लोकसभा चुनाव के शंखनाद में अब महज छह महीने का वक्त बचा है, इसी बीच तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव भी हैं. अयोध्या में विवादित ढांचा ढहने के बाद भारतीय जनता पार्टी के उभार के बाद से देश की राजनीति दो ध्रुवों में बंटी और अब तक यही क्रम चला आ रहा है. कांग्रेस और भाजपा ही मुख्य मुकाबले में रहती हैं चाहे कोई लहर हो या न हो. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों दलों के बीच हुआ.
दोनों दलों में 189 सीटों पर आमने-सामने की टक्कर हुई और इसमें भाजपा ने 165 सीटें हथिया लीं. हालांकि उत्तर प्रदेश में दोनों पार्टियों के बीच सिर्फ 8 सीटों पर आमने-सामने का मुकाबला हुआ और उसमें से सोनिया गांधी और राहुल गांधी की सीट के अलावा बाकी छह सीटें भाजपा ने जीतीं. भाजपा ने केंद्र में सरकार यूपी में जीती सीटों की बदौलत बनाई जरूर लेकिन उसकी सीटों में गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसके ऐतिहासिक प्रदर्शन का भी योगदान रहा है.
मौजूदा सूरतेहाल में विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में फिर ये दोनों दल ही आमने-सामने नजर आ रहे हैं. दरअसल, इन दोनों दलों को एक-दूसरे के आमने-सामने रहने में ही काफी सहूलियत होती है. दुश्मन एक हो तो उसकी कमजोरियों का फायदा उठाने और खूबियों की काट निकालना आसान हो जाता है. कांग्रेस और भाजपा के नेता भी मानते हैं कि उन्हें आपसी चुनावी लड़ाई रास आती है.
विधानसभा चुनाव की घोषणा होना बाकी है और उसके नतीजे इन राज्यों में लोकसभा चुनाव की भूमिका तैयार करेंगे. इसलिए दोनों पार्टियों ने इसमें जान लगा दी है. इन दोनों पार्टियों के स्थानीय नेता स्थानीय मुद्दे और स्टार नेता राष्ट्रीय मुद्दे उछाल रहे हैं ताकि विधानसभा के कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव की जमीन...
लोकसभा चुनाव के शंखनाद में अब महज छह महीने का वक्त बचा है, इसी बीच तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव भी हैं. अयोध्या में विवादित ढांचा ढहने के बाद भारतीय जनता पार्टी के उभार के बाद से देश की राजनीति दो ध्रुवों में बंटी और अब तक यही क्रम चला आ रहा है. कांग्रेस और भाजपा ही मुख्य मुकाबले में रहती हैं चाहे कोई लहर हो या न हो. 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों दलों के बीच हुआ.
दोनों दलों में 189 सीटों पर आमने-सामने की टक्कर हुई और इसमें भाजपा ने 165 सीटें हथिया लीं. हालांकि उत्तर प्रदेश में दोनों पार्टियों के बीच सिर्फ 8 सीटों पर आमने-सामने का मुकाबला हुआ और उसमें से सोनिया गांधी और राहुल गांधी की सीट के अलावा बाकी छह सीटें भाजपा ने जीतीं. भाजपा ने केंद्र में सरकार यूपी में जीती सीटों की बदौलत बनाई जरूर लेकिन उसकी सीटों में गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में उसके ऐतिहासिक प्रदर्शन का भी योगदान रहा है.
मौजूदा सूरतेहाल में विधानसभा चुनाव वाले राज्यों में फिर ये दोनों दल ही आमने-सामने नजर आ रहे हैं. दरअसल, इन दोनों दलों को एक-दूसरे के आमने-सामने रहने में ही काफी सहूलियत होती है. दुश्मन एक हो तो उसकी कमजोरियों का फायदा उठाने और खूबियों की काट निकालना आसान हो जाता है. कांग्रेस और भाजपा के नेता भी मानते हैं कि उन्हें आपसी चुनावी लड़ाई रास आती है.
विधानसभा चुनाव की घोषणा होना बाकी है और उसके नतीजे इन राज्यों में लोकसभा चुनाव की भूमिका तैयार करेंगे. इसलिए दोनों पार्टियों ने इसमें जान लगा दी है. इन दोनों पार्टियों के स्थानीय नेता स्थानीय मुद्दे और स्टार नेता राष्ट्रीय मुद्दे उछाल रहे हैं ताकि विधानसभा के कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनाव की जमीन पहले से बना ली जाए. भाजपा भी राष्ट्रीय मुद्दों के साथ चुनाव लड़ना चाहती है ताकि राज्य सरकारों के खिलाफ अगर कोई असंतोष है तो उससे लोगों का ध्यान हटाया जा सके. किसान, गरीब, युवा, बेरोजगारी, स्थानीय घोटाले और घोषणाओं की चीर-फाड़ के बीच कांग्रेस को इस बार काफी संभावनाएं नजर आ रही हैं क्योंकि वो ये भी मान रही है कि सत्ता विरोधी रुझान मतदाताओं में है और उसका फायदा भी मिलेगा.
इसी फायदे को आगे तक ले जाने की कोशिशों के बीच पार्टी को अगले लोकसभा चुनाव में 200 सीटें हासिल होने की उम्मीद है. जाहिर है, इस उम्मीद की चुनावी जमीन जहां उसे नजर आती है उसमें ये तीनों राज्य बेहद महत्वपूर्ण हैं. लेकिन भाजपा भी कम उम्मीद नहीं रख रही है. उसके नेता कहते हैं कि कांग्रेस ये गलतफहमी पाल रही है कि भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हो चुका है. दरअसल, भाजपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन अभी बाकी है. पार्टी को लोकसभा चुनाव में पिछली बार से भी ज्यादा सीटें अपने दम पर मिलने की उम्मीद है.
भाजपा नेता अपने खिलाफ माहौल के लिए मीडिया को दोषी ठहराते हुए कहते हैं कि नोटबंदी के बाद उत्तर प्रदेश और जीएसटी के बाद हुए गुजरात चुनावों ने भाजपा की लोकप्रियता सिद्ध की है. मीडिया दोनों जगहों पर भाजपा के खराब प्रदर्शन का अनुमान जाहिर कर रहा था. लेकिन भाजपा नेता अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के अनुमान में शायद पेट्रोल की महंगाई के बाद के माहौल को उसके वास्तविक असर के रूप में शामिल नहीं कर रहे हैं. पार्टी कह रही है कि ओवरआल महंगाई नहीं बढ़ी है. हालांकि 2008 में नायमेक्स क्रूड की कीमतें 145 डॉलर प्रति बैरल के भाव से ऊपर चली गई थीं और तब पेट्रोल 70 रुपए प्रति लीटर के भाव बिका था लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस ने 2009 में सरकार बना ली थी. तब महंगाई को लेकर भाजपा हमलावर थी. इस बार ठीक उसी जगह पर कांग्रेस खड़ी है.
ये दोनों दल चाहते भी नहीं हैं कि कोई तीसरी पार्टी उनके बीच आए. ये दोनों अपने-अपने हिसाब से जनमत को मोड़ना बखूबी जानते हैं. बहुजन समाज पार्टी जैसी तीसरी पार्टी से ये हमेशा घबराते हैं जैसा कि छत्तीसगढ़ में दिख रहा है. वहां बसपा ने अजीत जोगी की छत्तीसगढ़ जनका कांग्रेस पार्टी से चुनावी गठबंधन कर भाजपा की नींद उड़ा दी है और कांग्रेस को भी बेचैन कर दिया है. कांग्रेस की राजनीतिक हसरतें इस गठबंधन के प्रदर्शन पर टिकी हैं. छत्तीसगढ़ की 11 लोकसभा सीटें भी काफी अहम होंगी. अजीत जोगी की राजनीतिक ताकत का अंदाजा अभी नहीं लग सका है क्योंकि ये उनका पहला चुनाव है.
मध्य प्रदेश में सवर्णों के संगठन सपाक्स ने एससी एसटी ऐक्ट में संशोधन के खिलाफ जोरदार अभियान चलाकर दोनों पार्टियों को बेचैन कर दिया है. अब दोनों के नेता अपने-अपने तरीके से इन्हें शांत करने में लगे हुए हैं. दोनों पार्टियां राजस्थान की तरह सीधी लड़ाई चाहती हैं. लिहाजा विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा-कांग्रेस की आगे की संभावनाओं की पटकथा जरूर लिखेंगे.
ये भी पढ़ें-
इसलिए केजरीवाल नहीं चाहते कि दिल्ली में लागू हो 'आयुष्मान भारत' !
प्रधानमंत्री मोदी को राहुल गांधी का चोर कहना तो मॉब लिंचिंग जैसा ही है
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.