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Galwan valley: चीन के धोखे का इलाज 1967 वाली नाथू ला की कहानी में है

    • आईचौक
    • Updated: 20 जून, 2020 09:37 PM
  • 20 जून, 2020 09:37 PM
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गलवान घाटी (Galwan valley) में भारतीय सैनिकों के साथ हुए धोखे ने युद्ध जैसा तनाव बना दिया है. 20 भारतीय सैनिकों की शहादत (20 Indian Army personnel martyred) के बाद देशभर में गुस्सा है. वर्ष 1967 में भी ऐसे हालात बने थे, जब भारत ने चीन को मुंहतोड़ जवाब दिया था.

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद (India-China Border Dispute) बहुत नाजुक दौर से गुजर रहा है. लद्दाख सीमा स्थित गलवान घाटी में हिंसक झड़प (Galwan valley clash) में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद हालात बिगड़ गए हैं. बहादुर भारतीय सैनिकों ने 40 से अधिक चीनी सैनिकों को भी मौत के घाट उतार दिया है. लेकिन, देश में चीन की इस धोखेबाजी को लेकर गुस्सा है और लोग सोशल मीडिया पर मोदी सरकार से चीन को सबक सिखाने की अपील कर रहे हैं. गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में चीनी सैनिकों ने हथियार का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि कील लगे डंडों और धारदार हथियार से भारतीय सेना पर प्रहार किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने साफ-साफ कहा कि भारत चीन की उकसावे की कार्रवाई बर्दाश्त नहीं करेगा. विदेश मंत्री जयशंकर ने भी कहा है कि गलवान घाटी में जो कुछ भी हुआ है, वह चीन की पूर्व नियोजित और योजनाबद्ध कार्रवाई थी.

बीते लगभग 6 दशक में भारत और चीन के बीच कई बार सीमा पर विवाद देखने को मिले, लेकिन हर बार शांति से बातचीत के जरिये मामला सुलझा लिया गया. फिलहाल गलवान घाटी में जो कुछ हुआ है, उसने 1967 में नाथू ला में हुए वाकये की याद ताजा कर दी. 1967 में दोनों देशों के बीच सिक्किम से सटे नाथु ला में हिंसक झड़प देखने को मिली थी, जिसमें भारत के 88 सैनिक शहीद हुए थे, वहीं चीन के 400 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे. 1962 की हार भुलकर 1967 में भारतीय सैनिकों ने हर मोर्चे पर चीनियों को करारा जवाब दिया था.

1967 में चीनी धोखेबाजों को कैेसा करारा जवाब मिला था

साल 1967 का अगस्त महीना. सिक्किम से सटी चीन सीमा पर नाथु ला से सेबु ला के बीच भारतीय सैनिकों ने तार लगाने यानी बाड़बंदी का फैसला किया. कारण था सीमा की सुरक्षा. कुछ रिपोर्ट्स में भी ये भी दावा किया गया है चीनी सैनिकों द्वारा सीमा के पास सुरंग खोदने के बाद भारतीय सैनिकों ने सीमा को तारों से घेरने का फैसला लिया. 20 अगस्त को बाड़बंदी का काम शुरू हुआ. 23 अगस्त को 75 चीनी सैनिक हाथों में राइफल लहराते सीमा के...

भारत और चीन के बीच सीमा विवाद (India-China Border Dispute) बहुत नाजुक दौर से गुजर रहा है. लद्दाख सीमा स्थित गलवान घाटी में हिंसक झड़प (Galwan valley clash) में 20 भारतीय सैनिकों की शहादत के बाद हालात बिगड़ गए हैं. बहादुर भारतीय सैनिकों ने 40 से अधिक चीनी सैनिकों को भी मौत के घाट उतार दिया है. लेकिन, देश में चीन की इस धोखेबाजी को लेकर गुस्सा है और लोग सोशल मीडिया पर मोदी सरकार से चीन को सबक सिखाने की अपील कर रहे हैं. गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प में चीनी सैनिकों ने हथियार का इस्तेमाल नहीं किया, बल्कि कील लगे डंडों और धारदार हथियार से भारतीय सेना पर प्रहार किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने साफ-साफ कहा कि भारत चीन की उकसावे की कार्रवाई बर्दाश्त नहीं करेगा. विदेश मंत्री जयशंकर ने भी कहा है कि गलवान घाटी में जो कुछ भी हुआ है, वह चीन की पूर्व नियोजित और योजनाबद्ध कार्रवाई थी.

बीते लगभग 6 दशक में भारत और चीन के बीच कई बार सीमा पर विवाद देखने को मिले, लेकिन हर बार शांति से बातचीत के जरिये मामला सुलझा लिया गया. फिलहाल गलवान घाटी में जो कुछ हुआ है, उसने 1967 में नाथू ला में हुए वाकये की याद ताजा कर दी. 1967 में दोनों देशों के बीच सिक्किम से सटे नाथु ला में हिंसक झड़प देखने को मिली थी, जिसमें भारत के 88 सैनिक शहीद हुए थे, वहीं चीन के 400 से ज्यादा सैनिक मारे गए थे. 1962 की हार भुलकर 1967 में भारतीय सैनिकों ने हर मोर्चे पर चीनियों को करारा जवाब दिया था.

1967 में चीनी धोखेबाजों को कैेसा करारा जवाब मिला था

साल 1967 का अगस्त महीना. सिक्किम से सटी चीन सीमा पर नाथु ला से सेबु ला के बीच भारतीय सैनिकों ने तार लगाने यानी बाड़बंदी का फैसला किया. कारण था सीमा की सुरक्षा. कुछ रिपोर्ट्स में भी ये भी दावा किया गया है चीनी सैनिकों द्वारा सीमा के पास सुरंग खोदने के बाद भारतीय सैनिकों ने सीमा को तारों से घेरने का फैसला लिया. 20 अगस्त को बाड़बंदी का काम शुरू हुआ. 23 अगस्त को 75 चीनी सैनिक हाथों में राइफल लहराते सीमा के पास आए और बाड़बंदी का विरोध करने हुए नारे लगाने लगे. भारतीय सैनिक बस उन्हें देखते रहे. एक घंटे के बाद सभी चीनी सैनिक वापस लौट गए. इस बीच भारतीय सैनिक अपनी सीमा में बाड़बंदी का काम करते रहे. 5 सितंबर को बाड़बंदी का काम जब चरम पर था तो इस दौरान चीनी सैनिकों की भारतीय सेना के लोकल इन्फेंट्री बटालियन के लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह से बहस हो गई, जिसके बाद काम रुक गया.

भारतीय सैनिकों ने 7 सितंबर को फिर से बाड़बंदी का काम शुरू किया. इसी दिन 100 से ज्यादा चीनी सैनिक वहां आ धमके और मामला गर्मा गया. बहस धीरे-धीरे झड़प में बदल गई और चीनी सैनिकों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी, जिसका भारतीय सैनिकों ने भी जवाब दिया. 10 सितंबर को चीन सरकार ने भारत सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि चीनी सीमा नियंत्रण बल चीन-सिक्किम सीमा पर भारतीय गतिविधि पर नजर बनाए हुए हैं और किसी तरह की उकसावे वाली कार्रवाई पर करारा जवाब मिलेगा. दरअसल, चीन को भारतीय सेनाओं द्वारा सीमा पर की जा रही बाड़बंदी रास नहीं आ रही थी और वह भारतीय सैनिकों को परेशान कर रही थी. लेकिन भारतीय सैनिक भी डटे हुए थे.

तब भी रतीय कमांडिंग आफिसर के साथ चीनियों ने धोखा किया था 

कॉर्प्स कमांडर ने भारतीय सैनिक को 11 सितंबर तक बाड़बंदी का काम पूरा करने का आदेश दिया. लेकिन जैसे ही वहां काम शुरू हुआ. चीनी सैनिक फिर आ धमके और उन्होंने विरोध शुरू कर दिया. इसके बाद लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह चीनी अधिकारियों से बात करने गए. अचानक चीनियों ने फायरिंग शुरू कर दी. इस घटना में राय सिंह घायल हो गए. अपने कमांडिंग ऑफिसर को घायल देख भारतीय सैनिकों को सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने चीनी सैनिकों पर हमला कर दिया. लेकिन चूंकि भारतीय सेना इस हमले के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी और चीनी सैनिक मशीन गन से फायरिंग कर रहे थे, इससे भारतीय खेमे को भारी नुकसान पहुंचा. इस हमले में 2 अधिकारी समेत कई जवान शहीद हो गए.

इसके बाद तो भारतीय सैनिक मौत बनकर चीनियों पर टूट पड़े और उन्हें नेस्तनाबुत कर दिया. खुद को पिछड़ते देख चीनियों ने हवाई युद्ध ही धमकी दी, लेकिन भारतीय सैनिक टस से मस नहीं हुए. अंत में चीनियों को भी समझ में आ गया कि अब भारतीय सैनिक पीछे नहीं हटेंगे. ऐसे में उसने हवाई हमलों की योजना त्याग दी. 12 सितंबर को भारतीय सैनिकों ने अपने चीनी समकक्ष को सीजफायर का पैगाम भेजा, जो कि चीन ने लौटा दिया. लेकिन तब तक स्थिति नियंत्रित हो गई थी. 15 सितंबर को चीनी सैनिकों ने भारतीय जवानों के शव के साथ ही उनके हथियार भी लौटा दिए. इसके बाद उसी साल अक्टूबर में चो ला इलाके में भी चीनी और भारतीय सैनिकों की झड़प देखने को मिली थी, जहां कई जवान शहीद हो गए थे.



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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