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गुनाहों के देवताओं का सियासी पूजन

    • विवेक त्रिपाठी
    • Updated: 01 मार्च, 2016 06:54 PM
  • 01 मार्च, 2016 06:54 PM
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महापुरूषों और ईश्वर की आराधना से आगे का मार्ग मिलता है लेकिन अपराधियों को पूजने से क्या हासिल होगा. अगर अपराधियों के मंदिर और आदर्श पर चलना पड़े तो आने वाले भविष्य का सत्यानाश तय है.

पूजा-पाठ मूर्ति स्थपना आदि आस्था का विषय है. पहले केवल देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित होती थी. राजनीति ने इसका विस्तार किया और महापुरूषों की मूर्तियां भी बड़े पैमाने पर स्थापित होने लगीं. यह माना गया कि समाज इनके विचारों से प्रेरणा लेगा. समाज व राष्ट्र के हित में कार्य करने का संकल्प लेगा. मूर्ति स्थपना ऐसे महापुरूषों की होती है जनका योगदान समाज को बनाने और अच्छे कामों में हो. लेकिन अपराधी तत्वों को अपना मसीहा मानकर उनकी मूर्ति की स्थापना करना कहां तक सही है.

बीते दिनों उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसा ही देखने को मिला. दशकों तक लोगों को लूटने वाला व्यक्ति डाकू सरगना ददुआ का मंदिर फतेहपुर के धाता थाने के तहत कबरहा गांव में बना है. ददुआ और उसकी पत्नी केतकी देवी उर्फ बड़ी की मूर्तियां स्थापित कर दी गईं. पहले ही दिन बड़ी तादाद में लोग पहुंचे. सैकड़ों लोगों ने जेवर उतारकर मूर्तियों के सामने चढ़ा दिए. ददुआ पर 200 से ज्यादा मर्डर, लूट और किडनैपिंग के केस दर्ज थे. उसका चंबल के इलाके पर करीब तीन दशक तक राज रहा. 1978 में एक व्यक्ति की हत्या कर उसने गांव में घूम-घूम कर पिता की मौत का बदला लेने की बात कही थी. वो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और यूपी से सटे चंबल के बीहड़ों में लूट, डकैती, हत्या और अपहरण जैसे अपराध करता था. 1983 में ददुआ ने अपना गैंग खड़ा किया था. 1986 में उसका नाम रामू का पुरवा में हुए 9 लोगों के नरसंहार में चर्चा में आया था. चंबल की करीब 10 विधानसभा में ददुआ का खौफ था. आसपास के करीब 500 गांव में उसकी धाक थी. 2008 में पुलिस मुठभेड़ में साथियों सहित उसकी मौत हो गई थी. मूर्ति स्थापना के लिए मुख्यमंत्री से लेकर सिंचाई मंत्री को आमंत्रित किया गया था. कार्यक्रम लगभग फाइनल था लेकिन बाद में वह पहुंचे नहीं. शायद विपक्षियों के डर से उन्होंने कार्यक्रम में भाग न लिया हो. ददुआ ने 2000 में फतेहपुर के धाता थानाक्षेत्र के कबरहा गांव में एक मंदिर की नींव डाली थी. राम-सीता, हनुमान और शिव की मूर्तियों की स्थापना की गई थी. इस मंदिर का निर्माण 2006 में पूरा होने के बाद भव्य समारोह हुआ था, जिसमें पुलिस की नजरों से बचते हुए ददुआ भी शामिल हुआ था. काफी दिनों तक यह समारोह चर्चा में रहा. हाथी से लेकर जाने क्या-क्या दान में दिया गया. ठीक उसके उलट ऐसा ही एक और समारोह चर्चा में है. क्या...

पूजा-पाठ मूर्ति स्थपना आदि आस्था का विषय है. पहले केवल देवी देवताओं की मूर्ति स्थापित होती थी. राजनीति ने इसका विस्तार किया और महापुरूषों की मूर्तियां भी बड़े पैमाने पर स्थापित होने लगीं. यह माना गया कि समाज इनके विचारों से प्रेरणा लेगा. समाज व राष्ट्र के हित में कार्य करने का संकल्प लेगा. मूर्ति स्थपना ऐसे महापुरूषों की होती है जनका योगदान समाज को बनाने और अच्छे कामों में हो. लेकिन अपराधी तत्वों को अपना मसीहा मानकर उनकी मूर्ति की स्थापना करना कहां तक सही है.

बीते दिनों उत्तर प्रदेश में कुछ ऐसा ही देखने को मिला. दशकों तक लोगों को लूटने वाला व्यक्ति डाकू सरगना ददुआ का मंदिर फतेहपुर के धाता थाने के तहत कबरहा गांव में बना है. ददुआ और उसकी पत्नी केतकी देवी उर्फ बड़ी की मूर्तियां स्थापित कर दी गईं. पहले ही दिन बड़ी तादाद में लोग पहुंचे. सैकड़ों लोगों ने जेवर उतारकर मूर्तियों के सामने चढ़ा दिए. ददुआ पर 200 से ज्यादा मर्डर, लूट और किडनैपिंग के केस दर्ज थे. उसका चंबल के इलाके पर करीब तीन दशक तक राज रहा. 1978 में एक व्यक्ति की हत्या कर उसने गांव में घूम-घूम कर पिता की मौत का बदला लेने की बात कही थी. वो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और यूपी से सटे चंबल के बीहड़ों में लूट, डकैती, हत्या और अपहरण जैसे अपराध करता था. 1983 में ददुआ ने अपना गैंग खड़ा किया था. 1986 में उसका नाम रामू का पुरवा में हुए 9 लोगों के नरसंहार में चर्चा में आया था. चंबल की करीब 10 विधानसभा में ददुआ का खौफ था. आसपास के करीब 500 गांव में उसकी धाक थी. 2008 में पुलिस मुठभेड़ में साथियों सहित उसकी मौत हो गई थी. मूर्ति स्थापना के लिए मुख्यमंत्री से लेकर सिंचाई मंत्री को आमंत्रित किया गया था. कार्यक्रम लगभग फाइनल था लेकिन बाद में वह पहुंचे नहीं. शायद विपक्षियों के डर से उन्होंने कार्यक्रम में भाग न लिया हो. ददुआ ने 2000 में फतेहपुर के धाता थानाक्षेत्र के कबरहा गांव में एक मंदिर की नींव डाली थी. राम-सीता, हनुमान और शिव की मूर्तियों की स्थापना की गई थी. इस मंदिर का निर्माण 2006 में पूरा होने के बाद भव्य समारोह हुआ था, जिसमें पुलिस की नजरों से बचते हुए ददुआ भी शामिल हुआ था. काफी दिनों तक यह समारोह चर्चा में रहा. हाथी से लेकर जाने क्या-क्या दान में दिया गया. ठीक उसके उलट ऐसा ही एक और समारोह चर्चा में है. क्या यह सब वोट बैंक के खातिर हो रहा है. तो इसमें राजनैतिक दल खुलकर अभी भी कुछ बोलने में हिचक रहे हैं. यह फिर उन्हें ददुआ की दशाहत आज भी नहीं बोलने दे रही है.

मूर्ति स्थपना के कुछ दिन बाद उसी जिले में एक और अपराधी का महिमामंडन किये जाने का एलान किया गया. 90 के दशक में अपने अपराध के बल पर अपराधी बने श्रीप्रकाश शुक्ला की मूर्ति फतेहपुर के बिंदकी तहसील के गांव कौंह में परशुराम के मंदिर परिसर में लगवाने का एलान फतेहपुर के जहानाबाद असेंबली से पूर्व विधायक आदित्य पांडेय ने किया है. वर्तमान में वह भाजपा के सक्रिय सदस्य हैं. उनका कहना है कि श्रीप्रकाश शुक्ला की मूर्ति जयपुर में तैयार हो रही है. मार्च में भंडारे और पूजा-पाठ के बाद मंदिर में मूर्ति लगाई जाएगी. अदित्य पाण्डेय का कहना है कि श्री प्रकाश शुक्ला ब्राम्हणों के लिए साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति था. इसलिए उनका सम्मान भी होना जरूरी है. श्री प्रकाश शुक्ला बहुत बड़ा अपराधी था. उसके उपर 100 से ज्यादा मुकदमे थे. उसका सिक्का उप्र से लेकर बिहार तक चलता था. पुलिस भी उसके कारनामों पर लगाम नहीं लगा पा रही थी. वसूली, किडनैपिंग, कत्ल, डकैती में उसका नाम सबसे उपर रहता था. उसके लिए स्पेशल टास्क फोर्स तक बनानी पड़ी थी. बाद में पुलिस एनकाउंटर में वह मारा गया. फतेहपुर का और कुख्यात अपराधी उमर केवट जो आतंक का पर्याय बना हुआ था. उसके उपर भी 100 से ज्यादा मुकदमे थे और उसके सर 50 हजार का इनाम भी घोषित था. उसके रिश्तेदार भी फतेहपुर के असोथर के तिलानबाबा में मूर्ति लगाने की तैयारी कर रहे हैं. ऐसे ही चंबल के बिहड़ में अतंक का पर्याय बने निर्भय गुज्जर पर भी 300 से अधिक गंभीर धाराएं और पांच लाख का इनाम था. उसका आतंक उप्र और मध्यप्रदेश दोनों जगह था. बाद में वह 2008 को पुलिस ने मुठभेड़ में निर्भय गुज्जर को मार गिराया. उनके भी चचेरे भाई इटावा जिले के बिठौली इलाके के जाहरपुर गांव में निर्भय गुज्जर की मूर्ति लगाने का फैसला लिया है. इसकी तैयारी शुरू कर दी गई है.

सबसे पहले ऐसे मंदिरों की शुरूआत हिन्दू महासभा ने गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे से की थी. संगठन ने राजस्थान के किशनगढ़ में गोडसे की मूर्ति भी तैयार करवा ली थी. हलांकि काफी बवाल के बाद प्रतिमा लग नहीं पाई. गोडसे हिन्दू महासभा का सदस्य भी था. गोडसे ने मुस्लिम लीग और उसकी राजनीति का विरोध किया था. कभी गांधी जी के सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़े गोडसे ने उग्रवादी संगठन हिंदू राष्ट्र दल बनाया. वे गांधी जी के उपवास कार्यक्रमों का भी विरोध करने लगे. पूरे मामले में गोडसे की भतीजी हिमानी सावरकर ने कहा है कि ऐसा करने से गोडसे की छवि धूमिल होगी. ऐसा लगेगा मानो वे धूर्त हत्यारे या आतंकी थे, जो कि वे नहीं थे.

इस प्रकार की ओछी हरकतें करने वाले संगठनों को सोचना होगा कि मूर्ति और मंदिर भगवानों के बनते हैं. जाहिर है ददुआ के परिजनों ने कुर्मी वोटों के धुव्रीकरण के लिए ददुआ को मंदिर में पुजवाने की साजिश की है, अब श्रीप्रकाश शुक्ला के जरिए ब्राह्मण वोट बटोरने की कोशिश हो रही है. आने वाली पीढ़ी भगवानों और महापुरूषों के बताये आदर्शों पर चलती है. भला ऐसे कुख्यात अपराधियों का आने वाले भविष्य और समाज पर क्या असर होगा. यह शायद वोटों की फसल काटने वाले राजनैतिक दल और सरकार का मौन इसको बढ़ावा देने की सहमति माना जा सकता है. लेकिन ऐसे मंदिरों से न तो समाज का कुछ भला होगा और न ही इससे कोई सीख लेगा. अगर अपराधियों के मंदिर और आदर्श पर चलना पड़े तो आने वाले भविष्य का सत्यानाश तय है. महापुरूषों और ईश्वर की आराधना से आगे का मार्ग मिलता है. अपराधियों को पूजने से क्या हासिल होगा.

ऐसे आयोजनों का सरकार और धर्मगुरूओं को मिलकर विरोध करना चाहिए. भावी पीढ़ी इससे बर्बाद होगी. यह इतिहास के लिए घातक सिद्ध होगें. आज अपराधियों के मंदिर बन रहे हैं, कल लोग आंतकवादियों और अंडरवर्ल्ड के डॉन के भी मंदिर बनाएंगे. ऐसे मंदिरों से शायद वोट नहीं दहशत मिलेगी. इस प्रकार की मूर्तियों को लगाये जाने के लिए सरकार द्वारा कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए वरना अपने देश का इतिहास और भूगोल में यह सबसे पहले दर्ज हो जायेगें. क्योंकि नकारात्मक चीज सबसे पहले सुर्खियां बनती हैं. इन बातों का ध्यान रखते हुए सकारात्मक चीजों का प्रसार और महापुरुषों और भगवानों को ही बढ़ावा दिया जाना चाहिए. कुख्यातों और अपराधियों को महिमामंडित करने की अवश्यकता नहीं. अपने देश में महापुरुषों का इतिहास ही इतना बड़ा है कि उसे गृहण करने के लिए पूरा विश्व परेशान रहता है. ऐसे में अपने देश के अपराधियों और डाकुओं को पवित्र स्थल पर जगह देने भगवान का अपमान करने के बराबर है. यहां कि संस्कृति को धर्मग्रन्थ और पूजा पद्धति सदैव सबसे आगे रही है. इसका भी ध्यान रखना चाहिए.

वस्तुतः जातिवादी मानसिकता में घिरे कुछ लोग समाज के व्यापक हित को नजरअंदाज कर रहे हैं. ये अपनी जाति के समाजविरोधी तत्वों को महिमामण्डन कर रहे हैं. कानून को ऐसे लोगों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए. लेकिन खासतौर पर उन जतिवर्गों को भी इसके खिलाफ आवाज उठानी होगी. जैसे ददुआ की मूर्ति स्थापित करने का तीखा विरोध उस जाति के लोगों को करना चाहिए. इसी प्रकार श्री प्रकाश शुक्ला व निर्भय गुज्जर की मूर्तियों का विरोध उनकी जाति के लोगों को करना चाहिए. शांतिपूर्ण आंदोलनों के द्वारा बताना चाहिए कि मूर्ति लगाने वाले संबंधित जाति का अपमान कर रहे हैं और समाज का अहित कर रहे हैं. इन तत्वों को शुरूआत में ही रोका नहीं गया तो देश में डकैतों, आतंकियों, हत्यारों, समाजविरोधी तत्वों की मूर्तियों की बाढ़ आ जाऐगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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