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हैदराबाद म्यूनिसिपल इलेक्शन में 'दम' फॉर्मूले का होगा टेस्ट

    • आईचौक
    • Updated: 28 जनवरी, 2016 06:55 PM
  • 28 जनवरी, 2016 06:55 PM
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गुस्से से आग बबूला लोगों का कहना था - जब दलित युवक रोहित राष्ट्रद्रोही है तो आखिर बीजेपी को राष्ट्रदोहियों का वोट क्यों चाहिए?

दो फरवरी को ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के लिए वोटिंग होनी है. रिसर्च स्कॉलर रोहित वेमुला की खुदकुशी के बाद यहां वोटिंग समीकरण बदले नजर आ रहे हैं. अब तक इस कॉरपोरेशन में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी और कांग्रेस का दबदबा रहा है. नये माहौल में नेताओं के वोट मांगने का तरीका भी बदल गया है - और वोटर भी लामबंद नजर आ रहे हैं.

ऐसे बदले समीकरण

एक ओपिनियन पोल में ओवैसी की पार्टी और बीजेपी-टीडीपी गठबंधन को 50 प्लस और टीआरएस को 25 प्लस सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन बदले समीकरणों में ओवैसी और टीआरएस के खाते में ज्यादा सीटें जाने के कयास लगाए जा रहे हैं.

पिछले रविवार, 24 जनवरी, को बीजेपी के उम्मीदवार वोट मांगने दलितों की एक कॉलोनी में गये लोगों ने 'गो बैक' के नारे लगाने शुरू कर दिये. बीजेपी उम्मीदवार से लोगों का सवाल था- क्यों दलित लोगों के बीच वोट मांगने आ रहे हो? आखिर तुम्हें दलित लोगों के वोटों की जरूरत पड़ रही है?

ये लोग रोहित के मामले में बीजेपी सांसद बंडारू दत्तात्रेय और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के अप्रोच से ज्यादा गुस्से में थे.

गुस्से से आग बबूला लोगों का कहना था - जब दलित युवक रोहित राष्ट्रद्रोही है तो आखिर बीजेपी को राष्ट्रदोहियों का वोट क्यों चाहिए?

इसे भी पढ़ें: क्या 'दम' फैक्टर बीजेपी और सहयोगियों को वाकई डरा रहा है?

रोहित केस में बंडारू और केंद्र सरकार की जो भूमिका सामने आई उससे सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी-टीडीपी गठबंधन को होने जा रहा है. बंडारू सिंकदराबाद से सांसद हैं और बीजेपी के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन रोहित सुइसाइड केस के बाद वो चुनाव प्रचार से दूर रहे हैं. बंडारू की इलाके में खासी लोकप्रियता रही है लेकिन रोहित की खुदकुशी में उनके कथित रोल सारे चुनावी समीकरण बदल दिये...

दो फरवरी को ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के लिए वोटिंग होनी है. रिसर्च स्कॉलर रोहित वेमुला की खुदकुशी के बाद यहां वोटिंग समीकरण बदले नजर आ रहे हैं. अब तक इस कॉरपोरेशन में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी और कांग्रेस का दबदबा रहा है. नये माहौल में नेताओं के वोट मांगने का तरीका भी बदल गया है - और वोटर भी लामबंद नजर आ रहे हैं.

ऐसे बदले समीकरण

एक ओपिनियन पोल में ओवैसी की पार्टी और बीजेपी-टीडीपी गठबंधन को 50 प्लस और टीआरएस को 25 प्लस सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन बदले समीकरणों में ओवैसी और टीआरएस के खाते में ज्यादा सीटें जाने के कयास लगाए जा रहे हैं.

पिछले रविवार, 24 जनवरी, को बीजेपी के उम्मीदवार वोट मांगने दलितों की एक कॉलोनी में गये लोगों ने 'गो बैक' के नारे लगाने शुरू कर दिये. बीजेपी उम्मीदवार से लोगों का सवाल था- क्यों दलित लोगों के बीच वोट मांगने आ रहे हो? आखिर तुम्हें दलित लोगों के वोटों की जरूरत पड़ रही है?

ये लोग रोहित के मामले में बीजेपी सांसद बंडारू दत्तात्रेय और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के अप्रोच से ज्यादा गुस्से में थे.

गुस्से से आग बबूला लोगों का कहना था - जब दलित युवक रोहित राष्ट्रद्रोही है तो आखिर बीजेपी को राष्ट्रदोहियों का वोट क्यों चाहिए?

इसे भी पढ़ें: क्या 'दम' फैक्टर बीजेपी और सहयोगियों को वाकई डरा रहा है?

रोहित केस में बंडारू और केंद्र सरकार की जो भूमिका सामने आई उससे सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी-टीडीपी गठबंधन को होने जा रहा है. बंडारू सिंकदराबाद से सांसद हैं और बीजेपी के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन रोहित सुइसाइड केस के बाद वो चुनाव प्रचार से दूर रहे हैं. बंडारू की इलाके में खासी लोकप्रियता रही है लेकिन रोहित की खुदकुशी में उनके कथित रोल सारे चुनावी समीकरण बदल दिये हैं.

दलित-मुस्लिम वोट

रोहित की खुदकुशी के मामले को हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अकेले नहीं उठाया. ओवैसी ने दलितों और मुस्लिमों को एक साथ जोड़ कर पेश किया. रोहित की खुदकुशी के दो दिन बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के नेता ओवैसी ने कहा था कि दलित और मुस्लिम परिवारों को बड़े संस्थानों में दाखिल कराने के लिए कितनी कुर्बानियां देनी पड़ती है.

अब मुस्लिमों को लेकर उनकी बात सुनिये, "मैं आपको डराने की कोशिश नहीं कर रहा हूं, बल्कि ये फैक्ट है कि अगर हम सत्ता में नहीं आए तो यहां आस्था की आड़ में बीफ पर पाबंदी लगाई जा सकती है."

वैसे तो दलित और मुस्लिम गठजोड़ का एक्सपेरिमेंट यूपी में होने वाला है. लेकिन उससे पहले हैदराबाद नगर निगम चुनाव टेस्ट के लिए फिट मैदान मिल गया है.

कॉरपोरेशन की 150 सीटों के लिए हो रहे चुनाव में 65 वार्ड ऐसे हैं, जो दलित बहुल हैं - और पूरे इलाके की बात करें तो आधी आबादी सिर्फ दलितों और मुस्लिमों की है.

टीआरएस और टीडीपी ने रोहित केस से दूरी बनाए रखा है - दोनों ही पार्टियों में से किसी ने भी पूरे देश को हिला देने वाले इस मामले पर कोई बयान नहीं दिया है.

यूपी में, हालांकि, ओवैसी और मायावती के बीच गठबंधन की चर्चा होती रहती है, लेकिन यहां दोनों ने अपने अपने अलग अलग उम्मीदवार खड़े किये हैं. बीजेपी का टीडीपी के साथ गठबंधन है. तेलंगाना में सत्तारूढ़ टीआरएस और कांग्रेस भी मैदान में है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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