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कांग्रेस ने नवजोत सिद्धू - हरीश रावत का कुप्रबंधन करके पंजाब-उत्तराखंड गंवाए

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 10 मार्च, 2022 06:50 PM
  • 10 मार्च, 2022 06:50 PM
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उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम आने शुरू हो गए हैं. इसमें पंजाब में आम आदमी पार्टी और उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती हुई दिख रही है. इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस मजबूत स्थिति में रही है.

देश के पांच राज्यों में हुए चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में इतिहास रच दिया है. भगवा पार्टी इन चारों राज्यों में अप्रत्याशित तरीके से दोबारा सरकार बनाने जा रही है. दूसरी तरफ पंजाब में आम आदमी पार्टी ने विपक्ष को साफ करते हुए ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. यहां अरविंद केजरीवाल की कुशल रणनीति की वजह से पार्टी सरकार बनाने जा रहे है. इन पांचों राज्यों में दो राज्य ऐसे थे, जहां कांग्रेस पार्टी बहुत ही मजबूत स्थिति में थी. पहला पंजाब जहां कांग्रेस की सरकार थी, दूसरा उत्तराखंड जहां दूसरे नंबर पर होते हुए भी कांग्रेस लड़ाई में बनी हुई थी. लेकिन कांग्रेस आलाकमान के कुप्रबंधन की वजह से पार्टी को दोनों ही जगहों पर हार का मुंह देखना पड़ा है.

पंजाब में नवोजत सिंह सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी की अहम की लड़ाई में डूबी कांग्रेस की डिबिया.

पहले बात करते हैं पंजाब की, जहां साल 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी थी. लेकिन कैप्टन की मनमानी से नाराज जब कांग्रेस आलाकमान ने बीजेपी से पार्टी में शामिल हुए नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब का प्रधान बनाया तो उन्होंने बगावत कर दिया. काफी दिनों तक कैप्टन और सिद्धू के बीच खींचतान चलती रही. सूबे में जारी इस सियासी तनाव को कम करने के लिए आलाकमान ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश सिंह रावत को अपना दूत बनाकर चंडीगढ़ भेजा. बताया गया कि रावत और कैप्टन अच्छे दोस्त हैं, इसलिए उनकी बात का उन पर असर होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. अंतत: कैप्टन पार्टी से अलग हो गए. इसके बाद सिद्धू को लगा कि उनको सूबे का सीएम बना दिया जाएगा. लेकिन आने वाले विधानसभा को देखते हुए अपने रणनीतिज्ञों की सलाह पर राहुल गांधी ने चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बना दिया. उस वक्त रावत पंजाब में ही थे.

देश के पांच राज्यों में हुए चुनाव में बीजेपी ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में इतिहास रच दिया है. भगवा पार्टी इन चारों राज्यों में अप्रत्याशित तरीके से दोबारा सरकार बनाने जा रही है. दूसरी तरफ पंजाब में आम आदमी पार्टी ने विपक्ष को साफ करते हुए ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. यहां अरविंद केजरीवाल की कुशल रणनीति की वजह से पार्टी सरकार बनाने जा रहे है. इन पांचों राज्यों में दो राज्य ऐसे थे, जहां कांग्रेस पार्टी बहुत ही मजबूत स्थिति में थी. पहला पंजाब जहां कांग्रेस की सरकार थी, दूसरा उत्तराखंड जहां दूसरे नंबर पर होते हुए भी कांग्रेस लड़ाई में बनी हुई थी. लेकिन कांग्रेस आलाकमान के कुप्रबंधन की वजह से पार्टी को दोनों ही जगहों पर हार का मुंह देखना पड़ा है.

पंजाब में नवोजत सिंह सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी की अहम की लड़ाई में डूबी कांग्रेस की डिबिया.

पहले बात करते हैं पंजाब की, जहां साल 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में कांग्रेस की सरकार बनी थी. लेकिन कैप्टन की मनमानी से नाराज जब कांग्रेस आलाकमान ने बीजेपी से पार्टी में शामिल हुए नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब का प्रधान बनाया तो उन्होंने बगावत कर दिया. काफी दिनों तक कैप्टन और सिद्धू के बीच खींचतान चलती रही. सूबे में जारी इस सियासी तनाव को कम करने के लिए आलाकमान ने उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश सिंह रावत को अपना दूत बनाकर चंडीगढ़ भेजा. बताया गया कि रावत और कैप्टन अच्छे दोस्त हैं, इसलिए उनकी बात का उन पर असर होगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. अंतत: कैप्टन पार्टी से अलग हो गए. इसके बाद सिद्धू को लगा कि उनको सूबे का सीएम बना दिया जाएगा. लेकिन आने वाले विधानसभा को देखते हुए अपने रणनीतिज्ञों की सलाह पर राहुल गांधी ने चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बना दिया. उस वक्त रावत पंजाब में ही थे.

नवजोत सिंह सिद्धू को लगा कि वो किंग मेकर बनकर चन्नी के जरिए पंजाब में अपनी हुकूमत करेंगे, लेकिन मामला उल्टा पड़ गया. चन्नी उस्ताद निकले. कुछ ही दिनों में उन्होंने सिद्धू के साए से बाहर निकलकर स्वतंत्र निर्णय लेना शुरू कर दिया. यहां तक सूबे में डीजीपी की न्यूक्ति भी सिद्धू के मन के खिलाफ कर दिया. इस पर नाराज सिद्धू ने पार्टी के प्रधान पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, इस समय एक बार फिर रावत को एक्टिव किया गया. उनके समझाने बुझाने के बाद चन्नी और सिद्धू के बीच सुलह हुआ. आलाकमान ने सिद्धू का इस्तीफा नामंजूर कर दिया. लेकिन इस मसले के साथ दोनों के बीच जो अदावत शुरू हुई, उसका सिलसिला चलता रहा. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सिद्धू चाहते थे कि सीएम के रूप में उनको प्रोजेक्ट किया जाए, लेकिन चुनाव से ऐन वक्त पहले राहुल गांधी ने खेल कर दिया. उन्होंने सिद्धू के सामने ही चन्नी को सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया.

पंजाब से पहले हुए इस खेल ने सारा गणित बिगाड़ दिया. सिद्धू धीरे-धीरे पीछे हटते गए. इधर आम आदमी पार्टी कांग्रेस के अंदर जारी घमासान का फायदा उठाकर खुद को मजबूत करती गई. केजरीवाल के दिल्ली मॉडल, कुशल चुनाव प्रबंधन और फ्री की योजनाओं के जरिए AAP ने पंजाब में सबका सूपड़ा साफ कर दिया. इसमें सबसे ज्यादा दुर्गती कांग्रेस की हुई है. पार्टी पिछले चुनाव के मुकाबले एक चौथाई सीट भी नहीं निकाल पाई है. यहां तक कि नवजोत सिंह सिद्धू और चरणजीत सिंह चन्नी जैसे बड़े नेता भी चुनाव हार गए हैं. कांग्रेस के दो दिग्गज लोगों की लड़ाई में केजरीवाल का फायदा हो गया है. उनके पार्टी की सरकार बनने जा रही है. इतना ही नहीं कांग्रेस के दूत बनकर पंजाब में ही डेरा जमाए रखने वाले हरीश सिंह रावत की उत्तराखंड से गैरमौजूदगी भी वहां भारी पड़ गई. वरना रावत पंजाब की बजाए उत्तराखंड में ही जमे रहते तो वहां ती सीटों में इजाफा जरूर होता.

यदि अभी तक के आए चुनाव परिणाम रूझानों (4PM) की बात की जाए तो कुल 117 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस को 19, आम आदमी पार्टी को 91, अकाली दल को 4, बीजेपी गठबंधन को 2 और अन्य को 1 सीट मिलती हुई नजर आ रही है. जबकि पिछले चुनाव में काग्रेस को 77 सीटें मिली थीं. जहां तक उत्तराखंड की बात है, तो वहां अभी तक बीजेपी गठबंधन को 48, कांग्रेस को 18 और अन्य को 4 सीट मिलती हुई नजर आ रही है. इस तरह दोनों ही राज्यों में कांग्रेस दूसरे नंबर की पार्टी है. यहां तक कि जिन जगहों पर बीजेपी जीती भी है, वहां ज्यादातर जगहों पर दूसरे नंबर पर कांग्रेस है. कई जगह तो अंतर बहुत ही कम है. ऐसे में यदि कांग्रेस एक बेहतर रणनीति के साथ इन दोनों ही जगहों पर चुनाव लड़ती तो इसकी सरकार बन सकती थी. वैसे भी सियासत संभावनाओं का खेल है. वरना इस चुनाव में बीजेपी के लिए ऐसा अंडरकरेंट है, कोई भाप नहीं पाया था.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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