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राम मंदिर भूमिपूजन में दिग्विजयसिंह ने विघ्न का बीज बो ही दिया!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 21 जुलाई, 2020 10:56 PM
  • 21 जुलाई, 2020 10:56 PM
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राम मंदिर निर्माण (Ram Temple Construction) भूमि पूजन (Bhoomi Poojan) पर जिस तरह का अड़ंगा कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने डाला साफ़ है की वो अंग्रेजों की 'फूट डालो राज करो' की नीति को अमली जामा पहना कर सबसे बीच अच्छे बनना चाह रहे हैं.

ब्रिटिश हुकूमत के हाथों कोई 200 सालों तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़े रहने के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत (India) आज़ाद हुआ. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) समेत अन्य क्रांतिकारियों के योगदान से लेकर विश्व युद्ध तक कारण जो भी रहे हों तब की अंग्रेज हुकूमत ने इसे अपनी बड़ी शिकस्त माना और बदले के स्वरूप हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग अलग देश की वकालत की. हुआ भी कुछ ऐसा ही 'फूट डालो और राज करो' वाली नीति के ही परिणामस्वरूप हिंदुस्तान और पाकिस्तान दो अलग मुल्क बने जिनका झगड़ा आज आज़ादी के 7 दशकों बाद तक चल रहा है. सवाल होगा कि एक ऐसे समय में जब चारों ओर कोरोना वायरस, उसकी दवा, जैसी ये बातें हो रही हों 47 में जो हुआ या फिर 'Divide And Rule' जैसे मसले को लेकर बातें क्यों हो रही हैं? तो वजह हैं किसी जमाने में कांग्रेस पार्टी (Congress) के फायर ब्रांड नेता रह चुके दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh). जिन्होंने राम मंदिर निर्माण (Ram Temple Construction) पर जिस चतुराई से अपनी बातें रख मंदिर समर्थकों को दो वर्गों में बांटने का काम किया है साफ है कि दिग्विजय सिंह भी 'ब्रिटिश हुकूमत' की उसी चाल का अनुसरण कर रहे हैं जिसमें 'फूट डालो और राज करो' के सिद्धांत के अंतर्गत पाकिस्तान का निर्माण हुआ.

राम मंदिर पर बयान देकर दिग्विजय सिंह ने अंग्रेजों की फूट डालो राज करो नीति का पालन किया है

खबर है कि 5 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर के भूमि पूजन के सिलसिले में अयोध्या जा सकते हैं. ऐसे में दिग्विजय सिंह ने एक बड़ा गेम खेल दिया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार दिग्विजय सिंह ने न्यास का मुद्दा उठाया है और कहा है कि न्यास में शंकराचार्यों की जगह VHP-BJP नेताओं को जगह दी, हमें इस पर आपत्ति है.

ब्रिटिश हुकूमत के हाथों कोई 200 सालों तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़े रहने के बाद 15 अगस्त 1947 को भारत (India) आज़ाद हुआ. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) समेत अन्य क्रांतिकारियों के योगदान से लेकर विश्व युद्ध तक कारण जो भी रहे हों तब की अंग्रेज हुकूमत ने इसे अपनी बड़ी शिकस्त माना और बदले के स्वरूप हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग अलग देश की वकालत की. हुआ भी कुछ ऐसा ही 'फूट डालो और राज करो' वाली नीति के ही परिणामस्वरूप हिंदुस्तान और पाकिस्तान दो अलग मुल्क बने जिनका झगड़ा आज आज़ादी के 7 दशकों बाद तक चल रहा है. सवाल होगा कि एक ऐसे समय में जब चारों ओर कोरोना वायरस, उसकी दवा, जैसी ये बातें हो रही हों 47 में जो हुआ या फिर 'Divide And Rule' जैसे मसले को लेकर बातें क्यों हो रही हैं? तो वजह हैं किसी जमाने में कांग्रेस पार्टी (Congress) के फायर ब्रांड नेता रह चुके दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh). जिन्होंने राम मंदिर निर्माण (Ram Temple Construction) पर जिस चतुराई से अपनी बातें रख मंदिर समर्थकों को दो वर्गों में बांटने का काम किया है साफ है कि दिग्विजय सिंह भी 'ब्रिटिश हुकूमत' की उसी चाल का अनुसरण कर रहे हैं जिसमें 'फूट डालो और राज करो' के सिद्धांत के अंतर्गत पाकिस्तान का निर्माण हुआ.

राम मंदिर पर बयान देकर दिग्विजय सिंह ने अंग्रेजों की फूट डालो राज करो नीति का पालन किया है

खबर है कि 5 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर के भूमि पूजन के सिलसिले में अयोध्या जा सकते हैं. ऐसे में दिग्विजय सिंह ने एक बड़ा गेम खेल दिया है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार दिग्विजय सिंह ने न्यास का मुद्दा उठाया है और कहा है कि न्यास में शंकराचार्यों की जगह VHP-BJP नेताओं को जगह दी, हमें इस पर आपत्ति है.

साफ है कि अपने इस बयान से न सिर्फ दिग्विजय सिंह प्रक्रिया में विघ्न डाल रहे हैं बल्कि उनकी बातें कुछ ऐसी हैं जिससे राम मंदिर के समर्थक लोगों के दिल में दरार आ सकती है और वो दो वर्गों में बंट सकते हैं.अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के तहत होने वाले भूमि पूजन के मद्देनजर दिग्विजय सिंह ने कहा है,' हर कोई चाहता है कि भव्य राम मंदिर बने. लेकिन उन्होंने (केंद्र) न्यास में शंकराचार्यों को जगह नहीं दी, इसके बजाय वीएचपी और बीजेपी नेताओं को इसका सदस्य बनाया गया है. हमें इस पर आपत्ति है.'

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह ने कहा है कि अगर पीएम मोदी 5 अगस्त को मंदिर का शिलान्यास करते हैं, तो रामनंदी संप्रदाय के सभी शंकराचार्य और स्वामी रामनरेशाचार्य जी को समारोह में आमंत्रित किया जाना चाहिए और न्यास का सदस्य बनाना चाहिए.

बता दें कि महंत नृत्यगोपाल दास ने मंदिर की आधारशिला रखने के लिए देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निमंत्रण पत्र भेजा था. संतों की मांग थी कि पीएम राम मंदिर मुद्दे को गंभीरता से लें और खुद अयोध्या आकर मंदिर का निर्माण शुरू कराएं. कहा जा रहा है कि पीएम मोदी ने भी संत समाज की तरफ से लिखी गयी इस चिट्ठी का संज्ञान लिया था मगर कोरोना वायरस ने इस पूरे प्लान पर रुकावट डाल दी.

मामले पर रामलला मंदिर के प्रधान पुजारी सत्येंद्र दास ने भी अपना पक्ष रखा था और मांग की थी कि ट्रस्ट की बैठक में पीएम का कार्यक्रम तय किया जाए, जिससे मंदिर का निर्माण जल्द शुरू हो सके. मंदिर की आधारशिला रखने पीएम आते हैं या नहीं इसका फैसला पीएम की व्यस्ताएं करेंगी.

मुद्दा यहां दिग्विजय और बड़ी ही चतुराई के साथ डाला गया उनका अड़ंगा है. तो बता दें कि ये वही दिग्विजय सिंह हैं जो लंबे समय तक भगवा आतंकवाद के पक्षधर रहें हैं और तमाम ऐसी दलीलें दी हैं जिसने कहीं न कहीं हिंदू धर्म को बदनाम करने का प्रयास किया है.

अब जिस तरह न्यास में दिग्विजय सिंह ने शंकराचार्यों को लाने का मुद्दा उठाया है साफ है कि इसके बाद संत समय और विहिप/ संघ से जुड़े लोगों के बीच एक खाई का निर्माण हो सकता है जो कि हर उस व्यक्ति के लिए बुरी खबर है जो राममंदिर निर्माण का पक्षधर है.

दिग्विजय सिंह ने जो कहा है वो चीजों को कितना प्रभावित करती हैं फैसला वक़्त करेगा। लेकिन जिस लिहाज से बातें हुईं है और विघ्न डाला गया है उससे इतना तो साफ है कि राम मंदिर निर्माण से जुड़े लोगों के बीच गतिरोध और मतभेद दोनों आएगा जो भले ही किसी और के लिए फायदेमंद न हो मगर इससे दिग्विजय सिंह और उनकी सियासत दोनों को भरपूर फायदा मिलेगा और वो शायद उस मुकाम पर आ जाएं जिसके लिए वो जाने जाते थे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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