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मोदी का मन पिघलाने के लिए ट्रूडो परिवार ने क्‍या-क्‍या न किया...

    • कुदरत सहगल
    • Updated: 23 फरवरी, 2018 08:19 PM
  • 23 फरवरी, 2018 08:13 PM
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जब मोदी देख रहे थे, तब जस्टिन ने ताजमहल घूमा, अक्षरधाम मंदिर गए, जमा मस्जिद पहुंचे और स्वर्ण मंदिर भी घूमे. हमारे मन को पढ़ने के लिए जस्टिन ट्रूडो को पूरे नंबर मिलते हैं.

जस्टिन ट्रूडो. दुनिया के चहेते लिबरल पॉलिटीशियन.जिसके डिंपल ने बहुत सारे लोगों के दिल जीत लिए हैं. दुनिया में तो उनकी खूब वाह-वाह होती है, लेकिन भारत में हमारे सबसे लोकप्रिय शख्स- हमारे प्रधानमंत्री- ने उन्हें कुछ खास भाव नहीं दिया. ट्रूडो के इस अपमान ने पूरे न्यूजरूम, ओपिनियन मेकर्स और सोशल मीडिया को हिला कर रख दिया.

और ऐसा होता क्यों नहीं ! नरेंद्र मोदी, जिनका पूरी दुनिया में इनता नाम है, उन्होंने जस्टिन ट्रूडो को छठे दिन तक भी गले से नहीं लगाया. इससे बहुत फर्क पड़ता है. कम से कम, जो ओपिनियन पीस मैं लिख रही हूं, इसके लिए तो मान ही लीजिए कि इससे बहुत फर्क पड़ता है.

फेमिनिज्‍म का झंडा बुलंद करने वाले ट्रूडो के समर्थन में महिलाओं की फौज खड़ी है. ये मान लीजिए उनके फॉलोअर्स की तादाद उनके डिंपल की वजह से नहीं, बल्कि उनकी नीतियों के कारण है. उनका भांगड़ा, कनाडा के लोगों के लिए प्यार (स्‍थानीय और परदेशी दोनों) को देखते हुए कई भारतीय कनाडा जाने के लिए आतुर हैं. मेरी एक दोस्त ने हाल ही में कहा, उनके जैसे प्रधानमंत्री के साथ कनाडा एक शानदार विकल्प है.

तो वापस मुद्दे पर लौटते हैं. आखिर जस्टिन ट्रूडो ने पीएम मोदी का आलिंगन कैसे जीता? नहीं, इसका खालिस्तान से कुछ लेना-देना नहीं है, ना ही इसका जसपाल अटवाल को आमंत्रित करने के लिए सार्वजनिक माफी से कोई संबंध है. ज्ञात हो कि जसपाल अटवाल भारतीय मूल का कैनेडियन नागरिक है, जिसे कनाडा की कोर्ट ने 1987 में भारत के एक मंत्री की हत्या का प्रयास करने के आरोप में 20 साल की सजा सुनाई थी. जो उस समय कनाडा का दौरा कर रहे थे.

सिख अलगाववाद, भारत के लिए तो यह एक बड़ा मुद्दा है ही और ट्रूडो के लिए भी है. वह भी 'अखंड भारत' के पक्ष में हैं, उन्होंने यह कई बार कहा भी है. तो, क्यों पीएम मोदी का रवैया उनके प्रति सख्‍त रहा?...

जस्टिन ट्रूडो. दुनिया के चहेते लिबरल पॉलिटीशियन.जिसके डिंपल ने बहुत सारे लोगों के दिल जीत लिए हैं. दुनिया में तो उनकी खूब वाह-वाह होती है, लेकिन भारत में हमारे सबसे लोकप्रिय शख्स- हमारे प्रधानमंत्री- ने उन्हें कुछ खास भाव नहीं दिया. ट्रूडो के इस अपमान ने पूरे न्यूजरूम, ओपिनियन मेकर्स और सोशल मीडिया को हिला कर रख दिया.

और ऐसा होता क्यों नहीं ! नरेंद्र मोदी, जिनका पूरी दुनिया में इनता नाम है, उन्होंने जस्टिन ट्रूडो को छठे दिन तक भी गले से नहीं लगाया. इससे बहुत फर्क पड़ता है. कम से कम, जो ओपिनियन पीस मैं लिख रही हूं, इसके लिए तो मान ही लीजिए कि इससे बहुत फर्क पड़ता है.

फेमिनिज्‍म का झंडा बुलंद करने वाले ट्रूडो के समर्थन में महिलाओं की फौज खड़ी है. ये मान लीजिए उनके फॉलोअर्स की तादाद उनके डिंपल की वजह से नहीं, बल्कि उनकी नीतियों के कारण है. उनका भांगड़ा, कनाडा के लोगों के लिए प्यार (स्‍थानीय और परदेशी दोनों) को देखते हुए कई भारतीय कनाडा जाने के लिए आतुर हैं. मेरी एक दोस्त ने हाल ही में कहा, उनके जैसे प्रधानमंत्री के साथ कनाडा एक शानदार विकल्प है.

तो वापस मुद्दे पर लौटते हैं. आखिर जस्टिन ट्रूडो ने पीएम मोदी का आलिंगन कैसे जीता? नहीं, इसका खालिस्तान से कुछ लेना-देना नहीं है, ना ही इसका जसपाल अटवाल को आमंत्रित करने के लिए सार्वजनिक माफी से कोई संबंध है. ज्ञात हो कि जसपाल अटवाल भारतीय मूल का कैनेडियन नागरिक है, जिसे कनाडा की कोर्ट ने 1987 में भारत के एक मंत्री की हत्या का प्रयास करने के आरोप में 20 साल की सजा सुनाई थी. जो उस समय कनाडा का दौरा कर रहे थे.

सिख अलगाववाद, भारत के लिए तो यह एक बड़ा मुद्दा है ही और ट्रूडो के लिए भी है. वह भी 'अखंड भारत' के पक्ष में हैं, उन्होंने यह कई बार कहा भी है. तो, क्यों पीएम मोदी का रवैया उनके प्रति सख्‍त रहा? मेरा मतलब है वो ट्वीट (जो पीएम मोदी ने ट्रूडो के स्वागत के लिए नहीं किए), वो आलिंगन (जो लगभग हफ्तेभर बाद आया) और वो मुलाकात (चूंकि कूटनीति ही तो खास है) ??

CNN, CNBC जैसे कई प्रेस ने जिसे डिप्‍लोमेटिक डिजास्‍टर करार दिया था. आखिर ऐसा क्‍या हुआ, जिसने पीएम मोदी के मन को पिघला दिया और फिर वो गले भी लगे?

हां, जस्टिन ने मेहनत की. बहुत कठिन मेहनत. और उनके परिवार ने भी.

1- परफेक्ट कपड़े- प्रियंका चोपड़ा जब पीएम मोदी से मिली थीं तो उनके कपड़ों को लेकर उनकी खूब आलोचना की गई थी, लेकिन ट्रूडो परिवार के पहनावे पर कोई एक भी अंगुली नहीं उठा सका है. एकदम परफेक्‍ट और भारतीय राजनीति को 'रास' आने वाला. इतना ही नहीं, ट्रूडो जूनियर्स यानी उनके बच्चे भी सलवार कमीज और कुर्ते में दिखाई दिए. जैसा कि हमारे देश के राजनीतिक परिवारों में होता है. ट्रूडो की पत्नी भी उनसे मिलते समय पैंट सूट में थीं. हमारे कल्चर से एक इंच भी इधर-उधर नहीं. मोदी को तो पिघलना ही था.

2- कान खींचना- बच्चों से प्यार जताने के लिए उनके कान खींचने का पीएम मोदी का स्टाइल. ट्रूडो ने उस पर भी कोई आपत्ति नहीं जताई.

3- जीता हमारा भी मन- मोदी जान रहे थे, कि जस्टिन ताजमहल गए, अक्षरधाम मंदिर घूमा, जमा मस्जिद पहुंचे और स्वर्ण मंदिर के भी दर्शन कर आए. बिल्कुल एक इंटर रिलीजियस शादी की तरह, जहां दूल्हा और दुल्हन दोनों के घर शादी होती है. हमारे मन-मस्तिष्‍क को पढ़ने के लिए जस्टिन ट्रूडो को पूरे नंबर मिलते हैं.

4- नमस्ते- नमस्ते को 'खालिस्तान के समर्थन के लिए माफी' से जोड़कर देखें. उन्होंने कई बार हाथ जोड़कर और झुकी आंखों से नमस्ते कहा. उस परिवार ने नमस्ते को गंभीरता से लिया कि ऐसा कोई मौका नहीं गया कि वे सभी बिना झुके लोगों के सामने हाथ जोड़कर न खड़े हुए हों. आखिर कब तक पीएम मोदी ये सब अनदेखा करते.

5- मोदी, जो दयावान भी हैं- हमारे प्रधानमंत्री जिनका मन दया से भरा हुआ है. उदाहरण, वे पहले सख्‍त नोटबंदी करते हैं फिर भ्रष्‍ट लोगों को धीरे से 'छूट' देकर उन्‍हें सिस्‍टम में आत्‍मसात कर लेते हैं. ट्रूडो को गले लगाना दर्शाता है कि उन्‍होंने कनाडा के लिबरल प्रधानमंत्री को माफ कर दिया, भले ही उन्‍हें 'कैसे' भी लोगों का समर्थन हासिल हो. अलगाववादी ही क्‍यों नहीं.

मोदी ने शुक्रवार को ट्रूडो से बातचीत की और कट्टरपंथ और आतंकवाद का मामला उठाया. भारत में दोहरे निवेश की बात की. अब हम सिर्फ ये कल्‍पना ही कर सकते हैं कि जब मोदी ये बातें कर रहे थे तो उनके दिमाग में एक गाना बज रहा होगा - 'जहां तेरी ये नजर है, मेरी जां मुझे खबर है...'.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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