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अब निष्पक्ष चुनाव के आड़े नहीं आएंगे गूगल, फेसबुक और ट्विटर

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 01 अक्टूबर, 2018 05:35 PM
  • 01 अक्टूबर, 2018 05:35 PM
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सोशल मीडिया की वजह से चुनाव प्रचार को चुनाव के दो दिन पहले रोकना काफी मुश्किल हो गया था, जिसकी वजह से निष्पक्ष चुनाव नहीं हो पा रहे थे. लेकिन अब चुनाव आयोग को फेसबुक, गूगल और ट्विटर की तरफ से एक आश्वासन मिला है.

बदलता वक्त, तेजी से बदलती तकनीक, हर हाथ में पहुंचता स्मार्टफोन और दिन पर दिन सस्ता होता इंटरनेट. इन सभी के चलते आज के दौर में सोशल मीडिया एक बड़ी ताकत बन चुका है. इसकी ताकत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अब चुनाव से दो दिन पहले सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार को रोक दिया जाएगा. क्योंकि चुनाव प्रचार को चुनाव से दो दिन पहले रोके जाने के बावजूद इन प्लेटफॉर्म पर प्रचार धड़ल्ले से चलता था. लेकिन अब गूगल, फेसबुक और ट्विटर ने चुनाव आयोग को इसे रोकने को लेकर आश्वासन दे दिया है. अब चुनाव से 48 घंटे पहले इन प्लेटफॉर्म पर ऐसी किसी भी चीज को फैलने से रोका जाएगा, जो समान अवसर दिए जाने की प्रक्रिया पर उल्टा असर पड़े.

सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार के ना रुकने की वजह से निष्पक्ष चुनाव नहीं हो पाते थे.

चुनाव आयोग के प्रमुख ओपी रावत ने कहा है कि कर्नाटक चुनाव के दौरान इसकी टेस्टिंग भी की जा चुकी है. तब इसे काफी छोटे स्तर पर किया गया था, लेकिन लोकसभा से पहले होने वाले चार राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के चुनावों में इसे बड़े स्तर पर लागू किया जाएगा. आपको बता दें कि इन चारों राज्यों के चुनाव इसी साल के अंत तक होने हैं और अगले ही साल लोकसभा चुनाव भी हैं. अगर इन चारों राज्यों के चुनाव में गूगल, फेसबुक और ट्विटर अपना आश्वासन पूरा करने में सफल रहे तो लोकसभा चुनाव समेत सभी चुनावों में इसे लागू किया जाएगा.

क्या है इसकी जरूरत?

चुनाव से दो दिन पहले चुनाव प्रचार पर रोक तो लगा दी जाती है, लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में लोग वहां पर चुनाव के दिन तक लगातार प्रचार करते रहते थे. चुनाव से पहले प्रचार बंद करने का मकसद ये होता है कि कोई पार्टी मतदाओं को लुभा कर उनका मन ना बदल सके, लेकिन सोशल मीडिया पर ये काम खूब होता था. लेकिन अब ऐसा लगता...

बदलता वक्त, तेजी से बदलती तकनीक, हर हाथ में पहुंचता स्मार्टफोन और दिन पर दिन सस्ता होता इंटरनेट. इन सभी के चलते आज के दौर में सोशल मीडिया एक बड़ी ताकत बन चुका है. इसकी ताकत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि अब चुनाव से दो दिन पहले सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार को रोक दिया जाएगा. क्योंकि चुनाव प्रचार को चुनाव से दो दिन पहले रोके जाने के बावजूद इन प्लेटफॉर्म पर प्रचार धड़ल्ले से चलता था. लेकिन अब गूगल, फेसबुक और ट्विटर ने चुनाव आयोग को इसे रोकने को लेकर आश्वासन दे दिया है. अब चुनाव से 48 घंटे पहले इन प्लेटफॉर्म पर ऐसी किसी भी चीज को फैलने से रोका जाएगा, जो समान अवसर दिए जाने की प्रक्रिया पर उल्टा असर पड़े.

सोशल मीडिया पर चुनाव प्रचार के ना रुकने की वजह से निष्पक्ष चुनाव नहीं हो पाते थे.

चुनाव आयोग के प्रमुख ओपी रावत ने कहा है कि कर्नाटक चुनाव के दौरान इसकी टेस्टिंग भी की जा चुकी है. तब इसे काफी छोटे स्तर पर किया गया था, लेकिन लोकसभा से पहले होने वाले चार राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के चुनावों में इसे बड़े स्तर पर लागू किया जाएगा. आपको बता दें कि इन चारों राज्यों के चुनाव इसी साल के अंत तक होने हैं और अगले ही साल लोकसभा चुनाव भी हैं. अगर इन चारों राज्यों के चुनाव में गूगल, फेसबुक और ट्विटर अपना आश्वासन पूरा करने में सफल रहे तो लोकसभा चुनाव समेत सभी चुनावों में इसे लागू किया जाएगा.

क्या है इसकी जरूरत?

चुनाव से दो दिन पहले चुनाव प्रचार पर रोक तो लगा दी जाती है, लेकिन सोशल मीडिया के जमाने में लोग वहां पर चुनाव के दिन तक लगातार प्रचार करते रहते थे. चुनाव से पहले प्रचार बंद करने का मकसद ये होता है कि कोई पार्टी मतदाओं को लुभा कर उनका मन ना बदल सके, लेकिन सोशल मीडिया पर ये काम खूब होता था. लेकिन अब ऐसा लगता है कि ये सब नहीं चलेगा, क्योंकि गूगल, फेसबुक और ट्विटर ने तो चुनाव आयोग को इस बात का आश्वासन भी दे दिया है.

यानी इस बार होने वाले विधानसभा चुनावों में कोई भी पार्टी चुनाव से दो दिन पहले ही प्रचार बंद कर देगी. किसी भी हालत में कोई पार्टी इस दौरान चुनाव प्रचार नहीं कर सकेगी. क्योंकि सोशल मीडिया ही एक जरिया था, जिससे ये सब होता था, लेकिन अब वो भी नहीं हो सकेगा. इन तीनों प्लेटफॉर्म ने चुनाव आयोग को इस बात का भी आश्वासन दिया है कि वह फेक न्यूज को रोकने में मदद करेंगे.

गूगल, फेसबुक और ट्विटर पर तो चुनाव प्रचार बंद हो जाएगा, लेकिन वाट्सऐप का क्या. जिसका किसी भी मैसेज को वायरल करने में सबसे अहम योगदान होता है. पिछले दिनों में वाट्सऐप की वजह से ही कई बार मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएं भी हो गई हैं. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि वाट्सऐप पर फैलने वाली फेक न्यूज और चुनाव प्रचार पर लगाम कैसे लगेगी, क्योंकि ये बेहद मुश्किल है. खैर, अगर गूगल, फेसबुक और ट्विटर पर भी चुनाव से पहले चुनाव प्रचार पूरी तरह से रुक जाए तो निष्पक्ष चुनाव कराने में काफी हद तक सफलता मिल सकेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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