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Delhi election: केजरीवाल JNU Violence की खबर सुनने के बाद घर से क्‍यों नहीं निकले, जानिए...

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 06 जनवरी, 2020 03:25 PM
  • 06 जनवरी, 2020 03:25 PM
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जेएनयू हिंसा (JNU Violence) में घायल स्टूडेंट्स से तमाम नेता जाकर मिल चुके हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) नहीं गए, आखिर क्यों? दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Election) से इसका सीधा कनेक्शन है. आइए जानते हैं.

एक ओर रविवार देर शाम को जेएनयू में हिंसा (JN Violence) भड़कने को लेकर दिल्ली में सियासत गरम है, इसी बीच चुनाव आयोग (Election Commission) दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों (Delhi Election dates announcement) का ऐलान भी करने वाला है. जेएनयू की हिंसा पर राजनीति भी इसी वजह से गरम हो रही है, क्योंकि दिल्ली चुनाव सिर पर हैं. हर राजनीतिक पार्टी इस हिंसा को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने में लगी है. हर कोई बयानबाजी कर रहा है, घायलों से मिल रहा है और विरोधी पार्टियों पर हमला बोल रहा है. जेएनयू छात्रों पर इस हमले के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, बीजेपी नेता मनोज तिवारी, मीनाक्षी लेखी और कांग्रेस से अजय माकन समेत कई नेता एम्स में घायलों से मिलकर उनका हाल-चाल ले चुके हैं. हालांकि, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) इस घटना के तुरंत बाद वहां नहीं पहुंचे, जिसके चलते वह ट्रोल भी होने लगे. सवाल उठने लगे कि आखिर अरविंद केजरीवाल तुरंद क्यों नहीं गए, बाकी नेता उनसे पहले जाकर घायल छात्रों से मिल भी चुके हैं. संजय सिंह से तो लोग पूछ भी रहे हैं कि केजरीवाल क्यों नहीं आए, तो वह सिर्फ इतना ही कह पा रहे हैं कि 'आ जाएंगे'.

जेएनयू हिंसा के घायलों से तमाम नेता मिल चुके हैं, लेकिन केजरीवाल नहीं गए.

ध्रुवीकरण का हिस्‍सा नहीं बनना चाहते

अरविंद केजरीवाल के JN ना जाने की एक अहम वजह से है कि वह किसी के भी पक्ष में खड़े होकर ध्रुवीकरण का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं. वैसे भी, दिल्ली चुनाव की तारीखों (Delhi Assembly Election Dates) का ऐलान होने वाला है और इस बार अरविंद केजरीवाल के लिए दिल्ली चुनाव चुनौतीपूर्ण रहने वाला है, जिसके चलते वह हर कदम फूक-फूक कर रख रहे...

एक ओर रविवार देर शाम को जेएनयू में हिंसा (JN Violence) भड़कने को लेकर दिल्ली में सियासत गरम है, इसी बीच चुनाव आयोग (Election Commission) दिल्ली विधानसभा चुनाव की तारीखों (Delhi Election dates announcement) का ऐलान भी करने वाला है. जेएनयू की हिंसा पर राजनीति भी इसी वजह से गरम हो रही है, क्योंकि दिल्ली चुनाव सिर पर हैं. हर राजनीतिक पार्टी इस हिंसा को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने में लगी है. हर कोई बयानबाजी कर रहा है, घायलों से मिल रहा है और विरोधी पार्टियों पर हमला बोल रहा है. जेएनयू छात्रों पर इस हमले के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह, बीजेपी नेता मनोज तिवारी, मीनाक्षी लेखी और कांग्रेस से अजय माकन समेत कई नेता एम्स में घायलों से मिलकर उनका हाल-चाल ले चुके हैं. हालांकि, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) इस घटना के तुरंत बाद वहां नहीं पहुंचे, जिसके चलते वह ट्रोल भी होने लगे. सवाल उठने लगे कि आखिर अरविंद केजरीवाल तुरंद क्यों नहीं गए, बाकी नेता उनसे पहले जाकर घायल छात्रों से मिल भी चुके हैं. संजय सिंह से तो लोग पूछ भी रहे हैं कि केजरीवाल क्यों नहीं आए, तो वह सिर्फ इतना ही कह पा रहे हैं कि 'आ जाएंगे'.

जेएनयू हिंसा के घायलों से तमाम नेता मिल चुके हैं, लेकिन केजरीवाल नहीं गए.

ध्रुवीकरण का हिस्‍सा नहीं बनना चाहते

अरविंद केजरीवाल के JN ना जाने की एक अहम वजह से है कि वह किसी के भी पक्ष में खड़े होकर ध्रुवीकरण का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं. वैसे भी, दिल्ली चुनाव की तारीखों (Delhi Assembly Election Dates) का ऐलान होने वाला है और इस बार अरविंद केजरीवाल के लिए दिल्ली चुनाव चुनौतीपूर्ण रहने वाला है, जिसके चलते वह हर कदम फूक-फूक कर रख रहे हैं.

जेएनयू के हमलावरों का पता नहीं

जेएनयू हिंसा के बाद केजरीवाल ने वहां जाने में जल्दबाजी नहीं की, जिसकी एक और वजह है. दरअसल, अभी तक ये साफ नहीं हो पाया है कि वह हमलावर थे कौन. एबीवीपी (ABVP) और लेफ्ट (Left) एक दूसरे पर आरोप मढ़ रहे हैं. कुछ का कहना है कि वह बाहर से यूनिवर्सिटी में घुसे थे, तो कुछ उन्हें यूनिवर्सिटी का ही बता रहे हैं. इन तमाम सवालों में ये स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि नकाब के पीछे के चेहरे कौन थे या उनका किस से संबंध था. ऐसे में केजरीवाल जाएंगे भी तो किसके खिलाफ बोलेंगे?

जामिया और सीलमपुर नहीं भूले हैं केजरीवाल

कुछ समय पहले ही जामिया (Jamia) और फिर सीलमपुर में CAA protest में आप विधायकों के विवादित बयान से आम आदमी पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा था. अरविंद केजरीवाल नहीं चाहते कि जल्दबाजी में कोई बयानबाजी हो जाए और बाद में उसकी वजह से पार्टी को नुकसान उठाना पड़े. वैसे भी, दिल्ली चुनाव के चलते केजरीवाल इन दिनों काफी संभल कर बोलते या कुछ करते हैं.

भाजपा को नहीं देना चाहते मुद्दा

अगर अरविंद केजरीवाल जेएनयू हिंसा के मामले में वहां जाते हैं तो बेशक कुछ ना कुछ तो कहेंगे ही. आखिर वह दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. वह कुछ भी कहें, भाजपा को चुनावी मुद्दा मिल सकता है. कांग्रेस पहले ही केजरीवाल का एक पुराना ट्वीट (Kejriwal Old Tweet) निकाल कर उन पर हमले कर रही है, जिसमें उन्होंने शीला दीक्षित के ऐसे ही मौके पर ना जाने पर कहा था कि दिल्ली को ऐसी सीएम नहीं चाहिए. अब कांग्रेस और लेफ्ट केजरीवाल से कह रहे हैं कि उन्हें ऐसा सीएम नहीं चाहिए. खैर, केजरीवाल को असली खतरा भाजपा से है, ना कि कांग्रेस और लेफ्ट से, इसलिए वह अपनी राजनीतिक सूझबूझ के तहत आगे बढ़ना चाहते हैं.

चुनाव सिर्फ गवर्नेंस और नेतृत्‍व के मुद्दे पर

अरविंद केजरीवाल की कोशिश है कि दिल्ली का चुनाव सिर्फ गवर्नेंस और नेतृत्‍व के मुद्दे पर लड़ा जाए. ये दोनों ही ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर भाजपा के पास बोलने के लिए कुछ नहीं है और इन्हें केजरीवाल भुनाना चाहते हैं. भाजपा की सरकार दिल्ली में है नहीं, तो गवर्नेंस पर कुछ नहीं बोल सकते और दिल्ली के मुख्यमंत्री पद का चेहरा भाजपा ने सामने रखा नहीं है तो मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा जाना है.

भले ही अरविंद केजरीवाल जेएनयू हिंसा के घायलों से मिलने नहीं पहुंचे हैं, लेकिन ट्वीट के जरिए उन्होंने अपनी बात जरूर कह दी है. उन्होंने लिखा था कि जेएनयू में जो भी हुआ है उसको लेकर हैरत में हूं, पुलिस को तुरंत हिंसा को रोकना चाहिए. अगर छात्रों पर इस तरह हमला किया जाएगा तो देश किस तरह तरक्की करेगा? उन्होंने ये भी कहा था कि अनिल बैजल से बात कर के उन्होंने दिल्ली पुलिस को तुरंत एक्शन लेने का आदेश देने को कहा है. बता दें कि इस संबंध में केजरीवाल ने अपने घर पर बैठक भी की, जिसमें दिल्ली सरकार के बड़े नेता मौजूद थे. यानी एक बात तो साफ है कि दिल्ली चुनाव के मद्देनजर केजरीवाल हर कदम फूक-फूक कर रख रहे हैं और अपने साथियों की सलाह भी ले रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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