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Kafeel Khan पर से NSA हटा, साध्वी प्रज्ञा मकोका से मुक्त हुईं थीं- प्रतिक्रिया एक सी क्यों नहीं?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 02 सितम्बर, 2020 02:43 PM
  • 02 सितम्बर, 2020 02:43 PM
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पेशे से डॉक्टर, कफील खान (Kafeel Khan) CAA विरोधी प्रदर्शनों के दौरान अपनी गतिविधि को लकर धरे गए. साध्वी प्रज्ञा (Sadhvi Pragya) भी मालेगांव ब्लास्ट (Malegaon Blast) को लेकर पकड़ीं गईं. दोनों आज जेल से बाहर हैं. लेकिन जो लोग कफील खान के हक़ में बयानबाजी कर रहे हैं वो साध्वी को हर पल आतंकी (Terrorist)कहने से नहीं चूकते.

Selective Approach या ये कहें कि चुनिंदा रवैया गलत है. मतभेद जन्म लेते हैं और इंसान कभी एक नहीं होता. अब कफील खान मामले (Kafeel Khan case) को ही देख लीजिए, अदालत के एक फैसले के बाद कफील के समर्थक ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे हैं. वहीं जब 2017 में मालेगांव बम (Malegaon Bomb Blast) धमाके में आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (Sadhvi Pragya) पर से कोर्ट ने मकोका हटाया था तब यही लोग थे जो आहत थे और जिन्होंने अदालत के फैसले को कानून की हार बताया था. बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने डॉक्टर कफील खान (Kafeel Khan) को तुरंत रिहा करने के आदेश दिये हैं. भाजपा विरोधी कई दलों ने कफील को अपना नैतिक समर्थन दिया है. हो सकता है कल को वे कोई पार्टी ही ज्वाइन कर लें. यह ठीक वैसा ही जैसे साध्वी प्रज्ञा को भाजपा ने अपना समर्थन देकर चुनाव लड़वा दिया.  डॉक्टर कफील खान को सीएए (CAA), एनआरसी (NRC) के विरोध के दौरान अलीगढ़ विश्वविद्यालय में 13 दिसंबर 2019 को कथित रूप से भावना भड़काने वाले भाषण देने के आरोप में यूपी पुलिस (P Police) ने गिरफ्तार किया था. वेे यूनिवर्ससिटी गेेेट कह रहे थे कि देश के 25 करोड़ मुसलमान इकट्ठा होकर बताएंगे कि देश कैसे चलाना है. इस कार्यक्रम के बाद अलीगढ़ में जमकर प्रदर्शन हुआ. पुलिस प्रशासन ने कफील के भाषण को भड़काऊ माना, लेकिन कफील के समर्थक जो दिल्ली में कपिल मिश्रा के भाषण को भड़काऊ मान रहे थे, उन्होंने कफील को बली का बकरा करार दिया.

साध्वी प्रज्ञा को आतंकी कहने वालों का डॉक्टर कफील को बेगुनाह कहना विचलित करता है

न्यायालय ने डॉक्टर कफील ख़ान पर रासुका लगाने संबंधी डीएम अलीगढ़ के 13 फरवरी 2019 के आदेश को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है. डॉक्टर कफील खान मामले में सरकार ने दुबारा रासुका की अवधि बढ़ाने...

Selective Approach या ये कहें कि चुनिंदा रवैया गलत है. मतभेद जन्म लेते हैं और इंसान कभी एक नहीं होता. अब कफील खान मामले (Kafeel Khan case) को ही देख लीजिए, अदालत के एक फैसले के बाद कफील के समर्थक ख़ुशी से फूले नहीं समा रहे हैं. वहीं जब 2017 में मालेगांव बम (Malegaon Bomb Blast) धमाके में आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर (Sadhvi Pragya) पर से कोर्ट ने मकोका हटाया था तब यही लोग थे जो आहत थे और जिन्होंने अदालत के फैसले को कानून की हार बताया था. बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने डॉक्टर कफील खान (Kafeel Khan) को तुरंत रिहा करने के आदेश दिये हैं. भाजपा विरोधी कई दलों ने कफील को अपना नैतिक समर्थन दिया है. हो सकता है कल को वे कोई पार्टी ही ज्वाइन कर लें. यह ठीक वैसा ही जैसे साध्वी प्रज्ञा को भाजपा ने अपना समर्थन देकर चुनाव लड़वा दिया.  डॉक्टर कफील खान को सीएए (CAA), एनआरसी (NRC) के विरोध के दौरान अलीगढ़ विश्वविद्यालय में 13 दिसंबर 2019 को कथित रूप से भावना भड़काने वाले भाषण देने के आरोप में यूपी पुलिस (P Police) ने गिरफ्तार किया था. वेे यूनिवर्ससिटी गेेेट कह रहे थे कि देश के 25 करोड़ मुसलमान इकट्ठा होकर बताएंगे कि देश कैसे चलाना है. इस कार्यक्रम के बाद अलीगढ़ में जमकर प्रदर्शन हुआ. पुलिस प्रशासन ने कफील के भाषण को भड़काऊ माना, लेकिन कफील के समर्थक जो दिल्ली में कपिल मिश्रा के भाषण को भड़काऊ मान रहे थे, उन्होंने कफील को बली का बकरा करार दिया.

साध्वी प्रज्ञा को आतंकी कहने वालों का डॉक्टर कफील को बेगुनाह कहना विचलित करता है

न्यायालय ने डॉक्टर कफील ख़ान पर रासुका लगाने संबंधी डीएम अलीगढ़ के 13 फरवरी 2019 के आदेश को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया है. डॉक्टर कफील खान मामले में सरकार ने दुबारा रासुका की अवधि बढ़ाने का भी अनुरोध किया था जिसे कोर्ट ने अवैध करार दिया है और कहा है कि कफील खान को तत्काल प्रभाव में रिहा किया जाए. डॉ कफील खान की मां नुजहत परवीन ने NSA की कार्रवाई केे खिलाफ याचिका दाखिल की थी. मुख्य न्यायमूर्ति गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति एसडी सिंह की पीठ ने इसे स्वीकार करते हुए अपना आदेश दिया.

डॉ कफील पर रासुका लगाने के आदेश को असंवैधानिक करार देते हुए पीठ ने ये भी तर्क दिया कि बंदी (कफ़ील ख़ान) को उसका पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं दिया गया, जिन आशंकाओं पर रासुका तामील की गई उससे संबंधित लिखित दस्तावेज उसे मुहैया नहीं कराए गए.

वहीं कफील खान पर उत्तर प्रदेश की सरकार की तरफ से ये भी आरोप लगा था कि वो जेल में होने के बावजूद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों के संपर्क में हैं और इससे शहर की शांति व्यवस्था भंग होने का खतरा है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है कि कफील छात्रों से किस प्रकार से संपर्क में थे. कुल मिलाकर यूपी सरकार वो तमाम तथ्य कोर्ट में नहीं दे पाई जिससे ये आशंका जताई जा सके कि वो शांति व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं साथ ही उनपर रासुका लगाई जानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि कफील खान पर की गई रासुका के तहत कार्रवाई और उसकी अवधि बढ़ाने का आदेश दोनों कानून की नजर में अवैधानिक हैं.

 

डॉक्टर कफील की रिहाई के आदेश के बाद भांति भांति की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. और जैसा माहौल तैयार हुआ आलोचक इसे बदले की राजनीति बताते हुए यूपी सरकार के खिलाफ आ गए हैं. बीते दिनों एन्टी सीएए प्रोटेस्ट में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले एक्टर जीशान अय्यूब, डॉक्टर कफील का पक्ष लेते हुए नजर आए हैं. जीशान ने ट्वीट किया है कि, "समझ नहीं आ रहा है कि कैसे रिएक्ट करूं. डॉक्टर कफील खान के रिहा होने की खुशी भी है, पर बार-बार यह याद आ रहा है कि इतना सुलझा हुआ केस होने के बावजूद बहुत लंबे समय तक उन्हें जेल में रहना पड़ा. पर एक उम्मीद तो बंधी है. लड़ेंगे साथी, जीतेंगे साथी.

सरकार की प्रबल आलोचकों में शुमार स्वरा भास्कर ने भी मामले पर अपना रिएक्शन दिया है. स्वरा ने कहा है कि ,'जैसा कि हम जश्न मनाते हैं, हमें यह भी याद रखना है कि इस मासूम ने गंवाया है...क्या है वो?...जेल में 200 से अधिक दिन.'

अब चूंकि कोर्ट अपना फैसला सुना चुका है तो डॉक्टर कफील जल्द ही खुली हवा में सांस लेंगे लेकिन कफील की इस रिहाई और रिहाई पर मिली प्रतिक्रियाओं ने समर्थकों को सवालों के घेरे में जकड़ लिया है.

बुनियादी बात ये है कि आरोपी का एजेंडा प्रतिक्रिया देने वाले कि राजनीतिक विचारधारा से कितना मेल खाता है. पेशे से डॉक्टर, कफील खान CAA विरोधी प्रदर्शनों के दौरान अपनी गतिविधि को लकर धरे गए. साध्वी प्रज्ञा भी मालेगांव ब्लास्ट को लेकर पकड़ीं गईं. दोनों आज जेल से बाहर हैं. लेकिन जो लोग कफील खान के हक़ में बयानबाजी कर रहे हैं वो साध्वी को हर पल आतंकी कहने से नहीं चूकते.

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