• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

ऊना मार्च में ही छिपा है यूपी की अगली सरकार का रहस्य

    • आईचौक
    • Updated: 11 अगस्त, 2016 06:34 PM
  • 11 अगस्त, 2016 06:34 PM
offline
ऊना मार्च को मुस्लिम समुदाय का ये समर्थन इसलिए मिल रहा है क्योंकि बात गुजरात की है, जहां बीजेपी के खिलाफ गुस्सा है. क्या ऊना गुजरात की जगह किसी और राज्य में होता तो भी ऐसा ही होता?

ऊना मार्च होने को तो गुजरात में हो रहा है, लेकिन उसका असर उत्तर प्रदेश तक होता दिख रहा है. ऊना में दलितों की पिटाई के मामले को बीजेपी भी अपने लिये बड़ा सेटबैक मान कर चल रही है - और उसी हिसाब से वो यूपी की सियासत में एक्टिव हो गयी है.

असल में सोशल इंजीनियरिंग के जिस नये फॉर्मूले पर बीएसपी और कांग्रेस काम कर रहे हैं - ऊना मार्च उसे ज्यादा मजबूत और मैच्योर फॉर्म में पेश करता नजर आ रहा है.

ऊना इफेक्ट

दलित वोट बैंक को साधने के लिए तो बीजेपी ने बिहार में भी कोई कसर बाकी न रखी, लेकिन यूपी में उसे इसका अहसास पंचायत चुनावों में हुआ होगा. ये पंचायत चुनाव और नगर निकायों के नतीजे ही थे जिन्होंने मायावती का भरोसा बढ़ाया और समाजवादी पार्टी के मन में डर पैदा किया.

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस तो इसे बहुत पहले ही भांप चुकी थी, तभी तो यूपी की सुरक्षित 80 सीटों के लिए बिलकुल फ्रेश चेहरे तैयार किये गये. इन दलित चेहरों की ट्रेनिंग की मॉनिटरिंग खुद राहुल गांधी कर रहे थे - और लखनऊ में एक वर्कशॉप में लंबा इंटरैक्शन सेशन भी चला.

इसे भी पढ़ें: ऊना पहुंच कर भी कहीं छले न जाएं दलित समुदाय के लोग

चुनावी नतीजों से उत्साहित मायावती ने उसी वक्त तैयारी शुरू कर दी थी. अपनी सोशल इंजीनियरिंग में थोड़ा संशोधन करते हुए उन्होंने 'दम' फॉर्मूले को इजाद किया - दम यानी दलित-मुस्लिम गठजोड़.

ऊना मार्च पर गौर करें तो ये दलित-मुस्लिम गठजोड़ काफी मजबूत होता प्रतीत हो रहा है.

दलितों के साथ मुस्लिम

दलितों के ऊना मार्च को मुसलमानों का जोरदार समर्थन मिल रहा है. सामाजिक मुद्दों खासकर दलितों के मामलों में बेबाक राय रखने वाले दिलीप सी मंडल अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं, "अहमदाबाद से ऊना की आजादी कूच में...

ऊना मार्च होने को तो गुजरात में हो रहा है, लेकिन उसका असर उत्तर प्रदेश तक होता दिख रहा है. ऊना में दलितों की पिटाई के मामले को बीजेपी भी अपने लिये बड़ा सेटबैक मान कर चल रही है - और उसी हिसाब से वो यूपी की सियासत में एक्टिव हो गयी है.

असल में सोशल इंजीनियरिंग के जिस नये फॉर्मूले पर बीएसपी और कांग्रेस काम कर रहे हैं - ऊना मार्च उसे ज्यादा मजबूत और मैच्योर फॉर्म में पेश करता नजर आ रहा है.

ऊना इफेक्ट

दलित वोट बैंक को साधने के लिए तो बीजेपी ने बिहार में भी कोई कसर बाकी न रखी, लेकिन यूपी में उसे इसका अहसास पंचायत चुनावों में हुआ होगा. ये पंचायत चुनाव और नगर निकायों के नतीजे ही थे जिन्होंने मायावती का भरोसा बढ़ाया और समाजवादी पार्टी के मन में डर पैदा किया.

अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस तो इसे बहुत पहले ही भांप चुकी थी, तभी तो यूपी की सुरक्षित 80 सीटों के लिए बिलकुल फ्रेश चेहरे तैयार किये गये. इन दलित चेहरों की ट्रेनिंग की मॉनिटरिंग खुद राहुल गांधी कर रहे थे - और लखनऊ में एक वर्कशॉप में लंबा इंटरैक्शन सेशन भी चला.

इसे भी पढ़ें: ऊना पहुंच कर भी कहीं छले न जाएं दलित समुदाय के लोग

चुनावी नतीजों से उत्साहित मायावती ने उसी वक्त तैयारी शुरू कर दी थी. अपनी सोशल इंजीनियरिंग में थोड़ा संशोधन करते हुए उन्होंने 'दम' फॉर्मूले को इजाद किया - दम यानी दलित-मुस्लिम गठजोड़.

ऊना मार्च पर गौर करें तो ये दलित-मुस्लिम गठजोड़ काफी मजबूत होता प्रतीत हो रहा है.

दलितों के साथ मुस्लिम

दलितों के ऊना मार्च को मुसलमानों का जोरदार समर्थन मिल रहा है. सामाजिक मुद्दों खासकर दलितों के मामलों में बेबाक राय रखने वाले दिलीप सी मंडल अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं, "अहमदाबाद से ऊना की आजादी कूच में न सिर्फ मुसलमान शामिल हैं, बल्कि मुसलमान बस्तियों में यात्रा पर फूल बरसाए जा रहे हैं. अगर यही इंसानियत 2002 में दलितों ने दिखाई होती और दंगाइयों के सामने दीवार बन कर खड़े हो गए होते... तो भारत का राजनीतिक इतिहास कुछ और होता."

ऊना मार्च के स्वागत में... [फोटो, साभार: दिलीप सी मंडल के फेसबुक वॉल से]

ऊना मार्च को मुस्लिम समुदाय का ये समर्थन इसलिए मिल रहा है क्योंकि बात गुजरात की है, जहां बीजेपी के खिलाफ गुस्सा है. क्या ऊना गुजरात की जगह किसी और राज्य में होता तो भी ऐसा ही होता? मौजूदा दौर में तो संभावना काफी मानी जा सकती है.

अगर दलितों के साथ मुस्लिम समुदाय खड़ा हो रहा है तो ऐसे समीकरण यूपी में भी बनने की प्रबल संभावना जतायी जा सकती है. आखिर गुजरात से पहले चुनाव तो यूपी में ही होने हैं.

बिहार चुनाव में देखा गया कि नीतीश कुमार को मुस्लिम वोट वोट इसलिए मिले - क्योंकि वो विश्वास दे पाये कि बीजेपी को सत्ता तक पहुंचने का माद्दा सिर्फ उन्हीं में है. महाराष्ट्र तक में डंका पीटने वाले असदुद्दीन ओवैसी को बिहार ने आखिर तक बाहरी ही समझा.

अगली सरकार का रहस्य

ऊना की घटना से बीजेपी को जोर का झटका बहुत जोर से लगा है - उसका समरसता अभियान तो टांय टांय फिस्स हो गया है. आखिर ऊना कांड के बाद दलितों के गुस्से को देखते हुए अमित शाह का समरसता कार्यक्रम टालना पड़ा. उज्जैन में समरसता स्नान और काशी में समरसता भोज के बाद आगरा में वो वैसा कोई करतब नहीं दिखा सके.

इसे भी पढ़ें: आनंदीबेन सरकार की वो गलतियां जिसके कारण भड़का दलितों का गुस्सा

संघ तो डैमेज कंट्रोल में लगा ही है, बीजेपी आलाकमान भी अब जोर शोर से जोड़ तोड़ में जुट गये हैं. रामदास अठावले को केंद्रीय मंत्रिमंडल में लाते ही बीजेपी ने मायावती पर हमला कराया - और काफी दिन तक इधर उधर टहलाने के बाद आखिरकार बीएसपी से निकले स्वामी प्रसाद मौर्या को खुले दिल से साथ लिया. बीजेपी इतना तो मान कर चल ही सकती है कि मौर्या से वोट बहुत मिले न मिले मायावती को नुकसान तो पहुंचा ही सकती है जैसे बिहार में जीतन राम मांझी के कंधे पर बंदूक रख कर नीतीश कुमार पर चलाती रही.

अमित शाह के सक्रिय होने के बाद से दूसरी पार्टियों के विधायकों के बीजेपी ज्वाइन करने की लगातार खबरें आ रही हैं. ये विधायक बीजेपी के कितने काम के होंगे ये कहना तो अभी मुश्किल होगा - लेकिन शाह फिलहाल जो मैसेज देना चाहते हैं वो तो दे ही लेंगे.

चुनावों से पहले नेताओं का पाला बदलना भी एक खास शगुन ही होता है - कहा जा सकता है कि जोड़-तोड़ तो सियासत के जेवर हैं जो हर पैबंद को ढक लेते हैं.

ऊना मार्च से बन रहा दलित-मुस्लिम गठजोड़ का स्पष्ट संकेत दे रहा है. ये गठजोड़ निश्चित तौर पर यूपी चुनाव को प्रभावित करेगा - और सूबे की अगली सरकार का रहस्य इसमें कहीं न कहीं छिपा जरूर है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲