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केरल: मार्क्सवाद से 'मर्डरवाद' तक !

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 04 अक्टूबर, 2017 01:16 PM
  • 04 अक्टूबर, 2017 01:16 PM
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केरल के कन्नूर सरीखे जिलों में वामपंथी दल बाहुबल के दम पर राजनीति करते रहे हैं. राज्य में यह स्थान वामपंथी राजनीति की जन्मस्थली भी रहा है. यही वजह है कि 1970 के दशक में यहां शुरू हुई RSS की गतिविधियों को मार्क्सवादियों ने हल्के में नहीं लिया.

केरल के बारे में एक मिथक यह है कि उसकी उत्पत्ति भगवान परशुराम के हिंसा के प्रतीक फरसे को समुद्र में फेंकने से निकली जमीन से हुई थी. ये राज्य देश के सबसे विकसित राज्यों में शुमार है, लेकिन इस समय एक गंभीर बीमारी के शिकंजे में फंस गया है. इस बीमारी का नाम है- राजनीतिक हत्याएं.

अभी हाल में ही 26 साल के रेमिथ नामक युवक की हत्या कर दी गई. चौदह साल पहले उसके पिता को भी मार दिया गया था. ये दोनों बीजेपी- आरएसएस से जुड़े हुए थे. ये हत्याएं पिनाराई गांव में हुई जो कि केरल के मुख्य मंत्री के विधान सभा क्षेत्र में पड़ता है.

राज्य में अब तक कितनी राजनीतिक हत्याएं हुई है इसका कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है लेकिन ये कहा जा रहा है कि इस साल केरल में अभी तक ऐसे 7 हत्याएं हो चुकी हैं. ईश्वर की अपनी भूमि कहे जाने वाले केरल में हाल के वर्षों में राजनीतिक हिंसा का चलन तेजी से बढ़ा है.

 हाल में हुई बीजेपी वर्कर रेमिथ की हत्या

कन्नूर का कड़वा सच

केरल के कन्नूर सरीखे जिलों में वामपंथी दल बाहुबल के दम पर राजनीति करते रहे हैं. राज्य में यह स्थान वामपंथी राजनीति की जन्मस्थली भी रहा है. यही वजह है कि 1970 के दशक में यहां शुरू हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों को मार्क्सवादियों ने हल्के में नहीं लिया. मई 2016 में जब से पी. विजयन की लेफ्ट सरकार सत्ता में आई है, केवल कन्नूर जिले में ही 50 राजनीतिक हमले व चार हत्याएं हो चुकी हैं.

इस हिंसात्मक राजनीति की शुरुआत 19 मई को सीपीएम वर्कर, चेरिकंडाथ (उम्र-55) की मर्डर से हुई थी. 

केरल को God's Own Country (भगवान का देश) कहा जाता है. शत-प्रतिशत साक्षरता प्राप्त...

केरल के बारे में एक मिथक यह है कि उसकी उत्पत्ति भगवान परशुराम के हिंसा के प्रतीक फरसे को समुद्र में फेंकने से निकली जमीन से हुई थी. ये राज्य देश के सबसे विकसित राज्यों में शुमार है, लेकिन इस समय एक गंभीर बीमारी के शिकंजे में फंस गया है. इस बीमारी का नाम है- राजनीतिक हत्याएं.

अभी हाल में ही 26 साल के रेमिथ नामक युवक की हत्या कर दी गई. चौदह साल पहले उसके पिता को भी मार दिया गया था. ये दोनों बीजेपी- आरएसएस से जुड़े हुए थे. ये हत्याएं पिनाराई गांव में हुई जो कि केरल के मुख्य मंत्री के विधान सभा क्षेत्र में पड़ता है.

राज्य में अब तक कितनी राजनीतिक हत्याएं हुई है इसका कोई सरकारी आंकड़ा नहीं है लेकिन ये कहा जा रहा है कि इस साल केरल में अभी तक ऐसे 7 हत्याएं हो चुकी हैं. ईश्वर की अपनी भूमि कहे जाने वाले केरल में हाल के वर्षों में राजनीतिक हिंसा का चलन तेजी से बढ़ा है.

 हाल में हुई बीजेपी वर्कर रेमिथ की हत्या

कन्नूर का कड़वा सच

केरल के कन्नूर सरीखे जिलों में वामपंथी दल बाहुबल के दम पर राजनीति करते रहे हैं. राज्य में यह स्थान वामपंथी राजनीति की जन्मस्थली भी रहा है. यही वजह है कि 1970 के दशक में यहां शुरू हुई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों को मार्क्सवादियों ने हल्के में नहीं लिया. मई 2016 में जब से पी. विजयन की लेफ्ट सरकार सत्ता में आई है, केवल कन्नूर जिले में ही 50 राजनीतिक हमले व चार हत्याएं हो चुकी हैं.

इस हिंसात्मक राजनीति की शुरुआत 19 मई को सीपीएम वर्कर, चेरिकंडाथ (उम्र-55) की मर्डर से हुई थी. 

केरल को God's Own Country (भगवान का देश) कहा जाता है. शत-प्रतिशत साक्षरता प्राप्त करने का श्रेय भी सबसे पहले इसी राज्य को गया था. जब पोलियो उन्मूलन का अभियान चला था तब भी केरल ने इसमें बाज़ी मार ली थी. इसलिए इस राज्य के हर क्षेत्र में एक आदर्श कि अपेक्षा की जाती है.

यह भी पढ़ें- धीरे-धीरे अरब बनता जा रहा है केरल !

केरल कभी वामपंथियों का गढ़ हुआ करता था

केरल कभी वामपंथियों का गढ़ हुआ करता था लेकिन कांग्रेस ने वहां सत्ता का बंटवारा करने में सफलता प्राप्त कर ली. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में LDF इस समय सत्ता में है. इसके पूर्व कांग्रेस के नेतृत्व में DF सत्ता में थी.

केरल में बीजेपी का उदय

2016 के विधान सभा चुनाव में केरल की राजनीति में एक और परिवर्तन आया और वहां बीजेपी ने भी अपनी पकड़ मज़बूत कर ली. भारतीय जनता पार्टी इस चुनाव में 10.53 प्रतिशत वोट के साथ एक सीट भी जीतने में कामयाब रही.

हिंसा की वजह

वामपंथियों को सबसे ज़्यादा बीजेपी खटकती है. बीजेपी को वहां हो रहे धर्म परिवर्तन पर एतराज़ होता है. इसी के चलते वहां राजनीतिक हिंसा का दौर चालू है. हालांकि रानीतिक हिंसाओं का दौर सत्तर के दशक से ही जारी है, जो मालाबार क्षेत्र में हिंदुओं और मुस्लिम के बीच हुआ करता था. इसी साल हुए चुनाव के बाद LDF ने पी. विजयन को मुख्यमंत्री बनाया जबकि सबसे लोकप्रिय नेता अचुत्यानंदन को दरकिनार कर दिया.

हालांकि मुख्यमंत्री की शपथ लेते वक्त विजयन ने कहा था कि अब कानून का राज चलेगा और राज्य में सरकार न्याय और विकास के लिए कट्टीबद्ध हैं. लेकिन ऐसा जमीनी स्तर पर दिखाई नहीं देता.

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 केरल की राजनीति में इतनी हिंसा क्यों?

राजनीतिक जानकारों की माने तो जब से बीजेपी केंद्र में सत्ता में आई है, तब से केरल में भाजपाईयों का हौसला बुलंद है और वामपंथियों को अपनी जमीन खिसकने का डर सता रहा है. इस कारण ये राजनीतिक हत्याएं बढ़ गयी हैं. यह भी कहा जाता है कि हाल में केरल का तेजी से इस्लामीकरण हुआ है. कांग्रेस और वामपंथी राजनीतिक दल अपने निजी स्वार्थ के लिए मुस्लिम और ईसाई वोट बैंक को खाद-पानी देने का काम करते रहे हैं. हिन्दू विरोध धीरे-धीरे मार्क्सवादियों का मुख्य एजेंडा बन गया.

लेकिन सवाल उठता है कि आखिर मुख्यमंत्री विजयन जिनके पास गृह मंत्रालय भी है, कोई ठोस कदम इन हत्यायों को रोकने के लिए क्यों नही उठा रहे हैं? बहरहाल केरल में राजनीतिक हत्यायों का जो दौर चल रहा है उससे मुख्यमंत्री अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते. क्योंकि अगर ऐसा ही रहा तो केरल को भगवान का देश कहे जाने पर भी सवाल उठने लगेंगे!

यह भी पढ़ें- कावेरी: जल के जलजले के लिए जिम्मेदार कौन ?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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