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किसानों का विरोध हल्के में लेने की भूल कर रही है मोदी सरकार

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 26 सितम्बर, 2020 01:53 PM
  • 26 सितम्बर, 2020 01:53 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की समझाइश के बावजूद किसानों के आंदोलन (Farmers protest) का असर पंजाब और हरियाणा में तो ज्यादा रहा, लेकिन बिहार पर भी सीधा प्रभाव देखने को मिला - बिहार चुनाव (Bihar Election 2020) में विपक्ष के लिए सड़क पर उतरने का ये सबसे बड़ा मौका भी बना.

किसानों के आंदोलन (Farmers protest) को देखते हुए रेलवे ने पंजाब जाने वाली 13 ट्रेनें पहले ही टर्मिनेट कर दिया था - और 14 रेल गाड़ियों को रद्द भी कर दिया गया था. ये एहतियाती इंतजाम किसानों के रेल रोको और चक्का जाम विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर किया गया था. कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए पंजाब में पुलिस प्रशासन ने इंतजाम तो पहले से ही कर रखा था, लेकिन किसानों के आंदोलन को मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी सपोर्ट हासिल है - और यही वजह है कि पंजाब सरकार पहले से ही घोषणा कर रखी है कि धारा 144 के तहत किसी के खिलाफ FIR नहीं होगी. हालांकि, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों से आंदोलन के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने और कानून व्यवस्था को मानने और सरकारी संपत्ति को नुकसान न पहुंचाने की अपील भी कर रखी है.

देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले कृषि बिलों का विरोध पंजाब और हरियाणा में ज्यादा हो रहा है. बिहार के चुनावी माहौल (Bihar Election 2020) में किसानों के आंदोलन विपक्षी दलों के लिए बहार बन कर आया है - और वे इसका फायदा भी पूरा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का भी वादा कर चुके हैं, जाहिर है ये कृषि बिल भी सरकार के उसी एजेंडे का हिस्सा होंगे - लेकिन किसानों को मोदी की बातों पर यकीन क्यों नहीं हो रहा है. आखिर वो क्या लोचा है जो कृषि बिलों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी किसानों को नहीं समझा पा रहे हैं? आम चुनाव से पहले दिसंबर, 2018 में तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में हुई बीजेपी की हार को भी किसानों की नाराजगी से ही जोड़ कर देखा गया था - सवाल है कि क्या बिहार चुनाव की तारीखों के ऐलान के दिन किसानों के विरोध प्रदर्शन का नतीजों पर भी कोई असर हो सकता है क्या?

बिहार में विपक्ष की बल्ले बल्ले

पंजाब और हरियाणा में किसानों के आंदोलन का काफी असर दिखा है. कई जगहों पर दुकानें बंद हैं और दुकानदारों का कहना है कि ऐसा वो किसानों के समर्थन में कर रहे हैं....

किसानों के आंदोलन (Farmers protest) को देखते हुए रेलवे ने पंजाब जाने वाली 13 ट्रेनें पहले ही टर्मिनेट कर दिया था - और 14 रेल गाड़ियों को रद्द भी कर दिया गया था. ये एहतियाती इंतजाम किसानों के रेल रोको और चक्का जाम विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर किया गया था. कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए पंजाब में पुलिस प्रशासन ने इंतजाम तो पहले से ही कर रखा था, लेकिन किसानों के आंदोलन को मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी सपोर्ट हासिल है - और यही वजह है कि पंजाब सरकार पहले से ही घोषणा कर रखी है कि धारा 144 के तहत किसी के खिलाफ FIR नहीं होगी. हालांकि, कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों से आंदोलन के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने और कानून व्यवस्था को मानने और सरकारी संपत्ति को नुकसान न पहुंचाने की अपील भी कर रखी है.

देश के बाकी हिस्सों के मुकाबले कृषि बिलों का विरोध पंजाब और हरियाणा में ज्यादा हो रहा है. बिहार के चुनावी माहौल (Bihar Election 2020) में किसानों के आंदोलन विपक्षी दलों के लिए बहार बन कर आया है - और वे इसका फायदा भी पूरा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का भी वादा कर चुके हैं, जाहिर है ये कृषि बिल भी सरकार के उसी एजेंडे का हिस्सा होंगे - लेकिन किसानों को मोदी की बातों पर यकीन क्यों नहीं हो रहा है. आखिर वो क्या लोचा है जो कृषि बिलों को लेकर प्रधानमंत्री मोदी किसानों को नहीं समझा पा रहे हैं? आम चुनाव से पहले दिसंबर, 2018 में तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों में हुई बीजेपी की हार को भी किसानों की नाराजगी से ही जोड़ कर देखा गया था - सवाल है कि क्या बिहार चुनाव की तारीखों के ऐलान के दिन किसानों के विरोध प्रदर्शन का नतीजों पर भी कोई असर हो सकता है क्या?

बिहार में विपक्ष की बल्ले बल्ले

पंजाब और हरियाणा में किसानों के आंदोलन का काफी असर दिखा है. कई जगहों पर दुकानें बंद हैं और दुकानदारों का कहना है कि ऐसा वो किसानों के समर्थन में कर रहे हैं. दिल्ली-मेरठ हाइवे पर भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ताओ ने ट्रैक्टर, ट्रालियां लाकर खड़ी कर दी और जाम लग गया. हाइवे पर बैठकर किसान हुक्का पीते भी देखे गये - और बीच बीच में मोदी सरकार मुर्दाबाद के नारे भी लगाते रहे.

किसानों के आंदोलन के सपोर्ट में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने पटना में ट्रैक्टर चलाया. विपक्ष के नेता के साथ उनके भाई तेज प्रताप भी ट्रैक्टर के ऊपर बैठे देखे गये. ट्रैक्टर के पीछे पीछे आरजेडी कार्यकर्ता नारेबाजी करते चल रहे थे. आरजेडी कार्यकर्ताओं ने कई जगह भैंसों पर बैठ कर विरोध प्रदर्शन भी किया. पटना में बीजेपी दफ्तर के बाहर विरोध प्रदर्शन करने वालों और बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच झड़प की भी खबर आयी है.

बिहार में विपक्ष ने किसान आंदोलन का पूरा फायदा उठाया है

आम चुनाव से पहले 2018 के आखिर में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए थे और उनमें से तीन राज्यों में बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा धा - मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान. मध्य प्रदेश चुनावों से पहले 6 जून, 2017 को मंदसौर में किसान आंदोलन के दौरान हुई हिंसा में 7 लोगों की मौत हो गयी थी. भीड़ ने पुलिस चौकियों में आग लगा दी थी, रेल पटरियां उखाड़ दी गयी थीं और सड़कों पर गाड़ियों को भी जला दिया गया था. किसान आंदोलन से मंदसौर के अलावा मध्य प्रदेश के कई जिलों में नुकसान हुए थे.

मंदसौर की घटना के बाद देश भर के 70 से ज्यादा संगठनों ने मिल कर ऑल इंडिया किसान संघर्ष कॉर्डिनेशन कमेटी बनाया था. इसमें अब देश भर के 20 राज्यों के और भी कई संगठन शामिल हो चुके हैं.

किसानों के ताजा आंदोलन की अगुवाई ऑल इंडिया किसान संघर्ष कॉर्डिनेशन कमेटी के साथ साथ ऑल इंडिया किसान महासंघ और भारतीय किसान यूनियन मिल कर रहे हैं. खास बात ये भी है कि आंदोलन में छोटे, मध्यम और बड़े किसानों के अलावा खेतिहर मजदूर भी शामिल हैं.

कृषि बिलों को लेकर राज्य सभा में विपक्षी दलों के 8 सांसदों को सस्पेंड किये जाने के बाद वे रात भर संसद परिसर में धरना दिये. ये किसानों का ही मुद्दा रहा जब सदन में एक साथ कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और लेफ्ट के सदस्य मिल कर विरोध जता रहे थे और धरने पर भी साथ साथ गाते और ताली बजाते डटे रहे - और किसानों के आंदोलन को फिलहाल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीएसपी, वाम दल, टीएमसी, डीएमके, टीआरएस सहित 18 राजनीति दल सपोर्ट कर रहे हैं.

बड़े दिनों बाद संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला था. जहां तक गलत और सही होने की बात है तो दोनों ही पक्ष खुद को सही बताते हुए दूसरे पक्ष को गलत व्यवहार करने और सदन की मर्यादा तोड़ने का आरोप लगा चुके हैं. हरिवंश ने सांसदों के साथ चाय पर चर्चा की भी कोशिश की और उपवास रखते हुए अपना बिहार कनेक्शन भी बताया. बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने ये भी दावा किया कि बिहार के लोग चुनावों में हरिवंश के साथ हुए दुर्व्यहार को याद रखेंगे. लोगों का तो अभी नहीं मालूम लेकिन विपक्ष को ये पूरी तरह याद है और बड़ी मुश्किल से सड़क पर उतरने को मिले इस मौके का बिहार में विपक्ष ने फायदा भी पूरा का पूरा उठाने की कोशिश की है.

जो भीड़ लेकर विपक्ष किसान आंदोलन के बहाने बिहार में सड़कों पर उतरा है वो न तो अब उम्मीदवारों के नामांकन में देखने को मिलने वाला है न रोड शो और रैलियों में नसीब होना है - चुनाव तारीखों के ऐलान के साथ आयोग ने जो नियम बताये हैं उससे तो ऐसा ही लगता है.

राज्य सभा में सांसदों के व्यवहार को लेकर उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह ने एक चिट्ठी लिखी थी जिसे प्रधानमंत्री मोदी ने ट्विटर पर शेयर करते हुए हर किसी को पढ़ने की सलाह दी थी - ठीक वैसे ही अब वो कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का इंटरव्यू देखने की सलाह दे रहे हैं.

कुछ तो लोचा है

ध्यान देने वाली बात ये भी है कि मोदी सरकार को विरोध तो CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भी झेलना पड़ा था, लेकिन कृषि बिलों का विरोध भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक की तरह हो रहा है जिस पर आखिरकार सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े थे.

CAA के समर्थन में तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जगह जगह रैली किये थे, लेकिन कृषि बिलों को लेकर खुद प्रधानमंत्री लगातार किसानों को समझाने और भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ट्विटर अकाउंट से कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का न्यूज एजेंसी ANI दिया गया एक इंटरव्यू शेयर किया है - और लिखा है कि इसे हर किसी को जरूर देखना और सुनना चाहिये.

कुछ तो लोचा है, वरना कोरोना काल में प्रधानमंत्री मोदी की हर बात पर भरोसा करने वालों में भी तो ये किसान शामिल थे ही. तब तो एक आवाज पर लोग घरों के बाहर खड़े होकर ताली-थाली बजाने और दीया जलाने को तैयार हो जाते रहे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार चीनी सैनिकों की घुसपैठ के आरोप लगाते हुए सवाल पूछते रहे लेकिन किसी ने एक न सुनी, लेकिन अब उन लोगों में ही शामिल किसान प्रधानमंत्री मोदी की बात नहीं सुनने को तैयार हैं - क्या मोदी सरकार का प्रचार तंत्र कमजोर पड़ने लगा है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले कह चुके हैं, '2022 में जब देश आजादी की 75वीं सालगिरह मना रहा होगा, उस वक्त तक किसान की आय हम दोगुनी कर देंगें. यही मेरा सपना है.' दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से कहा कि कृषि बिलों की अहमियत किसानों को आसान भाषा में समझाना होगा. मोदी ने कहा कि हमने MSP में रिकॉर्ड बढ़ोतरी की और अब तक एक लाख करोड़ रुपये से अधिक किसानों को दिए जा चुके हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि यूपीए सरकार ने सिर्फ 20 लाख करोड़ का ऋण किसानों को दिया था, लेकिन हमारी सरकार ने 35 लाख करोड़ से अधिक का लोन दिया है.

क्या कृषि बिलों की भाषा इतनी कठिन है कि किसानों को समझ में नहीं आ रही है और बीजेपी कार्यकर्ता आसान भाषा में समझाएंगे तो समझ में आ जाएगी?

और मामलों की तरह ही मोदी ने समझाने की कोशिश की कि कुछ लोगों ने राष्ट्रहित के बजाय खुद के हित को सर्वोपरि रखा - किसानों को कानूनों में उलझाकर रखा गया, जिसकी वजह से वो अपनी फसल कहीं बेच नहीं पा रहा था. अब किसान की मर्जी है कि वो कहीं पर भी फसल बेचे, जहां पर किसान को अधिक दाम मिलेगा वो वहां बेच सकेगा. PM मोदी का कहना है - कृषि बिल से छोटे किसानों को सबसे अधिक फायदा होगा.

प्रधानमंत्री मोदी का आरोप है कि जिन्होंने किसानों से झूठ बोला, अब वो किसान के कंधे पर बंदूक रखकर चला रहे हैं - ये लोग झूठ फैलाकर किसान को बरगला रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि उनके राजनीतिक विरोधी किसानों को भड़का रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी के सपोर्ट में कंगना रनौत ऐसे लोगों को आतंकी बता रही हैं - फिर भी कृषि बिलों के विरोध को जन समर्थन क्यों मिल रहा है?

अगर ऐसा है तो पंजाब और हरियाणा में बराबर विरोध क्यों हो रहा है? पंजाब के लोगों ने तो कांग्रेस को सत्ता सौंपी है और हरियाणा के लोगों ने बहुमत न सही लेकिन ज्यादा सीटें तो बीजेपी को भी दी है. ऊपर से सरकार में जाट नेता दुष्यंत चौटाला भी हैं जो किसानों के ही नेता माने जाते हैं. अगर कांग्रेस की आंदोलन के पीछे साजिश है तो पंजाब में मान सकते हैं लेकिन हरियाणा में?

बीजेपी को मालूम होना चाहिये कि कृषि बिल में कहीं न कहीं लोचा तो है. सरकार की तरफ से वाहवाही भले ही लूटी जा रही हो, लेकिन लोग या तो धर्म के नाम पर या देश के नाम पर ही बीजेपी को ब्लाइंड सपोर्ट दे रहे हैं. जैसे ही रोजी रोटी पर असर हो रहा है - सारी भावनाएं उलटी दिशा में उमड़ पड़ रही हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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