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बहुमत न सही कांग्रेस यूपी में चाहती है 100 सीटें - ये है प्लान

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 11 मई, 2016 09:52 PM
  • 11 मई, 2016 09:52 PM
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प्रशांत किशोर चाहते हैं कि जीत पक्की करने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता भी विधानसभा का चुनाव लड़ें जिससे लोगों को तो भरोसा हो ही कार्यकर्ताओं का भी मनोबल बढ़े.

बीजेडी नेता भर्तृहरि महताब का ये कहना कि राहुल गांधी 2024 की तैयारी कर रहे हैं - बिलकुल गलत है. राहुल गांधी सिर्फ और सिर्फ 2019 की तैयारी कर रहे हैं. तो क्या यूपी विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए खास मायने नहीं रखता? निश्चित रूप से रखता है, इसलिए कांग्रेस हकीकत पर फोकस है, फसाने में फंसे रहने का उसका कोई इरादा नहीं है. प्रशांत किशोर का भी एक्शन प्लान तो ऐसा ही संकेत दे रहा है.

एक्शन प्लान - 100

नीतीश कुमार की बदौलत बिहार में कांग्रेस को उम्मीद से ज्यादा मिला. यूपी में कांग्रेस इतना ही उम्मीद करना चाहती है कि पूरी न होने पर झटका न लगे. मौजूदा विधानसभा में कांग्रेस के 28 विधायक हैं. यही वजह है कि कांग्रेस सच का सामना करते हुए कदम बढ़ा रही है.

इसे भी पढ़ें: प्रशांत की पसंद न राहुल हैं न प्रियंका, न ही शीला हैं...

माना जा रहा है कि कांग्रेस 403 में से 100 सीटें सहयोगियों के लिए छोड़ सकती है - और उसकी कोशिश है कि कम से कम 100 सीटें उसे जरूर मिले. अगर ये 100 सीटें अकेले न मिल पाएं तो सहयोगी दलों के साथ ही मिल जाए. अगर ऐसा हुआ तो मुख्यमंत्री पद पर कांग्रेस दावेदारी भले न रह पाए, लेकिन ये स्थिति तो रहेगी कि कांग्रेस के बगैर कोई सरकार न बना पाए. कोई न कोई उपाय करके कांग्रेस बीजेपी को रोक ले, फिलहाल तो बस इतना सा ही ख्वाब है. वैसे भी 2019 के लिए इतना भी कम है क्या? 2012 में राहुल गांधी ने 200 रैलियां की थीं. तब भी कांग्रेस को कम से कम 100 सीटों की उम्मीद थी लेकिन नतीजे आने पर मालूम हुआ कि 2007 से सिर्फ छह सीटें ही ज्यादा मिल पाई हैं.

बाद में हार पर चीर फाड़ हुई - एक ही बार नहीं, बल्कि कई बार. जांच कमेटी बनी, रिपोर्ट भी आई. अब प्रशांत किशोर भी अपने तरीके से तफ्तीश कर चुके हैं. अब सबको समझ यही आया है कि राहुल की रैलियों का...

बीजेडी नेता भर्तृहरि महताब का ये कहना कि राहुल गांधी 2024 की तैयारी कर रहे हैं - बिलकुल गलत है. राहुल गांधी सिर्फ और सिर्फ 2019 की तैयारी कर रहे हैं. तो क्या यूपी विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए खास मायने नहीं रखता? निश्चित रूप से रखता है, इसलिए कांग्रेस हकीकत पर फोकस है, फसाने में फंसे रहने का उसका कोई इरादा नहीं है. प्रशांत किशोर का भी एक्शन प्लान तो ऐसा ही संकेत दे रहा है.

एक्शन प्लान - 100

नीतीश कुमार की बदौलत बिहार में कांग्रेस को उम्मीद से ज्यादा मिला. यूपी में कांग्रेस इतना ही उम्मीद करना चाहती है कि पूरी न होने पर झटका न लगे. मौजूदा विधानसभा में कांग्रेस के 28 विधायक हैं. यही वजह है कि कांग्रेस सच का सामना करते हुए कदम बढ़ा रही है.

इसे भी पढ़ें: प्रशांत की पसंद न राहुल हैं न प्रियंका, न ही शीला हैं...

माना जा रहा है कि कांग्रेस 403 में से 100 सीटें सहयोगियों के लिए छोड़ सकती है - और उसकी कोशिश है कि कम से कम 100 सीटें उसे जरूर मिले. अगर ये 100 सीटें अकेले न मिल पाएं तो सहयोगी दलों के साथ ही मिल जाए. अगर ऐसा हुआ तो मुख्यमंत्री पद पर कांग्रेस दावेदारी भले न रह पाए, लेकिन ये स्थिति तो रहेगी कि कांग्रेस के बगैर कोई सरकार न बना पाए. कोई न कोई उपाय करके कांग्रेस बीजेपी को रोक ले, फिलहाल तो बस इतना सा ही ख्वाब है. वैसे भी 2019 के लिए इतना भी कम है क्या? 2012 में राहुल गांधी ने 200 रैलियां की थीं. तब भी कांग्रेस को कम से कम 100 सीटों की उम्मीद थी लेकिन नतीजे आने पर मालूम हुआ कि 2007 से सिर्फ छह सीटें ही ज्यादा मिल पाई हैं.

बाद में हार पर चीर फाड़ हुई - एक ही बार नहीं, बल्कि कई बार. जांच कमेटी बनी, रिपोर्ट भी आई. अब प्रशांत किशोर भी अपने तरीके से तफ्तीश कर चुके हैं. अब सबको समझ यही आया है कि राहुल की रैलियों का फायदा इसलिए नहीं मिला क्योंकि जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं का अभाव रहा. इसीलिए प्रशांत किशोर इस बार भी चाहते हैं कि राहुल वैसे ही 200 रैलियां करें - और हर विधानसभा में 20 नौजवानों की टीम बनाई जाए. इसके अलावा प्रशांत चाहते हैं कि हर विधानसभा में 250 बूथ लेवल कार्यकर्ता बनाए जाएं ताकि मिशन कामयाब हो सके.

इसके अलावा जेडीयू, आरजेडी, आरएलडी, अपना दल सहित सभी छोटे छोटे दलों को मिलाकर एक महागठबंधन खड़ा किया जाए - जो बिहार की तरह सत्ता पर भले ही काबिज न हो पाए पर सत्ता में हिस्सेदार जरूर रहे.

श्योर शॉट सीरीज

प्रशांत श्योर शॉट में यकीन रखते हैं इसीलिए वो सीधे राहुल गांधी को ही सीएम कैंडिडेट बनाने के पक्षधर हैं. ऐसा नहीं हो पाए तो प्रियंका जरूर ये दायित्व संभालें, वरना उन्हें फिर कोई दोष न दे. एक नाम शीला दीक्षित का भी उछला था. शीला के नाम के पीछे प्रशांत की सोच थी कि चूंकि वो खुद खत्री हैं और ब्राह्मण परिवार में ब्याही हैं इसलिए कांग्रेस को इसका फायदा मिल सकता है. निर्मल खत्री को यूपी में पीसीसी चीफ बनाने के पीछे कांग्रेस की भी यही सोच रही होगी.

तभी लोकतंत्र बच सकता है, वरना...

लेकिन ये तो कुछ भी नहीं है. प्रशांत किशोर चाहते हैं कि जीत पक्की करने के लिए कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता भी विधानसभा का चुनाव लड़ें जिससे लोगों को तो भरोसा हो ही कार्यकर्ताओं का भी मनोबल बढ़े. साथ ही, इन नेताओं में भी यूपी को लेकर कमिटमेंट का लेवल ऊंचा हो. प्रशांत की इस सूची में जो नाम सबसे ऊपर हैं वे हैं - सलमान खुर्शीद, जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह.

माया मिल जाएं तो...

100 सीटें पक्की करने के लिए एक और स्ट्रैटेजी पर काम चल रहा है. बाकी तैयारियों के दरम्यान प्रशांत किशोर मायावती को भी कांग्रेस के साथ गठबंधन के लिए राजी करने की कोशिश कर रहे हैं. एक चर्चा ये भी रही कि अब तक किसी भी पार्टी के साथ चुनाव पूर्व की विरोधी मायावती ने अपने स्टैंड पर पुनर्विचार करने के बारे में सोच रही हैं.

इसे भी पढ़ें: यूपी में सबसे बड़ा मुद्दा कानून व्यवस्था है तो माया पहली पसंद

उत्तराखंड में बीएसपी विधायकों द्वारा हरीश रावत का सपोर्ट करने को इस क्रम में एक पॉजिटिव साइन के रूप में देखा गया. जा रहा है. हालांकि, मायावती ने इन सारी अटलकों पर विराम लगा दिया है. मायावती ने कहा, "मैं यह साफ कर देना चाहती हूं कि उत्तराखंड में बसपा किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेगी. पार्टी सभी राज्यों में अकेले चुनाव लड़ेगी."

यानी उत्तराखंड ही नहीं यूपी के लिए भी रास्ते बंद हो गये. वैसे राजनीति में बाहर कुछ और भीतर कुछ और तो चलता ही रहता है. चुनाव से पहले ऐसी संभावनाओं को पूरी तरह खारिज करना मुश्किल होता है.

अंग्रेजी अखबार एशियन एज की रिपोर्ट में एक कांग्रेस स्ट्रैटेजिस्ट को कोट किया गया है, जिसका कहना है, “हमारे पास ढेरों वरिष्ठ नेता हैं जो पहले इंदिरा जी और राजीव जी के साथ काम कर चुके हैं - और अब सोनिया जी और राहुल जी के साथ काम कर रहे हैं. अगर वे दो-दो एसेम्बली सीटों पर जीत सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ले लें तो 100 सीटों के आंकड़े तक पहुंचा जा सकता है."

तो ये समझा जाए कि कांग्रेस को यूपी के लिए ऐसे 50 नेताओं की जरूरत है. लेकिन इससे सिर्फ 100 सीटें मिलेंगी. अगर प्रंशात की सलाह पर प्रियंका मोर्चा संभाल लेती हैं शायद उसे आगे से मार्च निकालने की जरूरत न पड़े - और कहीं भले न संभव हो तो कम से कम यूपी में तो कांग्रेस लोकतंत्र बचा ही सकती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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