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ऐतिहासिक चुनाव के मुहाने पर खड़ा अमेरिका मजबूर है !

    • स्मिता शर्मा
    • Updated: 01 नवम्बर, 2016 10:05 PM
  • 01 नवम्बर, 2016 10:05 PM
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एक बार फिर अमेरिका ऐतिहासिक चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. क्या अमेरिकी वाकई पहली बार किसी महिला को देश की कमान सौंपने की तैयारी में है?

आठ साल पहले अमेरिका में उम्मीद की एक लहर थी. उम्मीद की बदलाव बेहतर के लिए होगा. उम्मीद की एक सुपर पावर देश जो अपनी नवरूढ़ीवादी नीतियों, सैन्य हमलों और युद्ध की थकान के लिए दुनियाभर में निंदा झेलने के बाद एक बार फिर पूरे सम्मान के साथ नेतृत्व के लिए तैयार होगा. ट्रैम के अश्वेत चालक लाउडस्पीकर की मदद से अमेरिकी जनता से वोट डालने की अपील कर रहे थे. मैडिसन युनिवर्सिटी के छात्र चॉक से जमीन पर ‘येस वी कैन’ लिख रहे थे.

यह नजारा 2008 का था जब मैं अमेरिका की अपनी पहली यात्रा पर थी. वॉशिंगटन से लेकर सैनफ्रांसिस्को, शिकागो, न्यूयार्क- सभी शहर एक ऊर्जा से ग्रस्त थे. लोगों के जहन में कई सवाल भी थे. क्या वाकई अमेरिका रंगभेद की दीवार को तोड़ते हुए किसी अश्वेत को देश का राष्ट्रपति चुनेगा? या फिर रंगभेद के मुद्दे पर एक बार फिर अमेरिका बंटा हुआ दिखाई देगा?

अब आठ साल बाद एक बार फिर अमेरिका ऐतिहासिक चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. क्या अमेरिकी वाकई पहली बार किसी महिला को देश की कमान सौंपने की तैयारी में है? इसमें कोई संदेह नहीं कि इस मुद्दे पर यहां माहौल बेहद निराशाजनक है.

इसे भी पढ़ें: अमेरिका की 'आडवाणी' बनने जा रही हैं हिलेरी क्लिंटन !

बीते कुछ हफ्तों के दौरान अमेरिका में श्वेत, अश्वेत, पुरुष, महिला, बूढ़े, युवा से हुई बातचीत से एक बात बिलकुल साफ है- आगामी चुनावों के पहले दोनों ही पार्टी के उम्मीदवारों से लोग नाखुश हैं. पहले के अधिकांश चुनावों में ऐसा देखने को नहीं मिला था. चुनाव प्रचार में पूरी तरह से ध्रुवीकरण दिख रहा है लेकिन किसी भी खेमें में पर्याप्त उर्जा देखने को नहीं मिल रही है.

हवाई में रिपब्लिकन समर्थक सेना का एक मेजर वोट डालने के आखिरी दिन तक अनिश्चितता की स्थिति में रहा. वह नीति बनाम व्यक्ति के द्वंद से जूझ रहा था. मेजर का साफ कहना...

आठ साल पहले अमेरिका में उम्मीद की एक लहर थी. उम्मीद की बदलाव बेहतर के लिए होगा. उम्मीद की एक सुपर पावर देश जो अपनी नवरूढ़ीवादी नीतियों, सैन्य हमलों और युद्ध की थकान के लिए दुनियाभर में निंदा झेलने के बाद एक बार फिर पूरे सम्मान के साथ नेतृत्व के लिए तैयार होगा. ट्रैम के अश्वेत चालक लाउडस्पीकर की मदद से अमेरिकी जनता से वोट डालने की अपील कर रहे थे. मैडिसन युनिवर्सिटी के छात्र चॉक से जमीन पर ‘येस वी कैन’ लिख रहे थे.

यह नजारा 2008 का था जब मैं अमेरिका की अपनी पहली यात्रा पर थी. वॉशिंगटन से लेकर सैनफ्रांसिस्को, शिकागो, न्यूयार्क- सभी शहर एक ऊर्जा से ग्रस्त थे. लोगों के जहन में कई सवाल भी थे. क्या वाकई अमेरिका रंगभेद की दीवार को तोड़ते हुए किसी अश्वेत को देश का राष्ट्रपति चुनेगा? या फिर रंगभेद के मुद्दे पर एक बार फिर अमेरिका बंटा हुआ दिखाई देगा?

अब आठ साल बाद एक बार फिर अमेरिका ऐतिहासिक चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. क्या अमेरिकी वाकई पहली बार किसी महिला को देश की कमान सौंपने की तैयारी में है? इसमें कोई संदेह नहीं कि इस मुद्दे पर यहां माहौल बेहद निराशाजनक है.

इसे भी पढ़ें: अमेरिका की 'आडवाणी' बनने जा रही हैं हिलेरी क्लिंटन !

बीते कुछ हफ्तों के दौरान अमेरिका में श्वेत, अश्वेत, पुरुष, महिला, बूढ़े, युवा से हुई बातचीत से एक बात बिलकुल साफ है- आगामी चुनावों के पहले दोनों ही पार्टी के उम्मीदवारों से लोग नाखुश हैं. पहले के अधिकांश चुनावों में ऐसा देखने को नहीं मिला था. चुनाव प्रचार में पूरी तरह से ध्रुवीकरण दिख रहा है लेकिन किसी भी खेमें में पर्याप्त उर्जा देखने को नहीं मिल रही है.

हवाई में रिपब्लिकन समर्थक सेना का एक मेजर वोट डालने के आखिरी दिन तक अनिश्चितता की स्थिति में रहा. वह नीति बनाम व्यक्ति के द्वंद से जूझ रहा था. मेजर का साफ कहना था कि महिलाओं के खिलाफ अभद्र टिप्पणी किसी सूरत में लॉकर रूम टॉक नहीं कही जा सकती.

 दोनों उम्मीदवार हैं लेकिन कोई आदर्श नहीं

मेजर ब्रैडली हडसन सेना में ईराक और अफगानिस्तान की पोस्टिंग कर चुके हैं. चुनाव की प्राइमरी के वक्त उन्होंने जेब बुश और बेन कार्सन का समर्थन किया औऱ अब ट्रंप के प्रबल समर्थक हैं. वह मानते हैं कि ई-मेल लीक मामले में हिलेरी को ट्रायल का सामना करना चाहिए. वहीं ब्रैडली उन रिपब्लिकन्स की भी आलोचना करते हैं जो मजबूती के साथ ट्रंप के पक्ष में नहीं खड़े हैं.

एक अधेड़ उम्र की अश्वेत महिला जो न्यूजर्सी टर्मिनल पर बस का इंतजार कर रही थी इस संभावना से इंकार नहीं करती कि चुनावों में ट्रंप जीत कर उभर सकते हैं. उसका कहना है कि ट्रंप सनकी हैं और नफरत से भरे हुए हैं. वहीं कुछ रिपब्लिकन सपोर्टर और सरकारी कर्मचारी जिनके साथ आखिरी प्रेसिडेंशियल डीबेट देखा था वह ट्रंप को सुनने के बाद बेहद नाराज दिखे.

आपसी मतभेद होना किसी भी देश में पार्टी पॉलिटिक्स का आधार है. लेकिन अमेरिका की सड़कों पर महसूस हो रहा गुस्सा, भ्रम,शक या फिर सामान्य उदासीनता कुछ अलग से बयान हो रहा है. वहीं प्रचार के दौरान हिंसा और चुनाव में गड़बड़ी की खबरों से विश्व के सबसे पुराने लोकतंत्र की स्थिति और खराब दिखाई दे रही है.

न्यूयार्क में एक युवा छात्र और पार्ट चाइम उबर चालक माइकल ने बताया कि वह बर्नी सैंडर्स के पक्ष में था. लेकिन जिस तरह से पार्टी ने हिलेरी क्लिंटन को सपोर्ट किया उससे उसे निराशा हुई. अब माइकल में वोट डालने की ज्यादा प्रबल इच्छा नहीं है. वहीं जापानी मूल का एक अन्य टैक्सी ड्राइवर का मानना है कि उसे परवाह नहीं कि कौन अगला राष्ट्रपति बने क्योंकि उसके मुताबिक दोनों ही उम्मीदवार इस पद के लायक नहीं हैं.

इसे भी पढ़ें: डोनाल्ड ट्रंप को ठीक से समझने के लिए ये 11 इल्जाम कम तो नहीं?

मेक्सिको की वृद्ध मनो विश्लेषक जो इन दिनों न्यूयार्क में छुट्टियां मना रही हैं ट्रंप का नाम लेते ही गुस्से से आग बबूला हो जाती हैं. हालांकि बाद में वह उम्मीद करती हैं कि अमेरिकी वोटर पूरी समझदारी से अपना वोट डालेंगे.

वहीं एक अन्य हिस्पैनिक से टाइम स्कवॉयर पर टहलते हुए बात हुई तो उन्होंने कहा कि दोनों बुरे उम्मीदवार में हिलेरी कम बुरी हैं. आगे कहती है कि अमेरिका को उम्मीदवार तय करने में और बेहतर काम करना था.

अब शायद इन लोगों की बात अमेरिका के मौजूदा चुनावों की सही स्थिति बयान कर रहे हैं. जाहिर है कि वोटिंग के दिन लोग पोलिंग बूथ पर एक समझौते के तहत ही वोट डालेंगे न कि अपनी पसंद के किसी उम्मीदवार को क्योंकि आम धारणा यही है कि दोनों की उम्मीदवार इस पद के लिए अयोग्य हैं. अब इससे पहले कि एक बार फिर अमेरिका महान बने यह जरूरी है कि उसमें वह रोमांच वापस आए जो 2008 के चुनावों के वक्त देखने को मिला.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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