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Priyanka Gandhi की हवाई अड्डे पर बैठकों ने यूपी चुनावों को भरपूर मसाला दे दिया है!

    • प्रभाष कुमार दत्ता
    • Updated: 05 नवम्बर, 2021 02:17 PM
  • 05 नवम्बर, 2021 02:17 PM
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अब तक, प्रियंका गांधी ने 10 दिनों के भीतर हवाई अड्डों पर सपा नेता अखिलेश यादव और रालोद नेता जयंत चौधरी दोनों के साथ 'चांस' पर मीटिंग की है. माना यही जा रहा है कि प्रियंका का ये अंदाज यूपी में कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित होगा.

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने चुनावी माहौल में उत्तर प्रदेश में सियासी गहमागहमी को थोड़ा तेज कर दिया है. ताजा खबर यह है कि प्रियंका गांधी समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव की संभावनाओं को खराब कर सकती हैं. दिलचस्प ये है कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ किसानों के मौजूदा मूड के आधार पर यूपी में सत्ता में वापसी की कल्पना संजोए बैठे हैं.

बीजेपी की समस्या

पहली चीजें सबसे पहले. रिपोर्टों में कहा गया है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने आकलन किया है कि केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और किसानों का आंदोलन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा के सामने शीर्ष चुनौतियों में से एक है.

इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए, भाजपा यूपी चुनावों में विधायकों के एक बड़े हिस्से को सीटों से वंचित कर सकती है. यह संदेश सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों खेमों में फैल गया है. यही कारण है कि सपा और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मौजूदा विधायकों सहित अन्य भाजपा नेताओं को अपने पाले में शामिल करती नजर आ रही हैं.

यूपी में प्रियंका के अखिलेश यादव और जयंत चौधरी से मिलने ने सियासी सरगर्मियों को तेज कर दिया है

तीन विपक्षी दल

उत्तर प्रदेश में दो मुख्य विपक्षी दलों में से, सपा को बसपा की तुलना में सत्ता में लौटने की अधिक संभावना है. सपा को उम्मीद है कि मुस्लिम समुदाय और किसानों के बीच वोटों का एकीकरण होगा. इस बीच, बसपा दलित, विशेष रूप से जाटव, वोटों पर भरोसा कर रही है और दलित-ब्राह्मण संयोजन की सोशल इंजीनियरिंग कर रही है जिसका फायदा उसे 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा...

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने चुनावी माहौल में उत्तर प्रदेश में सियासी गहमागहमी को थोड़ा तेज कर दिया है. ताजा खबर यह है कि प्रियंका गांधी समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव की संभावनाओं को खराब कर सकती हैं. दिलचस्प ये है कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ किसानों के मौजूदा मूड के आधार पर यूपी में सत्ता में वापसी की कल्पना संजोए बैठे हैं.

बीजेपी की समस्या

पहली चीजें सबसे पहले. रिपोर्टों में कहा गया है कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने आकलन किया है कि केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर और किसानों का आंदोलन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा के सामने शीर्ष चुनौतियों में से एक है.

इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए, भाजपा यूपी चुनावों में विधायकों के एक बड़े हिस्से को सीटों से वंचित कर सकती है. यह संदेश सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों खेमों में फैल गया है. यही कारण है कि सपा और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मौजूदा विधायकों सहित अन्य भाजपा नेताओं को अपने पाले में शामिल करती नजर आ रही हैं.

यूपी में प्रियंका के अखिलेश यादव और जयंत चौधरी से मिलने ने सियासी सरगर्मियों को तेज कर दिया है

तीन विपक्षी दल

उत्तर प्रदेश में दो मुख्य विपक्षी दलों में से, सपा को बसपा की तुलना में सत्ता में लौटने की अधिक संभावना है. सपा को उम्मीद है कि मुस्लिम समुदाय और किसानों के बीच वोटों का एकीकरण होगा. इस बीच, बसपा दलित, विशेष रूप से जाटव, वोटों पर भरोसा कर रही है और दलित-ब्राह्मण संयोजन की सोशल इंजीनियरिंग कर रही है जिसका फायदा उसे 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में मिल चुका है.

ध्यान रहे कि विपक्षी खेमे में कांग्रेस को काफी हद तक उपेक्षित महसूस किया गया है. सपा और बसपा दोनों ने बार-बार स्पष्ट किया है कि वे यूपी में भाजपा को हराने के लिए किसी 'राष्ट्रीय' पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. सपा पहले ही राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के साथ गठबंधन की घोषणा कर चुकी है.

प्रियंका गांधी क्या कर रही हैं?

यहीं पर प्रियंका गांधी जाहिर तौर पर अपना लक्ष्य साध रही हैं. वह सपा और बसपा दोनों की आलोचना करती रही हैं, उन्होंने तमाम मौकों पर दोनों ही पार्टियों के मुख्य नेताओं अखिलेश यादव और मायावती पर अपना निशाना साधा है और जनता को यही बताने का प्रयास किया है कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में कांग्रेस ही एकमात्र दल है जो यूपी में भाजपा से मोर्चा ले रही है.

अब तक, प्रियंका गांधी को मायावती के साथ बैठक करते नहीं देखा गया है, लेकिन उन्होंने 10 दिनों के भीतर हवाई अड्डों पर अखिलेश यादव और रालोद नेता जयंत चौधरी दोनों के साथ मौके के तहत बैठकें की हैं. दोनों मुलाकातें सार्वजनिक रूप से हुईं  जिनकी तस्वीरें बाद में सोशल मीडिया पर वायरल भी हुईं.

राजनीतिक उड़ान

दिल्ली-लखनऊ की फ्लाइट में प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव के बीच हुई मुलाकात दोनों नेताओं के बीच एक और मुलाकात की योजना के साथ समाप्त हुई. आरएलडी नेता के दादा के नाम पर बने एयरपोर्ट पर जयंत चौधरी के साथ प्रियंका गांधी की मुलाकात और ज्यादा नाटकीय रही.

जयंत चौधरी बीते दिन लखनऊ से दिल्ली के लिए उड़ान भरने वाले थे और कथित तौर पर लगभग एक घंटे तक इंतजार कर रहे थे जब प्रियंका गांधी छत्तीसगढ़ सरकार के चार्टर्ड विमान में सवार होने के लिए हवाई अड्डे पर पहुंचीं. और फिर, दोनों ही नेता एक दूसरे से 'टकरा' गए.

प्रियंका गांधी ने उन्हें अपनी चार्टर्ड फ्लाइट में यात्रा करने की पेशकश की, और टिकट भी कैंसिल कर दिया ताकि जयंत चौधरी और उनके सहयोगी चार्टर्ड फ्लाइट में यात्रा कर सकें. समाचार एजेंसी पीटीआई ने बताया कि जब प्रियंका गांधी और जयंत चौधरी लखनऊ के चौधरी चरण सिंह हवाई अड्डे पर मिल रहे थे, तो अखिलेश यादव को भी एयरपोर्ट की लॉबी में 'देखा' गया था.

यह महत्वपूर्ण क्यों है?

2014 के बाद से उत्तर प्रदेश में भाजपा की बढ़त ने राज्य के सभी प्रमुख दलों को हाशिये पर धकेल दिया है. इसने सपा को 2017 के उत्तर प्रदेश चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए मजबूर किया. मजेदार बात ये कि सपा और कांग्रेस का गठबंधन लोगों को पसंद नहीं आया और  सपा ने 311 सीटों में से 47 पर जीत हासिल की थी और कांग्रेस ने 114 में से सिर्फ सात सीटें जीती थीं. भाजपा ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में 315 सीटें जीतकर इतिहास रचा था.

2019 के लोकसभा चुनाव में सपा ने बसपा के साथ अपनी किस्मत आजमाई. गठबंधन सिर्फ 15 सीटों का प्रबंधन कर सका. अपने दम पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस ने सोनिया गांधी के जरिये सिर्फ एक सीट जीती और उसके तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी भी अमेठी के अपने पारिवारिक गढ़ को हार गए.

रालोद क्यों?

कभी किसानों और जाटों की पार्टी रही रालोद अब फिसल कर 'कुछ नहीं' हो गई है. उसने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 277 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे केवल एक ही सीट पर जीत मिली थी. फिलहाल यूपी में उसका कोई विधायक नहीं है.

लोकसभा चुनाव में जयंत चौधरी और उनके पिता अजीत सिंह, जिनका इस साल मई में निधन हो गया, अपने-अपने चुनाव हार गए. भाजपा में जाट नेताओं ने उस पार्टी (रालोद) की तुलना में अधिक वोट हासिल किए जो समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है.

हालांकि, विशेष रूप से लखीमपुर खीरी हिंसा के मद्देनजर किसानों के विरोध ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रालोद के पक्ष में भावनाओं को पुनर्जीवित कर दिया है. यही बात आगामी चुनावों में रालोद को पूरे यूपी की अलग अलग पार्टियों के लिए संभावना बिगाड़ने वाला बनाती है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 13 जिलों में करीब 100 सीटें हैं जहां रालोद चुनावी शक्ति के संतुलन को झुका सकती है.

रालोद, सपा अलग हो रहे हैं?

समाजवादी पार्टी ने आरएलडी की इस क्षमता को जल्द ही पहचान लिया दोनों दलों ने इस साल मार्च में अपने गठबंधन की घोषणा की. कुछ समय पहले तक, अखिलेश यादव ने कहा था कि सपा-रालोद गठबंधन था और यूपी चुनावों के लिए केवल सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है.

फिर भी, रालोद ने रविवार को उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी द्वारा संचालित कांग्रेस के समान वादे करते हुए अपना घोषणापत्र जारी किया. रालोद ने 1 करोड़ नौकरियों का वादा किया है, जिसमें 50 प्रतिशत रिक्तियां महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. इसने किसानों को उनकी फसलों के लिए इनपुट लागत के 150 प्रतिशत पर गारंटीकृत मूल्य का भी वादा किया गया है.

प्रासंगिकता कांग्रेस का शब्द है, रालोद के लिए भी

सपा ने अभी तक अपना घोषणा पत्र जारी नहीं किया है, रालोद ने दोनों दलों के बीच 'बढ़ती' दूरी का संकेत दिया है. घोषणापत्र उसी रविवार को जारी किया गया जब प्रियंका गांधी कुछ घंटों बाद लखनऊ एयरपोर्ट पर जयंत चौधरी से मिलीं. बताया जा रहा है कि दो घंटे की यात्रा के दौरान दोनों नेताओं ने कथित तौर पर विचारों का आदान-प्रदान किया.

यदि रालोद कांग्रेस के साथ गठबंधन कर लेती है, तो उसे समाजवादी पार्टी से जितनी सीटें मिल रही हैं उसकी तुलना में यूपी चुनाव में लड़ने के लिए सीटों की संख्या में बेहतर सौदा करने का मौका मिलेगा. स्रोत-आधारित रिपोर्टों का कहना है कि अगर रालोद यूपी चुनाव के लिए सपा के साथ गठबंधन करती है तो उसे 30 से अधिक सीटें नहीं मिलेंगी. ज्ञात ही कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 403 है.

तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध के अनसुलझे रहने के साथ, रालोद ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की तरह ही पुनरुद्धार पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं. प्रियंका गांधी की 'चांस' बैठकों से उत्तर प्रदेश विधानसभा की राजनीति में नए सिरे से बदलाव हो सकता है. कांग्रेस इसे सफल मानेगी क्योंकि प्रियंका गांधी के प्रयासों का मतलब होगा कि पार्टी यूपी की राजनीति में प्रासंगिक बनी रहेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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