• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

राजनीति में पलटी बाज़ी: तब पासा देवेगौड़ा के हाथ था और आज वजुभाई के...

    • गोपी मनियार
    • Updated: 16 मई, 2018 07:25 PM
  • 16 मई, 2018 07:25 PM
offline
गुजरात में 1996-97 में पहली बार शंकरसिंह वाघेला, केशुभाई पटेल वाली गठबंधंन की सरकार का मामला और अभी का मामला कुछ ज्यादा बदला नहीं है. खेल अब भी वही है.

कर्नाटक में चुनाव के बाद अब राजनैतिक बवंडर के हालात पैदा हुए हैं. किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने पर कांग्रेस और एच.डी. देवेगौड़ा की पार्टी जेडी(एस) गठबंधंन की नीति अपना रही है, तो वहीं बीजेपी अकेले ही बहुमत साबित करने का दावा कर रही है. इस बीच में पूरा मामला कर्नाटक के राज्यपाल के पाले में फंसा पड़ा है. राज्यपाल वजुभाई वाला किस राजनैतिक पार्टी को सरकार बनाने का दावा पेश करने का निमंत्रण देते हैं, उस पर निगाहें टिकी हुई हैं. वजुभाई के लिए कहा जाता है कि जब-जब गुजरात में बीजेपी सकंट में आई है वो संकट मोचन बनकर उभरे हैं.

वजुभाई को बीजेपी का संकट मोचन इस लिए भी कहा जाता था कि ना सिर्फ राजनैतिक बंवडर बल्की आम जनता की परेशानी को भी सुलझाने में वो काफी माहिर थे. इसकी एक झलक तब भी देखने को मिलती है जब शंकरसिंह वाघेला ने बग़ावत की थी और वजुभाई राजकोट के मेयर थे. राजकोट के पानी के संकट को दूर करने के लिए वजुभाई ने ट्रेनों का जुगाड़ कर पानी मंगवाया था.

1996 गुजरात चुनाव की स्थिती अब कर्नाटक चुनाव में उलट गई है

गुजरात और कर्नाटक: वजुभाई और देवेगौड़ा का युद्ध पुराना है..

गुजरात में 1996-97 में पहली बार शंकरसिंह वाघेला, केशुभाई पटेल वाली गठबंधंन की सरकार का मामला और अभी का मामला कुछ ज्यादा बदला नहीं है. खेल अब भी वही है. 1996 में जब वजुभाई वाला गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे और देवेगौड़ा प्रधानमंत्री. तब गुजरात शासित सुरेश मेहता की सरकार को विश्वासमत हासिल करना था, लेकिन उस समय विधानसभा में बहुमत हासिल करने के बाद भी कांग्रेस पार्टी से संबंध रखने वाले तत्कालीन राज्यपाल कृष्णपाल सिंह ने गुजरात में संवैधानिक संकट की घोषणा कर दी थी. ये फैसला एचडी देवेगौड़ा सरकार के समय लिया गया था और प्रधानमंत्री...

कर्नाटक में चुनाव के बाद अब राजनैतिक बवंडर के हालात पैदा हुए हैं. किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने पर कांग्रेस और एच.डी. देवेगौड़ा की पार्टी जेडी(एस) गठबंधंन की नीति अपना रही है, तो वहीं बीजेपी अकेले ही बहुमत साबित करने का दावा कर रही है. इस बीच में पूरा मामला कर्नाटक के राज्यपाल के पाले में फंसा पड़ा है. राज्यपाल वजुभाई वाला किस राजनैतिक पार्टी को सरकार बनाने का दावा पेश करने का निमंत्रण देते हैं, उस पर निगाहें टिकी हुई हैं. वजुभाई के लिए कहा जाता है कि जब-जब गुजरात में बीजेपी सकंट में आई है वो संकट मोचन बनकर उभरे हैं.

वजुभाई को बीजेपी का संकट मोचन इस लिए भी कहा जाता था कि ना सिर्फ राजनैतिक बंवडर बल्की आम जनता की परेशानी को भी सुलझाने में वो काफी माहिर थे. इसकी एक झलक तब भी देखने को मिलती है जब शंकरसिंह वाघेला ने बग़ावत की थी और वजुभाई राजकोट के मेयर थे. राजकोट के पानी के संकट को दूर करने के लिए वजुभाई ने ट्रेनों का जुगाड़ कर पानी मंगवाया था.

1996 गुजरात चुनाव की स्थिती अब कर्नाटक चुनाव में उलट गई है

गुजरात और कर्नाटक: वजुभाई और देवेगौड़ा का युद्ध पुराना है..

गुजरात में 1996-97 में पहली बार शंकरसिंह वाघेला, केशुभाई पटेल वाली गठबंधंन की सरकार का मामला और अभी का मामला कुछ ज्यादा बदला नहीं है. खेल अब भी वही है. 1996 में जब वजुभाई वाला गुजरात भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष थे और देवेगौड़ा प्रधानमंत्री. तब गुजरात शासित सुरेश मेहता की सरकार को विश्वासमत हासिल करना था, लेकिन उस समय विधानसभा में बहुमत हासिल करने के बाद भी कांग्रेस पार्टी से संबंध रखने वाले तत्कालीन राज्यपाल कृष्णपाल सिंह ने गुजरात में संवैधानिक संकट की घोषणा कर दी थी. ये फैसला एचडी देवेगौड़ा सरकार के समय लिया गया था और प्रधानमंत्री (तत्कालीन देवेगौड़ा) ने उसपर मोहर लगाकर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था.

आज 22 साल बाद दोनों किरदार वही हैं. वही वजुभाई वाला और वही एच डी देवेगौड़ा. बस पार्टी अलग है और दोनों की स्थिति‍ उलट गई है. इस बार बाज़ी वजुभाई वाला के हाथों में हैं.

कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला वैसे तो गुजराती हैं और भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन उनका राजनैतिक गठजोड़ अलग रहा है. 79 साल के वजुभाई ने अपना सफर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से शुरू किया था और आज कर्नाटक राज्य के राज्यपाल के तौर पर हैं. राजकोट में 1939 में जन्मे वजुभाई पहले तो आरएसएस के जनसंघ का हिस्सा बने और फिर भाजपा का.

1950 में जब संघ एक सामान्य दल हुआ करता था तब वजुभाई वाला संघ की मीटिंग में चटाइयां, कंबल और कालीन उठाया करते थे. लेकिन आज वजुभाई का परिवार जिसमें दो बेटियां, दो बेटे और पांच नाती-पोते हैं कर्नाटक के एक समृद्ध और बड़े निर्माण व्यापारी हैं.

वजुभाई का राजनैतिक जीवन 6 दशक पुराना है. वजुभाई गुजरात के कारडिया राजपूत हैं जो ओबीसी में आते हैं. उनकी जनता में पकड़ का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2001 में वजुभाई ने अपने चुनावक्षेत्र राजकोट वेस्ट से इस्तीफा दे दिया था और आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उस सीट से चुनाव लड़ने का मौका दिया था. जहां वो भारी बहुमत से जीते थे. इसके बाद 2002 में वही सीट वजुभाई को वापस दे दी गई और वो 2002 से लेकर 2012 तक वहीं से विधायक रहे. 2014 में उनके कर्नाटक के राज्यपाल बनने के बाद इस सीट से विजय रूपाणी लड़े और उन्हें पहले मंत्री बनाया गया और फिर आनंदीबेन पटेल को हटाए जाने के बाद मुख्यमंत्री.

गुजरात के 14 साल तक वित्तमंत्री रहे वजुभाई के पास राज्य में 18 बार बजट पेश करने का रिकॉर्ड भी है. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्य में वजुभाई का मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा था क्योंकि उस समय वो गुजरात के सबसे वरिष्ठ नेता थे. हालांकि, नरेंद्र मोदी चाहते थे कि आनंदीबेन मुख्यमंत्री बनें और कर्नाटक के राज्यपाल के तौर पर वजुभाई को लाया गया ताकि दक्षिण भारत में भाजपा की पकड़ मजबूत बन पाए. वजुभाई के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह दक्षिण भारतीय राज्यों की आंतरिक राजनैतिक उलटफेर को देखना चाहते थे और हां इसी बीच वजुभाई का मुख्यमंत्री बनने का सपना सिर्फ सपना ही रह गया. उन्होंने इस प्रसंग को सिर्फ भाग्य कहकर छोड़ दिया.

ये भी पढ़ें-

कर्नाटक के नतीजों ने राहुल गांधी और कांग्रेस की पोल खोल दी

राहुल गांधी 'एक्टर' तो बन गए लेकिन 'डायरेक्टर' बनने में अभी वक्त लगेगा


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲