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मोदी को हल्के में लेते रहे तो 2024 में भी अविश्वास प्रस्ताव औंधे मुंह गिरेगा

    • आईचौक
    • Updated: 21 जुलाई, 2018 05:54 PM
  • 21 जुलाई, 2018 05:54 PM
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संसद में अविश्वास प्रस्ताव औंधे मुंह गिरने के बाद उसकी बातें सड़क तक पहुंच चुकी हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूपी में किसानों की रैली में अविश्वास प्रस्ताव को दलदल बताया जिसमें कमल आसानी से खिलता है - क्या विपक्ष मोदी के 'मन की बात' समझ पा रहा है?

अविश्वास प्रस्ताव का हाल विपक्ष के लिए मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा हो रहा है. संसद में अविश्वास प्रस्ताव को शिकस्त देने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सड़क तक ले जा चुके हैं.

अविश्वास प्रस्ताव का मामला इस कदर बैकफायर कर रहा है कि इसी के बहाने प्रधानमंत्री मोदी हर जगह अपने रिपोर्ट कार्ड के साथ बोनस में 'मन की बात' सुनाने लगे हैं.

संसद से सड़क तक

संसद में पूरे हाव भाव और हाथ के एक्शन से राहुल गांधी के गले मिलने और 'आंखों के खेल' का मजाक उड़ाने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जी नहीं भरा. प्रधानमंत्री मोदी अब अविश्वास प्रस्ताव का मामला संसद से सड़क तक ले जा चुके हैं.

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में किसान कल्याण रैली में मोदी ने पूछा, "कल जो लोकसभा में हुआ उससे आप संतुष्ट हैं?" फिर बोले "आपको पता चल गया, उन्होंने क्या क्या गलत किया. आपको पता चल गया कि वह कुर्सी के लिए कैसे दौड़ रहे हैं. प्रधानमंत्री की कुर्सी के सिवाय उनको कुछ नहीं दिखता..."

संसद की बहस को किसानों के बीच ले गये प्रदानमंत्री मोदी...

कैराना में झटका खाने के बाद किसानों को अपनी सरकार के काम और पुराने वादे दोहराते हुए मोदी ने फिर से पूरे विपक्ष का मखौल उड़ाया. मोदी ने समझाया कि 'दल-दल' मिलकर दलदल बन जाता है और दलदल में कमल खिल कर निकलता है - जितने ज्यादा दल एक साथ मिलेंगे उतना ही दल-दल होगा और जितना ज्यादा दल-दल होगा, उतना ही कमल खिलेगा.

राहुल के गले मिलने बुरी तरह खफा मोदी बोले, "हम उनसे लगातार पूछते रहे कि अविश्वास का कारण क्या है, जरा बताओ तो. जब कारण नहीं बता पाए, तो गले पड़ गये."

भरोसा क्यों नहीं दिला पाते राहुल गांधी?

राहुल के पीएम मोदी से गले मिलने की घटना पर बीजेपी नेता सुब्रमण्यन...

अविश्वास प्रस्ताव का हाल विपक्ष के लिए मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डालने जैसा हो रहा है. संसद में अविश्वास प्रस्ताव को शिकस्त देने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सड़क तक ले जा चुके हैं.

अविश्वास प्रस्ताव का मामला इस कदर बैकफायर कर रहा है कि इसी के बहाने प्रधानमंत्री मोदी हर जगह अपने रिपोर्ट कार्ड के साथ बोनस में 'मन की बात' सुनाने लगे हैं.

संसद से सड़क तक

संसद में पूरे हाव भाव और हाथ के एक्शन से राहुल गांधी के गले मिलने और 'आंखों के खेल' का मजाक उड़ाने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जी नहीं भरा. प्रधानमंत्री मोदी अब अविश्वास प्रस्ताव का मामला संसद से सड़क तक ले जा चुके हैं.

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में किसान कल्याण रैली में मोदी ने पूछा, "कल जो लोकसभा में हुआ उससे आप संतुष्ट हैं?" फिर बोले "आपको पता चल गया, उन्होंने क्या क्या गलत किया. आपको पता चल गया कि वह कुर्सी के लिए कैसे दौड़ रहे हैं. प्रधानमंत्री की कुर्सी के सिवाय उनको कुछ नहीं दिखता..."

संसद की बहस को किसानों के बीच ले गये प्रदानमंत्री मोदी...

कैराना में झटका खाने के बाद किसानों को अपनी सरकार के काम और पुराने वादे दोहराते हुए मोदी ने फिर से पूरे विपक्ष का मखौल उड़ाया. मोदी ने समझाया कि 'दल-दल' मिलकर दलदल बन जाता है और दलदल में कमल खिल कर निकलता है - जितने ज्यादा दल एक साथ मिलेंगे उतना ही दल-दल होगा और जितना ज्यादा दल-दल होगा, उतना ही कमल खिलेगा.

राहुल के गले मिलने बुरी तरह खफा मोदी बोले, "हम उनसे लगातार पूछते रहे कि अविश्वास का कारण क्या है, जरा बताओ तो. जब कारण नहीं बता पाए, तो गले पड़ गये."

भरोसा क्यों नहीं दिला पाते राहुल गांधी?

राहुल के पीएम मोदी से गले मिलने की घटना पर बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने अपने अंदाज में रिएक्ट किया है. एक ट्वीट में स्वामी ने राहुल गांधी का नाम लेने की बजाये उनके लिए 'बुद्धू' शब्द का इस्तेमाल किया है.

सुब्रह्मण्यन स्वामी ट्विटर पर लिखते हैं, 'नमो को बुद्धू को गले लगने देने की अनुमति नहीं देनी चाहिए थी. रूसी और नॉर्थ कोरियाई गले लगने की तकनीक का इस्तेमाल जहरीली सुई चुभोने के लिए करते हैं.' राहुल गांधी के गले मिलने के बाद स्वामी ने प्रधानमंत्री मोदी को फौरन मेडिकल चेक अप कराने की सलाह दी है.

सवाल ये है कि सुब्रह्मण्यन स्वामी को ये मौका मुहैया किसने कराया? बेशक, सिर्फ और सिर्फ राहुल गांधी ने. गले मिलने के बाद न अगर वो आंख नहीं मारते तो ऐसे सवाल खड़े हो पाते क्या?

हो सकता है राहुल ने किसी और बात में साथियों को ऐसे इशारा किया हो - लेकिन मैसेज तो गलत ही गया. संसद में राहुल गांधी का भाषण सुन कर होली गीतों की याद आ रही थी - 'होली के दिन... दुश्मन भी गले मिल जाते हैं.'

आंख मार कर राहुल ने लोगों को ये कहने का मौका दे दिया कि प्यार और नफरत की बात वो करते जरूर हैं, लेकिन उस पर गंभीर नहीं हैं. वो पॉलिटिक्स को भी कैजुअली लेते हैं और अपनी छाप भी ऐसी ही छोड़ते हैं जिसमें संजीदगी की कमी बनी रहती है. कांग्रेस के साथियों के अलावा आरजेडी नेता तेजस्वी यादव को राहुल गांधी की ये अदा जरूर भा रही है.

राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी के बारे तो कहते हैं कि उनके शब्दों पर यकीन नहीं होता, लेकिन गले मिल कर आंख मारने के बाद क्या उन्होंने ये बात महसूस की कि लोग उनकी बातों को लेकर क्या सोचेंगे? हो सकता है आंख मारना राहुल गांधी की स्टाइल या सहज प्रवृति रही हो. किसी बात पर सहमति जताने या फिर सोशल मीडिया पर स्माइली की तरह कोई सिंबल हो - लेकिन ऐसा करने से पहले उन्हें सार्वजनिक तौर पर इसे बताना भी चाहिये था. फिर शायद मोदी भी आंखों के खेल में सच को कुचले जाने की बात करने से पहले दो बार सोचते भी. राहुल गांधी ने अकाली नेता हरसिमरत कौर के जिस फीडबैक का जिक्र किया वो भी उल्टा पड़ा. हरसिमरत ने तो यहां तक पूछ डाला - 'आज क्या लेकर आये हैं?' क्या 'उड़ता पंजाब' की आग ही ऐसी होती है कि उसका धुआं कहीं भी दिख जाता है? आखिर हरसिमरत कौर दावे से ऐसा क्यों कह रही थीं? ये महज सियासी विरोध था या कोई रहस्योद्घाटन. इंतजार कीजिए, चुनावों में ही सही, वो खुद इस पर विस्तार से प्रकाश डालेंगी.

राहुल गांधी को भरोसा दिलाना ही होगा

इंडिया टुडे कॉनक्लेव में कुछ दिन पहले ही सोनिया गांधी ने एक सवाल के जवाब में बड़े दावे के साथ कहा था बीजेपी को 2019 में सत्ता में लौटने नहीं देंगे. क्या सोनिया गांधी का वो दावा भी वैसा ही रहा जैसा अविश्वास प्रस्ताव से पहले उन्होंने कहा था - 'कौन कहता है कि हमारे पास नंबर नहीं है?' क्या इसी बिनाह पर 2019 में मोदी को चैलेंज करने की तैयारी है? आखिर हकीकत से रू-ब-रू क्यों नहीं होती कांग्रेस?

...और ममता का - 'बीजेपी भारत छोड़ो'

टीडीपी ने बहस के लिए प्लेटफॉर्म तो दिया लेकिन दायरा विस्तृत नहीं कर पायी. इरादा तो लगा कि तीसरे मोर्चे में बड़ी हिस्सेदारी को लेकर है. मगर, बुंदेलखंड से लेकर बाहुबली तक के उदाहरणों में उसका फोकस आंध्र प्रदेश ही रहा - यानी, अगर चंद्रबाबू नायडू 2019 में बड़ी भूमिका के सपने देखें भी तो लोगों को उसमें उनके अपने स्वार्थ का ही दबदबा नजर आएगा.

बीजेपी के खिलाफ ममता बनर्जी का बड़ा अभियान

टीडीपी की तरह बीजेडी, शिवसेना और टीआरएस - सभी को अपनी जमीन की पड़ी लगती है. बीजेडी तो 'न काहू से दोस्ती न काहू से बैर' वाले मोड में लगती है.शिवसेना ने बीजेपी के साथ सेंसर बोर्ड जैसा रोल ले रखा है - हम काट छांट सुझाते रहेंगे. हम फिल्में पास भी करते रहेंगे - बस चर्चा में बने रहने के लिए कुछ न कुछ ऐसा बोलते रहेंगे जिसका बीजेपी को 'सामना' करना ही है.

राहुल गांधी और उनके साथी प्रधानमंत्री पद पर दावा तो जताते हैं, लेकिन उसके पीछे अब तक कोई ठोस आधार नहीं नजर आ रहा. पहले नीतीश कुमार राहुल गांधी के लिए चुनौती बने हुए थे तो अब वो जगह ममता बनर्जी ने ले ली है. क्या मालूम कल अरविंद केजरीवाल अपना दावा ठोक दें.

अगर राहुल गांधी वाकई गंभीर हैं तो उनको एक साफ लाइन खींचनी होगी. पूरे यकीन के साथ बताना होगा कि जहां वो खड़े होते हैं उनकी लाइन वहीं से शुरू होती है. लाइन में सबसे आगे वही खड़े होंगे और बाकियों को उनके पीछे रहना होगा. अगर ऐसा नहीं हो पा रहा तो खुद लाइन में लग कर किसी ऐसे नेता को आगे करना होगा जिसके नाम पर आम राय बने और बगैर विरोध के बाकी लोग चुपचाप कतार में लग जाये - वरना राहुल गांधी भी ग्रीन सिग्नल होने के बावजूद वैसे भी जाम में फंसे रहेंगे जैसे पूरा देश आगे निकलने की होड़ में किसी भी चौराहे पर जूझ रहा होता है.

पूर्व बीजेपी सांसद चंदन मित्रा, पूर्व सीपीएम सांसद मोइनुल हसन, कांग्रेस की सबीना यास्मिन और मिजोरम के एडवोकेट जनरल बिश्वजीत देव के टीएमसी में शामिल होने से ममता बनर्जी खासी उत्साहित नजर आ रही हैं.

तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में आज शहीद दिवस मना रही है और एक रैली में ममता बनर्जी ने जोरदार तरीके से अपना नारा भी दोहराया है - 'बीजेपी भारत छोड़ो'.

रैली में ममता ने ऐलान किया - "हम 15 अगस्त से 'बीजेपी हटाओ, देश बचाओ' मुहिम शुरू करेंगे. ये 2019 के लिए एक बड़ा प्रहार होगा जिसमें बंगाल रास्ता दिखाएगा.' बीते दिनों में भी ममता ने ऐसी कोशिशें की है, हालांकि, मौजूदा प्रयास ज्यादा सीरियस लग रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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