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दिल्ली को अगर पूर्ण राज्य का दर्जा मिल भी गया तो भी केजरीवाल प्रदर्शन ही कर रहे होंगे!

    • कमल मित्र चिनॉय
    • Updated: 18 जून, 2018 09:08 PM
  • 18 जून, 2018 09:08 PM
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अगर कोई ऐसा मुद्दा सामने आ जाए, जहां पर उप राज्यपाल को तत्काल निर्णय लेने की जरुरत हो. ऐसे में एलजी खुद के विवेक से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं. ये तो संविधान में भी लिखा है.

दिल्ली विधानसभा की अन्य सरकारों के विपरीत आम आदमी पार्टी को उपराज्यपाल पर बिल्कुल भरोसा नहीं है. जबकि एलजी राज्‍य में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्‍व करते हैं.

ऐसा दो कारणों से है-

पहला- आम आदमी पार्टी और नजीब जंग की तनातनी. केंद्र शासित राज्यों (दिल्ली और पुदुचेरी) में उपराज्यपाल, केंद्र और प्रदेश सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका में रहते हैं. संविधान की धारा 239 एए में साफ कहा गया है- 'एलजी और उनके मंत्रियों के बीच किसी भी तरह के मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल, राष्ट्रपति से परामर्श लेंगे और उनके आदेश के अनुसार काम करेंगे...'

उप राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधि होता है जिसके पास राज्य सरकार से ज्यादा शक्ति है

हालांकि राष्ट्रपति और उपराज्यपाल पहले केंद्रीय मंत्री से बात करते हैं और उसके बाद राष्ट्रपति, उपराज्यपाल के सलाह पर ही काम करते हैं. धारा 239 एए में साफ कहा गया है- 'अगर कोई ऐसा मुद्दा सामने आ जाए, जहां पर उपराज्यपाल को तत्काल निर्णय लेने की जरुरत हो. ऐसे में एलजी खुद के विवेक से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं.'

यह आम आदमी पार्टी को किसी भी तरह की अतिरिक्त शक्ति नहीं देता है कि वो उपराज्यपाल को अनदेखा कर दे. राज्यों के पास (अर्ध-संघीय) संघ सूची में (97 शक्तियां) हैं और समवर्ती सूची में (47 शक्तियों) के साथ संघ को प्राथमिकता दी गई है, कुल 144 शक्तियां. इसमें राज्य सूची शामिल नहीं है जिसके तहत राज्यों को 66 शक्तियां प्राप्त हैं. लेकिन केंद्रशासित प्रदेशों को इनकी तुलना में बहुत ही कम शक्तियां प्राप्त हैं.

प्रसिद्ध प्रोफेसर के.सी. व्हीएर ने भारतीय संघवाद को "अर्ध-संघीय" कहा है.

एकमात्र वास्तविक संघीय शक्ति- अनुच्छेद 370 है जो कि अपवाद है. जिसे जवाहरलाल नेहरु ने लागू...

दिल्ली विधानसभा की अन्य सरकारों के विपरीत आम आदमी पार्टी को उपराज्यपाल पर बिल्कुल भरोसा नहीं है. जबकि एलजी राज्‍य में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्‍व करते हैं.

ऐसा दो कारणों से है-

पहला- आम आदमी पार्टी और नजीब जंग की तनातनी. केंद्र शासित राज्यों (दिल्ली और पुदुचेरी) में उपराज्यपाल, केंद्र और प्रदेश सरकार के बीच मध्यस्थ की भूमिका में रहते हैं. संविधान की धारा 239 एए में साफ कहा गया है- 'एलजी और उनके मंत्रियों के बीच किसी भी तरह के मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल, राष्ट्रपति से परामर्श लेंगे और उनके आदेश के अनुसार काम करेंगे...'

उप राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधि होता है जिसके पास राज्य सरकार से ज्यादा शक्ति है

हालांकि राष्ट्रपति और उपराज्यपाल पहले केंद्रीय मंत्री से बात करते हैं और उसके बाद राष्ट्रपति, उपराज्यपाल के सलाह पर ही काम करते हैं. धारा 239 एए में साफ कहा गया है- 'अगर कोई ऐसा मुद्दा सामने आ जाए, जहां पर उपराज्यपाल को तत्काल निर्णय लेने की जरुरत हो. ऐसे में एलजी खुद के विवेक से निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं.'

यह आम आदमी पार्टी को किसी भी तरह की अतिरिक्त शक्ति नहीं देता है कि वो उपराज्यपाल को अनदेखा कर दे. राज्यों के पास (अर्ध-संघीय) संघ सूची में (97 शक्तियां) हैं और समवर्ती सूची में (47 शक्तियों) के साथ संघ को प्राथमिकता दी गई है, कुल 144 शक्तियां. इसमें राज्य सूची शामिल नहीं है जिसके तहत राज्यों को 66 शक्तियां प्राप्त हैं. लेकिन केंद्रशासित प्रदेशों को इनकी तुलना में बहुत ही कम शक्तियां प्राप्त हैं.

प्रसिद्ध प्रोफेसर के.सी. व्हीएर ने भारतीय संघवाद को "अर्ध-संघीय" कहा है.

एकमात्र वास्तविक संघीय शक्ति- अनुच्छेद 370 है जो कि अपवाद है. जिसे जवाहरलाल नेहरु ने लागू कराया था. वैसे भी ब्रिटिश सरकार के कार्य प्रणाली पर आधारित 1935 के भारत सरकार अधिनियम के तहत् संघीय प्रक्रिया को भी नकारात्मक रूप से प्रभावित किया गया था. जिन चार विपक्षी नेताओं ने हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री सीएम अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की, उन्होंने "सहकारी संघवाद" की आवश्यकता की बात की.

चार प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने केजरीवाल का साथ देकर नया मोड़ ला दिया

लेकिन क्या यह वास्तव में ऐसा कुछ है?

हालांकि, सच्चाई ये है कि केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ये सभी अरविंद केजरीवाल के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने आए थे.

अभी तक दिल्ली के एलजी अनिल बैजल ने केजरीवाल से मुलाकात नहीं की है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री का सिर्फ इतना ही अनुरोध है कि सिविल सेवा अधिकारी दिल्ली प्रशासन के कामकाज में लौट आएं और सारे काम यथावत हों. लेकिन सिविल सेवा अधिकारी अच्छी तरह जानते हैं कि एलजी द्वारा विभिन्न आधारों पर सेवा नियमों को नहीं रोका जा सकता है. एलजी अनिल बैजल विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन (वीआईएफ) के पूर्व छात्र हैं, जो कि संघ परिवार का हिस्सा है. इसलिए आप को उनपर संदेह है.

उप राज्यपाल के लिए अब जवाब देना मुश्किल होगा

लेकिन किसी भी हालत में, एलजी बैजल दिल्ली सरकार में जो कुछ भी हो रहा है, उसका जवाब नहीं दे पाएंगे. इसका मतलब ये है कि केजरीवाल केंद्र सरकार से सीधी टक्कर ले रहे हैं. आम आदमी पार्टी इसके बारे अच्छे से जानती भी है. यही कारण है कि उन्होंने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा का देने की मांग की तो की है लेकिन उस दिल्ली की परिधि में थोड़े से ही क्षेत्रफल को शामिल किया गया है. और कई महत्वपूर्ण जगहों को केंद्र सरकार के हाथों में ही छोड़ दिया गया है. हालांकि, सभी राजनीतिक दलों में, सिर्फ भारतीय जनसंघ और अब बीजेपी ने ही शुरुआत से ही एक मजबूत केंद्र का समर्थन किया है. तो, इसलिए आम आदमी पार्टी की ये चाल बहुत कामयाब रहेगी इसमें संदेह है.

कांग्रेस का आम आदमी पार्टी और केजरीवाल से बैर है. 2013 और 2015 के चुनावों में इसी नौसिखिए पार्टी ने उन्हें मात दी थी. इतना ही नहीं एमसीडी चुनावों में भी आम आदमी पार्टी कांग्रेस से कहीं आगे थी. अगर कांग्रेस और आप ने गठबंधन किया होता, तो उन्हें भाजपा की तुलना में अधिक वोट शेयर मिले होते.

लेकिन ऐसी शत्रुता ऐसी कि कांग्रेस नेता अजय माकन ने दिल्ली विधानसभा से आप के 20 विधायकों को अयोग्य करार दिए जाने का स्वागत किया. जैसा की नेता आम तौर पर करते हैं वैसा उन्होंने भी किया और दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश का स्वागत नहीं किया जिसमें उन्होंने मुख्य चुनाव आयुक्त को आम आदमी पार्टी के विधायकों को निलंबित करने से पहले सुना गया था.

कांग्रेस अगर आप के साथ होती तो भाजपा को ज्यादा नुकसान होता

और जहां तक नौकरशाही का सवाल है, आम आदमी पार्टी को अब अपनी स्थिति सुधारनी होगी. और जहां भी जरुरी हो, अफसोस व्यक्त करना होगा. जैसे की मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के प्रकरण के मामले में उन्हें अपनी गलती के लिए माफी मांग लेनी चाहिए.

लेकिन सिविल सेवा के भी अपने नियम और दायित्व हैं. कोई भी दिल्ली सरकार इनके बिना सही ढंग से काम नहीं कर सकती है. अपने समय के तेजतर्रार सिविल सर्वेंट रहे उपराज्यपाल के लिए भी अब समय आ गया है कि वो इस मुद्दे को खत्म करने में मदद करें. निश्चित रूप से इस काम में राष्ट्रपति को शामिल नहीं किया जाना चाहिए.

आखिर में मैं ये भी जोड़ना चाहूंगा कि, इस मुद्दे को जल्द से जल्द हल करने के अलावा, दिल्ली सरकार को तुरंत ही कई विवादित मुद्दों को भी सुलझा लेना चाहिए. संविधान स्पष्ट है. राज्य की शक्तियों की कमी के बावजूद अरविंद केजरीवाल, आम आदमी पार्टी और दिल्ली के नागरिक, इसका पालन करके ही लाभ उठा सकते हैं. सच्चाई यही है कि संघ की तुलना में राज्य अपेक्षाकृत शक्तिहीन हैं. और इसलिए उसे "केंद्र" कहा जाता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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