• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

कांग्रेस वाले दौर के राज्यपालों ने ही कर्नाटक में वजूभाई वाला को रास्‍ता दिखाया है

    • आईचौक
    • Updated: 17 मई, 2018 06:18 PM
  • 17 मई, 2018 03:03 PM
offline
ये पहली बार नहीं हुआ कि किसी राज्यपाल ने सरकार की दिशा और दशा दोनों ही बदल दी हो और उसके फैसले को कोर्ट में चुनौती दी गई हो. इतिहास में ऐसे कई किस्से शामिल हैं. खासतौर पर कांग्रेस के दौर के.

कर्नाटक चुनाव 2018 के नतीजे दिन पर दिन और दिलचस्प होते जा रहे हैं. एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा को शपथ ग्रहण करने का मौका दे दिया है तो दूसरी तरफ शुक्रवार को इसका फैसला करने की बात भी कही है. कोर्ट में कहा जा रहा है कि भाजपा लोकतंत्र का कत्ल कर रही है और विधायकों की खरीद फरोख्त का सिलसिला अंदर ही अदंर चल रहा है. अब अमित शाह पर कर्नाटक के बहुमत की जिम्मेदारी है और राहुल गांधी ने बयानबाज़ी शुरू कर दी है.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव अब चाहें जो भी मोड़ लाएं, लेकिन एक बात तो पक्की है कि इस पूरे मामले में राज्यपाल वजुभाई वाला का बहुत बड़ा हाथ रहा है. बहुमत के लिए भाजपा को बुलाना एक बड़ा फैसला था. हालांकि, ये पहली बार नहीं हुआ कि किसी राज्यपाल ने सरकार की दिशा और दशा दोनों ही बदल दी हो और उसके फैसले को कोर्ट में चुनौती दी गई हो. इतिहास में ऐसे कई किस्से शामिल हैं. खासतौर पर कांग्रेस के दौर के.

1. हरियाणा (1982) : जब कहावत बनी 'आया राम, गया राम'

हरियाणा में 80 के दशक में राजनीति ने एक अजीब सा मोड़ लिया था. ये वो दौर था जब राज्यपाल को विपक्षी पार्टी के भयंकर गुस्से का सामना करना पड़ा था. 1982 में हरियाणा की 90 सदस्यों वाली विधानसभा के चुनाव हुए थे और नतीजे आए तो त्रिशंकु विधानसभा अस्तित्व में आई. कांग्रेस-आई को 35 सीटें मिलीं और लोकदल को 31 सीटें. छह सीटें लोकदल की सहयोगी भाजपा को मिलीं.

राज्य में सरकार बनाने की दावेदारी दोनों ही दलों ने रख दी. कांग्रेस के भजनलाल और लोकदल की तरफ से देवीलाल. लेकिन राज्यपाल गणपतराव देवजी तपासे ने कांग्रेस के भजनलाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. कहा जाता है कि इस बात से गुस्सा देवीलाल ने राज्यपाल तपासे को थप्पड़ मार दिया था. साथ ही बहुमत भजनलाल बहुमत साबित न कर पाए इसलिए देवीलाल अपने कुछ विधायकों को लेकर किसी होटल में चले गए थे, पर विधायक वहां से निकलने में कामयाब रहे और अंतत: भजनलाल ने ही बहुमत साबित किया.

कर्नाटक चुनाव 2018 के नतीजे दिन पर दिन और दिलचस्प होते जा रहे हैं. एक तरफ सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा को शपथ ग्रहण करने का मौका दे दिया है तो दूसरी तरफ शुक्रवार को इसका फैसला करने की बात भी कही है. कोर्ट में कहा जा रहा है कि भाजपा लोकतंत्र का कत्ल कर रही है और विधायकों की खरीद फरोख्त का सिलसिला अंदर ही अदंर चल रहा है. अब अमित शाह पर कर्नाटक के बहुमत की जिम्मेदारी है और राहुल गांधी ने बयानबाज़ी शुरू कर दी है.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव अब चाहें जो भी मोड़ लाएं, लेकिन एक बात तो पक्की है कि इस पूरे मामले में राज्यपाल वजुभाई वाला का बहुत बड़ा हाथ रहा है. बहुमत के लिए भाजपा को बुलाना एक बड़ा फैसला था. हालांकि, ये पहली बार नहीं हुआ कि किसी राज्यपाल ने सरकार की दिशा और दशा दोनों ही बदल दी हो और उसके फैसले को कोर्ट में चुनौती दी गई हो. इतिहास में ऐसे कई किस्से शामिल हैं. खासतौर पर कांग्रेस के दौर के.

1. हरियाणा (1982) : जब कहावत बनी 'आया राम, गया राम'

हरियाणा में 80 के दशक में राजनीति ने एक अजीब सा मोड़ लिया था. ये वो दौर था जब राज्यपाल को विपक्षी पार्टी के भयंकर गुस्से का सामना करना पड़ा था. 1982 में हरियाणा की 90 सदस्यों वाली विधानसभा के चुनाव हुए थे और नतीजे आए तो त्रिशंकु विधानसभा अस्तित्व में आई. कांग्रेस-आई को 35 सीटें मिलीं और लोकदल को 31 सीटें. छह सीटें लोकदल की सहयोगी भाजपा को मिलीं.

राज्य में सरकार बनाने की दावेदारी दोनों ही दलों ने रख दी. कांग्रेस के भजनलाल और लोकदल की तरफ से देवीलाल. लेकिन राज्यपाल गणपतराव देवजी तपासे ने कांग्रेस के भजनलाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. कहा जाता है कि इस बात से गुस्सा देवीलाल ने राज्यपाल तपासे को थप्पड़ मार दिया था. साथ ही बहुमत भजनलाल बहुमत साबित न कर पाए इसलिए देवीलाल अपने कुछ विधायकों को लेकर किसी होटल में चले गए थे, पर विधायक वहां से निकलने में कामयाब रहे और अंतत: भजनलाल ने ही बहुमत साबित किया.

2. आंध्रप्रदेश (1983) : एनटीआर को हटाया, और वे फिर लौट आए

1983 से 1984 के बीच आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे ठाकुर रामलाल ने बहुमत हासिल कर चुकी एनटी रामाराव की सरकार को बर्खास्त कर दिया था. उन्होंने सरकार के वित्त मंत्री एन भास्कर राव को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया. बाद में राष्ट्रपति के दखल से ही एनटी रामाराव आंध्र की सत्ता दोबारा हासिल कर पाए थे. तत्कालीन इंदिरा सरकार को शंकर दयाल शर्मा को राज्यपाल बनाना पड़ा था. ठाकुर रामलाल सिर्फ 20 महीने ही राज्यपाल के पद पर थे.

आनन-फानन में राज्यपाल को हटाया गया था और वापस से एनटी रामाराव की सरकार बनी थी.

3. कर्नाटक (1983) : बोम्‍मई सरकार की निर्णायक लड़ाई

कर्नाटक की राजनीति में ये पहला मौका नहीं है जब राज्यपाल को हस्तक्षेप करना पड़ा हो. 83 में कर्नाटक के तत्कालीन राज्यपाल पी वेंकटसुबैया ने कर्नाटक इतिहास के सबसे विवादित फैसलों में से एक लिया था. 1983 में पहली बार जनता पार्टी की सरकार बनी थी और रामकृष्ण हेगड़े राज्य के मुख्यमंत्री बने थे.

दूसरे इलेक्शन में एक बार फिर जनता पार्टी सत्ता में आई, लेकिन फोन टैपिंग मामले में हेगड़े को इस्तीफा देना पड़ा और एसआर बोम्मई कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने. उस समय वेंकटसुबैया ने नई सरकार को बर्खास्त कर दिया और कहा कि इसके पास बहुमत नहीं है.

राज्यपाल का ये फैसला उन्हें सुप्रीम कोर्ट तक ले गया और बोम्मई की सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बनी.

4. उत्तरप्रदेश (1998) : सबसे विवादास्‍पद राज्‍यपाल का तमगा लगा भंडारी पर

1998 में उत्तरप्रदेश के राज्यपाल रहे रोमेश भंडारी ने भी एक ऐसा ही फैसला लिया था जिससे सरकार बर्खास्त हो गई थी. ये थी कल्याण सिंह की सरकार. इसी वक्त जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई गई थी. कल्याण सिंह ने इस फैसले के खिलाफ इलाहबाद कोर्ट में शिकायत की थी और जीते भी थे. राज्यपाल का फैसला असंबैधानिक करार दिया गया था और जगदंबिका पाल को सिर्फ दो दिन के लिए ही मुख्यमंत्री का पद मिल सका था.

5. झारखंड (2005) : यूपीए के दौर में झारखंड में था कर्नाटक जैसा सीन

झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते राजी ने भी ऐसा ही एक फैसला लिया था जिससे राजनीति की गर्मी तेज़ हो गई थी. इस समय शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी. लेकिन सोरेन अपना बहुमत साबित करने में नाकाम रहे और उन्हें 9 दिन बाद ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद मार्च 2005 में अर्जुन मुंडा की सरकार बनी और मुंडा दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने.

6. बिहार (2005) : जब सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया राज्‍यपाल बूटा‍ सिंह का फैसला

बिहार के राज्यपाल बूटा सिंह की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. उन्होंने बिहार की विधानसभा 22 मई 2005 को आधी रात में ही भंग कर दिया था. बिहार में फरवरी 2005 में हुए चुनावों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार बनाने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही थी. केंद्र में कांग्रेस विराजमान थी औऱ उस समय लोकतंत्र की रक्षा की बात कहकर विधानसभा भंग की गई थी. इसपर भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी और बूटा सिंह के फैसले को खारिज कर दिया गया था.

7. कर्नाटक (2009) : तब येदियुरप्‍पा पर गवर्नर की कृपा नहीं हुई थी

इसी तरह कर्नाटक में राज्यपाल के हस्तक्षेप का एक मामला 2009 में देखने को मिला था जब राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने बीएस येदियुरप्पा वाली तत्कालीन भाजपा सरकार को बर्खास्त कर दिया था. राज्यपाल ने सरकार पर विधानसभा में गलत तरीके से बहुमत हासिल करने का आरोप लगाया और उसे दोबारा साबित करने को कहा था.

8. और भी कई मामले...

ये लिस्ट और भी ज्यादा लंबी हो सकती है. इसमें 1967 के विपक्षी सरकारों के फैसले से लेकर 1977 में जनता पार्टी की मोरारजी सरकार द्वारा कांग्रेस की राज्य सरकारों को राज्यपालों द्वारा भंग करवाया जाना शामिल है. 1980 में भी इंदिरा सरकार ने जनता पार्टी की राज्य सरकारों के साथ यही किया था.

कुल मिलाकर जो फैसला राज्यपाल के विवेक पर छोड़ा जाता है वो फैसला न तो पत्थर की लकीर होता है और न ही उस फैसले को हर बार पूरी तरह सही साबित किया जा सकता है. कर्नाटक की राजनीति में अब क्या होता है ये तो वक्त ही बताएगा.

ये भी पढ़ें-

भाजपा ने दक्षिण में भी पैर पसार दिए हैं- कर्नाटक चुनावों पर मेरे 10 विचार

कर्नाटक का नाटक कहता है- जैसी करनी, वैसी भरनी


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲