• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

एकनाथ खडसे के चले जाने बाद फडणवीस के दुश्मनों का महाराष्ट्र से सफाया

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 22 अक्टूबर, 2020 09:33 PM
  • 22 अक्टूबर, 2020 09:33 PM
offline
एकनाथ खडसे (Eknath Khadse) के चले जाने के बाद महाराष्ट्र बीजेपी (Maharash BJP) में देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) का एकछत्र राज हो गया है - खडसे के चले जाने के बाद भी फडणवीस का कोई विरोधी अगर बचा भी है तो उसके होने का कोई मतलब नहीं है.

एकनाथ खडसे (Eknath Khadse) को आखिर बीजेपी (Maharash BJP) को अलविदा कहना ही पड़ा. वो भी तब जब देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) महाराष्ट्र से बाहर हैं. कहना मुश्किल है कि एकनाथ खडसे के फैसले से कौन ज्यादा राहत महसूस कर रहा होगा - देवेंद्र फडणवीस या खुद एकनाथ खडसे?

बीजेपी का बिहार चुनाव का प्रभारी बनने के बाद देवेंद्र फडणवीस की झोली में तोहफों की बरसात हो रही है. किसी चुनाव प्रभारी के लिए अपनी पार्टी की जीत के बाद जो खुशी महसूस होती है, देवेंद्र फडणवीस को पहले ही अहसास होने लगा है. ये भी जरूरी तो नहीं चुनाव बाद वो खुशी मिले ही जिसका इंतजार है.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को काफी बड़ी राहत तो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हाल ही में तभी दे डाली जब वो अपनी नयी टीम खड़ी कर रहे थे - बाकी बची-खुची खुशी खुद एकनाथ खडसे ने गिफ्ट कर दी है, जो कभी फडणवीस को फूटी आंख भी नहीं सुहाये.

चालीस साल बाद!

40 साल तक बीजेपी में रहने के बाद पार्टी छोड़ने पर एकनाथ खडसे का दर्द जबान पर आ ही गया. महाराष्ट्र में बीजेपी के कद्दावर नेता रहे एकनाथ खडसे ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का नाम लेकर खूब भड़ास निकाली है. एकनाथ खडसे ने साफ तौर पर कहा है कि देवेंद्र फडणवीस के चलते ही उनको बीजेपी छोड़नी पड़ी है.

देवेंद्र फडणवीस के लिए निजी तौर पर भले ही फायदे की बात हो, लेकिन महाराष्ट्र बीजेपी के लिए उसके बड़े और मजबूत बहुजन चेहरे का मजबूर होकर दुश्मन दल के गले लगना भी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका माना जाएगा.

जिस बीजेपी को शिवसेना नेता बाला साहेब ठाकरे ने कभी कमला बाई से ज्यादा तवज्जो न दी, उसे सत्ता तक पहुंचाने वाले नेताओं में एकनाथ खडसे अगली कतार में खड़े पाये जाते रहे. ये जरूर है कि देवेंद्र फडणवीस से उनकी कभी नहीं बनी.

तभी तो एकनाथ खडसे कहते भी हैं - देवेंद्र फडणवीस ने उनके खिलाफ साजिश रची और उनका कॅरियर पूरी तरह बर्बाद कर दिया. 2014 में जब महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार बनी तो एकनाथ खडसे...

एकनाथ खडसे (Eknath Khadse) को आखिर बीजेपी (Maharash BJP) को अलविदा कहना ही पड़ा. वो भी तब जब देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) महाराष्ट्र से बाहर हैं. कहना मुश्किल है कि एकनाथ खडसे के फैसले से कौन ज्यादा राहत महसूस कर रहा होगा - देवेंद्र फडणवीस या खुद एकनाथ खडसे?

बीजेपी का बिहार चुनाव का प्रभारी बनने के बाद देवेंद्र फडणवीस की झोली में तोहफों की बरसात हो रही है. किसी चुनाव प्रभारी के लिए अपनी पार्टी की जीत के बाद जो खुशी महसूस होती है, देवेंद्र फडणवीस को पहले ही अहसास होने लगा है. ये भी जरूरी तो नहीं चुनाव बाद वो खुशी मिले ही जिसका इंतजार है.

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को काफी बड़ी राहत तो बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने हाल ही में तभी दे डाली जब वो अपनी नयी टीम खड़ी कर रहे थे - बाकी बची-खुची खुशी खुद एकनाथ खडसे ने गिफ्ट कर दी है, जो कभी फडणवीस को फूटी आंख भी नहीं सुहाये.

चालीस साल बाद!

40 साल तक बीजेपी में रहने के बाद पार्टी छोड़ने पर एकनाथ खडसे का दर्द जबान पर आ ही गया. महाराष्ट्र में बीजेपी के कद्दावर नेता रहे एकनाथ खडसे ने पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का नाम लेकर खूब भड़ास निकाली है. एकनाथ खडसे ने साफ तौर पर कहा है कि देवेंद्र फडणवीस के चलते ही उनको बीजेपी छोड़नी पड़ी है.

देवेंद्र फडणवीस के लिए निजी तौर पर भले ही फायदे की बात हो, लेकिन महाराष्ट्र बीजेपी के लिए उसके बड़े और मजबूत बहुजन चेहरे का मजबूर होकर दुश्मन दल के गले लगना भी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका माना जाएगा.

जिस बीजेपी को शिवसेना नेता बाला साहेब ठाकरे ने कभी कमला बाई से ज्यादा तवज्जो न दी, उसे सत्ता तक पहुंचाने वाले नेताओं में एकनाथ खडसे अगली कतार में खड़े पाये जाते रहे. ये जरूर है कि देवेंद्र फडणवीस से उनकी कभी नहीं बनी.

तभी तो एकनाथ खडसे कहते भी हैं - देवेंद्र फडणवीस ने उनके खिलाफ साजिश रची और उनका कॅरियर पूरी तरह बर्बाद कर दिया. 2014 में जब महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार बनी तो एकनाथ खडसे भी कैबिनेट में शामिल हुए. 2016 में राजस्व मंत्री रहते भ्रष्टाचार का आरोप लगने के बाद एकनाथ खडसे को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. आरोपों की जांच पड़ताल हुई और तमाम छान-बीन के बाद अदालत की तरफ से भी उनको क्लीन चिट मिल गयी, लेकिन मुख्यमंत्री ने उनकी तरफ से नजर ही मोड़ ली थी.

2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में तो उनका टिकट भी काट दिया गया. एकनाथ खडसे की जगह उनकी बेटी को बीजेपी का टिकट जरूर मिला, लेकिन वो हार गयीं. एकनाथ खडसे बेटी की हार का जिम्मेदार भी देवेंद्र फडणवीस को ही ठहराते रहे हैं.

आपका समय शुरू होता है अब!

चुनाव नतीजे आने के बाद तो एकनाथ खडसे ने देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ बेहद आक्रामक रुख ही अख्तियार कर लिया. ऐसा कोई भी मौका नहीं देखने को मिलता रहा जब देवेंद्र फडणवीस पर हमला बोलने से एकनाथ खडसे पीछे रह जाते हों. पंकजा मुंडे के साथ मिल कर भी एकनाथ खडसे ने देवेंद्र फडणवीस के खिलाफ मुहिम चलायी लेकिन नाकाम रहे. पंकजा मुंडे का भी आरोप रहा है कि उनको भी बीजेपी नेताओं की साजिश चलते हरा दिया गया, जैसे एकनाथ खडसे अपनी बेटी को लेकर आरोप लगाते रहे हैं.

महाराष्ट्र में इसी साल कोरोना संकट के बीच ही विधान परिषद के चुनाव कराये गये थे. वही चुनाव जिसके बाद विधान परिषद पहुंच जाने के चलते उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ी थी. एकनाथ खडसे को भी पंकजा मुंडे जैसे नेताओं की तरह ही काफी उम्मीद रही कि उनको MLC बना दिया जाएगा, लेकिन देवेंद्र फडणवीस कुंडली मार कर बैठ गये, फिर मजाल क्या कि उनकी मर्जी के खिलाफ बीजेपी कोई कदम बढ़ाने की भी सोचे.

हाल ही में जब बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपनी नयी टीम बनायी तो फडणवीस के कई विरोधियों को दिल्ली अटैच कर लिया - पंकजा मुंडे के अलावा एक प्रमुख नाम विनोद तावड़े का भी रहा, लेकिन एकनाथ खडसे को किसी ने पूछा तक नहीं. एकनाथ खडसे को छोड़ दें तो ले देकर देवेंद्र फडणवीस के एक विरोधी आशीष शेलार बचे, लेकिन अब तो अकेला चना भाड़ फोड़ने से भी रहा.

हो सकता है, बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी जगह न मिलने के फौरन बाद ही एकनाथ खडसे ने मान लिया हो कि बीजेपी में बने रहने का कोई मतलब नहीं रहा.

अब तो खुल कर खेलेंगे एकनाथ खडसे!

हो सकता है देवेंद्र फडणवीस और उनके प्रभाव के चलते बीजेपी नेतृत्व को लग रहा हो कि एकनाथ खडसे से पीछा छूटा, लेकिन उनका ऐसा सोचना भारी भूल भी हो सकती है. एकनाथ खडसे के अब एनसीपी ज्वाइन करने की चर्चा है - और जब इतना सब हुआ तो मंत्री पद भी मिलना तय माना जाना चाहिये.

एकनाथ खडसे जब तक बीजेपी में रहे, देवेंद्र फडणवीस को लेकर हमलावर जरूर रहे, लेकिन फिर से अच्छे दिनों की उम्मीद में पार्टी के अनुशासन का भी पूरा लिहाज रखा - अब वो खुल कर मैदान में उतर गये हैं और विरोधी खेमे में जाने के बाद और भी खतरनाक रूप देखने को मिल सकता है.

एकनाथ खडसे ने बीजेपी ऐसे वक्त छोड़ी है जब उसका पहला मकसद उद्धव ठाकरे को कुर्सी से उतारना है. एक तरफ बीजेपी और शिवसेना में आमने सामने की भिड़ंत चल रही है, तो दूसरी तरफ होटल में छुप छुप कर देवेंद्र फडणवीस और संजय राउत मुलाकात भी करते हैं. हो सकता है एकनाथ खडसे की राह में वो मुलाकात भी बाधा बनी हो.

वैसे तो एकनाथ खडसे के लिए एनसीपी के मुकाबले शिवसेना बेहतर विकल्प हो सकती थी - क्योंकि पाला बदलने के बाद भी एकनाथ खडसे को 'हिंदुत्व' या फिर खुद के 'सेक्युलर' हो जाने जैसे सवालों के जवाब नहीं देने पड़ते. सियासी जिंदगी के बेहतरीन चार दशक एक विचारधारा को जीने के बाद अचानक सेक्युलर होना भी बहुत आसान नहीं है. ये करीब करीब वैसे ही है जैसे एसएम कृष्णा, मुकुल रॉय, रीता बहुगुणा और टॉम वडक्कन जैसे नेताओं के सामने बीजेपी में चले जाने के बाद से चुनौतियों का अंबार खड़ा हो गया है.

बीजेपी छोड़ने के बावजूद, फिलहाल तो एकनाथ खडसे की बल्ले बल्ले है, लेकिन मुश्किल तब होगा जब शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ कर फिर से बीजेपी से हाथ मिला ले. वैसे ऐसी ही कोशिशें एनसीपी की तरफ से भी परदे के पीछ चल ही रही हैं.

एकनाथ खडसे के बीजेपी छोड़ने पर उद्धव ठाकरे का भी बयान आया है - पहले हमने उन्हें छोड़ा, फिर अकाली दल ने उनका साथ छोड़ा, लेकिन अब उनके अपने लोग ही पार्टी छोड़ रहे हैं. बीजेपी को सोचना चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

साथ ही, उद्धव ठाकरे ने एकनाथ खडसे कोस हाथों हाथ लिया भी है, 'महा विकास आघाड़ी में उनका स्वागत है' - लगता तो ऐसा ही है कि उद्धव ठाकरे NCP में आने का नहीं बल्कि एकनाथ खडसे को अपने कैबिनेट में स्वागत के लिए तैयार होने का संकेत दे रहे हैं.

इन्हें भी पढ़ें :

उद्धव-कोश्यारी विवाद में शरद पवार की दिलचस्पी भी दिलचस्प लगती है!

उद्धव ठाकरे का कट्टर हिंदू या सेक्युलर होना नहीं, राज्यपाल का पत्र जरूर आपत्तिजनक है

संजय राउत स्टैंडअप कॉमेडी सीख रहे हैं या कुणाल कामरा नेतागिरी?


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲