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कसाब नहीं पकड़ा गया होता तो मुंबई अटैक मामले में भी RSS को फंसा देती कांग्रेस!

    • अभिरंजन कुमार
    • Updated: 20 अप्रिल, 2018 06:25 PM
  • 20 अप्रिल, 2018 06:25 PM
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एनआईए कोर्ट से मक्का मस्जिद ब्लास्ट मामले में स्वामी असीमानंद समेत सभी आरोपियों के बरी होने से भी यह बात साबित हो गई है कि कांग्रेस इस देश में किस स्तर की घृणित राजनीति करती रही है.

अगर अजमल कसाब को जीवित नहीं पकड़ा जाता, तो 26 नवंबर 2008 के मुंबई अटैक को भी कांग्रेस पार्टी आरएसएस का षडयंत्र साबित करने का प्लान बना चुकी थी. दिग्विजय सिंह और एआर अंतुले समेत उसके कई नेताओं के तब के बयान इस बात की गवाही देते हैं. दिग्विजय सिंह ने तो एक उर्दू अखबार के संपादक रहे अजीज बर्नी की किताब का विमोचन भी किया था, जिसका शीर्षक था- “26/11- आरएसएस की साज़िश”.

बाटला हाउस एनकाउंटर को भी कांग्रेस पार्टी ने फ़ेक एनकाउंटर बता दिया था, इसके बावजूद कि उस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस के तेज़-तर्रार अफसर मोहनलाल शर्मा शहीद हो गए थे. कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने उस एनकाउंटर में मारे गए आतंकवादियों के दुख में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के रोने का भी दावा किया था.

इतना ही नहीं, लश्कर-ए-तैयबा के आत्मघाती दस्ते से जुड़ी इशरत जहां और उसके साथ दो पाकिस्तानी नागरिकों समेत तीन लोगों के एनकाउंटर को भी फ़ेक बताया गया. लेकिन, मुंबई हमले का दोष सिद्ध होने पर अमेरिका में 35 साल की सज़ा पाए आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली ने कांग्रेस के झूठ की पोल खोल दी, जब एनकाउंटर के 12 साल बाद उसने भारतीय अदालत के सामने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में इशरत के आतंकवादी होने की पुष्टि की.

ऐसे एक नहीं, अनेक उदाहरण हैं. और अब एनआईए कोर्ट से मक्का मस्जिद ब्लास्ट मामले में स्वामी असीमानंद समेत सभी आरोपियों के बरी होने से भी यह बात साबित हो गई है कि कांग्रेस इस देश में किस स्तर की घृणित राजनीति करती रही है. इससे यह भी स्पष्ट है कि कांग्रेस अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने के लिए कैसे-कैसे हथकंडे अपना सकती है. यानी इमरजेंसी से लेकर अब तक कांग्रेस का चरित्र रत्ती भर नहीं सुधरा है.

अगर अजमल कसाब को जीवित नहीं पकड़ा जाता, तो 26 नवंबर 2008 के मुंबई अटैक को भी कांग्रेस पार्टी आरएसएस का षडयंत्र साबित करने का प्लान बना चुकी थी. दिग्विजय सिंह और एआर अंतुले समेत उसके कई नेताओं के तब के बयान इस बात की गवाही देते हैं. दिग्विजय सिंह ने तो एक उर्दू अखबार के संपादक रहे अजीज बर्नी की किताब का विमोचन भी किया था, जिसका शीर्षक था- “26/11- आरएसएस की साज़िश”.

बाटला हाउस एनकाउंटर को भी कांग्रेस पार्टी ने फ़ेक एनकाउंटर बता दिया था, इसके बावजूद कि उस एनकाउंटर में दिल्ली पुलिस के तेज़-तर्रार अफसर मोहनलाल शर्मा शहीद हो गए थे. कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने उस एनकाउंटर में मारे गए आतंकवादियों के दुख में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के रोने का भी दावा किया था.

इतना ही नहीं, लश्कर-ए-तैयबा के आत्मघाती दस्ते से जुड़ी इशरत जहां और उसके साथ दो पाकिस्तानी नागरिकों समेत तीन लोगों के एनकाउंटर को भी फ़ेक बताया गया. लेकिन, मुंबई हमले का दोष सिद्ध होने पर अमेरिका में 35 साल की सज़ा पाए आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली ने कांग्रेस के झूठ की पोल खोल दी, जब एनकाउंटर के 12 साल बाद उसने भारतीय अदालत के सामने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में इशरत के आतंकवादी होने की पुष्टि की.

ऐसे एक नहीं, अनेक उदाहरण हैं. और अब एनआईए कोर्ट से मक्का मस्जिद ब्लास्ट मामले में स्वामी असीमानंद समेत सभी आरोपियों के बरी होने से भी यह बात साबित हो गई है कि कांग्रेस इस देश में किस स्तर की घृणित राजनीति करती रही है. इससे यह भी स्पष्ट है कि कांग्रेस अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने के लिए कैसे-कैसे हथकंडे अपना सकती है. यानी इमरजेंसी से लेकर अब तक कांग्रेस का चरित्र रत्ती भर नहीं सुधरा है.

कांग्रेस की घृणित राजनीति

हम आरएसएस को पसंद या नापसंद कर सकते हैं, लेकिन किसी को झूठे मामलों में फंसाने का समर्थन या बचाव कैसे कर सकते हैं? मेरी तो यह सोचकर ही रूह कांप जाती है कि अगर अजमल कसाब ज़िंदा न पकड़ा गया होता, तो मुंबई में करीब 200 लोगों की हत्या के मामले में भी कोई असीमानंद, भीमानंद पेश कर दिये जाते और देश को बता दिया जाता कि उन्होंने अपना जुर्म कबूल कर लिया है.

130 करोड़ लोगों के देश में कहीं कोई घटना होती है, तो हर व्यक्ति तथ्यों की जांच तो कर नहीं सकता. ऐसे में जो बातें सरकार और मीडिया द्वारा फैलाई जाती हैं, लोग उसी पर आंख मूंदकर भरोसा करते हैं. फिर सोचिए, कि अपने राजनीतिक विरोधियों को लांछित करने और फंसाने का यह खेल कितना भयावह है. सत्ता के इस खेल में कांग्रेस ने हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को अपना खिलौना बना लिया है. मुसलमानों को हिन्दुओं से डराकर और हिन्दुओं को आपस में बांटकर और कई टुकड़ों में तोड़कर राज करते रहना ही उसकी नीति है.

पिछले साठ साल के राज में कांग्रेस ने शातिराना ढंग से समाज, सरकार और व्यवस्था के हर अंग में अपने एजेंट फिट कर दिए हैं, जो इस देश में कोई भी कारनामा कर सकते हैं, किसी को भी फंसा सकते हैं और कुछ भी साबित कर सकते हैं। इसीलिए, मैं हमेशा कहता हूं कि लोकतंत्र के तो केवल चार स्तम्भ हैं, लेकिन कांग्रेस पार्टी के चालीस स्तम्भ हैं. उसके कौन से स्तम्भ कब कौन-सा बवाल खड़ा कर दें, कोई नहीं जानता.

ऐसे में, इस देश में आजकल जो बहुत सारी अप्रिय घटनाओं का शोर सुनाई देता है, कोई आश्चर्य नहीं कि उनमें से अनेक में कांग्रेस और उसके चालीस स्तम्भों का हाथ हो. दुर्भाग्यपूर्ण.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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