• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

हैदराबाद चुनाव में BJP के लिए हार-जीत नहीं, पॉलिटिकल मैसेज देना अहम है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 04 दिसम्बर, 2020 06:56 PM
  • 04 दिसम्बर, 2020 06:56 PM
offline
हैदराबाद चुनाव (GHMC Election Results) में क्या होने वाला है भाजपा (BJP) नेतृत्व को पहले ही पता होगा ही! वो तो 'हैदराबाद बनाम भाग्यनगर' (Bhagyanagar) की बहस को आगे बढ़ा कर पश्चिम बंगाल से तमिलनाडु तक एक संदेश पहुंचाना था - और 'मैसेज डिलीवर्ड'!

हैदराबाद से रुझान (GHMC Election Results) वही आ रहे हैं जिसकी बीजेपी नेतृत्व (BJP) को भी पहले से ही अपेक्षा रही होगी. बीजेपी को हैदराबाद के नतीजों से बिहार जैसा मतलब तो कतई नहीं रहा होगा - हां, आगे 2021 में पश्चिम बंगाल से उससे भी कहीं ज्यादा मतलब हो सकता है. बीजेपी नेता अमित शाह निश्चित तौर पर चाहते होंगे कि बिहार चुनाव का जोश किसी भी सूरत में ठंडा न पड़े - क्योंकि पश्चिम बंगाल में थोड़ा वक्त तो है ही. माहौल तो बन चुका है और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेकर दिलीप घोष की फिसली जबान मचल मचल कर सबूत भी दे रही है - लेकिन मोर्चे पर गुरिल्ला युद्ध लड़ने वालों के लिए एक वॉर्म-अप सेशन तो हमेशा ही चाहिये होता है - और हैदराबाद के साथ ये मौका भी रहा और बीजेपी के चुनाव दर्शन में तो ये दस्तूर है ही. जब पंचायत से पार्लियामेंट तक जैसी बड़ी मंजिल हो तो ऐसे छोटे मोटे काम तो करने ही पड़ते हैं.

हैदराबाद की सियासी तफरीह का एक मकसद भाग्यनगर (Bhagyanagar) की बहस को भी आगे बढ़ाना भी लगता है. 'हैदराबाद बनाम भाग्यनगर' विमर्श भी लव-जिहाद का एक एक्सटेंशन ही समझा जाना चाहिये - दरअसल, बीजेपी हैदराबाद से दक्षिणायन होकर भाग्योदय सुनिश्चित करना चाहती है.

मंजिल पश्चिम बंगाल - और हैदराबाद हॉल्ट

तत्काल फायदे के बारे सेहत के मामलों में ही ठीक रहता है, सियासत के मामलों में नहीं. सियासत में दूर का फायदा हो, ये सबसे जरूरी होता है और मौके का फायदा उठाना तो उससे भी कहीं ज्यादा जरूरी होता है.

हैदराबाद नगर निगम के लिए वोटिंग 1 दिसंबर को हुई थी और उससे कुछ ही दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री और सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह चेन्रई के दौरे पर गये थे. अमित शाह का ये दौरा तो सरकारी था, लेकिन ऐन उसी वक्त उसकी राजनीतिक अहमियत भी रही. अमित शाह के पहुंचने से लेकर वहां से निकलने तक मुख्यमंत्री ई. पलानीसामी और डिप्टी सीएम ओ. पनीरसेल्वम एक पैर पर खड़े देखे गये.

अमित शाह के चेन्नई दौरे पर निकलने से पहले से ही सुपर स्टार रजनीकांत से उनकी मुलाकात के कयास...

हैदराबाद से रुझान (GHMC Election Results) वही आ रहे हैं जिसकी बीजेपी नेतृत्व (BJP) को भी पहले से ही अपेक्षा रही होगी. बीजेपी को हैदराबाद के नतीजों से बिहार जैसा मतलब तो कतई नहीं रहा होगा - हां, आगे 2021 में पश्चिम बंगाल से उससे भी कहीं ज्यादा मतलब हो सकता है. बीजेपी नेता अमित शाह निश्चित तौर पर चाहते होंगे कि बिहार चुनाव का जोश किसी भी सूरत में ठंडा न पड़े - क्योंकि पश्चिम बंगाल में थोड़ा वक्त तो है ही. माहौल तो बन चुका है और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को लेकर दिलीप घोष की फिसली जबान मचल मचल कर सबूत भी दे रही है - लेकिन मोर्चे पर गुरिल्ला युद्ध लड़ने वालों के लिए एक वॉर्म-अप सेशन तो हमेशा ही चाहिये होता है - और हैदराबाद के साथ ये मौका भी रहा और बीजेपी के चुनाव दर्शन में तो ये दस्तूर है ही. जब पंचायत से पार्लियामेंट तक जैसी बड़ी मंजिल हो तो ऐसे छोटे मोटे काम तो करने ही पड़ते हैं.

हैदराबाद की सियासी तफरीह का एक मकसद भाग्यनगर (Bhagyanagar) की बहस को भी आगे बढ़ाना भी लगता है. 'हैदराबाद बनाम भाग्यनगर' विमर्श भी लव-जिहाद का एक एक्सटेंशन ही समझा जाना चाहिये - दरअसल, बीजेपी हैदराबाद से दक्षिणायन होकर भाग्योदय सुनिश्चित करना चाहती है.

मंजिल पश्चिम बंगाल - और हैदराबाद हॉल्ट

तत्काल फायदे के बारे सेहत के मामलों में ही ठीक रहता है, सियासत के मामलों में नहीं. सियासत में दूर का फायदा हो, ये सबसे जरूरी होता है और मौके का फायदा उठाना तो उससे भी कहीं ज्यादा जरूरी होता है.

हैदराबाद नगर निगम के लिए वोटिंग 1 दिसंबर को हुई थी और उससे कुछ ही दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री और सीनियर बीजेपी नेता अमित शाह चेन्रई के दौरे पर गये थे. अमित शाह का ये दौरा तो सरकारी था, लेकिन ऐन उसी वक्त उसकी राजनीतिक अहमियत भी रही. अमित शाह के पहुंचने से लेकर वहां से निकलने तक मुख्यमंत्री ई. पलानीसामी और डिप्टी सीएम ओ. पनीरसेल्वम एक पैर पर खड़े देखे गये.

अमित शाह के चेन्नई दौरे पर निकलने से पहले से ही सुपर स्टार रजनीकांत से उनकी मुलाकात के कयास लगाये जा रहे थे और वो तमिलनाडु में बीजेपी के पांव जमाने में सबसे बड़ा मददगार होते - मगर, ऐसा हुआ नहीं. ऐसा भी नहीं कि रजनीकांत पर कोई चर्चा ही नहीं हुई. बताते हैं कि अमित शाह के दौरे से पहले संघ विचारक एस. गुरुमूर्ति रजनीकांत से मिल चुके थे - और अमित शाह की एस. गुरुमूर्ति से लंबी चर्चा हुई. क्या चर्चा हुई होगी, ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं होनी चाहिये.

अमित शाह की यात्रा की जो सबसे अहम बात रही वो एआईएडीएमके की तरफ से ओ. पनीरसेल्वम का 2021 के विधानसभा चुनावों के लिए बीजेपी के साथ गठबंधन पर बयान रहा.

हैदराबाद चुनाव के जरिये अमित शाह जो संदेश देना चाहते हैं, मैसेंजर की भूमिका में असदुद्दीन ओवैसी ही हैं!

और उससे भी महत्वपूर्ण बात खुद अमित शाह ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से कही - 2026 को लेकर ऐसी तैयारी करो कि अकेले दम पर बीजेपी की सरकार बनायी जा सके, लिहाजा वे अगली बार के लिए अकेले दम पर चुनाव लड़ने और जीत कर भगवा फहराने की तैयारी में जुट जायें.

थोड़ा आगे बढ़ कर देखें तो हैदराबाद के मैदान से बीजेपी ने पश्चिम बंगाल सहित उन तमाम इलाकों तक मैसेज देने की कोशिश की है जो उसके पंचायत से पार्लियामेंट तक के मिशन का हिस्सा हैं और बीजेपी उनकी तरफ तेजी से बढ़ने की कोशिश कर रही है.

आपने गौर किया होगा, बिहार चुनाव खत्म होते ही बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव को हैदराबाद की फ्लाइट का टिकट थमा दिया गया था. बाद में अमित शाह तो पहुंचे ही, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ साथ लखनऊ से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी फौरन भेज दिया गया, ताकि बिहार में घुसपैठियों को भगा कर ही दम लेने की जो बात वो बोले थे उसे प्रासंगिक बनाये रखा जाये, तभी तो अमित शाह भी असदुद्दीन ओवैसी से एक्शन लेने के लिए लिस्ट मांग रहे थे.

अब इसमें तो कोई शक होना नहीं चाहिये कि ओवैसी ही बीजेपी नेताओं के रोड शो की बड़ी वजह भी बने होंगे. बिहार के बाद ओवैसी ने भी पश्चिम बंगाल चुनाव में बड़ी हिस्सेदारी का संकेत दे चुके हैं - और हैदराबाद तो उनके लिए घर में पूरा हक होने के जैसा ही है. हैदराबाद से बिहार पहुंच कर ओवैसी का विधानसभा की 5 सीटें लपक लेना और फिर पश्चिम बंगाल में भी वैसी ही उम्मीद के साथ तैयारी में लग जाना, नगर निगम स्तर के चुनाव में बीजेपी की दिलचस्पी की वजह बना है.

पश्चिम बंगाल के साथ साथ हैदराबाद से बीजेपी केरल से तमिलनाडु तक का सफर तय करना चाहती है - क्योंकि अभी तक कर्नाटक से आगे उसके लिए कदम बढ़ाना काफी मुश्किल साबित हो रहा है, जबकि नॉर्थ ईस्ट में वो असम के बाद त्रिपुरा में लाल झंडा उतार कर भगवा फहरा ही चुकी है.

हैदराबाद बनाम भाग्यनगर

बिहार चुनाव के साथ ही तेलंगाना की दुब्बाक विधानसभा सीट पर चुनाव हुआ था. असदुद्दीन ओवैसी के अलावा बीजेपी के हैदराबाद पर धावा बोलने के कुछ खास कारण लगते हैं तो वो दुब्बाक उपचुनाव में राज्य में सत्ताधारी टीआरएस को शिकस्त देकर जीत हासिल करना.

दरअसल, टीआरएस विधायक के निधन से ही दुब्बाक सीट खाली हुई थी और जैसा कि ऐसे मामलों में सहानुभूति लेने की सियासी कोशिश होती है, के. चंद्रशेखर राव की पार्टी ने विधायक की पत्नी को ही उम्मीदवार बनाने का फैसला किया. दुब्बाक सीट भी टीआरएस के गढ़ का हिस्सा मानी जाती है क्योंकि मुख्यमंत्री केसीआर भी उसी इलाके से विधानसभा पहुंचे हैं. केसीआर के बेटे केटी रामा राव जहां पार्टी के ज्यादातर कामकाज संभालते हैं, वहीं भतीजे हरीश राव चुनावों की रणनीति बनाते हैं, लेकिन दुब्बाक में बीजेपी के आगे वो भी गच्चा खा गये.

बीजेपी की हौसलाअफजाई करने वाला वोट शेयर में इजाफा भी है - 2018 के 13.75 फीसदी से बढ़कर 2020 के उपचुनाव में वो 38.5 पर पहुंच चुका है. 2018 का आखिर तो वैसे भी राजनीतिक हिसाब से बीजेपी के लिए बहुत बुरा साबित हुआ - तेलंगाना में तो कम ही उम्मीद रही होगी, लेकिन बीजेपी नेतृत्व ने तो सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक साथ मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सत्ता वो कांग्रेस के हाथों गंवा बैठेगी. बहरहाल, मध्य प्रदेश की कमान तो बीजेपी ने तोड़ फोड़ करके फिर से अपने हाथ में ले लिया है.

तेलंगाना में कांग्रेस ही मुख्य विपक्षी पार्टी है और बीजेपी की तो यही कोशिश होगी कि 2023 में अगर केसीआर के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर पैदा हो तो उसका फायदा बीजेपी को ही मिले, न कि कांग्रेस को. 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस की तीन के मुकाबले चार सीटें जीत कर बीजेपी ने बढ़त तो ले ही ली थी, दुब्बाक उपचुनाव में बीजेपी ने ऐसी जीत हासिल की कि कांग्रेस को तीसरे नंबर पर भेज दिया था.

हैदराबाद नगर निगम चुनाव के शुरुआती रुझानों में जब बीजेपी आधी सीटों पर बढ़त बनाये हुए थी तो बीजेपी नेता भी जोश से भरपूर नजर आ रहे थे. एक टीवी बहस में सुधांशु त्रिवेदी ने यहां तक कह डाला कि उनको उम्मीद है कि हैदराबाद का भाग्योदय होगा. भाग्योदय की बात असल में बीजेपी के प्रस्तावित नाम भाग्यनगर से जुड़ा हुआ है.

चुनाव प्रचार के लिए हैदराबाद पहुंचे योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि अगर बीजेपी नगर निगम में सत्ता में आयी तो शहर का नाम भाग्यनगर कर दिया जाएगा. योगी आदित्यनाथ के इस ऐलान पर स्थानीय सांसद असदुद्दीन ओवैसी कड़ा विरोध जताया था.

योगी आदित्यनाथ ने एक चुनावी रैली में कहा था, 'अगर हम इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर सकते हैं तो हम हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर क्यों नहीं कर सकते?" बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा का ट्वीट भी ऐसा ही एक नमूना था.

इन्हें भी पढ़ें :

हैदराबाद में भाजपा चुनाव से पहले ही चुनाव जीत चुकी है!

लालू-नीतीश की दुनिया उजाड़ने का BJP का प्लान बड़ा दिलचस्प लगता है!

किसान आंदोलन की भेंट चढ़ने जा रही BJP की खट्टर सरकार!


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲