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चुनावों में पैसों का बोलबाला

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 29 अगस्त, 2018 04:16 PM
  • 28 अक्टूबर, 2017 10:25 AM
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चुनाव आयोग यहां प्रत्येक प्रत्याशी के लिए चुनावी खर्च सीमा 28 लाख रुपए तय की है. तो सबसे बड़ा सवाल ये कि इनके पास इतने पैसे खर्च करने के लिए आते कहाँ से हैं?

गुजरात में चुनाव का बिगुल फूंक चुका है. चुनाव आयोग यहां प्रत्येक प्रत्याशी के लिए चुनावी खर्च सीमा 28 लाख रुपए तय की है. तो सबसे बड़ा सवाल ये कि इनके पास इतने पैसे खर्च करने के लिए आते कहाँ से हैं? कौन इन्हें इतना रुपए देता है? आइए इसे आज समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे हमारे देश में चुनाव की पूरी प्रक्रिया ही पैसों पर टिकी है. फरवरी 2014 में संशोधित नियमानुसार गुजरात में एक प्रत्याशी चुनाव में 28 लाख रुपये से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता है. इसका मतलब ये कि ......

  • प्रदेश में सवा करोड़ किसान और मज़दूर अपने बूते चुनाव नहीं लड़ सकते..
  • यहाँ की 54 फीसदी OBC बगैर किसी आर्थिक सहायता के चुनाव जीत जाएं प्रतीत नहीं होता?
  • गुजरात में 45 लाख दलितों की लिए अपने बलबूते चुनाव लड़ना सम्भव नहीं

प्रत्याशियों द्वारा करीब 2 अरब 3 करोड़ सफेद धन का खर्च का अनुमान गुजरात में विधान सभा की 182 सीटों पर चुनाव हो रहा है. ऐसे में अगर हम हर सीट पर मात्र 4 प्रतयाशी भी माने तो..... 28 लाख x 4 = 112 लाख रुपए बैठते हैं. यानि एक सीट पर 112 लाख रुपए का खर्च. इसी तरह 182 सीटों पर खर्च 112 लाख x 182 = 2 , 03 , 84 , 00000 रुपए. यानि इन 182 सीटों पर कम से कम 2 अरब 3 करोड़ 84 लाख रुपए के सफेद धन का प्रयोग होगा. लेकिन यहाँ पर सबसे बड़ा सवाल ये कि कम से कम दो अरब से ज़्यादा रुपए चुनाव प्रचारों में खर्च करने वाले ये नुमाईंदे अभी तक बिना पैसे के कौन सा काम कर रहे थे? ये जनता के सेवक किसी न किसी पार्टी से जुड़े होते हैं जो इनको पैसे देती है. वरना इन्हें अपने बूते चुनावी जंग जीतना मुश्किल होता है.

पार्टियों को मिलने वाले चंदा में लगातार बढ़ोतरी....

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत की राजनीतिक...

गुजरात में चुनाव का बिगुल फूंक चुका है. चुनाव आयोग यहां प्रत्येक प्रत्याशी के लिए चुनावी खर्च सीमा 28 लाख रुपए तय की है. तो सबसे बड़ा सवाल ये कि इनके पास इतने पैसे खर्च करने के लिए आते कहाँ से हैं? कौन इन्हें इतना रुपए देता है? आइए इसे आज समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे हमारे देश में चुनाव की पूरी प्रक्रिया ही पैसों पर टिकी है. फरवरी 2014 में संशोधित नियमानुसार गुजरात में एक प्रत्याशी चुनाव में 28 लाख रुपये से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता है. इसका मतलब ये कि ......

  • प्रदेश में सवा करोड़ किसान और मज़दूर अपने बूते चुनाव नहीं लड़ सकते..
  • यहाँ की 54 फीसदी OBC बगैर किसी आर्थिक सहायता के चुनाव जीत जाएं प्रतीत नहीं होता?
  • गुजरात में 45 लाख दलितों की लिए अपने बलबूते चुनाव लड़ना सम्भव नहीं

प्रत्याशियों द्वारा करीब 2 अरब 3 करोड़ सफेद धन का खर्च का अनुमान गुजरात में विधान सभा की 182 सीटों पर चुनाव हो रहा है. ऐसे में अगर हम हर सीट पर मात्र 4 प्रतयाशी भी माने तो..... 28 लाख x 4 = 112 लाख रुपए बैठते हैं. यानि एक सीट पर 112 लाख रुपए का खर्च. इसी तरह 182 सीटों पर खर्च 112 लाख x 182 = 2 , 03 , 84 , 00000 रुपए. यानि इन 182 सीटों पर कम से कम 2 अरब 3 करोड़ 84 लाख रुपए के सफेद धन का प्रयोग होगा. लेकिन यहाँ पर सबसे बड़ा सवाल ये कि कम से कम दो अरब से ज़्यादा रुपए चुनाव प्रचारों में खर्च करने वाले ये नुमाईंदे अभी तक बिना पैसे के कौन सा काम कर रहे थे? ये जनता के सेवक किसी न किसी पार्टी से जुड़े होते हैं जो इनको पैसे देती है. वरना इन्हें अपने बूते चुनावी जंग जीतना मुश्किल होता है.

पार्टियों को मिलने वाले चंदा में लगातार बढ़ोतरी....

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार भारत की राजनीतिक पार्टियां लगातार अमीर होती जा रही हैं. अमूमन यह देखा गया है कि जो पार्टी केंद्र में सत्तारूढ़ होती है उसकी कमाई ज़्यादा होता है. बीजेपी, जो केंद्र में सत्ता में है, 2015-16 में देश की सबसे अमीर पार्टी बन गई. बीजेपी ने 2004-05 में तक़रीबन 123 करोड़ की सम्पत्ति सार्वजनिक की थी, जो 2015-16 में बढ़कर लगभग 894 करोड़ हो गई. अर्थात इसकी में संपत्ति में 627 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा इन्हीं सालों में कांग्रेस की संपत्ति 167 करोड़ से बढ़कर 758 करोड़ हो गई रिपोर्ट के मुताबिक़ बीजेपी को ये बढ़त 2014-15 यानी पार्टी के सत्ता में आने के बाद ही मिलनी शुरू हुई. उससे पहले तक कांग्रेस शीर्ष पायदान पर क़ाबिज़ रही थी लेकिन इन सब के बीच मुश्किल ये कि सभी दलों की घोषित की गई कुल संपत्ति का 59 फ़ीसदी अन्य संपत्तियों में दिखाया गया है. अन्य संपत्ति यानी अदर एसेट वह होती हैं जिनके बारे में जानकारी देने के लिए पार्टियां बाध्य नहीं होतीं. यानि कुल सम्पत्ति का 59 फीसदी रुपए कहाँ से आया पार्टियों को छोड़कर जनता को पता नहीं.

इस चुनाव में लगभग 240 करोड़ रुपये का सरकारी खर्च आएगा...

गुजरात चुनाव कमीशन के अनुसार गुजरात विधानसभा चुनावों में अनुमानित 240 करोड़ रुपये का खर्च आएगा, जो 2012 के चुनावों में खर्च की तुलना में लगभग 30 प्रतिशत अधिक होगा. 2012 में हुए आखिरी विधानसभा चुनाव में राज्य के खजाने को 185 करोड़ रुपये का खर्च हुआ था.

ऐसे में हमारे देश में चुनावी प्रक्रिया में सुधार की ज़रूरत महसूस होती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्यों के विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ करवाने के पक्षधर रहे हैं ऐसे में चुनावों में खर्च होने वाले करोड़ों रुपयों पर अंकुश लग सकता है जिसे देश की कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च किया जा सकता है. यह काम मुश्किल नहीं है लेकिन सुख सुविधा के आदी नेता क्या यह मशक्कत कर पाएंगे?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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