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डोकलाम विवाद ने और बढाई भारत-भूटान मित्रता की अहमियत

    • बिजय कुमार
    • Updated: 31 अगस्त, 2017 09:11 PM
  • 31 अगस्त, 2017 09:11 PM
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पूरे विवाद में भूटान ने हमारा साथ देकर एकबार फिर दोनों देशों की अटूट दोस्ती की मिशाल पेश की है. जब भारत ने डोका-ला क्षेत्र में चीनी सैनिकों द्वारा बनायी जा रही सड़क का विरोध किया तो इसमें भूटान ने खुलकर भारत का पक्ष लिया

भारत और चीन के बीच जून महीने की शुरुआत से जारी डोकलाम विवाद फ़िलहाल दोनों देशों द्वारा अपने-अपने सैनिकों को वापस बुलाने के साथ ही समाप्त हो गया है. चीन में आगामी ब्रिक्स सम्मलेन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने से पहले इसे एक बड़ी जीत माना जा रहा है. ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगियों की ही देन थी कि भारत ने बिना हो हल्ला किये बड़ी समझदारी दिखते हुए इस मसले को सुलझा लिया.

पूरे विवाद में भूटान ने हमारा साथ देकर एकबार फिर दोनों देशों की अटूट दोस्ती की मिशाल पेश की है. हमने देखा की कैसे जब भारत ने डोका-ला क्षेत्र में चीनी सैनिकों द्वारा बनायी जा रही सड़क का विरोध किया तो इसमें भूटान ने खुलकर भारत का पक्ष लिया और भूटान के राजदूत ने चीन का विरोध किया. चीन ने राजनयिक, राजनीतिक और सैन्य दबाव डालकर भूटान को अपनी ओर करने और भारत का इस मामले में साथ ना देने की लाख कोशिश की. लेकिन भूटान ने अपना पक्ष मजबूती से रखा.

इस विवाद के दौरान भारत और भूटान लगातार एक दूसरे के संपर्क में रहे और दोनों देशों के राजनयिकों के बीच बातचीत जारी रही. यही नहीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस विवाद के बीच भूटान जाकर वहां के विदेश मंत्री से मुलाकात भी कि थी. इस विवाद के दौरान ही चीन ने बड़ी ही चतुराई से ये दावा भी किया कि  भूटान ने डोकलाम को उसका हिस्सा मान लिया है. जबकि भूटान ने इसे सिरे से नकार दिया दिया था. कह सकते हैं कि भूटान ने हर कदम पर हमारा साथ दिया.

यही वजह है कि चीन को पीछे हटना पड़ा और उसके बड़बोले पदाधिकारियों और मीडिया द्वारा चलाये जा रहे वाकयुद्ध में खुद मात खानी पड़ी. चीन की विस्तारवादी सोच और नीति जगजाहिर है. और उसके पड़ोसी देशों के साथ संबंध सहज नहीं हैं. हां एक अपवाद पाकिस्तान के रूप में ज़रूर है. वो भी इसलिए कि भारत के साथ पाकिस्तान के सम्बन्ध का ठीक ना होना है. चीन की मंशा हमेशा से ही छोटे पड़ोसी देशों पर दबाव बनाकर अपनी बात मनवाने की रही है. सीमा विवाद से जुड़े मुद्दों में पिछले कुछ समय से...

भारत और चीन के बीच जून महीने की शुरुआत से जारी डोकलाम विवाद फ़िलहाल दोनों देशों द्वारा अपने-अपने सैनिकों को वापस बुलाने के साथ ही समाप्त हो गया है. चीन में आगामी ब्रिक्स सम्मलेन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शामिल होने से पहले इसे एक बड़ी जीत माना जा रहा है. ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगियों की ही देन थी कि भारत ने बिना हो हल्ला किये बड़ी समझदारी दिखते हुए इस मसले को सुलझा लिया.

पूरे विवाद में भूटान ने हमारा साथ देकर एकबार फिर दोनों देशों की अटूट दोस्ती की मिशाल पेश की है. हमने देखा की कैसे जब भारत ने डोका-ला क्षेत्र में चीनी सैनिकों द्वारा बनायी जा रही सड़क का विरोध किया तो इसमें भूटान ने खुलकर भारत का पक्ष लिया और भूटान के राजदूत ने चीन का विरोध किया. चीन ने राजनयिक, राजनीतिक और सैन्य दबाव डालकर भूटान को अपनी ओर करने और भारत का इस मामले में साथ ना देने की लाख कोशिश की. लेकिन भूटान ने अपना पक्ष मजबूती से रखा.

इस विवाद के दौरान भारत और भूटान लगातार एक दूसरे के संपर्क में रहे और दोनों देशों के राजनयिकों के बीच बातचीत जारी रही. यही नहीं विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस विवाद के बीच भूटान जाकर वहां के विदेश मंत्री से मुलाकात भी कि थी. इस विवाद के दौरान ही चीन ने बड़ी ही चतुराई से ये दावा भी किया कि  भूटान ने डोकलाम को उसका हिस्सा मान लिया है. जबकि भूटान ने इसे सिरे से नकार दिया दिया था. कह सकते हैं कि भूटान ने हर कदम पर हमारा साथ दिया.

यही वजह है कि चीन को पीछे हटना पड़ा और उसके बड़बोले पदाधिकारियों और मीडिया द्वारा चलाये जा रहे वाकयुद्ध में खुद मात खानी पड़ी. चीन की विस्तारवादी सोच और नीति जगजाहिर है. और उसके पड़ोसी देशों के साथ संबंध सहज नहीं हैं. हां एक अपवाद पाकिस्तान के रूप में ज़रूर है. वो भी इसलिए कि भारत के साथ पाकिस्तान के सम्बन्ध का ठीक ना होना है. चीन की मंशा हमेशा से ही छोटे पड़ोसी देशों पर दबाव बनाकर अपनी बात मनवाने की रही है. सीमा विवाद से जुड़े मुद्दों में पिछले कुछ समय से चीन यही करता रहा है और इस बार भूटान के इस इलाके पर चीन की नज़र थी जो भारत के लिहाज से काफी अहम् है.

डोकलाम ने दोस्ती गाढी कर दी

यही वजह है कि चीन लंबे समय से भूटान के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने के लिए कोशिशें करता रहा है. भूटान ने तीनों देशों की सीमा के पास मौजूद डोकलाम में भारतीय सेना की तैनाती की अनुमति दी थी और भूटान ने 2012 के समझौते का भी पालन किया है. जिसमें तीनों देशों की सीमा के पास मौजूद सभी स्थानों से जुड़े विवादों का हल त्रिपक्षीय बातचीत के जरिए निकालने पर सहमति दी गई थी.

इस विवाद में जीत कितनी अहम् थी

सिक्किम की सीमा पर डोकलाम इलाका इस बार विवाद का केंद्र बना था. यहां चीन, भारत और भूटान की सीमाएं मिलती हैं और इसी इलाके में चीन सड़क का निर्माण कर रहा था. भूटान और चीन दोनों इस इलाके पर अपना दावा करते हैं और भारत, भूटान के दावे का समर्थन करता है. भारत ने चीन को यहां सड़क का निमार्ण रोकने को कहा था. यहां भारत की दलील थी कि इस सड़क के बनने से भारत के पूर्वोतर राज्यों को देश से जोड़ने वाले 20 किलोमीटर के गलियारे पर चीन की पहुंच बढ़ जाएगी. ये इलाका सामरिक रूप से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और यह बात चीन बहुत अच्छी तरह से जानता और समझता है.

भारत के लिए बहुत जरुरी है भूटान को अपने पक्ष में रखना

मीडिया में आ रही ख़बरों की मानें तो भूटान में अगले साल होने वाले चुनाव में विदेशों के साथ सम्बन्ध एक मुद्दा बन सकता है. ऐसे में चीन इसका फायदा उठा कर विपक्ष को बढ़ावा दे सकता है. मौजूदा सरकार भारत के साथ है और वो फ़िलहाल नए राजनयिक संबंध स्थापित करने के पक्ष में नहीं है. वैसे भी भूटान का शाही परिवार भारत के बहुत करीब रहा है.

फिर भी भारत को चाहिए कि वो भूटान के साथ आगे भी लगातार संपर्क बनाये रखे और चीन के हर कदम पर भी नजर रखे. क्योंकि एक बार अगर चीन ने भूटान में अपनी पैठ बना ली तो ये भारत के लिहाज से हित में नहीं होगा. हमने देखा है कि कैसे चीन ने नेपाल को एफडीआइ के जरिए अपनी ओर आकर्षित किया और आज वहां बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है. दरअसल मधेशियों के आंदोलन के बाद से ही भारत-नेपाल के रिश्ते में कुछ खटास आयी थी जिसका चीन ने बखूबी फायदा उठाया. कुछ ऐसा ही चीन ने श्रीलंका में भी किया है, वहां दोनों ने हंबनटोटा बंदरगाह को लेकर एक डील की जो भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि ये देश की सुरक्षा कि दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता रहा है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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