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टकराव छोड़ दें लेकिन केजरीवाल-सिसोदिया मारपीट तो टाल ही सकते थे

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 21 फरवरी, 2018 08:22 PM
  • 21 फरवरी, 2018 08:21 PM
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एक बार फिर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी सवालों के घेरे में है. पार्टी से जुड़े लोगों कि मानें तो आज मुख्यमंत्री केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के बर्ताव से पूरा महकमा परेशान है.

दिल्ली के चीफ सेक्रेट्री अंशु प्रकाश मारपीट मामले में जो भी बातें सामने आ रही हैं, तकरीबन हर मामले में ऐसे ही आती हैं. हर तरह के विवाद में दो पक्ष होते हैं. दोनों के अपने अपने पक्ष होते हैं. दोनों का ही दावा खुद के सही होने का होता है. मुख्यमंत्री आवास पर हुई बदसलूकी और मारपीट के इस केस में भी एक तरफ चीफ सेक्रेट्री की शिकायत है, तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की ओर से जारी वीडियो है. पुलिस सूत्रों के हवाले से मीडिया में आ रही खबरों से अब तक इतना तो साफ है कि मारपीट में चीफ सेक्रेट्री को चोटें आईं, और घटना के वक्त मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया मौजूद थे.

अफसरों के खिलाफ नेताओं की तीखी नोकझोंक, बदसलूकी और मारपीट की घटनाएं अक्सर सुनने में आती हैं. ऐसी घटनाओं के कई वीडियो वायरल भी हुए हैं. अभी अभी सबने केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी एक अफसर के साथ किस तरह पेश आ रही थीं, वीडियो में देखा ही. घटना को लेकर सहज तौर पर दो सवाल उठते हैं. क्या इस घटना को टाला जा सकता था? और क्या इसके पीछे कोई साजिश थी?

ताजा घटित मामले को देखकर कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी में अनुशासन नाम की कोई चीज नहीं है

मुख्यमंत्री आवास पर मारपीट गंभीर बात है

मुख्यमंत्री आवास के बाहर भी कोई मामूली मारपीट भी हुई रहती तो बवाल कम न होता. सुर्खियां एक दूसरे के खिलाफ साजिश और हत्या की आशंका जैसे बयानों के बोझ तले दबी हुई होतीं. सीएम आवास के भीतर मारपीट, वो भी सरकार के सबसे सीनियरर अफसर और विधायकों के बीच, और तब जब खुद सीएम और डिप्टी सीएम मौजूद हों. ये बहुत ही गंभीर बात है.

मुख्यमंत्री कार्यालय के भीतर हुई घटना के लिए टीम केजरीवाल केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी को जिम्मेदार बता रही है. आम आदमी पार्टी के नेता इसे बीजेपी...

दिल्ली के चीफ सेक्रेट्री अंशु प्रकाश मारपीट मामले में जो भी बातें सामने आ रही हैं, तकरीबन हर मामले में ऐसे ही आती हैं. हर तरह के विवाद में दो पक्ष होते हैं. दोनों के अपने अपने पक्ष होते हैं. दोनों का ही दावा खुद के सही होने का होता है. मुख्यमंत्री आवास पर हुई बदसलूकी और मारपीट के इस केस में भी एक तरफ चीफ सेक्रेट्री की शिकायत है, तो दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की ओर से जारी वीडियो है. पुलिस सूत्रों के हवाले से मीडिया में आ रही खबरों से अब तक इतना तो साफ है कि मारपीट में चीफ सेक्रेट्री को चोटें आईं, और घटना के वक्त मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया मौजूद थे.

अफसरों के खिलाफ नेताओं की तीखी नोकझोंक, बदसलूकी और मारपीट की घटनाएं अक्सर सुनने में आती हैं. ऐसी घटनाओं के कई वीडियो वायरल भी हुए हैं. अभी अभी सबने केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी एक अफसर के साथ किस तरह पेश आ रही थीं, वीडियो में देखा ही. घटना को लेकर सहज तौर पर दो सवाल उठते हैं. क्या इस घटना को टाला जा सकता था? और क्या इसके पीछे कोई साजिश थी?

ताजा घटित मामले को देखकर कहा जा सकता है कि आम आदमी पार्टी में अनुशासन नाम की कोई चीज नहीं है

मुख्यमंत्री आवास पर मारपीट गंभीर बात है

मुख्यमंत्री आवास के बाहर भी कोई मामूली मारपीट भी हुई रहती तो बवाल कम न होता. सुर्खियां एक दूसरे के खिलाफ साजिश और हत्या की आशंका जैसे बयानों के बोझ तले दबी हुई होतीं. सीएम आवास के भीतर मारपीट, वो भी सरकार के सबसे सीनियरर अफसर और विधायकों के बीच, और तब जब खुद सीएम और डिप्टी सीएम मौजूद हों. ये बहुत ही गंभीर बात है.

मुख्यमंत्री कार्यालय के भीतर हुई घटना के लिए टीम केजरीवाल केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी को जिम्मेदार बता रही है. आम आदमी पार्टी के नेता इसे बीजेपी की साजिश भी बता रहे हैं. मामला मारपीट का है इसलिए बीच में पुलिस को आना है और फिर वो मोड़ भी आना है जिसमें बहस इस बात पर भी हो सकती है कि दिल्ली पुलिस किसे रिपोर्ट करती है. अब ये भी साफ हो चुका है कि मारपीट की इस घटना में चीफ सेक्रेट्री को चोटें आई हैं. मेडिकल रिपोर्ट से मालूम हुआ है कि चीफ सेक्रेट्री अंशु प्रकाश के शरीर पर कई घाव पाये गये हैं. कटने के निशान के अलावा चेहरे पर सूजन भी है.

आये रोज आम आदमी पार्टी की तरफ से ऐसी बातें अपने आप में बहुत कुछ बता रही हैं

पहले तो ये समझने की कोशिश करें कि क्या इस घटना के पीछे कोई साजिश थी?

दरअसल, दिल्ली पुलिस के सामने भी सबसे बड़ा यही सवाल है. सीनियर पुलिस अधिकारियों के हवाले से आई मीडिया रिपोर्ट बताती है कि पुलिस को प्रथमदृष्टया इसे साजिश के ऐंगल जांच बढ़ाने की परिस्थितियां नजर आ रही हैं. पुलिस को साजिश के शक की वजह के दो बिंदु हैं. पहला, सीएम के सलाहकार का बार बार फोन करके चीफ सेक्रेट्री को बुलाना और दूसरा, घटना का मुख्यमंत्री और डिप्टी सीएम की मौजूदगी में होना और बीच बचाव की कोशिश नहीं किया जाना.

फिर तो सवाल ये उठता है कि क्या चीफ सेक्रेट्री को कोई ऐसी आशंका थी कि बार बार फोन आने पर भी वो मुख्यमंत्री आवास नहीं जाना चाहते थे? अगर चीफ सेक्रेट्री को ऐसी कोई आशंका थी तो फिर गये क्यों? चीफ सेक्रेट्री गये तो क्या ये उनका खुद का फैसला था या किसी की सलाह पर या फिर कहीं से किसी तरह के दबाव में उन्हें ऐसा करना पड़ा.

मीटिंग का आधी रात में बुलाया जाना, राशन पर मीटिंग की बात कह कर बुलाया जाना और फिर विज्ञापन रोके जाने को लेकर सफाई मांगे जाने की बात, ये सब ऐसे सवाल हैं जो संदेह बढ़ा रहे हैं. अब ये भी जानना जरूरी हो जाता है कि ऐसी नौबत आई क्यों और क्या इस घटना को टाला नहीं जा सकता था?

ये कोई पहला मौका नहीं है जब आप के लोगों ने कानून का ऐसा मखौल उड़ाया है

ऐसी नौबत आई ही क्यों?

चीफ सेक्रेट्री के साथ मारपीट के इस वाकये के दरम्यान ही एक सीनियर अफसर ने केजरीवाल सरकार के मंत्रियों पर धमकाने का आरोप लगाया है. सूचना और प्रचार विभाग के सचिव डॉ. जयदेव सारंगी ने तो डिप्टी सीएम सिसोदिया पर ही धमकाने का इल्जाम मढ़ा है. अफसर की मानें तो सिसोसिया का कहना था, "सारंगी तुम्हारा जीना हराम कर दूंगा." ये सब दिसंबर 2017 में लिखी सारंगी की एक चिट्ठी से चिट्ठी से पता चला है. सारंगी के अनुसार डेंगू के विज्ञापन को लेकर उन्हें और चीफ सेक्रेट्री को सफाई देने के लिए तलब किया गया था. अपनी चिट्ठी में सारंगी ने सिसोदिया पर गाली देने का भी आरोप लगाया है.

विज्ञापनों को लेकर एक विवाद हाल में केजरीवाल सरकार के तीन साल पूरे होने के मौके पर भी हुआ था. देखा जाय तो विज्ञापनों को लेकर केजरीवाल सरकार और अफसरों के बीच कागजी झड़प अरसे से होती रही है. ऐसे कई विज्ञापन रहे हैं जिन्हें अफसरों ने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के नाम पर नामंजूर कर दिया. ताजा विज्ञापन वो रहा जिसमें शाहरुख खान की फिल्म ओम शांति ओम से जुड़ी एक लाइन को आधार बनाकर विज्ञापन तैयार किया गया था.

केजरीवाल सरकार के एक वीडियो में लाइन थी - 'जब आप सच्चाई और ईमानदारी के रास्ते पर चलते हैं, तो ब्रह्मांड की सारी दृश्य और अदृश्य शक्तियां आपकी मदद करती हैं.' बाकी सब तो ठीक था लेकिन- 'ब्रह्मांड की सारी दृश्य और अदृश्य शक्तियां' - बस इन्हीं शब्दों पर अफसरों ने आपत्ति जता दी और विज्ञापन लटक गया.

केजरीवाल और सिसोदिया दोनों को ही समझना होगा कि उनकी हर गतिविधि पर विपक्ष नजर बनाए हुए है

जून, 2017 में भी ऐसी कुछ खबरें आई थीं. तब डिप्टी सीएम सिसोदिया ने जीएसटी पर आम लोगों और कारोबारियों के साथ फेसबुक लाइव करने की योजना बनायी. इस बाबत एक चिट्ठी सूचना और प्रचार निदेशालय को लिखी गयी. निदेशालय के सचिव की जवाबी चिट्ठी तो किसी का भी दिमाग घुमाने वाली रही, वो तो सिसोदिया ही थे. चिट्ठी में बताया गया कि इसके लिए ग्लोबल टेंडर देने पड़ेंगे- और उसमें एक महीने का वक्त लग जाएगा. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक तब भी सिसोदिया आग बबूला हो गये थे और सबको आगाह कर दिया था कि अगर बाबूगीरी आड़े आई तो ऐसे अफसरों की छुट्टी कर दी जाएगी.

तो क्या केजरीवाल सरकार के विज्ञापनों को अफसरों की हरी झंडी न मिलने के पीछे सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन ही होती है? या कोई और वजह भी?

पिछले साल जून में ही एक और खबर आई थी जिसमें अफसरों ने बड़ी ही विनम्रता के साथ काम करने से मना कर दिया. तभी सूत्रों के हवाले से पता चला था कि खुद मुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री कार्यालय में काम के लिए दर्जन भर अफसरों से संपर्क किया लेकिन कोई भी राजी नहीं हुआ. जो वजह इसको लेकर सामने आयी, बड़ी ही चौंकाने वाली रही. तब माना गया कि अफसरों को आशंका रही कि उनका भी हाल केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार और उप सचिव तरुण कुमार जैसा हो सकता है.

अफसरों को डर था कि अगर उन्होंने ऐसा कोई चार्ज लिया तो सीधे सीबीआई के रडार पर आ जाएंगे. फिर जानबूझ कर कोई मुसीबत को गले क्यों लगाये भला! ये तो साफ तौर पर समझ आ रहा है कि टीम केजरीवाल और नौकरशाहों के बीच टकराव चरम पर रहा.

ये भी बताने की जरूरत नहीं कि अफसरों की मनमानी या मजबूरी से चाहे अरविंद केजरीवाल हों या मनीष सिसोदिया कोई बेखबर नहीं था. फिर भी मुख्यमंत्री आवास पर जो कुछ हुआ उसे विधायिका और नौकरशाही के टकराव का सबसे घटिया स्वरूप ही कहा जाएगा. तो क्या खुद केजरीवाल और सिसोदिया चाहते तो इस घटना को टाला नहीं जा सकता था?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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