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Budget 2022 : पुनः विशाल आंकड़े ज़मीन पर बौने साबित हुए, आम आदमी फिर ठगा गया!

    • शुभ्रा सुमन
    • Updated: 02 फरवरी, 2022 03:23 PM
  • 02 फरवरी, 2022 03:23 PM
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Budget 2022 : भले ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टैक्स पेयर के लिए माननीय सांसदों ने ताली बजाई. लेकिन आम आदमी को न बजट समझ में आता है न ये बात कि हज़ारों करोड़ रूपए जो हर साल गिनवाए जाते हैं उनसे हालात बदलते क्यों नहीं. इन सबके बावजूद आदत से मजबूर आम आदमी एक अदद आंकड़े का इंतज़ार कर रहा था लेकिन हाथ निराशा ही लगी.

मोदी सरकार के 10वें बजट में मिडिल क्लास के हाथ ज्यादा कुछ नहीं लगा. बजट में दिखाए जाने वाले विशाल आंकड़े ज़मीन पर बौने साबित होते हैं. आम आदमी को न बजट समझ में आता है न ये बात कि हज़ारों करोड़ रूपए जो हर साल गिनवाए जाते हैं उनसे हालात बदलते क्यों नहीं. इन सबके बावजूद आज भी आदत से मजबूर आम आदमी एक अदद आंकड़े का इंतज़ार कर रहा था लेकिन हाथ निराशा ही लगी. इनकम टैक्स के स्लैब में लगातार दूसरे साल कोई बदलाव नहीं किया गया. उल्टा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि महामारी के दौर में भी सरकार का टैक्स कलेक्शन अच्छा है. टैक्स पेयर के लिए माननीय सांसदों ने ताली बजाई. अगर आप किसी राहत की उम्मीद पाले बैठे थे तो जाग जाने का यही समय है. सरकार का पूरा फोकस आपको अपने कर्तव्यों के प्रति जगाने का है. टैक्स चुकाकर पब्लिक ने अपना कर्तव्य पूरा किया और ताली बजवाकर वित्त मंत्री ने उसे मोटिवेट किया.

जनता को पीएम मोदी के बजट से बहुत उम्मीद थी. लेकिन बजट आने के बाद एक बार फिर आम आदमी को मुंह की खानी पड़ी

रही इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव और महामारी के दौर में जनता की उम्मीदों की बात तो अपने मन में उमड़ती आशंकाओं और आक्रोश को शांत करने के लिए आपको बहुत बारीकी से मोदी जी के भाषण को सुनना और समझना होगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी प्राथमिकताएं जानते हैं. मोदी जी का भाषण कौशल अद्वितीय है.

देश-विदेश में जिसकी चर्चा होती है, ऐसी अद्भुत वक्तृत्व कला की कई खूबियों में से एक ये है कि वो बोलते वक्त अपनी प्राथमिकताओं का बखूबी चुनाव करते हैं. ज्यादातर प्राथिमिकताएं चुनाव से जुड़ी हुई होती हैं, लेकिन कुछ उससे इतर भी होती हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले कुछ वक्त में अधिकारों और कर्तव्यों को नए सिरे से परिभाषित करने पर खासा ज़ोर दिया...

मोदी सरकार के 10वें बजट में मिडिल क्लास के हाथ ज्यादा कुछ नहीं लगा. बजट में दिखाए जाने वाले विशाल आंकड़े ज़मीन पर बौने साबित होते हैं. आम आदमी को न बजट समझ में आता है न ये बात कि हज़ारों करोड़ रूपए जो हर साल गिनवाए जाते हैं उनसे हालात बदलते क्यों नहीं. इन सबके बावजूद आज भी आदत से मजबूर आम आदमी एक अदद आंकड़े का इंतज़ार कर रहा था लेकिन हाथ निराशा ही लगी. इनकम टैक्स के स्लैब में लगातार दूसरे साल कोई बदलाव नहीं किया गया. उल्टा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि महामारी के दौर में भी सरकार का टैक्स कलेक्शन अच्छा है. टैक्स पेयर के लिए माननीय सांसदों ने ताली बजाई. अगर आप किसी राहत की उम्मीद पाले बैठे थे तो जाग जाने का यही समय है. सरकार का पूरा फोकस आपको अपने कर्तव्यों के प्रति जगाने का है. टैक्स चुकाकर पब्लिक ने अपना कर्तव्य पूरा किया और ताली बजवाकर वित्त मंत्री ने उसे मोटिवेट किया.

जनता को पीएम मोदी के बजट से बहुत उम्मीद थी. लेकिन बजट आने के बाद एक बार फिर आम आदमी को मुंह की खानी पड़ी

रही इनकम टैक्स स्लैब में बदलाव और महामारी के दौर में जनता की उम्मीदों की बात तो अपने मन में उमड़ती आशंकाओं और आक्रोश को शांत करने के लिए आपको बहुत बारीकी से मोदी जी के भाषण को सुनना और समझना होगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी प्राथमिकताएं जानते हैं. मोदी जी का भाषण कौशल अद्वितीय है.

देश-विदेश में जिसकी चर्चा होती है, ऐसी अद्भुत वक्तृत्व कला की कई खूबियों में से एक ये है कि वो बोलते वक्त अपनी प्राथमिकताओं का बखूबी चुनाव करते हैं. ज्यादातर प्राथिमिकताएं चुनाव से जुड़ी हुई होती हैं, लेकिन कुछ उससे इतर भी होती हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले कुछ वक्त में अधिकारों और कर्तव्यों को नए सिरे से परिभाषित करने पर खासा ज़ोर दिया है.

साल 2020 के फरवरी महीने में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब संसद के भीतर बोलने के लिए खड़े हुए तो नए भारत की परिभाषा बताई. एपीजे अब्दुल कलाम को कोट किया और फिर पुराने भारत के पुराने गांधी को याद कर बैठे. महात्मा गांधी को याद करने के बहाने मोदी जी ने देश को बताया कि अधिकार से ज्यादा महत्वपूर्ण कर्तव्य हैं.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि कर्तव्य में ही अधिकारों का सार है. संसद के भीतर देश के प्रधानमंत्री की ओर से कही गई इस बात के गहरे मायने थे. लेकिन तब बात आई-गई हो गई. लोग भूल गए और देश बीतते दिन के साथ और ‘नया’ होता चला गया. लेकिन घोर नयेपन में भी पुराना कहां छूटता है. क्योंकि बुनियाद तो पुरानी ही है, और आज़ादी भी.

बीती 20 जनवरी को आज़ादी के अमृत महोत्सव कार्यक्रम में बोलते हुए मोदी जी ने फिर से एक बार अधिकार और कर्तव्य को नए सिरे परिभाषित करने की चेष्टा की. उन्होंने हमें कर्तव्यों को सर्वोपरि रखने की नसीहत दी. कहा कि 75 साल तक हम अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहे और इससे हमें कुछ खास हालिस नहीं हुआ. बकौल मोदी जी भारत ने अपना बहुत बड़ा समय इसलिए गंवाया क्योंकि कर्तव्यों को प्राथमिकता नहीं दी गई.

अच्छी बात ये है कि मोदी जी के दिखाए हुए रास्ते पर चलते हुए भारत का आम आदमी कर्तव्यों पर फोकस कर रहा है. साल दर साल महामारी के बावजूद मंहगाई सह रहा है, छंटनी-कटौती सब झेल रहा है, बिना किसी रियायत के टैक्स भर रहा है और ताली भी बटोर रहा है.

लेकिन सब समझदार नहीं हैं. नौकरी के अधिकार को लेकर अभी यूपी और बिहार के कई ज़िलों में छात्र सड़कों पर उतर आए. अधिकार का उतावलापन शांत करने की ज़िम्मेदारी पुलिस पर थी सो पुलिस ने निभाई भी. ज़िम्मेदारी निभाती हुई यूपी पुलिस के वीडियो कई जगहों से वायरल हुए. कहीं बंदूक की बट से, कहीं लाठी से, कहीं थप्पड़ से तो कहीं पत्थर के जवाब में पत्थर से अधिकारों का उतावलापन शांत किया गया.

इस देश ने राजनीतिक आज़ादी का अधिकार एक लंबे संघर्ष के बाद हासिल किया था. वो आज़ादी देश की जनता के लिए अपने अधिकारों को हासिल करने की एक शुरूआत भर थी. आज भी देश की एक बड़ी आबादी कई तरह के अधिकारों से वंचित है. लेकिन देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कि अधिकारों के लिए लड़ना फिज़ूल है. मोदी जी ने जो रास्ता अपने भाषणों में दिखाया है उसका विश्लेषण विद्वान अलग-अलग तरीके से कर रहे हैं. लेकिन एक बात साफ है कि इस भाषण का असर दिखाई देने लगा है, दिखाई देता रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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