीति को तेज़ी से आगे बढ़ा रहा है.

एक रिपोर्ट के अनुसार चाइना कंस्ट्रक्शन बैंक की तरफ़ दिए जाने वाले विदेशी कर्ज़ों में 31 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जबकि इसकी तुलना में देश में यह वृद्धि दर 1.5 फ़ीसदी ही है. एक्सिम बैंक भी दुनिया की कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देशों को धराधर कर्ज बांट रहा है, जब चीन को पता है कि इन देशों की अर्थव्यवस्था कर्ज चुकाने लायक नहीं हैं तो फिर इन देशों को कर्ज के चंगुल में क्यों जकड़ा जा रहा है. चीन की नजर इन देशों के प्राकृतिक संसाधनों और सामरिक इस्तेमाल पर टिकी हुई है जिसका इस्तेमाल वो एशिया और अफ्रीका में अपने दबदबे को बढ़ाने के लिए करना चाहता है.

पाकिस्तान भी उसी सामरिक और औपनिवेशिक मानसिकता की बलि चढ़ने वाला है. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन पाकिस्तान के ग्वादर शहर में चीनी कॉलोनी का निर्माण कर रहा है जहां 5 लाख चीनी नागरिकों को बसाने की तैयारी कर रहा है. पाकिस्तान अब चीनी कर्ज की गिरफ्त में आ चुका है जिससे निकलना नामुमकिन है. पाकिस्तान की ढहती अर्थव्यवस्था का कारण भी चीन है और पालनहार भी चीन है. अगर चीन का निशाना सही बैठा तो दक्षिण एशिया में पाकिस्तान चीन का पहला आर्थिक गुलाम होगा जिसके जिम्मेवार पाकिस्तान की सेना और नेता होंगे. आर्मी चीफ कमर बाजवा ने CPEC को पाकिस्तान का भविष्य बताया है. यह प्रोजेक्ट उनके सुनहरे भविष्य की गारंटी हो सकती है लेकिन पाकिस्तान के भविष्य को बीजिंग के पोलित ब्यूरो के दफ्तर में कैद करने के लिए बेकरार है.

कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न-आईचौक)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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