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अमरनाथ हमला सरकार की नाकामी का नतीजा है, जिसे वह बखूबी छुपा गई !

    • माजिद हैदरी
    • Updated: 12 जुलाई, 2017 09:57 PM
  • 12 जुलाई, 2017 09:57 PM
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आतंकवादी हमले को रोक नहीं पाने की अपनी नाकामी को छिपाने की कोशिश में सरकार कई तरह के हथकंडे अपना रही है. इस क्रम में सरकार ने ये तक कह दिया कि तीर्थयात्रियों ने दिशानिर्देशों का पालन नहीं किया.

अपनी हसीन वादियों और खुबसूरत नजारों के लिए मशहूर कश्मीर में हो रहे खून-खराबे की जितनी निंदा की जाए वो कम है. माना जाता है कि सदियों पहले इसी घाटी में बूटा मलिक नाम के एक मुस्लिम चरवाहे ने भगवान शिव की गुफा की खोज की थी. इसके बाद से ही सालाना अमरनाथ यात्रा का रास्ता खुला.

10 जुलाई को यात्रा पूरी करके लौट रहे तीर्थयात्रियों से भरी बस पर अनंतनाग के पास बोटेंगो गांव में आतंकी हमला हुआ, जिसमें गुजरात के सात यात्री मारे गए और 14 अन्य घायल हो गए. बस पर बाइक सवार आतंकियों ने हमला किया था. कश्मीर रेंज के आईजीपी सरदार मुनीर अहमद खान के मुताबिक, आतंकवादी हमला लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किया गया था और इस हमले का मास्टरमाइंड पाकिस्तानी आतंकवादी अबू इस्माइल है.

आतंकवादी हमले को रोक नहीं पाने की अपनी नाकामी को छिपाने की कोशिश में सरकार कई तरह के हथकंडे अपना रही है. इस क्रम में सरकार ने ये तक कह दिया कि तीर्थयात्रियों ने दिशा निर्देशों और एसओपी (standard operating operations) का उल्लंघन किया जिसकी वजह से ये घटना होना निश्चित थी.

ये कायरता भूलेंगे नहीं

पुलिस के मुताबिक, बस जम्मू के रास्ते पर थी और काफिले का हिस्सा नहीं थी. अधिकारियों का कहना है कि बस अमरनाथजी श्राइन बोर्ड के साथ पंजीकृत नहीं थी और यात्रा करने की अनुमति की समय सीमा समाप्‍त होने के बाद भी सफर कर रही थी जिसकी वजह से उनके पास पर्याप्त सुरक्षा नहीं थी. अगर इस बात को मान भी लिया जाए तो आखिर सरकार ने कैसे 'अपंजीकृत' तीर्थयात्रियों को दर्शन के लिए जाने की अनुमति दे दी और वह भी तब जब खुफिया एजेंसियों ने आतंकवादी हमले की चेतावनी पहले ही दे दी थी?

क्या ये सरकार की खामी नहीं थी जिसने मुसीबत को दावत दी थी? क्या सुरक्षा तंत्र इतना कमजोर था कि कोई भी बिना रेजिस्ट्रेशन के...

अपनी हसीन वादियों और खुबसूरत नजारों के लिए मशहूर कश्मीर में हो रहे खून-खराबे की जितनी निंदा की जाए वो कम है. माना जाता है कि सदियों पहले इसी घाटी में बूटा मलिक नाम के एक मुस्लिम चरवाहे ने भगवान शिव की गुफा की खोज की थी. इसके बाद से ही सालाना अमरनाथ यात्रा का रास्ता खुला.

10 जुलाई को यात्रा पूरी करके लौट रहे तीर्थयात्रियों से भरी बस पर अनंतनाग के पास बोटेंगो गांव में आतंकी हमला हुआ, जिसमें गुजरात के सात यात्री मारे गए और 14 अन्य घायल हो गए. बस पर बाइक सवार आतंकियों ने हमला किया था. कश्मीर रेंज के आईजीपी सरदार मुनीर अहमद खान के मुताबिक, आतंकवादी हमला लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किया गया था और इस हमले का मास्टरमाइंड पाकिस्तानी आतंकवादी अबू इस्माइल है.

आतंकवादी हमले को रोक नहीं पाने की अपनी नाकामी को छिपाने की कोशिश में सरकार कई तरह के हथकंडे अपना रही है. इस क्रम में सरकार ने ये तक कह दिया कि तीर्थयात्रियों ने दिशा निर्देशों और एसओपी (standard operating operations) का उल्लंघन किया जिसकी वजह से ये घटना होना निश्चित थी.

ये कायरता भूलेंगे नहीं

पुलिस के मुताबिक, बस जम्मू के रास्ते पर थी और काफिले का हिस्सा नहीं थी. अधिकारियों का कहना है कि बस अमरनाथजी श्राइन बोर्ड के साथ पंजीकृत नहीं थी और यात्रा करने की अनुमति की समय सीमा समाप्‍त होने के बाद भी सफर कर रही थी जिसकी वजह से उनके पास पर्याप्त सुरक्षा नहीं थी. अगर इस बात को मान भी लिया जाए तो आखिर सरकार ने कैसे 'अपंजीकृत' तीर्थयात्रियों को दर्शन के लिए जाने की अनुमति दे दी और वह भी तब जब खुफिया एजेंसियों ने आतंकवादी हमले की चेतावनी पहले ही दे दी थी?

क्या ये सरकार की खामी नहीं थी जिसने मुसीबत को दावत दी थी? क्या सुरक्षा तंत्र इतना कमजोर था कि कोई भी बिना रेजिस्ट्रेशन के तीर्थयात्रियों ने बगैर किसी चेकिंग के गुफा तक की यात्रा कर ली? और अगर खुफिया एजेंसियों ने इलाके में आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में विश्वसनीय जानकारी दी थी, तो समय रहते ही इलाके की सुरक्षा पर्याप्त रूप से क्यों नहीं बढ़ाया गया था?

क्या हमारे यहां के सुरक्षा बंदोबस्त भी सोलर एनर्जी से चलते हैं जिसके कारण तीर्थयात्रियों को अंधेरे में यात्रा करने से मना कर दिया गया और जिन्होंने की वो मौत की आगोश में समा गए.

इसके अलावा चलिए ये मान लेते हैं कि तीर्थयात्रियों को मंदिर मंडल के साथ रजिस्टर नहीं किया गया था. लेकिन तो क्या इसका ये मतलब हुआ कि कश्मीर आने वाले पर्यटकों को पूरे इत्मीनान से मार डाला जा सकता है और सरकार अपनी जिम्मेदारियों से यात्रियों के घूमने के समय का हवाला देते हुए पल्ला झाड़ सकती है?

हमले का सिर्फ एक सीधा सा संदेश है. कश्मीर में जहां एक साल से भी अधिक समय से माहौल तनावपूर्ण है, वहां खुले में घूमना खतरे से भरा है. यहां तक ​​कि मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के गृह जिले में भी जनता असुरक्षित है.

महबूबा मुफ्ती के सूचना विभाग ने कहा- 'महबूबा ने रात भर अनंतनाग में बचाव कार्यों को निरीक्षण किया; घायल पर्यटकों से मिलीं, फंसे हुए यात्रियों को आश्वस्त किया; मारे गए यात्रियों को श्रद्धांजलि अर्पित किया.'

सरकार की नाकामी ने ले ली जान

प्रभावित तीर्थयात्रियों के लिए महबूबा ने वही किया जो वो अपने विपक्ष में होने के समय से करती आ रही हैं. मारे गए लोगों से एक "रुदली" मिली. महबूबा ने मुख्यमंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद से कश्मीर में तबाही और संकट की विडंबना यह है कि पीडीपी की प्रमुख सहयोगी केंद्र में स्थापित भाजपा सरकार लगातार मिलती विफलताओं के बावजूद महबूबा पर अपना भरोसा जाहिर कर रही है.

जिस घटना को नई दिल्ली द्वारा "मात्र एक सुरक्षा में खामी" की तरह देखा जा रहा है, वास्तव में वो सरकार की ओर से एक आपराधिक लापरवाही है. लेकिन ऐसा लगता है कि बीजेपी को सिर्फ उस राज्य में सत्ता में रहने मतलब है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी या महबूबा मुफ्ती की श्रद्धांजलियों से मारे गए निर्दोष लोगों की जान वापस नहीं आ सकती. लेकिन आने वाले समय में इस त्रासदी का भूत देश को सताता रहेगा.

मुस्लिम वर्चस्व वाले कश्मीर में हिंदू यात्रियों पर हमले का तत्काल संभावित नतीजा, सांप्रदायिक ताकतों द्वारा घाटी के बाहर रहने वाले कश्मीरी मुसलमानों पर हमले के रुप में सामने आ सकता है. अभी के समय में तनाव बढ़ने के बाद सांप्रदायिक हिंसा के कभी भी भड़क उठने की संभावना है. आतंक का कोई धर्म नहीं होता और आतंकवादियों को काम है हमला करना. अगर केंद्रीय गृह मंत्रालय उनसे ये अपेक्षा कर रहा है कि गुफा के मार्ग में वो आतंकवादी गोलियों की जगह फूलों की बारिश करेंगे तो ये उनका पागलपन है.

पिछले तीस सालों में कश्मीर में सशस्त्र आतंकवाद के साए में अमरनाथ यात्रा का राजनीतिकरण होता आया है. और इसकी कीमत मनुष्यों और घाटी के इकोसिस्टम ने चुकाई है. मूल रूप से और परंपरागत रूप से सन् 2000 में श्री अमरनाथजी श्राइन बोर्ड द्वारा यात्रा का प्रशासन हाथ में लेने के पहले इसमें सिर्फ 15 दिन या एक महीने का ही समय लगता था.

2005 में बोर्ड ने तीर्थ यात्रा को विस्तार देकर दो महीनों तक का करने का निर्णय लिया. यात्रा की बढ़ी हुई अवधि, बढ़े हुए लागत के साथ आता है, जहां सरकार तीर्थयात्रियों को बुनियादी सुविधाएं भी प्रदान करने में असमर्थ है. अब इसे भाग्य कहें या फिर संयोग लेकिन तीर्थयात्रियों पर हमले के कुछ घंटे पहले ही राज्यपाल एन.एन. वोहरा ने यात्रा व्यवस्था की समीक्षा करते हुए मृतकों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई थी.

विज्ञप्ति में कहा गया था- '10 जुलाई को राजभवन द्वारा जारी एक विज्ञप्ति में गर्वनर को बताया गया था कि 29 जून को शुरु हए यात्रा में उस तारीख तक 14 लोगों की मृत्यु हो चुकी थी. इन 14 लोगों में 2 की मौत एक्सिडेंट में हुई जबकि बाकी 12 विभिन्न स्वास्थ्य कारणों से मरे.'

एक मुस्लिम चरवाहे द्वारा खोजी गई जिस जगह को पवित्र और हिंदुओं के लिए वरदान माना जा रहा था वही अब गंदी राजनीति और घिनौने आतंकवाद का शिकार बन रही है. घाव भले ही भर जाएंगे लेकिन आम नागरिकों के खून से सनी सड़कों सालों तक अपनी त्रासदी बयान करती रहेंगी. और चीख-चीख कर इस बात की गवाही देगी कि सरकार ने बड़ी ही बेशर्मी से लोगों को सुरक्षा प्रदान करने में अपनी नाकामी को छिपाया.

( DailyO से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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