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सिद्धांत की राजनीति में कितने ईमानदार हैं मोदी ?

    • अशोक उपाध्याय
    • Updated: 15 फरवरी, 2017 08:43 PM
  • 15 फरवरी, 2017 08:43 PM
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भारत की राजनीति में सिद्धान्त केवल एवं केवल प्रवचन एवं उपदेश देने के लिए होता है. हर राजनीतिक दल दूसरे को सिद्धांतविहीन बताता है. दूसरे से तो सिद्धांतों पर चलने की अपेक्षा करता है पर खुद उसकी उपेक्षा करता है.

15 फरवरी को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने समाजवादी पार्टी के गढ़ कन्नौज में रैली की एवं अखिलेश के साथ राहुल गांधी के हुए गठबंधन पर जबरदस्त हमला किया. मोदी बोले, "हमारे हिंदुस्तान की फिल्में आप देखते हैं. इनकी एक विशेषता होती है. इंटरवल तक जानी दुश्मन एक-दूसरे से भिड़ते हैं, षडयंत्र करते हैं और इंटरवल के बाद मिल जाते हैं. यूपी में राजनीति के मंच पर भी एक नई फिल्म चल रही है. इंटरवल तक दोनों लड़ रहे थे. 27 साल, यूपी बेहाल. नारे लगा रहे थे, यात्राएं निकाल रहे थे, अखिलेश का कच्चा चिट्ठा खोल रहे थे. इंटरवल के बाद दोनों मिल गए, ये कौन सी फिल्म है भाई? ये चुनाव बड़े कमाल का है."

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर उन्होंने धारदार प्रहार किया. बोले, "मैं अखिलेश जी से पूछना चाहता हूं कि जरा कांग्रेस की गोद में बैठने से पहले 4 मार्च 1984 को याद कर लेते. जब आपके पिता पर इतना बड़ा हमला करवाया था. कोई ऐसा बेटा होता है जो अपने पिता के हत्या करने की कोशिश करने वालों के पीछे जो लोग हैं, उनके साथ वो हाथ मिला रहे हैं'

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस एवं सपा के गठबंधन को अवसरवादिता करार दिया एवं अखिलेश को अपने पिता के ऊपर हमला करने वाले दुश्मन से हाथ मिलाने का भी दोषी ठहराया. जहां तक सवाल है तथ्यों एवं सिद्धांतों का नरेंद्र मोदी बिलकुल सही हैं. ये गठबंधन सिद्धांतों पर नहीं पर राजनीतिक स्वार्थों पर आधारित है. दोनों का लक्ष्य सत्ता की गलियारों तक पहुंचना एवं मोदी के विजय रथ को उत्तर प्रदेश में रोकना है. पर सवाल यह उठता है कि क्या नरेंद्र मोदी एवं भाजपा सिद्धांतों की राजनीति करते हैं? क्या वो सत्ता पाने के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते हैं? क्या उन्होंने वैसे लोगों से हाथ नहीं मिलाया जिन्होंने उनपर व्यक्तिगत हमला किया था?

जिस उत्तर प्रदेश के कन्नौज से प्रधानमंत्री...

15 फरवरी को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने समाजवादी पार्टी के गढ़ कन्नौज में रैली की एवं अखिलेश के साथ राहुल गांधी के हुए गठबंधन पर जबरदस्त हमला किया. मोदी बोले, "हमारे हिंदुस्तान की फिल्में आप देखते हैं. इनकी एक विशेषता होती है. इंटरवल तक जानी दुश्मन एक-दूसरे से भिड़ते हैं, षडयंत्र करते हैं और इंटरवल के बाद मिल जाते हैं. यूपी में राजनीति के मंच पर भी एक नई फिल्म चल रही है. इंटरवल तक दोनों लड़ रहे थे. 27 साल, यूपी बेहाल. नारे लगा रहे थे, यात्राएं निकाल रहे थे, अखिलेश का कच्चा चिट्ठा खोल रहे थे. इंटरवल के बाद दोनों मिल गए, ये कौन सी फिल्म है भाई? ये चुनाव बड़े कमाल का है."

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पर उन्होंने धारदार प्रहार किया. बोले, "मैं अखिलेश जी से पूछना चाहता हूं कि जरा कांग्रेस की गोद में बैठने से पहले 4 मार्च 1984 को याद कर लेते. जब आपके पिता पर इतना बड़ा हमला करवाया था. कोई ऐसा बेटा होता है जो अपने पिता के हत्या करने की कोशिश करने वालों के पीछे जो लोग हैं, उनके साथ वो हाथ मिला रहे हैं'

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस एवं सपा के गठबंधन को अवसरवादिता करार दिया एवं अखिलेश को अपने पिता के ऊपर हमला करने वाले दुश्मन से हाथ मिलाने का भी दोषी ठहराया. जहां तक सवाल है तथ्यों एवं सिद्धांतों का नरेंद्र मोदी बिलकुल सही हैं. ये गठबंधन सिद्धांतों पर नहीं पर राजनीतिक स्वार्थों पर आधारित है. दोनों का लक्ष्य सत्ता की गलियारों तक पहुंचना एवं मोदी के विजय रथ को उत्तर प्रदेश में रोकना है. पर सवाल यह उठता है कि क्या नरेंद्र मोदी एवं भाजपा सिद्धांतों की राजनीति करते हैं? क्या वो सत्ता पाने के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते हैं? क्या उन्होंने वैसे लोगों से हाथ नहीं मिलाया जिन्होंने उनपर व्यक्तिगत हमला किया था?

जिस उत्तर प्रदेश के कन्नौज से प्रधानमंत्री सिद्धांतों की बात कर रहे थे उसी प्रदेश में उनके दल के समर्थन से मायावती तीन बार यूपी में मुख्यमंत्री बनीं. और तीनों ही बार ये गठबंधन सत्ता पाने के लिए किया गया था न की सिद्धान्त के लिए. ऐसा माना जाता है की इस बार भी अगर किसी दल को बहुमत नहीं मिला तो चौथी बार भी यही गठबंधन सत्ता में आ सकता है.

भाजपा के इतिहास में किये गए इस तरह के अवसरवादी गठबंधन को छोड़ भी दें तो ऐसा नहीं है की मोदी के समय पार्टी ने केवल सिद्धांतवादी गठबंधन किया है. जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव प्रचार में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीडीपी पर 'बाप-बेटी' पार्टी कहकर हमला किया था. और कुछ ही हफ्तों के बाद उसी पार्टी के साथ सत्ता के लिए समझौता कर लिए. महाराष्ट्र में तो उन्होंने शिव सेना को हफ्ता वसूल पार्टी कहा था पर चुनाव बाद उसके साथ कंधे से कन्धा मिला के सरकार चला रहे हैं. और तो और, जिस दिन उन्होंने सेना को हफ्ता वसूल कहा था उस दिन भी उस दल के सदस्य उनके मंत्रिमंडल में थे और आज भी हैं.

शिव सेना हर दिन उनपर हमला करती हैं पर सत्ता का मोह दोनों को एक दूसरे से अलग नहीं होने दे रहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करते हुए एनसीपी को 'नैचुरली करप्ट पार्टी' करार दिया था. मोदी सरकार ने उसी एनसीपी प्रमुख शरद पवार को पद्म विभूषण से सम्मानित किया है. माना जा रहा है कि अगर शिव सेना, भाजपा से अलग होती है तो उस हालात में एनसीपी के साथ गठबंधन कर के महाराष्ट्र सरकार को बचाया जा सकता है. इसलिए शरद पवार को खुश रखा जा रहा है.

एलजेपी मुखिया रामविलास पासवान नरेन्द्र मोदी को हत्यारा कहते थे. वो गुजरात में उनकी सरकार की बर्खास्तगी की मांग करते थे और उन्हें गिरफ्तार करने की गुहार भी लगाया करते थे. आज वही नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं एवं रामविलास पासवान उनके मंत्री हैं. 2004 में स्मृति ईरानी ने तब गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी की बहुत तीखी आलोचना की थी. उन्होंने गुजरात दंगों के लिए मोदी से इस्तीफे तक की मांग कर डाली थी और भूख हड़ताल करने की धमकी भी दी थी. पर प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी ने उन्हें न केवल मंत्री बनाया बल्कि एक बेहद अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी भी दे दी.

अर्थात, भारत की राजनीति में सिद्धान्त केवल एवं केवल प्रवचन एवं उपदेश देने के लिए होता है. हर राजनीतिक दल दूसरे को सिद्धांतविहीन बताता है. दूसरे से तो सिद्धांतों पर चलने की अपेक्षा करता है पर खुद उसकी उपेक्षा करता है. मौका मिलते ही सत्ता के लिए लगभग हर सिद्धांत को दरकिनार कर दिया जाता है. सिद्धांतहीनता आज भारतीय राजनीति की क्रूर वास्तविकता है. यह भी कटु सत्य है की जो सिद्धांतों की राजनीति करता है उसके लिए आज की राजनीती में कोई जगह नहीं है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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