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आदर्श बाल ठाकरे हैं फिर गांधी की जरूरत क्यों पड़ी....

    • विनीत कुमार
    • Updated: 11 सितम्बर, 2015 04:20 PM
  • 11 सितम्बर, 2015 04:20 PM
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अहमदाबाद रैली के बाद हार्दिक के हवाले से बयान आया कि वे बाल साहेब ठाकरे को अपना आदर्श मानते हैं. हाथों में बंदूक वाली उनकी तस्वीर भी हिट हुई. लेकिन सवाल है कि हार्दिक को गांधी का रूख क्यों करना पड़ा...

टीवी कैमरों की नजर भले ही बिहार चुनाव और शीना बोरा मर्डर पर टिकी हो. लेकिन गुजरात में हार्दिक पटेल रिवर्स दांडी मार्च की तैयारी में लगे हैं. जी हां! वही हार्दिक पटेल जिन्होंने गुजरात में पटेल समुदाय के आरक्षण की मांग का झंडा बुलंद कर रखा है. पहले यह मार्च 6 सितंबर को था लेकिन सरकार ने इजाजत नहीं दी थी. हार्दिक हालांकि कह चुके हैं कि 13 सितंबर को हर हाल में रिवर्स दांडी मार्च निकालेंगे.

अहमदाबाद रैली के बाद जब हार्दिक राष्ट्रीय मीडिया में छाए और कैमरे उनके आगे-पीछे घूमने लगे तो उनके हवाले से ही बयान आया कि वे बाल ठाकरे को अपना आदर्श मानते हैं. हाथों में बंदूक वाली उनकी तस्वीर भी हिट हुई. लेकिन सवाल है कि हार्दिक को गांधी का रूख क्यों करना पड़ा. वह क्यों दांडी का जिक्र कर रहे हैं, क्यों पटेल समुदाय से आने वाले MLAs को गुलाब का फूल देकर गांधीगीरी करने की बात करते हैं. क्या हार्दिक अहमदाबाद रैली के बाद हुई हिंसा और फजीहत के बाद खुद के इमेज के मोकओवर की कोशिश कर रहे हैं?

यह सच है कि हार्दिक ने एक के बाद एक बेमौसम रैलियों कर गुजरात की सियासत को नया एंगल दिया है. बेमौसम इसलिए क्योंकि वहां चुनाव में अब भी कम से कम दो साल का समय है. लेकिन हार्दिक जब गांधी और ठाकरे को एक साथ रखने की कोशिशि करते हैं तो हास्यास्पद लगता है.

कहां गांधी अहिंसा की बात करने वाले और ठाकरे हिंसा से अपनी बात रखने वाले. गांधी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए कहा जबकि ठाकरे पूरी जिंदगी दक्षिण और उत्तर भारतीयों को मुंबई से निकालने की बात करते रहे. गांधी शराबबंदी के समर्थक तो बाल ठाकरे पीने-पिलाने के शौकीन. गांधी उदारवादी हिंदू तो ठाकरे का मिजाज बिल्कुल अलग.

वैसे, ठाकरे और गांधी को एक साथ रखने की बात जब हो रही है तो केवल हार्दिक पटेल की बात क्यों की जाए. नरेंद्र मोदी भी ऐसी कोशिश कर चुके हैं. मोदी समय-समय पर गांधी के प्रति अपने सम्मान को जताते रहे हैं. मोदी ने पिछले साल कहा कि स्वच्छ भारत अभियान की प्रेरणा उन्हें महात्मा गांधी से ही मिली. लेकिन...

टीवी कैमरों की नजर भले ही बिहार चुनाव और शीना बोरा मर्डर पर टिकी हो. लेकिन गुजरात में हार्दिक पटेल रिवर्स दांडी मार्च की तैयारी में लगे हैं. जी हां! वही हार्दिक पटेल जिन्होंने गुजरात में पटेल समुदाय के आरक्षण की मांग का झंडा बुलंद कर रखा है. पहले यह मार्च 6 सितंबर को था लेकिन सरकार ने इजाजत नहीं दी थी. हार्दिक हालांकि कह चुके हैं कि 13 सितंबर को हर हाल में रिवर्स दांडी मार्च निकालेंगे.

अहमदाबाद रैली के बाद जब हार्दिक राष्ट्रीय मीडिया में छाए और कैमरे उनके आगे-पीछे घूमने लगे तो उनके हवाले से ही बयान आया कि वे बाल ठाकरे को अपना आदर्श मानते हैं. हाथों में बंदूक वाली उनकी तस्वीर भी हिट हुई. लेकिन सवाल है कि हार्दिक को गांधी का रूख क्यों करना पड़ा. वह क्यों दांडी का जिक्र कर रहे हैं, क्यों पटेल समुदाय से आने वाले MLAs को गुलाब का फूल देकर गांधीगीरी करने की बात करते हैं. क्या हार्दिक अहमदाबाद रैली के बाद हुई हिंसा और फजीहत के बाद खुद के इमेज के मोकओवर की कोशिश कर रहे हैं?

यह सच है कि हार्दिक ने एक के बाद एक बेमौसम रैलियों कर गुजरात की सियासत को नया एंगल दिया है. बेमौसम इसलिए क्योंकि वहां चुनाव में अब भी कम से कम दो साल का समय है. लेकिन हार्दिक जब गांधी और ठाकरे को एक साथ रखने की कोशिशि करते हैं तो हास्यास्पद लगता है.

कहां गांधी अहिंसा की बात करने वाले और ठाकरे हिंसा से अपनी बात रखने वाले. गांधी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए कहा जबकि ठाकरे पूरी जिंदगी दक्षिण और उत्तर भारतीयों को मुंबई से निकालने की बात करते रहे. गांधी शराबबंदी के समर्थक तो बाल ठाकरे पीने-पिलाने के शौकीन. गांधी उदारवादी हिंदू तो ठाकरे का मिजाज बिल्कुल अलग.

वैसे, ठाकरे और गांधी को एक साथ रखने की बात जब हो रही है तो केवल हार्दिक पटेल की बात क्यों की जाए. नरेंद्र मोदी भी ऐसी कोशिश कर चुके हैं. मोदी समय-समय पर गांधी के प्रति अपने सम्मान को जताते रहे हैं. मोदी ने पिछले साल कहा कि स्वच्छ भारत अभियान की प्रेरणा उन्हें महात्मा गांधी से ही मिली. लेकिन पिछले ही साल लोकसभा चुनाव से पहले जब मोदी चुनाव प्रचार के लिए महाराष्ट्र गए तो यह भी कह दिया कि वह शिवसेना की आलोचना नहीं करेंगे क्योंकि वह बाल ठाकरे का सम्मान करते हैं.दरअसल, गांधी हमारी-आपकी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी हो सकते हैं. लेकिन बाल ठाकरे से जब तुलना होगी तो यही बात सामने आएगी कि दोनों नेता दो छोड़ है जिन्हें आप कभी नहीं मिला सकते. अगर आप दोनों को आदर्श मानते हैं तो इसका मतलब है कि आपने ठीक से न गांधी को ही समझा न ठाकरे को.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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