• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

Gujarat Elections 2022 में क्या हासिल कर पाएंगे ओवैसी?

    • बिजय कुमार
    • Updated: 09 मई, 2022 10:32 PM
  • 09 मई, 2022 10:32 PM
offline
दिसंबर 2022 में गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने हैं ऐसे में एआईएमआईएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने भी अपनी कमर कस ली है. ऐसे में सवाल ये है कि ओवैसी गुजरात के लिए साम दाम दंड भेद एक तो कर रहे हैं लेकिन बदले में वो क्या हासिल कर पाएंगे.

इस साल के आखिर में गुजरात विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है. वहीं चुनाव से पहले ऑलइंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी गुजरात में चुनावी गठबंधन के लिए नए दल की तलाश शुरू कर दी है क्योंकि एआईएमआईएम और भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के बीच आगामी विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन नहीं हो पाया है. हाल ही में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक रैली में कहा कि वह गुजरात के आदिवासियों के साथ खड़े हैं और राज्य में बदलाव लाने और गरीबों के जीवन में सुधार लाने के लिए भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के साथ काम करके खुश हैं. उन्होंने बीटीपी के नेताओं को उनको रैली में आमंत्रित करने के लिए बधाई भी दी. बता दें कि बीटीपी ने पिछले साल नर्मदा और भरुच जिला पंचायतों के चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन तोड़कर एआईएमआईएम से गठजोड़ किया था. 

बीटीपी का भरूच और नर्मदा जिलों में प्रभाव देखा जाता है. एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को लगता थाकि उनका बीटीपी के साथ गठजोड़ उन्हें गुजरात में फायदा दिलाएगा लेकिन अब बीटीपी के पाला बदलने से ओवैसी की मुश्किलें बढ़ गयी हैं और उन्हें प्रदेश में किसी और सहयोगी की तलाश है. वैसे बीटीपी जैसे सहयोगी का साथ छोड़ जाना ही नहीं बल्कि ओवैसी के लिए हाल में गुजरात से कुछ और परेशान करने वाले वाक़ये हुए हैं.

गुजरात में चुनाव होने हैं ऐसे में ओवैसी भी अपनी कमर कस चुके हैं और तमाम तरह की रणनीतियां बना रहे हैं

जैसे एआईएमआईएम को बड़ा झटका तब लगा जब पिछले महीने उनके प्रदेश उपाध्यक्ष शमशाद पठान ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष साबिर काबलीवाला के साथ अपने मतभेदों के चलते पार्टी से इस्तीफा दे दिया यही नहीं उसके बाद...

इस साल के आखिर में गुजरात विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है. वहीं चुनाव से पहले ऑलइंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी गुजरात में चुनावी गठबंधन के लिए नए दल की तलाश शुरू कर दी है क्योंकि एआईएमआईएम और भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के बीच आगामी विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन नहीं हो पाया है. हाल ही में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने एक रैली में कहा कि वह गुजरात के आदिवासियों के साथ खड़े हैं और राज्य में बदलाव लाने और गरीबों के जीवन में सुधार लाने के लिए भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के साथ काम करके खुश हैं. उन्होंने बीटीपी के नेताओं को उनको रैली में आमंत्रित करने के लिए बधाई भी दी. बता दें कि बीटीपी ने पिछले साल नर्मदा और भरुच जिला पंचायतों के चुनाव में कांग्रेस से गठबंधन तोड़कर एआईएमआईएम से गठजोड़ किया था. 

बीटीपी का भरूच और नर्मदा जिलों में प्रभाव देखा जाता है. एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी को लगता थाकि उनका बीटीपी के साथ गठजोड़ उन्हें गुजरात में फायदा दिलाएगा लेकिन अब बीटीपी के पाला बदलने से ओवैसी की मुश्किलें बढ़ गयी हैं और उन्हें प्रदेश में किसी और सहयोगी की तलाश है. वैसे बीटीपी जैसे सहयोगी का साथ छोड़ जाना ही नहीं बल्कि ओवैसी के लिए हाल में गुजरात से कुछ और परेशान करने वाले वाक़ये हुए हैं.

गुजरात में चुनाव होने हैं ऐसे में ओवैसी भी अपनी कमर कस चुके हैं और तमाम तरह की रणनीतियां बना रहे हैं

जैसे एआईएमआईएम को बड़ा झटका तब लगा जब पिछले महीने उनके प्रदेश उपाध्यक्ष शमशाद पठान ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष साबिर काबलीवाला के साथ अपने मतभेदों के चलते पार्टी से इस्तीफा दे दिया यही नहीं उसके बाद करीब 20 और पदाधिकारियों ने भी पार्टी छोड़ दी है. इससे पहले पिछले महीने असदुद्दीन ओवैसी को अपने गुजरात दौरे के दौरान विरोध का भी सामना करना पड़ा था. बता दें कि ओवैसी जब अपना कार्यक्रम खत्म कर इफ्तार के लिए जा रहे थे, कुछ प्रदर्शनकारियों ने बीच में ही उनका काफिला रोक दिया और उन्हें काले झंडे दिखाए गए.

प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे कि 'ओवैसी वापस जाओ'. काफी देर तक ओवैसी का काफिला बीच सड़क पर रुका रहा. वैसे ये कोई पहली बार नहीं था जब ओवैसी का इस तरह से विरोध किया गया हो. उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान तो उनकी गाड़ी पर गोली तक चला दी गई थी. असदुद्दीन ओवैसी ने उत्तर प्रदेश में बाबू सिंह कुशवाहा और भारत मुक्ति मोर्चा के साथ गठबंधन का ऐलान किया था उन्होंने प्रदेश में दलित और ओबीसी वोट बैंक को मुसलमान के साथ लाकर एक नया राजनीतिक समीकरण बनाने की कोशिश की थी जो नतीजों में नाकाम साबित हुई.

बिहार में उन्होंने बीएसपी और आरएलएसपी के साथ मिलकर नया फ्रंट बनाया था. बता दें कि एआईएमआईएम का हैदराबाद और उसके आसपास के इलाकों में काफी प्रभाव है. मुस्लिम बहुल हैदराबाद में, अन्य मुस्लिम संगठनों या कांग्रेस, टीडीपी, टीआरएस और सीपीआई जैसे राष्ट्रीय दलों सहित कोई भी पार्टी एआईएमआईएम के गढ़ में सेंध लगाने में सक्षम नहीं हो पायी हैं. पार्टी पिछले कई दशकों से सात विधानसभा सीटों और एक एमपीसीट (हैदराबाद) पर चुनाव लड़ रही है, और सभी अवसरों पर विजयी रही है.

ओवैसी मुसलमान आबादी से अपना राजनीतिक नेतृत्व बनाने की बात कहते है. दरअसल ओवैसी लगातार बीजेपी विरोधी उन दलों पर हमलावर रहे हैं जो खुद को मुसलमानों का सच्चा हितैषी और धमनिरपेक्ष बताते हैं. ओवैसी का कहना हैकि ऐसे दल मुसलमानों के बीच बीजेपी और संघ परिवारका खौफ दिखाकर उनका सियासी तौर पर शोषण करते हैं. पिछले कुछ सालों से ओवैसी अपनी पार्टी आक्रामक तरीके से पैन इंडिया पार्टी बनाने में लगे हुए हैं.

इस दौरान उनकी पार्टी ने तेलंगना से बाहर कई राज्यों में विधान सभा चुनावों में हिस्सा लिया है. वर्तमान में एआईएमआईएम के कुल दो लोकसभा सदस्य हैं एक तो खुद असदुद्दीन ओवैसी जो हैदराबाद से सांसद हैं तो वहीँ दूसरे सांसद हैं इम्तियाज जलील जो 2019 लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र के औरंगाबाद से जीते थे. तो वहीँ मौजूदा वक़्त में एआईएमआईएम के कुल 14 विधायक हैं. जिनमें तेलंगाना से 7, बिहार से 5 और महाराष्ट्र से 2 शामिल हैं.

आईये एक नजर डालते हैं एआईएमआईएम के विधानसभा चुनावों में हाल के प्रदर्शन पर:

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव (2022 और 2017)

2022 में एआईएमआईएम ने 97 सीटों पर चुनाव लड़ा और एक भी नहीं जीत पाई. पार्टी का वोट शेयर 0.49% प्रतिशत रहा. पार्टी ने 2017 में 38 सीटों पर चुनाव लड़ा, उसका कोई भी प्रत्याशी जीतने में कामयाब नहीं हो पाया. पार्टी का वोट शेयर 0.24 प्रतिशत था.

पश्चिम बंगाल (2021)

सीटों पर चुनाव लड़ा: 6

सीटें जीती: 0

वोटशेयर: 0.02%

तमिलनाडु (2021)

सीटों पर चुनाव लड़ा: 3

सीटें जीती: 0

वोट शेयर: 0.01%

बिहार (2020)

सीटों पर चुनाव लड़ा: 20

सीटें जीती: 5

वोट शेयर: 1.24%

महाराष्ट्र (2019)

सीटों पर चुनाव लड़ा:: 44

सीटें जीती: 2

वोटशेयर: 1.34%

तेलंगाना (2018)

सीटों पर चुनाव लड़ा: 8

सीटें जीती: 7

वोट शेयर: 2.71%

ये भी पढ़ें -

राज ठाकरे की भी आ सकती है बारी, अगर पवार के दबाव में आ गये उद्धव ठाकरे

लाउडस्पीकर से परेशानी क्या है? कभी मुस्लिम मुहल्लों में रमजान में सोकर तो देखिये!

ममता के बहाने सही, अमित शाह के निशाने पर नीतीश कुमार जैसे नेता भी हैं 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲