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पहली बार नहीं है अयोध्या का आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट...

    • आलोक रंजन
    • Updated: 21 मार्च, 2017 08:19 PM
  • 21 मार्च, 2017 08:19 PM
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राम मंदिर/ बाबरी मस्जिद के आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के लिए पहले भी विभिन्न पक्षों के बीच बातचीत होते रहे है. कई प्रयास हुए हैं इस मसले को सुलझाने के लिए.

सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मामले पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि दोनों पक्ष आपस में मिलकर इस मामले को सुलझाएं. अगर जरूरत पड़ती है तो सुप्रीम कोर्ट के जज मध्यस्थता को तैयार हैं. बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि वह पिछले छह साल से लंबित राम मंदिर अपील पर सुनवाई करे और उसे इस मसले पर जल्द फैसला सुनाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर ने कहा कि यह मामला धर्म और आस्था से जुड़ा हुआ है, इसलिए दोनों पक्ष आपस में बैठें और बातचीत के ज़रिये हल निकालने की कोशिश करें. कोर्ट ने दोनों पक्षों को बातचीत के लिए अगले शुक्रवार यानी 31 मार्च तक का समय दिया है.

राम मंदिर/ बाबरी मस्जिद के आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के लिए पहले भी विभिन्न पक्षों के बीच बातचीत होते रहे है. कई प्रयास हुए हैं इस मसले को सुलझाने के लिए. आइए एक नजर डालते है इन प्रयासों के इतिहास पर --

1986 में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तत्कालीन प्रेसिडेंट और कोषाध्यक्ष तथा कांची कामकोटि के जगतगुरु द्वारा प्रयास हुए थे, लेकिन उसमें उन्हें विफलता हासिल हुई थी.

1989 और 1990 के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी सिंह के कार्यकाल के दौरान प्रयास किये गए थे जब उन्होंने 3 मेंबर समिति जॉर्ज फ़र्नान्डिस के नेतृत्व नें गठित की थी, लेकिन उसके बाद कोई फैसला नहीं हुआ.

1990 में उस समय के प्रधानमंत्री चन्द्र शेखर ने उत्तरप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों की 3 मेंबर कमिटी उस समय के गृह राज्य मंत्री सुबोध कान्त सहाय की अध्यक्षता में बनाई थी. ये कमिटी विहिप और आल इंडिया बाबरी एक्शन कमिटी के मेंबर के साथ कई मीटिंग की ताकि मामले का हल निकल जा सके, लेकिन इनके द्वारा किये गए सारे प्रयास विफल रहे और असफलता ही हाथ लगी.

1992 में तत्कालीन...

सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मामले पर अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि दोनों पक्ष आपस में मिलकर इस मामले को सुलझाएं. अगर जरूरत पड़ती है तो सुप्रीम कोर्ट के जज मध्यस्थता को तैयार हैं. बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया था कि वह पिछले छह साल से लंबित राम मंदिर अपील पर सुनवाई करे और उसे इस मसले पर जल्द फैसला सुनाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस जगदीश सिंह खेहर ने कहा कि यह मामला धर्म और आस्था से जुड़ा हुआ है, इसलिए दोनों पक्ष आपस में बैठें और बातचीत के ज़रिये हल निकालने की कोशिश करें. कोर्ट ने दोनों पक्षों को बातचीत के लिए अगले शुक्रवार यानी 31 मार्च तक का समय दिया है.

राम मंदिर/ बाबरी मस्जिद के आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट के लिए पहले भी विभिन्न पक्षों के बीच बातचीत होते रहे है. कई प्रयास हुए हैं इस मसले को सुलझाने के लिए. आइए एक नजर डालते है इन प्रयासों के इतिहास पर --

1986 में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तत्कालीन प्रेसिडेंट और कोषाध्यक्ष तथा कांची कामकोटि के जगतगुरु द्वारा प्रयास हुए थे, लेकिन उसमें उन्हें विफलता हासिल हुई थी.

1989 और 1990 के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी सिंह के कार्यकाल के दौरान प्रयास किये गए थे जब उन्होंने 3 मेंबर समिति जॉर्ज फ़र्नान्डिस के नेतृत्व नें गठित की थी, लेकिन उसके बाद कोई फैसला नहीं हुआ.

1990 में उस समय के प्रधानमंत्री चन्द्र शेखर ने उत्तरप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों की 3 मेंबर कमिटी उस समय के गृह राज्य मंत्री सुबोध कान्त सहाय की अध्यक्षता में बनाई थी. ये कमिटी विहिप और आल इंडिया बाबरी एक्शन कमिटी के मेंबर के साथ कई मीटिंग की ताकि मामले का हल निकल जा सके, लेकिन इनके द्वारा किये गए सारे प्रयास विफल रहे और असफलता ही हाथ लगी.

1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने कुछ मिनिस्टरों की समिति उस समय के गृह राज्य मंत्री कुमारमंगलम के संयोजकता में बनायी थी. इस समिति ने कई बैठके की थी परंतु 6 दिसंबर 2012 बाबरी कांड के बाद यह पूरी तरह भंग ही हो गई.

पूर्व राष्ट्रपति वेंकटरमन ने 2002 में बातचीत का प्रयास करवाया था, इनके प्रयासों के कारण ही उस समय के ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रेसिडेंट और जगतगुरु शंकराचार्य के बीच मीटिंग हो पायी थी. हालांकि इस मीटिंग में कोई नतीजा नहीं निकला था.  

2003 में भी कांची कामकोटि के जगतगुरु ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रेसिडेंट से बातचीत का प्रयास किया लेकिन प्रयास विफल ही हुआ.

अक्टूबर 2010 में अयोध्या विवाद के सबसे पुराने पक्षकार हाशिम अंसारी जिनकी मृत्यु जुलाई 2016 में हुई थी इस मुद्दे का आउट ऑफ कोर्ट सेटलमेंट करने का हिमायत की थी. ये बातें वो महंत ज्ञान दास से मिलने के बाद की थी. मई 2016 में भी हाशिम अंसारी की मुलाकात महंत नरेंद्र गिरी से हुई थी. मुलाकात के बाद दोनों पक्षों ने कहा कि इस मसले को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने का मार्ग तलाशना चाहिए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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