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माया-अखिलेश देखते रहे और उनके वोट बीजेपी की ओर शिफ्ट हो गये

    • आईचौक
    • Updated: 22 मई, 2019 06:29 PM
  • 22 मई, 2019 04:25 PM
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राष्ट्रवाद को आगे बढ़ाने के लिए बीजेपी ने अयोध्या का मुद्दा तो होल्ड कर लिया था, लेकिन तभी माया-अखिलेश गठबंधन (SP-BSP alliance) चुनौती बन कर सामने आ गये. फिर भी माहिर खिलाड़ी अमित शाह ने दिमाग लगाया और गठबंधन के वोट झटक लिये.

सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस को जगह न मिलना पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका रहा. कांग्रेस को अच्छी तरह पता था कि मायावती और अखिलेश यादव की मदद लिए बगैर बीजेपी से पार पाना बेहद मुश्किल होगा. प्रियंका गांधी वाड्रा को मोर्चे पर तैनात करने की राहुल गांधी की मजबूरी भी यही रही. मायावती और अखिलेश यादव का हाथ मिला लेने के फैसले ने बीजेपी की भी फिक्र बढ़ा दी थी. वजह गोरखपुर और फूलपुर के बाद कैराना चुनावों में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था. बीजेपी के लिए राहत की बात बस इतनी ही थी कि कांग्रेस को अलग रखा गया था, वरना पूरे उत्तर प्रदेश में कैराना मॉडल की काट खोजनी होती. कैराना उपचुनाव में पूरे विपक्ष ने एकजुट होकर 2018 में बीजेपी को शिकस्त दे डाली थी.

आखिर नतीजा जो भी हो, एग्जिट पोल से तो यही लग रहा है कि महागठबंधन फेल हो चुका है - और कांग्रेस को दूर रखने का निर्णय अब मायावती और अखिलेश को बड़ी भूल का एहसास करा रहा होगा. कांग्रेस ने वोट तो गठबंधन के ही काटे हैं. सहारनपुर के मामले में एग्जिट पोल का नतीजा तो यही साबित कर रहा है.

तमाम तिकड़मों के बावजूद सबसे दिलचस्प है गठबंधन के हिस्से के वोटों का बीजेपी की ओर खिसक जाना - वैसे भी ब्रांड नरेंद्र मोदी को आगे कर अमित शाह के वोट बटोरने का तरीका तो यही है.

यूपी में गठबंधन क्यों फेल हुआ

मायावती और अखिलेश यादव ने गोरखपुर और फूलपुर में एक प्रयोग किया था और वो कामयाब रहा. दोनों ने आरएलडी के साथ मिलकर यही प्रयोग कैराना में दोहराया और इस नतीजे पर पहुंचे कि चुनाव पूर्व गठबंधन हो जाने की हालत में पूरे प्रदेश में बीजेपी को शिकस्त दी जा सकती है. कांग्रेस को गठबंधन में साथ लेने में मायावती और अखिलेश को दो तरह के खतरे सामने लगे होंगे - एक को बंटवारे में सीटें कम हो जाएंगी और दूसरा, चुनाव के बाद अगर बीजेपी के साथ वाले किसी समीकरण में फिट होना हो तो मुश्किल हो सकती है.

जाहिर है मायावती और अखिलेश यादव ये मान कर चल रहे होंगे कि चुनाव मैदान में साथ उतरने से दलित, ओबीसी और मुस्लिम...

सपा-बसपा गठबंधन में कांग्रेस को जगह न मिलना पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका रहा. कांग्रेस को अच्छी तरह पता था कि मायावती और अखिलेश यादव की मदद लिए बगैर बीजेपी से पार पाना बेहद मुश्किल होगा. प्रियंका गांधी वाड्रा को मोर्चे पर तैनात करने की राहुल गांधी की मजबूरी भी यही रही. मायावती और अखिलेश यादव का हाथ मिला लेने के फैसले ने बीजेपी की भी फिक्र बढ़ा दी थी. वजह गोरखपुर और फूलपुर के बाद कैराना चुनावों में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था. बीजेपी के लिए राहत की बात बस इतनी ही थी कि कांग्रेस को अलग रखा गया था, वरना पूरे उत्तर प्रदेश में कैराना मॉडल की काट खोजनी होती. कैराना उपचुनाव में पूरे विपक्ष ने एकजुट होकर 2018 में बीजेपी को शिकस्त दे डाली थी.

आखिर नतीजा जो भी हो, एग्जिट पोल से तो यही लग रहा है कि महागठबंधन फेल हो चुका है - और कांग्रेस को दूर रखने का निर्णय अब मायावती और अखिलेश को बड़ी भूल का एहसास करा रहा होगा. कांग्रेस ने वोट तो गठबंधन के ही काटे हैं. सहारनपुर के मामले में एग्जिट पोल का नतीजा तो यही साबित कर रहा है.

तमाम तिकड़मों के बावजूद सबसे दिलचस्प है गठबंधन के हिस्से के वोटों का बीजेपी की ओर खिसक जाना - वैसे भी ब्रांड नरेंद्र मोदी को आगे कर अमित शाह के वोट बटोरने का तरीका तो यही है.

यूपी में गठबंधन क्यों फेल हुआ

मायावती और अखिलेश यादव ने गोरखपुर और फूलपुर में एक प्रयोग किया था और वो कामयाब रहा. दोनों ने आरएलडी के साथ मिलकर यही प्रयोग कैराना में दोहराया और इस नतीजे पर पहुंचे कि चुनाव पूर्व गठबंधन हो जाने की हालत में पूरे प्रदेश में बीजेपी को शिकस्त दी जा सकती है. कांग्रेस को गठबंधन में साथ लेने में मायावती और अखिलेश को दो तरह के खतरे सामने लगे होंगे - एक को बंटवारे में सीटें कम हो जाएंगी और दूसरा, चुनाव के बाद अगर बीजेपी के साथ वाले किसी समीकरण में फिट होना हो तो मुश्किल हो सकती है.

जाहिर है मायावती और अखिलेश यादव ये मान कर चल रहे होंगे कि चुनाव मैदान में साथ उतरने से दलित, ओबीसी और मुस्लिम वोट उनके पाले में चले आएंगे. दोनों नेता इस नतीजे पर भी पहुंचे होंगे कि बीजेपी को सामान्य और अन्य वोट मिलेंगे बाकी सारे तो गठबंधन के हिस्से में ही आएंगे.

अंतिम नतीजों से आस है

एग्जिट पोल से तो ये लगता है कि गठबंधन को मायावती और अखिलेश यादव के पक्के वोट बैंक का भी पूरा सपोर्ट नहीं मिल पाया है. बीजेपी ने जातीय समीकरणों को साधते हुए सेंध लगाने में पूरी तरह कामयाब रही है. पोल के मुताबिक, गठबंधन को मायवती की जाति वाले और अखिलेश यादव के यादव समर्थकों ने तो वोट दिये - लेकिन बाकी ओबीसी और दूसरे वोटर छिटक गये.

कैसे चूक गये माया-अखिलेश

मोटे तौर पर यूपी के सपा-बसपा गठबंधन को जातीय समीकरणों के हिसाब से पूरे दलित और ओबीसी वोट मिलने की अपेक्षा थी, लेकिन ऐसा न हो सका. दलित और ओबीसी दोनों ही वोट बैंक गठबंधन और बीजेपी में बंट गये.

कोई भी मान कर चलेगा कि यूपी का यादव वोट सपा-बसपा गठबंधन के खाते में जाना चाहिये. सही है. अखिलेश यादव के चलते गठबंधन के खाते में 72 फीसदी यादव वोट गया जबकि बीजेपी को सिर्फ 18 फीसदी मिल पाया. ठीक वैसे ही मान कर चलना चाहिये कि पूरा दलित वोट मायावती के चलते गठबंधन को मिलना चाहिये, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.

इंडिया टुडे-एक्सिस माय इंडिया पोल के मुताबिक गठबंधन को जाटव SC वोट तो 74 फीसदी मिले हैं, लेकिन गैर जाटव वोटों के मामले में ऐसा नहीं हुआ. बीजेपी को जाटव SC वोट तो 19 फीसदी ही मिले, लेकिन गठबंधन के 30 फीसदी के मुकाबले गैर-जाटव SC वोट बीजेपी के खाते में 57 फीसदी चले गये.

वैसे तो ओबीसी वोटों पर भी अखिलेश यादव की ही दावेदारी रही लेकिन 72 फीसदी वोट बीजेपी को मिले और महज 14 फीसदी गठबंधन को. अजीत सिंह के गठबंधन में साथ होने के बावजूद जाट को वोटों को साधने में भी बीजेपी 55 फीसदी के साथ आगे रही और 35 फीसदी के साथ गठबंधन को संतोष करना पड़ा. अनुसूचित जनजाति के वोट भी बीजेपी ने गठबंधन से ज्यादा झटक लिये. एग्जिट पोल के अनुसार बीजेपी को ST के 61 फीसदी वोट मिल रहे हैं, जबकि गठबंधन को सिर्फ 23 फीसदी वोट ही मिल पा रहे हैं.

साथ ही, सामान्य और अन्य वोटों में भी बीजेपी गठबंधन को काफी पीछे छोड़ती नजर आ रही है. सामान्य वर्ग के 74 फीसदी वोट बीजेपी के खाते में जा रहे हैं तो 12 फीसदी गठबंधन के हिस्से में. बाकी बचे अन्य वोट भी बीजेपी को 65 फीसदी मिल रहे हैं जबकि 19 फीसदी गठबंधन को. कांग्रेस के हिस्से में मुस्लिम वोटों को छोड़ कर कोई भी 10 फीसदी का आंकड़ा नहीं छू पाया है.

बीजेपी का वोट शेयर भी बढ़ा है

एग्जिट पोल के मुताबिक पिछले पांच साल में बीजेपी का वोट शेयर भी बढ़ा है, जबकि गठबंधन का काफी घट गया है. हालांकि, कांग्रेस की हिस्सेदारी अब भी वहीं है जहां 2014 में थी.

2014 के आम चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 44 फीसदी रहा जो 2017 के विधानसभा चुनाव में घट कर 41 फीसदी हो गया था, लेकिन एग्जिट पोल ये बढ़ कर 48 फीसदी हो गया है. पांच साल पहले समाजवादी पार्टी और बीएसपी का वोट शेयर जोड़ देने पर 43 फीसदी रहा जो विधानसभा चुनाव में बढ़ कर 46 फीसदी पहुंच गया था - लेकिन इस बार घट कर वो 39 फीसदी हो गया है.

जहां तक कांग्रेस के वोट शेयर का सवाल है तो वो 2014 और अभी 8 फीसदी है, लेकिन विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ हाथ मिलाने के बावजूद घट कर 6 फीसदी रह गया था.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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