• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

6 नेता, जिनके लिए चुनाव लड़ना एक खेल से अधिक कुछ नहीं

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 17 मार्च, 2019 11:50 AM
  • 17 मार्च, 2019 11:50 AM
offline
राजनीति में कई ऐसे नाम हैं जो हर बार जीत का सेहरा नहीं, बल्कि हार की ख्वाहिश लिए चुनावी मैदान में उतरते हैं. यानी ये कहा जा सकता है कि इन लोगों के लिए चुनाव कोई जंग नहीं बल्कि महज एक खेल है. चलिए एक नजर डालते हैं इन नामों पर.

चुनाव लड़ने वाले हर शख्स के मन में यही ख्वाहिश होती है कि वह जीत जाए. दिन-रात मेहनत करना और पानी की तरह पैसा बहाने का मकसद भी जीत हासिल करना ही होता है. आपको ऐसे बहुत से उदाहरण देखने को मिल जाएंगे, जो एक के बाद एक हर चुनाव जीते हों. लेकिन जीत के जश्न से इतर कुछ ऐसे भी नाम हैं जो हार का जश्न मनाते हैं. एक के बाद एक हर चुनाव हारते हैं. बल्कि कुछ तो चुनाव लड़ते ही इसलिए हैं ताकि हार सकें और फिर उसका जश्न मना सकें.

इस बार के लोकसभा चुनाव में यूपी के मथुरा से फक्कड़ बाबा चुनाव लड़ रहे हैं. वह हर बार चुनाव लड़ते हैं और हर बार हारते हैं, लेकिन उत्साह कभी कम नहीं होता. ऐसा ही एक नाम था काका जोगिंदर सिंह 'धरतीपकड़'. अब वह दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जब भी सियासत गरमाती है, तो उनका जिक्र जरूर होता है. कई ऐसे भी नाम हैं जो हर बार जीत का सेहरा नहीं, बल्कि हार की ख्वाहिश लिए चुनावी मैदान में उतरते हैं. यानी ये कहा जा सकता है कि इन लोगों के लिए चुनाव कोई जंग नहीं बल्कि महज एक खेल है. चलिए एक नजर डालते हैं ऐसे ही नामों पर.

1- फिर चुनावी मैदान में 16 बार हारे फक्कड़ बाबा 

फक्कड़ बाबा ने गुरु ने कहा था वो 20वीं बार में जीतेंगे.

फक्कड़ बाबा 1976 से लगातार हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ते आ रहे हैं. इस बार वह यूपी की मथुरा सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं. अब तक 16 बार हारने के बाद भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ है, ना ही उन्हें अपनी हार का कोई मलाल है. उनके अपने गुरु की बात पर यकीन है, जिन्होंने कहा था कि 20वीं बार के चुनाव में जीत का ताज उनके सिर सजेगा. इस बार उनका 17वां चुनाव है. यानी ये चुनाव जीतना उनका असल मकसद नहीं हैं, वह अभी सिर्फ गिनती पूरी कर रहे हैं. उन्हें सारी उम्मीदें 20वें चुनाव से हैं, जैसा कि उनके गुरुजी ने कहा...

चुनाव लड़ने वाले हर शख्स के मन में यही ख्वाहिश होती है कि वह जीत जाए. दिन-रात मेहनत करना और पानी की तरह पैसा बहाने का मकसद भी जीत हासिल करना ही होता है. आपको ऐसे बहुत से उदाहरण देखने को मिल जाएंगे, जो एक के बाद एक हर चुनाव जीते हों. लेकिन जीत के जश्न से इतर कुछ ऐसे भी नाम हैं जो हार का जश्न मनाते हैं. एक के बाद एक हर चुनाव हारते हैं. बल्कि कुछ तो चुनाव लड़ते ही इसलिए हैं ताकि हार सकें और फिर उसका जश्न मना सकें.

इस बार के लोकसभा चुनाव में यूपी के मथुरा से फक्कड़ बाबा चुनाव लड़ रहे हैं. वह हर बार चुनाव लड़ते हैं और हर बार हारते हैं, लेकिन उत्साह कभी कम नहीं होता. ऐसा ही एक नाम था काका जोगिंदर सिंह 'धरतीपकड़'. अब वह दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जब भी सियासत गरमाती है, तो उनका जिक्र जरूर होता है. कई ऐसे भी नाम हैं जो हर बार जीत का सेहरा नहीं, बल्कि हार की ख्वाहिश लिए चुनावी मैदान में उतरते हैं. यानी ये कहा जा सकता है कि इन लोगों के लिए चुनाव कोई जंग नहीं बल्कि महज एक खेल है. चलिए एक नजर डालते हैं ऐसे ही नामों पर.

1- फिर चुनावी मैदान में 16 बार हारे फक्कड़ बाबा 

फक्कड़ बाबा ने गुरु ने कहा था वो 20वीं बार में जीतेंगे.

फक्कड़ बाबा 1976 से लगातार हर लोकसभा और विधानसभा चुनाव लड़ते आ रहे हैं. इस बार वह यूपी की मथुरा सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं. अब तक 16 बार हारने के बाद भी उनका उत्साह कम नहीं हुआ है, ना ही उन्हें अपनी हार का कोई मलाल है. उनके अपने गुरु की बात पर यकीन है, जिन्होंने कहा था कि 20वीं बार के चुनाव में जीत का ताज उनके सिर सजेगा. इस बार उनका 17वां चुनाव है. यानी ये चुनाव जीतना उनका असल मकसद नहीं हैं, वह अभी सिर्फ गिनती पूरी कर रहे हैं. उन्हें सारी उम्मीदें 20वें चुनाव से हैं, जैसा कि उनके गुरुजी ने कहा था.

2- हारने पर मेवे खिलाते थे 300 चुनाव हारने वाले जोगिंदर सिंह 'धरतीपकड़'

लोकसभा से लेकर विधानसभा और राष्ट्रपति से उपराष्ट्रपति तक हर चुनाव लड़ा जोगिंदर सिंह धरतीपकड़ ने.

1918 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गुजरावालां शहर में जन्मे काका जोगिंदर सिंह धरतीपकड़ अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन चुनावी बेला आते ही उनकी बात जरूर होती है. आजादी के बाद बरेली के कानून गोयान (शामतगंज) में बस गए थे. 1998 में उनकी मौत हुई थी, लेकिन अपने जीवन में उन्होंने 36 सालों के अंदर 300 से भी अधिक बार चुनाव लड़ने की दावेदारी ठोंकी थी. क्या लोकसभा से लेकर विधानसभा और राष्ट्रपति से लेकर उपराष्ट्रति के चुनाव उन्होंने लड़े. लेकिन हर चुनाव में हारे. सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन हर बार हारने के बाद वह सूखे मेवे और मिश्री से लोगों का मुंह मीठा कराकर हारने का जश्न मनाते थे.

3- इतनी बार हारे कि रिकॉर्ड बन गया

86 बार हारकर अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज करा लिया.

होत्ते पक्ष रंगास्वामी का कर्नाटक में जन्मे थे और कर्नाटक की राजनीति में 1967 से लेकर 2004 तक अहम भूमिका निभाई. वह एक से बढ़कर एक बाहुबली नेताओं के खिलाफ चुनाव लड़ते थे. यूं तो उन्होंने कुल 86 बार चुनाव लड़ा, लेकिन वह हर बार हार गए. हालांकि, इतने सारे चुनाव हारने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में उनका नाम जरूर दर्ज हो गया.

4- श्याम बाबू सुबुद्धि 63 सालों से लड़ रहे हैं चुनाव 

84 साल के सुबुद्धि का चुनावी वादा होता है कि जीते तो 60 साल से अधिक के लोगों का चुनाव लड़ना बंद करा देंगे.

ओडिशा के बेरहामपुर शहर के रहने वाले के. श्याम बाबू सुबुद्धि करीब 63 सालों से चुनाव लड़ रहे हैं. पेशे से होम्योपैथी डॉक्टर सुबुद्धि का चुनाव लड़ने का सिलसिला 1957 से शुरू हुआ, जो अब तक जारी है. उन्होंने अब तक 28 बार चुनाव लड़ा है और सबसे हारे हैं. देखा जाए तो वह चुनाव लड़ने के मामले में धरती पकड़ से बहुत पीछे हैं, लेकिन 63 सालों से चुनाव लड़ने वाले अकेले शख्स हैं. सबसे खास होता है उनका चुनावी वादा. वह कहते हैं कि अगर वह जीते तो 60 साल से अधिक उम्र के लोगों और एक से अधिक चुनाव क्षेत्रों से चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगवाएंगे. दिलचस्प ये है कि उनकी खुद की उम्र इस समय 84 साल है.

5- 'अडिग' हर बार हारते हैं ताकि रिकॉर्ड बन जाए

1984 से लेकर वह लगातार चुनाव लड़ते आ रहे हैं.

यूपी के काशी में रहने वाले नरेंद्र नाथ दुबे को लोग अडिग के नाम से जानते हैं. अडिग इसलिए क्योंकि 1984 से लेकर वह लगातार चुनाव लड़ते आ रहे हैं, कभी डिगे नहीं. ये चुनाव तो लड़ते हैं, लेकिन जीतने की ख्वाहिश नहीं होती. इनका सपना सिर्फ उतना है कि सबसे ज्यादा चुनाव लड़ने वालों की लिस्ट में गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज हो जाए. हम-आप इसे मजाक समझ सकते हैं, लेकिन नरेंद्र नाथ दुबे इसे संकल्प की तरह पूरा कर रहे हैं.

6- वोट नहीं देने की गुजारिश करते हैं पद्मराजन

पद्मराजन हर बार चुनाव में हारने की दुआ करते हैं और लोगों से भी वोट नहीं देने की अपील करते हैं.

डॉ. के पद्मराजन तमिलनाडु के सालेम के रहने वाले हैं. 2018 तक उन्होंने 181 चुनाव लड़े हैं और 20 लाख रुपए से भी अधिक नामांकन पर खर्च कर दिए, लेकिन कभी जीत नहीं सके. उन्हें तो इलाके के लोग 'चुनावी राजा' (Election King) के नाम से भी पुकारते हैं. वह हर बार चुनाव में हारने की दुआ करते हैं. 60 साल के पद्मराजन कभी चुनाव प्रचार में पैसे नहीं खर्च करते. उल्टा वह लोगों से मिलकर गुजारिश करते हैं कि कोई उन्हें वोट ना दे. दरअसल, उनकी ख्वाहिश गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराने की है. आपको जानकर हैरानी होगी कि पहले से ही 2004, 2014 और 2015 में वह सबसे अधिक चुनाव हारने वाले उम्मीदवार का रिकॉर्ड लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज है. वह चुनाव जीतने के लिए नहीं लड़ते, बल्कि अपना रिकॉर्ड बरकरार रखने के लिए चुनाव लड़ते हैं.

ये भी पढ़ें-

केजरीवाल की राजनीति देखने के बाद शाह फैसल से कितनी उम्मीद हो?

Christchurch shooting: साबित हो गया कि आदिल अहमद डार और ब्रेन्टॉन टेरेंट एक जैसे ज़हरीले हैं

पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर के लिए 'अमन का देवता' भी आतंकी ही है!


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲