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जब सारे हथियार फेल हो जाते हैं तो हिंदुत्‍व पर लौट आते हैं योगी !

    • शरत प्रधान
    • Updated: 31 अक्टूबर, 2017 09:48 PM
  • 31 अक्टूबर, 2017 09:48 PM
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गड्ढा मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त और अपराध मुक्त राज्य बनाने के अपने वादों के बारे में सीएम से लगातार सवाल किए जा रहे हैं. इन परिस्थितियों में शायद 'हिंदुत्व' के अपने पसंदीदा पुराने एजेंडे पर वापस जाना ही उनके लिए राजनीतिक रूप से लाभप्रद बन गया है.

उत्तर प्रदेश में विकास के नए प्रतिमान गढ़ने और पूरे प्रदेश की सूरत बदलने के लगातार दावे करने के बावजूद सीएम योगी आदित्यनाथ ने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. सात महीने पहले उत्तर-प्रदेश की कमान संभालने वाले योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व को जिंदा रखने के लिए नित नए तरीके अपना रहे हैं.

"लव जिहाद", "घर वापसी", "गौ हत्या" जैसे मुद्दों के बल पर हिंदुओं को ध्रुवीकरण करने में सफलता पाने के बाद, हिंदुत्व के मुद्दे को चर्चा के केंद्र में रखने के लिए उन्होंने एक नया तरीका खोज लिया है. अभी जब प्रदेश में निकाय चुनाव होने वाले हैं तो योगी 'तीर्थ स्थल' पॉलिटिक्स के साथ सामने आए हैं. मथुरा जिले के वृंदावन और बरसाना शहरों को आधिकारिक रूप से "तीर्थ स्थान" के रूप में घोषित करके उन्होंने इसकी शुरुआत कर भी दी.

गौरतलब है कि ये दर्जा उत्तर प्रदेश में किसी दूसरे शहर के पास नहीं है. यूपी के प्रमुख सचिव (टूरिज्म) अविनाश अवस्थी के मुताबिक, "इसके पहले अविभाजित उत्तरप्रदेश में हरिद्वार इकलौता ऐसा शहर था जिसे ये दर्जा मिला हुआ था. हरिद्वार अब उत्तराखंड में है." उन्होंने कहा- "एक तीर्थ स्थल पर शराब और मांस की दुकानें बैन होती हैं और ज्यादा जोर धार्मिक और सामाजिक पर्यटन पर होता है. इसलिए एक्साइज एक्ट और कुछ फूड लॉ में बदलाव करना जरूरी है."

जब उनसे सवाल किया गया कि शराब, मांस इत्यादि क्षेत्र में काम कर रहे लोगों का क्या होगा? इसके जवाब में अवस्थी ने कहा- "कानून उन लोगों के विस्थापन की व्यवस्था करेगा और इसके लिए उन्हें पर्याप्त मुआवजा भी दिया जाएगा." हैरानी की बात तो ये है कि इतने सालों में उत्तर प्रदेश के तीन प्रमुख हिंदु तीर्थस्थानों- अयोध्या, वाराणसी या मथुरा में से किसी को भी "तीर्थ स्थल" के रूप में घोषित नहीं किया गया. तो फिर आखिर बरसाना और वृंदावन जैसे छोटे शहरों को तीर्थ स्थल घोषित करने की इतनी जल्दी क्यों थी?

उत्तर प्रदेश में विकास के नए प्रतिमान गढ़ने और पूरे प्रदेश की सूरत बदलने के लगातार दावे करने के बावजूद सीएम योगी आदित्यनाथ ने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है. सात महीने पहले उत्तर-प्रदेश की कमान संभालने वाले योगी आदित्यनाथ हिंदुत्व को जिंदा रखने के लिए नित नए तरीके अपना रहे हैं.

"लव जिहाद", "घर वापसी", "गौ हत्या" जैसे मुद्दों के बल पर हिंदुओं को ध्रुवीकरण करने में सफलता पाने के बाद, हिंदुत्व के मुद्दे को चर्चा के केंद्र में रखने के लिए उन्होंने एक नया तरीका खोज लिया है. अभी जब प्रदेश में निकाय चुनाव होने वाले हैं तो योगी 'तीर्थ स्थल' पॉलिटिक्स के साथ सामने आए हैं. मथुरा जिले के वृंदावन और बरसाना शहरों को आधिकारिक रूप से "तीर्थ स्थान" के रूप में घोषित करके उन्होंने इसकी शुरुआत कर भी दी.

गौरतलब है कि ये दर्जा उत्तर प्रदेश में किसी दूसरे शहर के पास नहीं है. यूपी के प्रमुख सचिव (टूरिज्म) अविनाश अवस्थी के मुताबिक, "इसके पहले अविभाजित उत्तरप्रदेश में हरिद्वार इकलौता ऐसा शहर था जिसे ये दर्जा मिला हुआ था. हरिद्वार अब उत्तराखंड में है." उन्होंने कहा- "एक तीर्थ स्थल पर शराब और मांस की दुकानें बैन होती हैं और ज्यादा जोर धार्मिक और सामाजिक पर्यटन पर होता है. इसलिए एक्साइज एक्ट और कुछ फूड लॉ में बदलाव करना जरूरी है."

जब उनसे सवाल किया गया कि शराब, मांस इत्यादि क्षेत्र में काम कर रहे लोगों का क्या होगा? इसके जवाब में अवस्थी ने कहा- "कानून उन लोगों के विस्थापन की व्यवस्था करेगा और इसके लिए उन्हें पर्याप्त मुआवजा भी दिया जाएगा." हैरानी की बात तो ये है कि इतने सालों में उत्तर प्रदेश के तीन प्रमुख हिंदु तीर्थस्थानों- अयोध्या, वाराणसी या मथुरा में से किसी को भी "तीर्थ स्थल" के रूप में घोषित नहीं किया गया. तो फिर आखिर बरसाना और वृंदावन जैसे छोटे शहरों को तीर्थ स्थल घोषित करने की इतनी जल्दी क्यों थी?

राम नाम का लूट है, लूट सके तो लूट!

तो साफ है कि इस फैसले के पीछ आने वाले निकाय चुनाव प्रमुख निशाना हैं. इन निकाय चुनावों को अभी के समय में 2019 के पहले के सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा है. बरसाना और वृंदावन दोनों ही शहरों में शराब की दुकानें तो पहले से ही न के बराबर थीं. लेकिन मीट और अन्य मांसाहारी खानों के दुकानों का विस्थापन हिंदु-मुसलमान के मुद्दे को हवा देगा.

गड्ढा मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त और अपराध मुक्त राज्य बनाने के अपने वादों के बारे में सीएम से लगातार सवाल किए जा रहे हैं. इन परिस्थितियों में शायद "हिंदुत्व" के अपने पसंदीदा पुराने एजेंडे पर वापस जाना ही उनके लिए राजनीतिक रूप से लाभप्रद बन गया है. हालांकि अब उन्होंने अपने आक्रामक हिंदुत्व के बजाय "नरम हिंदुत्व" का रूख अख्तियार किया है.

ये सही है कि "तीर्थ स्थल" बनाने की इस घोषणा से पहले से ही दो ध्रुवों में बंटे लोगों में थोड़ी जिज्ञासा जरुर पैदा होगी. लोगों को ये लगेगा कि इसके पहले किसी भी दूसरी सरकार ने राज्य के किसी भी शहर को "तीर्थ स्थल" बनाने का नहीं सोचा. साथ ही लोगों को ये भी उम्मीद होगी कि राज्य के और भी प्रसिद्द तीर्थस्थलों को इसके बाद इसी तरह का दर्जा दिया जाएगा.

लेकिन लाख टके का सवाल तो ये है कि "तीर्थ स्थल" घोषित हो जाने के बाद क्या इन शहरों में विकास होगा? क्योंकि "तीर्थ स्थल" घोषित नहीं होने के बावजूद अयोध्या, वाराणसी और मथुरा को सरकारों का साथ मिलता रहा है. इन शहरों के विकास के नाम पर जमकर पैसे मिलते रहे हैं. लेकिन फिर भी सच्चाई यही है कि ये तीनों शहर राज्य के सबसे गंदे शहरों में से हैं. इनमें साफ-सफाई का अभाव और स्वास्थ्य की खास्ता हालत किसी से छुपी नहीं है. वहीं वृंदावन और मथुरा की हालत भी बहुत अलग नहीं है. यहां भी गंदगी का अंबार चारो तरफ दिखाई दे जाता है. इसलिए ये देखना दिलचस्प होगा की रातों-रात इन शहरों की सूरत में क्या बदलाव आता है.

अभी तक तो बदलाव की जो सूरत दिखाई दी है वो सिर्फ बातों के शेर बनने में ही दिखी है. और इसमें बाजी मार ले गए हैं मथुरा से विधायक और राज्य के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा. शर्मा वृंदावन और बरसाना को "तीर्थ स्थल" घोषित करवाने का सेहरा अपने माथे बांध रहे हैं.

तो अब इन शहरों को नाम बदलने के अलावा भी कुछ नसीब होता है या नहीं ये तो बाद में ही पता चलेगा. अभी के समय में आधिकारिक तौर पर सिर्फ मौजूदा सरकार द्वारा हिंदू तीर्थस्थलों के नाम पर हवा बनाने की नियत ही दिख रही है. और इससे अगले महीने होने वाले निकाय चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा को कितना लाभ होगा ये देखना दिलचस्प होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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