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क्या हार्दिक पटेल जेल से निकलने के बाद उत्तर प्रदेश का रूख करेंगें ?

    • बालकृष्ण
    • Updated: 12 जुलाई, 2016 09:36 PM
  • 12 जुलाई, 2016 09:36 PM
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हार्दिक पटेल की रिहाई के साथ कोर्ट ने यह शर्त रखी है कि वे छह महीने तक गुजरात से बाहर रहेंगें. अब खबरें आ रही हैं कि वो चुनाव के मौसम में यूपी का रूख भी कर सकते हैं. जानिए क्‍यों...

जिन पटेल पाटीदारों के आरक्षण का आंदोलन हार्दिक पटेल ने गुजरात में चलाया और सरकार से नाक में दम कर दिया, यूपी में वो कुर्मी जाति के नाम से जाने जाते हैं. पटेल और कुर्मी लगभग एक ही जाति मानी जाती है. कुशवाहा, शाक्य, कटियार, मौर्य, निरंजन भी इसी जाति के होते हैं. यूपी में इनकी आबादी लगभग साढे आठ फीसदी है और ये ओबीसी में शामिल हैं. हार्दिक पटेल ऐसे समय पर रिहा हो रहे हैं जब यूपी में कुर्मी वोटों को हडपने की मारा मारी मची हुई है. बगल के राज्य बिहार से आकर नीतीश कुमार भी इसी वोट बैंक को लुभाने में लगे हैं. लेकिन यूपी में पहले से ही कुर्मी नेताओं की भी कमी नहीं है और हार्दिक पटेल के लिए अपनी जगह बनाना बेहद मुश्किल है.

 हार्दिक पटेल

बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर इसी वोट बैंक को अपना बनाने की कोशिश की और अभी हाल ही में अनुप्रिया पटेल को मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया जिनके पिता सोनेलाल पटेल ने अपना दल बनाकर कुर्मियों को एकजुट करने की कोशिश की थी. इसके अलावा बीजेपी के पास बरेली में संतोष गंगवार कुर्मी हैं तो कानपुर में प्रेमलता कटियार. फैजाबाद में विनय कटियार हैं तो मिर्जापुर में ओमप्रकाश सिंह.

कुर्मी वोटरों को लुभाने के लिए ही मुलामय सिंह यादव ने गिले शिकवे भूल कर बेनी प्रसाद वर्मा को फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल कराया और उन्हें राज्यसभा भी भेजा.

उधर बीएसी से बगावत करने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य भी खुद को कर्मी वोटों के सबसे बडे सौदागर साबित करने में जुटे हुए हैं. मायावती की पार्टी से निकले बाबू सिंह कुशवाहा भी पहले से ही मैदान में हैं.

ऐसे में हार्दिक पटेल अपने आक्रामक तेवर और...

जिन पटेल पाटीदारों के आरक्षण का आंदोलन हार्दिक पटेल ने गुजरात में चलाया और सरकार से नाक में दम कर दिया, यूपी में वो कुर्मी जाति के नाम से जाने जाते हैं. पटेल और कुर्मी लगभग एक ही जाति मानी जाती है. कुशवाहा, शाक्य, कटियार, मौर्य, निरंजन भी इसी जाति के होते हैं. यूपी में इनकी आबादी लगभग साढे आठ फीसदी है और ये ओबीसी में शामिल हैं. हार्दिक पटेल ऐसे समय पर रिहा हो रहे हैं जब यूपी में कुर्मी वोटों को हडपने की मारा मारी मची हुई है. बगल के राज्य बिहार से आकर नीतीश कुमार भी इसी वोट बैंक को लुभाने में लगे हैं. लेकिन यूपी में पहले से ही कुर्मी नेताओं की भी कमी नहीं है और हार्दिक पटेल के लिए अपनी जगह बनाना बेहद मुश्किल है.

 हार्दिक पटेल

बीजेपी ने केशव प्रसाद मौर्य को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर इसी वोट बैंक को अपना बनाने की कोशिश की और अभी हाल ही में अनुप्रिया पटेल को मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया जिनके पिता सोनेलाल पटेल ने अपना दल बनाकर कुर्मियों को एकजुट करने की कोशिश की थी. इसके अलावा बीजेपी के पास बरेली में संतोष गंगवार कुर्मी हैं तो कानपुर में प्रेमलता कटियार. फैजाबाद में विनय कटियार हैं तो मिर्जापुर में ओमप्रकाश सिंह.

कुर्मी वोटरों को लुभाने के लिए ही मुलामय सिंह यादव ने गिले शिकवे भूल कर बेनी प्रसाद वर्मा को फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल कराया और उन्हें राज्यसभा भी भेजा.

उधर बीएसी से बगावत करने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य भी खुद को कर्मी वोटों के सबसे बडे सौदागर साबित करने में जुटे हुए हैं. मायावती की पार्टी से निकले बाबू सिंह कुशवाहा भी पहले से ही मैदान में हैं.

ऐसे में हार्दिक पटेल अपने आक्रामक तेवर और युवा जोश की वजह से कुछ दिनों तक आकर्षण का केन्द्र भले बन जाएं, लेकिन यूपी के चुनावों में वो कोई कमाल दिखा पाएं, ये संभव नहीं दिखता.

अहमदाबाद से 'आज तक' संवाददाता गोपी मनियार की रिपोर्ट के मुताबिक 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में अब एक साल का वक्त रह गया है. गुजरात में पाटीदार 17 प्रतिशत हैं. लेकिन सौराष्ट्र, उत्तर गुजरात, दक्षिण गुजरात की राज्‍य की करीब 50 सीटों पर पाटीदार वोट हावी रहते हैं. अगर हार्दिक पटेल के जेल से बहार आने के बाद ये आंदोलन और तेज हुऐ तो बीजेपी को पाटीदारों की नाराजगी का भारी खामियाजा 2017 के विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है. हालांकि बीजेपी बार बार यही राग आलाप रही है कि हार्दिक को जेल से छुडाने में सरकार कि अहम भूमिका है. तो वही गुजरात कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी का कहना है कि जिन पाटीदारों ने बीजेपी को सत्ता में लाया उसी बीजेपी ने पाटीदारो को जेल में डाला है. हालांकि, इन सब आरोप प्रत्‍यारोप के बीच यह सस्‍पेंस बना ही हुआ है कि हार्दिक आने वाले छह महीने गुजरात से बाहर कहां गुजारेंगे. फिलहाल तो उनके समर्थक जेल से छूटने की कोशिश का जश्‍न मनाने की प्‍लानिंग में जुटे हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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