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यूपी को छोड़िये, सोनिया को भी ये 'साथ' कितना पसंद है?

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 23 फरवरी, 2017 04:46 PM
  • 23 फरवरी, 2017 04:46 PM
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रायबरेली में प्रियंका गांधी वाड्रा की कश्मकश, अखिलेश यादव का मजबूरी वाला बयान और फिर सोनिया गांधी की चिट्ठी तो कांग्रेस-समाजवादी पार्टी गठबंधन की कुछ और ही कहानी कह रहे हैं.

यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन का मुख्य स्लोगन है - यूपी को ये साथ पसंद है. राहुल गांधी और अखिलेश यादव हाथों में हाथ डाले मुस्कुराते रोड शो भी करते हैं और कोशिश रहती है कि वोटिंग वाले दिन दोनों कम से कम न्यूज चैनलों पर जरूर साथ दिखें.

ये साथ यूपी को कितना पसंद आया ये तो 11 मार्च को मालूम होगा, पर लगता नहीं आपस में भी 'ये साथ' किसी भी पक्ष को उतना पसंद आ रहा है. रायबरेली में प्रियंका गांधी वाड्रा की कश्मकश, अखिलेश यादव का मजबूरी वाला बयान और फिर सोनिया गांधी की चिट्ठी तो कुछ और ही कहानी कह रहे हैं.

गठबंधन को क्यों नहीं?

सोनिया गांधी जब से सक्रिय राजनीति में उतरीं तब से पहली बार ऐसा है जब वो कहीं चुनाव प्रचार के लिए नहीं गयीं. माना जा रहा था कि बाकी जगह भले न जाएं, रायबरेली और अमेठी तो जरूर जाएंगी. लेकिन ऐसा भी नहीं हो सका. इस बार सोनिया गांधी ने रायबरेली और अमेठी के लोगों के नाम एक चिट्ठी और एक वीडियो मैसेज के जरिये वोट देने की अपील की है.

अपनी अपील में सोनिया गांधी ने कहा है, "आप सबसे गुजारिश है कि इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी के सभी प्रत्याशियों को भारी बहुमत से विजयी बनायें ताकि मुझे और मजबूती मिले जिससे क्षेत्र का विकास और तेजी के साथ हो सके."

फ्रेंडली मैच की मुश्किलें...

दिलचस्प बात ये है कि सोनिया ने कांग्रेस पार्टी के सभी प्रत्याशियों को वोट देने की अपील की है. ऐसे में जबकि कांग्रेस यूपी चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिल कर लड़ रही है, सोनिया का सिर्फ कांग्रेस के लिए वोट मांगने के पीछे आखिर क्या वजह हो सकती है? ये सोचने और समझने वाली बात...

यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के गठबंधन का मुख्य स्लोगन है - यूपी को ये साथ पसंद है. राहुल गांधी और अखिलेश यादव हाथों में हाथ डाले मुस्कुराते रोड शो भी करते हैं और कोशिश रहती है कि वोटिंग वाले दिन दोनों कम से कम न्यूज चैनलों पर जरूर साथ दिखें.

ये साथ यूपी को कितना पसंद आया ये तो 11 मार्च को मालूम होगा, पर लगता नहीं आपस में भी 'ये साथ' किसी भी पक्ष को उतना पसंद आ रहा है. रायबरेली में प्रियंका गांधी वाड्रा की कश्मकश, अखिलेश यादव का मजबूरी वाला बयान और फिर सोनिया गांधी की चिट्ठी तो कुछ और ही कहानी कह रहे हैं.

गठबंधन को क्यों नहीं?

सोनिया गांधी जब से सक्रिय राजनीति में उतरीं तब से पहली बार ऐसा है जब वो कहीं चुनाव प्रचार के लिए नहीं गयीं. माना जा रहा था कि बाकी जगह भले न जाएं, रायबरेली और अमेठी तो जरूर जाएंगी. लेकिन ऐसा भी नहीं हो सका. इस बार सोनिया गांधी ने रायबरेली और अमेठी के लोगों के नाम एक चिट्ठी और एक वीडियो मैसेज के जरिये वोट देने की अपील की है.

अपनी अपील में सोनिया गांधी ने कहा है, "आप सबसे गुजारिश है कि इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी के सभी प्रत्याशियों को भारी बहुमत से विजयी बनायें ताकि मुझे और मजबूती मिले जिससे क्षेत्र का विकास और तेजी के साथ हो सके."

फ्रेंडली मैच की मुश्किलें...

दिलचस्प बात ये है कि सोनिया ने कांग्रेस पार्टी के सभी प्रत्याशियों को वोट देने की अपील की है. ऐसे में जबकि कांग्रेस यूपी चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ मिल कर लड़ रही है, सोनिया का सिर्फ कांग्रेस के लिए वोट मांगने के पीछे आखिर क्या वजह हो सकती है? ये सोचने और समझने वाली बात है.

ऐसा भी नहीं है कि सोनिया ने कोई गोल मोल बात कही हो. चिट्ठी में आगे अपनी मंशा साफ कर देती हैं, "मैं आपसे आग्रह करती हूं कि चुनाव के दिन अपना एक एक वोट हाथ के निशान का दबाकर मेरे संकल्प और भावना को अपना समर्थन दें."

सिर्फ चार मिनट

अव्वल तो रायबरेली के लोगों को सोनिया गांधी का इंतजार रहा, लेकिन राहुल और प्रियंका पहुंचे तो भी उन्हें संतोष रहा. ताज्जुब की बात ये रही कि पहली बार मंच पर प्रियंका, राहुल के साथ तो आईं लेकिन बगैर कुछ बोले चुपचाप चली गईं जिससे लोग काफी निराश नजर आये. प्रियंका गांधी दूसरी सभा में बोलीं जरूर लेकिन सिर्फ चार मिनट. इन्हीं चार मिनटों में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूपी का गोद लिया हुआ बेटा बताने के लिए आलोचना की. एक बात और समझ में आई जैसे प्रियंका को चुनाव प्रचार शुरू करने के लिए ऐसे ही मौका का इंतजार रहा हो.

सोनिया के उलट प्रियंका ने पूरे गठबंधन के लिए वोट मांगे. मोदी के बयान के जवाब में प्रियंका ने कहा कि यूपी को गोद लेने की जरूरत नहीं उसके पास राहुल और अखिलेश जैसे बेटे पहले से ही हैं जो सूबे की मिट्टी से गहराई तक जुड़े हुए हैं.

प्रियंका की अपील में गठबंधन को वोट देने पर जोर रहा, लेकिन उनकी रायबरेली यात्रा में एक अजीब सी कश्मकश महसूस की गयी. इसकी वजह कई सीटों पर दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों का एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ना भी हो सकती है.

प्रियंका के साथ मंच पर कांग्रेस के उम्मीदवार भी थे, लेकिन उन्होंने उनके लिए वोट मांगना तो दूर उनका नाम तक न लिया. बाकी जगहों के लिए तो गठबंधन के लिए वोट मांगे जाने में प्रियंका को कोई दिक्कत नहीं हुई होगी, लेकिन उन सीटों का वो क्या करती जहां से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं.

ये साथ कितना पसंद है

मुलायम सिंह को कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं पसंद आया, इसलिए शिवपाल भी नहीं पसंद करते. पहले अखिलेश यादव कहा करते कि अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन हो जाता तो 300 से ज्यादा सीटें आ जाती हैं, लेकिन फैसला नेताजी करेंगे. बदले हालात में फैसला अखिलेश को ही लेना था और कई बार ना-ना होते होते गठबंधन हो भी गया.

बताया ये भी गया गठबंधन की कल्पना को मूर्त रूप देने में प्रियंका गांधी की अहम भूमिका रही. बाद में एक खबर ये भी आई थी कि प्रियंका ने अमेठी और रायबरेली की सीटों को लेकर भी कहा था कि कम से कम वहां तो वे सीटें छोड़ दें. जब ये सवाल राहुल और अखिलेश से पूछा गया तो जवाब यही मिला कि बातचीत से सुलझा लिया जाएगा.

ये साथ कितना पसंद है?

सोनिया ने अपनी चिट्ठी में लोगों के बीच खुद के मौजूद न हो पाने की मजबूरी बतायी है और कहा है - 'कृपया इसे मेरी निजी चिट्ठी समझें'.

राजनीति में 'निजी' शब्द का बड़ा ही व्यापक इस्तेमाल होता है. संवैधानिक पद पर बैठा हुआ कोई व्यक्ति कुछ भी बोल दे या फिर कोई नेता पार्टी लाइन से इतर कोई बात कह दे तो बाद में उसके राजनीतिक साथी उसे निजी राय बता कर पल्ला झाड़ लेते हैं. जब सोनिया गांधी इलाज कराने अमेरिका गयीं तो भी सवालों से बचने के लिए कांग्रेस नेताओं ने भी निजी मामला बता कर टाल दिया.

सोनिया की ये चिट्ठी निजी है इसलिए पूछने पर बताया जा सकता है कि गठबंधन की जगह कांग्रेस के लिए वोट मांगा जाना गलत नहीं है - क्योंकि चिट्ठी तो निजी तौर पर लिखी गयी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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