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पाकिस्तान से बातचीत, भारत की जरूरत नहीं

    • तुफैल अहमद
    • Updated: 28 जनवरी, 2016 12:04 PM
  • 28 जनवरी, 2016 12:04 PM
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आईएसआई का मानना है कि- अगर भारत के साथ शांति से रहना था तो पाकिस्तान बनाने की जरूरत ही क्या थी? उसकी नजर में पाकिस्तान एक इस्लामी देश है, जिसका जन्म इसीलिए हुआ क्योंकि उसका भारत के साथ कोई तालमेल नहीं था.

पाकिस्तानी पत्रकार उमर आर.कुरैशी के ट्वीट के अनुसार, 21 जनवरी को डावोस में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने वर्ल्ड ईकोनॉमिक फोरम में कहा कि- 'भारत के साथ एक बार संबंध सामान्य हो जाएं और आपस में मिलकर बातचीत कर लें, उसके बाद व्यापार के लिए अपार संभावनाएं होंगी.'  

निश्चित रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत पाकिस्तान के लोगों की उन्नति के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन ये भारत की ज़रूरत नहीं है और यकीनन  इस समय प्राथमिकता पर भी नहीं. पाकिस्तान से बातचीत भारत के राष्ट्रीय हित में नहीं होती, इससे दोनों दोशों के लोगों के बीच की सद्भावना को चोट लगती है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है. आतंकवादी और पाकिस्तानी सेना की आईएसआई यही तो चाहते हैं और ये उन्हें मिलता भी है.

1947 में पाकिस्तान ने हमसे अलग होना पसंद किया और उन्हें इसी तरह रहने के लिए प्रोत्साहित भी करना चाहिए. बल्कि, अगर वो औपचारिक रूप से सउदी अरब या फिर चीन का हिस्सा बन जाएं तो इससे भारत का राष्ट्रीय हित तो होगा ही, साथ ही ये पाकिस्तान को लोगों की स्वतंत्रता को भी सुरक्षित रखेगा. अंतर्राष्ट्रीय सत्ता प्रणाली में दो तरह की सत्ता होती हैं- तर्कसंगत सत्ता और तर्कहीन सत्ता. तर्कसंगत सात्ता वो होती हैं जो पहले अपने देश के लोगों के लिए जिम्मेदार होती है, और फिर अपने पड़ोसियों और फिर पूरी दुनिया के लिए. ऐसी सत्ता के कुछ अदाहरण हैं भारत, ब्रेटेन और अमेरिका. तर्कहीन सत्ता वो होती है जो पहले धर्म और कुछ खास विचारधाराओं के प्रति जवावदेह होती हैं और अपने लोगों के लिए तो बिल्कुल नहीं. सउदी अरब, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान में ऐसा ही है.

तो अगर पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सत्ता समुदाय का सम्मानित सदस्य बनना चाहता है तो, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पाकिस्तान के लोगों के भले के लिए कुछ उपाय कर सकते हैं.

पहला- पाकिस्तान के संविधान में सुधार किए जाएं जिससे सारे पाकिस्तानी नागरिक,जैसे पाकिस्तानी इसाई, पाकिस्तानी हिंदू, पाकिस्तानी सिख, मुल्‍क का...

पाकिस्तानी पत्रकार उमर आर.कुरैशी के ट्वीट के अनुसार, 21 जनवरी को डावोस में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने वर्ल्ड ईकोनॉमिक फोरम में कहा कि- 'भारत के साथ एक बार संबंध सामान्य हो जाएं और आपस में मिलकर बातचीत कर लें, उसके बाद व्यापार के लिए अपार संभावनाएं होंगी.'  

निश्चित रूप से भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत पाकिस्तान के लोगों की उन्नति के लिए बहुत जरूरी है, लेकिन ये भारत की ज़रूरत नहीं है और यकीनन  इस समय प्राथमिकता पर भी नहीं. पाकिस्तान से बातचीत भारत के राष्ट्रीय हित में नहीं होती, इससे दोनों दोशों के लोगों के बीच की सद्भावना को चोट लगती है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचता है. आतंकवादी और पाकिस्तानी सेना की आईएसआई यही तो चाहते हैं और ये उन्हें मिलता भी है.

1947 में पाकिस्तान ने हमसे अलग होना पसंद किया और उन्हें इसी तरह रहने के लिए प्रोत्साहित भी करना चाहिए. बल्कि, अगर वो औपचारिक रूप से सउदी अरब या फिर चीन का हिस्सा बन जाएं तो इससे भारत का राष्ट्रीय हित तो होगा ही, साथ ही ये पाकिस्तान को लोगों की स्वतंत्रता को भी सुरक्षित रखेगा. अंतर्राष्ट्रीय सत्ता प्रणाली में दो तरह की सत्ता होती हैं- तर्कसंगत सत्ता और तर्कहीन सत्ता. तर्कसंगत सात्ता वो होती हैं जो पहले अपने देश के लोगों के लिए जिम्मेदार होती है, और फिर अपने पड़ोसियों और फिर पूरी दुनिया के लिए. ऐसी सत्ता के कुछ अदाहरण हैं भारत, ब्रेटेन और अमेरिका. तर्कहीन सत्ता वो होती है जो पहले धर्म और कुछ खास विचारधाराओं के प्रति जवावदेह होती हैं और अपने लोगों के लिए तो बिल्कुल नहीं. सउदी अरब, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान में ऐसा ही है.

तो अगर पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय सत्ता समुदाय का सम्मानित सदस्य बनना चाहता है तो, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पाकिस्तान के लोगों के भले के लिए कुछ उपाय कर सकते हैं.

पहला- पाकिस्तान के संविधान में सुधार किए जाएं जिससे सारे पाकिस्तानी नागरिक,जैसे पाकिस्तानी इसाई, पाकिस्तानी हिंदू, पाकिस्तानी सिख, मुल्‍क का राष्‍ट्रपति बनने के लिए संवैधानिक रूप से लायक हो सकें. वर्तमान में, पाकिस्तान एक जिहादी राष्ट्र है जहां कानून गैर-मुस्लिम पाकिस्तानी नागरिकों को राष्‍ट्रपति बनने की इजाजत नहीं देता. ऐसा इसलिए है कि इस्लाम में गैर-मुसलामानों को देश चलाने की इजाजत नहीं है. इस्लाम का ये स्पष्टीकरण सिर्फ आतंकी संगठन ISIS, अल-कायदा और तालिबान नहीं, बल्कि देश भर के इस्लामी मौलवियों द्वारा पेश किया गया है. एकबार पाकिस्तान अपने सारे नागरिकों को देश का राष्‍ट्रपति पद दे दे, तो मानवता की दिशा में ये बहुत बड़ी बात होगी.

दूसरा- चूंकि पाकिस्तान एक जिहादी राष्ट्र है, उन्होंने इस्लाम की ऐसी व्याख्या पेश की है जो कट्टरपंथियों के मन मुताबिक हो, जो जिहादियों का ही दूसरा रूप है.

तीसरा- पाकिस्तान के पास ईशनिंदा कानून का एक पूरा सेट है, जो किसी को भी पैगंबर मोहम्मद और दूसरे ऐतिहासिक इस्लामी लोगों और कुरान का अपमान करने से रोकता है. इनमें से एक कानून है- पाकिस्तानी पीनल कोड की धारा 295-सी, जिसमें मौत की सजा दी जाती है. इस कानून की वजह से गैर मुस्लिम पाकिस्तानियों के खिलाफ भेदभाव शुरू हो गया. ये धारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है, जो आधुनिक लोकतंत्र का एक आवश्यक सिद्धांत है. इसमें बदलाव होंगे तो पाकिस्तानी लोग सशक्त बनेंगे और उनकी सोच और समझ में बदलाव होगा.

भारत और पाकिस्तान के रिश्ते मजबूत करने के लिए पाकिस्तान के लिए ये जरूरी है कि वो इन तीनों क्षेत्रों में बुनियादी सुधार लाए. ऐसा इसलिए है क्योंकि दोनों दोशों के रिश्तों के बीच ये समस्याएं, पाकिस्तान की पहचान में निहित हैं. चूंकि पाकिस्तान को इस्लाम के नाम पर बनाया गया था, तो यहां के लोग इस्लाम के ही आधीन हैं. जबकि आध्यात्म का स्वागत तो लोगों के जीवन में होना चाहिए जिससे वो तार्किक रूप से, बारीकी से और सार्थक रूप से सोच सकें. लेकिन पाकिस्तान के मामले में ये मुश्किल है क्योंकि आईएसआई वहां वैचारिक संरक्षक की भूमिका निभा रहा है. आईएसआई वहां का सबसे ताकतवर संगठन है जो दक्षिण एशिया में शांति के खिलाफ काम करता है.

ये सच है कि भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार से तीन देश- पाकिस्तान, अफगानिस्तान और भारत के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे. लेकिन आईएसआई इसी आदर्श स्थिति के खिलाफ चौबीसों घंटे काम करता है. उनका मानना है कि- अगर भारत के साथ शांति से रहना था तो पाकिस्तान बनाने की जरूरत ही क्या थी? उसकी नजर में पाकिस्तान एक इस्लामी देश है, जिसका जन्म इसीलिए हुआ क्योंकि उसका भारत के साथ कोई तालमेल नहीं था.

नतीजा ये हुआ, कि जब भी भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत होती है, आईएसआई आतंकी हमले करता है. 1999 में भारत के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब लाहौर में एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे थे, आईएसआई ने कारगिल में सबसे बड़े जिहादी युद्ध शुरू किया. 2008 में जब अमेरिका ने पाकिस्तानी सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ पर भारत से बातचीत करने का दबाव डाला तो आईएसआई ने मुंबई पर आतंकी हमलों की तैयारी शुरू कर दी थी. ऐसे कई उदाहरण हैं जिससे साबित होता है कि बातचीत से सिर्फ आतंकी हमले होते हैं. इसी महीने के शुरुआत में आईएसआई ने पठानकोट पर हमले किए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 दिसंबर 2015 को नवाज शरीफ से मिलने लाहौर पहुंच गए थे. ये होना ही था, ये पैटर्न पाकिस्तान के समीक्षक अच्छी तरह जानते हैं.

 

इस समय में, पाकिस्तान से बातचीत करने से न सिर्फ आईएसआई के आतंकी मंसूबे कामयाब होंगे, बल्कि भारत के छद्म धर्मनिरपेक्ष लेखकों और राजनेताओं को फायदा मिलेगा. ऐसी बातें भारत के राष्ट्रीय हित के लिए ठीक नहीं हैं. ये भी कह सकते हैं कि भारत को इसकी जरूरत नहीं. इसका मतलब ये नहीं कि पाकिस्तान भारत में जिहादी भेजना बंद कर देगा. वो छद्म धर्मनिरपेक्ष लेखक जो ये तर्क देते हैं कि भारत पाकिस्तान के साथ शांति बनाए बिना प्रगति नहीं कर सकता उन्हें ये बता जरूरी है कि- आर्थिक प्रगति खुले विचारों से होती है, न कि द्विपक्षीय संबंधो से. इसराइल से सीखने की जरूरत है, जो हर रोज अपने दुश्मनों से लड़ता है और आर्थिक रूप से आगे बढ़ रहा है. पिछले कुछ दशकों में, भारत के खिलाफ पाकिस्तान की नापाक कोशिशों के बावजूद भी भारत आर्थिक रूप से मजबूत हुआ है.

भारत को पाकिस्तान के साथ सभी रिश्तों को डाउनग्रेड कर देना चाहिए. भारतीय पाकिस्तानियों के साथ कबड्डी तो खेलें, लेकिन क्रिकेट और गजलों की राजनीति तुरंत बंद हो. अगर आप संयुक्त सचिव स्तर से नीचे बातचीत करके भी अच्छे परिणाम पाते हैं, तो भारत के विदेश सचिव, विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री को पाकिस्तान भेजकर क्या मिलेगा? केवल दिखावा, या फिर एक नोबल शांति पुरस्कार? पाकिस्तान से बातचीत नहीं करने पर भारत को कोई नुकसान नहीं है. इसका मतलब ये नहीं है कि पाकिस्तान से की सारी संधियां समाप्त हो गई हैं.

कश्मीरी पासपोर्ट के बिना हफ्ते में एक बार एलओसी के पार यात्रा करते हैं, पाकिस्तानी और भारतीय ट्रक हफ्ते में चार दिन एक दूसरे की सीमा में प्रवेश करते हैं. भारतीय और पाकिस्तानी नियमित तौर पर सीमा के पार यात्रा करते हैं. पाकिस्तानी गजल गायक गुलाम अली भारत के दिलों की धड़कन हैं. भारत के सिफारतकारों को ये बात दुनिया भर में फैलानी चाहिए, कुछ पैंतरेबाजी सीखनी चाहिए और अपनी बात बुलंद तरीके से रखनी चाहिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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