उच्चतम न्यायालय के आदेश पर केंद्र सरकार 1 मार्च 2018 से 12 विशेष फास्ट ट्रैक अदालत शुरू करने जा रही है. इन अदालतों का काम सांसदों और राज्यों के विधायकों पर चल रहे अपराधिक मामलों का 1 साल के भीतर-भीतर निपटारा करना होगा. यह 12 विशेष अदालतें लगभग 1,581 अपराधिक केसों का निपटारा करेंगी. हालाँकि, क़ानून के जानकारों का कहना है कि इतने सारे केसों पर निर्णय देने की लिए 12 नहीं अपितु 150 विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों की आवश्यकता होगी.
यह फास्ट ट्रैक अदालतें केंद्र सरकार के लिए स्वर्णिम अवसर बन कर सामने आई हैं. वर्ष 2019 में लोक सभा के चुनाव होने हैं. 2014 के आम चुनावों में भाजपा को पिछली कांग्रेस सरकार के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कारवाही करने का जनता द्वारा आदेश मिला था. नरेंद्र मोदी ने 2014 चुनाव प्रचार में बड़े जोर-शोर से मनमोहन सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लगा दी थी. मोदी सरकार को बने 3.5 साल बीत गए हैं, लेकिन 2014 के सारे आरोप अब भी सिर्फ़ आरोप भर हैं.
केवल आरोप के बल पर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. जब तक क़ानून किसी को दोषी न कहे, तब तक वह एक सम्मानित नागरिक कहलाने का हकदार है. 2014 का चुनाव तो भाजपा ने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर जीत लिया. परंतु अब तो भाजपा की ही सरकार है, जहाँ उसके पास जाँच के सारे संसाधन उपलब्ध हैं. न जाने क्यों अब तक, इस विषय पर मोदी सरकार ने कुछ दिलचस्पी नहीं दिखाई है. यदि पाँच सालों में मोदी सरकार किसी विषय पर जाँच कर, न्यायालय में अपना पक्ष नहीं रख सकती तब तो यही कहा जाएगा कि वर्ष 2014 के आरोप केवल चुनावी आरोप थे.
यदि मोदी सरकार वास्तव में इन आरोपों का निपटारा चाहती है तो उनके पास यह सुनहरा मौका है. इन अदालतों को 1 साल के अंदर अपना निर्णय सुनना होगा, इसलिए 2019 चुनावों के ठीक पहले यदि यूपीए...
उच्चतम न्यायालय के आदेश पर केंद्र सरकार 1 मार्च 2018 से 12 विशेष फास्ट ट्रैक अदालत शुरू करने जा रही है. इन अदालतों का काम सांसदों और राज्यों के विधायकों पर चल रहे अपराधिक मामलों का 1 साल के भीतर-भीतर निपटारा करना होगा. यह 12 विशेष अदालतें लगभग 1,581 अपराधिक केसों का निपटारा करेंगी. हालाँकि, क़ानून के जानकारों का कहना है कि इतने सारे केसों पर निर्णय देने की लिए 12 नहीं अपितु 150 विशेष फास्ट ट्रैक अदालतों की आवश्यकता होगी.
यह फास्ट ट्रैक अदालतें केंद्र सरकार के लिए स्वर्णिम अवसर बन कर सामने आई हैं. वर्ष 2019 में लोक सभा के चुनाव होने हैं. 2014 के आम चुनावों में भाजपा को पिछली कांग्रेस सरकार के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ़ कारवाही करने का जनता द्वारा आदेश मिला था. नरेंद्र मोदी ने 2014 चुनाव प्रचार में बड़े जोर-शोर से मनमोहन सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लगा दी थी. मोदी सरकार को बने 3.5 साल बीत गए हैं, लेकिन 2014 के सारे आरोप अब भी सिर्फ़ आरोप भर हैं.
केवल आरोप के बल पर किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है. जब तक क़ानून किसी को दोषी न कहे, तब तक वह एक सम्मानित नागरिक कहलाने का हकदार है. 2014 का चुनाव तो भाजपा ने कांग्रेस पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर जीत लिया. परंतु अब तो भाजपा की ही सरकार है, जहाँ उसके पास जाँच के सारे संसाधन उपलब्ध हैं. न जाने क्यों अब तक, इस विषय पर मोदी सरकार ने कुछ दिलचस्पी नहीं दिखाई है. यदि पाँच सालों में मोदी सरकार किसी विषय पर जाँच कर, न्यायालय में अपना पक्ष नहीं रख सकती तब तो यही कहा जाएगा कि वर्ष 2014 के आरोप केवल चुनावी आरोप थे.
यदि मोदी सरकार वास्तव में इन आरोपों का निपटारा चाहती है तो उनके पास यह सुनहरा मौका है. इन अदालतों को 1 साल के अंदर अपना निर्णय सुनना होगा, इसलिए 2019 चुनावों के ठीक पहले यदि यूपीए सरकार में शामिल किसी सांसद के विरुद्ध निर्णय आता है तो राजनीतिक रूप से यह कांग्रेस के लिए घातक साबित हो सकता है. आने वाला एक वर्ष भारत की राजनीति पर दिलचस्प असर छोड़ने वाला है. सभी राजनैतिक विश्लेषक टकटकी लगा के इंतज़ार कर देख रहे हैं कि ऊंट किस करवट बैठता है.
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